Chapter 16 मैं उद्घोषक

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Chapter 16 मैं उद्घोषक

Chapter 16 मैं उद्घोषक

Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

पाठ पर आधारित

प्रश्न 1.
‘सूत्र संचालक के कारण कार्यक्रम में चार चाँद लगते हैं’, इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आज के जमाने में सूत्र संचालक का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा, सूत्र संचालक अपनी प्रतिभा से उसमें चार चाँद लगा देता है। वह अपनी भाषा, आवाज में उतारचढ़ाव, अपनी हाजिरजवाबी, श्रोताओं से चुटीले संवादों, संचालन के बीच-बीच में सरसता लाने के लिए चुटकुलों, रोचक घटनाओं के प्रयोग, मंच पर उपस्थित महानुभावों के प्रति अपने सम्मान सूचक शब्दों के प्रयोग, कार्यक्रमों के अनुसार भाषा-शैली में परिवर्तन करने तथा अपनी गलती पर माफी माँग लेने आदि गुणों के कारण सूत्र संचालन में तो चार चाँद लगा ही देता हैं, उपस्थित जन-समुदाय की प्रशंसा का पात्र भी बन जाता हैं। सूत्र संचालक अपने मिलनसार व्यक्तित्व, अपने विविध विषयों के ज्ञान, कार्यक्रम के सुचारुसंचालन, अपनी अध्ययनशीलता, अपनी प्रभावशाली और मधुर आवाज के संतुलित प्रयोग आदि के बल पर कार्यक्रम में जान डाल देता है। सधे हुए सूत्र संचालक की प्रतिभा का लाभ कार्यक्रमों और उनके आयोजकों को मिलता है। इस तरह सधे हुए सूत्र संचालक के कारण कार्यक्रम में चार चाँद लग जाते हैं।

प्रश्न 2.
उत्तम मंच संचालक बनने के लिए आवश्यक गुण विस्तार से लिखिए।
उत्तर :
मंच संचालन एक कला है। अच्छा मंच संचालक कार्यक्रम में जान डाल देता है। मंच संचालक श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी होता है। वही सभा की शुरूआत करता है। उत्तम मंच संचालक बनने के लिए संचालक को अच्छी तैयारी करनी पड़ती है। जिस तरह का कार्यक्रम हो, उसी तरह की तैयारी भी होनी चाहिए। उसी के अनुरूप कार्यक्रम की संहिता लेखन करनी चाहिए। मंच संचालक के लिए प्रोटोकॉल का ज्ञान, प्रभावशाली व्यक्तित्व, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का ज्ञान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त भाषा पर उसका प्रभुत्व होना आवश्यक है।

मंच संचालक को किसी कार्यक्रम में ऐन मौके पर परिवर्तन होने पर संहिता में परिवर्तन कर संचालन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाना पड़ता है। यह क्षमता उसमें होनी चाहिए। अच्छे मंच संचालक को हर प्रकार के साहित्य का अध्ययन करना आवश्यक है। मंच संचालक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच की गरिमा बनी रहनी चाहिए। सबसे पहले मंच संचालक श्रोताओं के सामने आता है।

इसलिए उसका परिधान, वेशभूषा आदि सहज और गरिमामय होनी चाहिए। मंच संचालक के अंदर आत्मविश्वास, सतर्कता, सहजता के साथ श्रोताओं का उत्साह बढ़ाने का गुण होना आवश्यक है। इसके अलावा मंच संचालक में समयानुकूल छोटेछोटे चुटकुलों तथा रोचक घटनाओं से श्रोताओं को बाँधे रखने की शक्ति भी जरूरी है। अच्छे मंच संचालक को भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है।

भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, शब्दों का उचित प्रयोग तथा किसी प्रख्यात साहित्यकार के कथन का उल्लेख कार्यक्रम को प्रभावशाली एवं हृदयस्पर्शी बना देता है। यही उत्तम मंच संचालक की थाती होती है। उत्तम मंच संचालक बनने वाले व्यक्ति को उपर्युक्त गुणों को आत्मसात करना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
सूत्र संचालन के विविध प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आजकल संगीत संध्या तथा जन्मदिन की पार्टी का भी संचालन जरूरी हो गया है। सूत्र संचालक, मंच और श्रोताओं के बीच सेतु का कार्य करता है। कार्यक्रमों अथवा समारोहों में निखार लाने का कार्य सूत्र संचालक ही करता है। इसलिए सूत्र संचालक का बहुत महत्त्व होता है। सूत्र संचालन कई प्रकार के होते हैं। इसके मुख्यतः निम्न प्रकार होते हैं।

शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सूत्र संचालन। अलगअलग कार्यक्रमों का संचालन करने के लिए सूत्र संचालक को अलग-अलग प्रकार की सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए पदों के अनुसार नामों की सूची बनानी पड़ती है। दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रमों का सूत्र संचालन करने के पहले उन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करनी जरूरी है। कार्यक्रम की संहिता लिखकर तैयारी करनी होती हैं। सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सूत्र संचालन का कार्य हल्के-फुल्के ढंग का होता है। इनके लिए अलग संहिता लेखन की तैयारी करनी पड़ती है।

व्यावहारिक प्रयोग।

प्रश्न 1.
अपने कनिष्ठ महाविद्यालय में मनाए जाने वाले ‘हिंदी दिवस समारोह’ का सूत्र संचालन कीजिए।
उत्तर :

सूत्र संचालक : दोस्तो! हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आज महात्मा गांधी स्मारक इंटर कालेज, नाशिक में आयोजित इस समारोह में आपका हार्दिक स्वागत है। इस अवसर पर मुझे अपनी भाषा हिंदी से संबंधित कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं –

जो थी तुलसी, चंद्र, सूर, भूषण को प्यारी।
थे रहीम, रसखान आदि जिस पर बलिहारी।
छवि ने जिसको लुभा लिया, जिसकी मनहारी।
सचमुच भाषा सकल राष्ट्र की वही हमारी।।

तो दोस्तो! हिंदी दिवस के इस अवसर पर अब बारहवीं कक्षा की छात्राओं द्वारा तैयार किया गया यह सुंदर नृत्य गीत प्रस्तुत है। आपके सामने यह नृत्य गीत प्रस्तुत कर रही हैं – ऋचा, ऋधि, मधुरिमा, रोहा और अन्विता!

(कक्षा बारहवीं की लड़कियाँ –
जय माँ भारती जय, जय।
जय माँ भारती जय, जय।।
गीत गाते हुए नृत्य करती हैं।)
(तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

सूत्र संचालक : दोस्तो! तालियों की गड़गड़ाहट ही बता रही है कि यह नृत्य-गीत आप सबको कैसा लगा।

दोस्तो! अब हम आरंभ कर रहे हैं आज का मुख्य समारोह, यानी हिंदी दिवस का रंगारंग कार्यक्रम। मंच पर उपस्थित हैं हमारे कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी, आज के प्रमुख अतिथि स्थानीय राणाप्रताप. कालेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्री लोकनाथ सिन्हाजी तथा कालेज के अन्य अध्यापकगण।

सूत्र संचालक : अब हम महात्मा गांधी स्मारक इंटर कालेज के हिंदी विभाग के प्रभारी श्री श्रीपत मिश्र जी से प्रार्थना करते है कि आप हमारे प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हाजी को पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत करें। श्री श्रीपत जी मिश्र…

(श्रीपत मिश्र प्रमुख अतिथि का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत करते है। तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

दोस्तो! अब हम अपने महात्मा गांधी स्मारक इंटर कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी की ओर से प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हा जी से प्रार्थना करते हैं कि वे माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर उन्हें माल्यार्पण करें। श्रीमान लोकनाथ सिन्हा जी!

(लोकनाथ सिन्हा जी माँ सरस्वती के समक्ष रखे दीपदान के दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। वे सरस्वती की मूर्ति को माला पहनाते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

सूत्र संचालक : अब कालेज की ग्यारहवीं कक्षा की छात्राएँ – सुनीता संघवी और जाह्नवी पांडेय देवी सरस्वती का वंदना गीत प्रस्तुत करेंगी…

(सुनीता और जाह्नवी माँ सरस्वती का वंदना गीत गाती हैं)
या कुन्देन्दुतुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा। या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
(सरस्वती वंदना समाप्त होती है।) (तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

सूत्र संचालक : अब कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी । हमारे प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हा जी का परिचय देंगे और कालेज की विभिन्न गतिविधियों से आप लोगों को परिचित कराएँगे। श्री राजेंद्र पेंडसे जी…

(श्री राजेंद्र पेंडसे प्रमुख अतिथि को समारोह का अतिथि पद स्वीकार करने के लिए बधाई देते हैं और संक्षेप में उनका परिचय देते हैं।)
(वे कालेज की गतिविधियों के बारे में बताते हैं।)

सूत्र संचालक : अब मैं प्रिंसिपल साहब राजेंद्र पेंडसेजी की ओर से प्रमुख अतिथि लोकनाथ सिन्हा जी से प्रार्थना करूँगा कि वे हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता, हिंदी अंत्याक्षरी प्रतियोगिता तथा परीक्षाओं .. में प्रथम तथा द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को अपने कर कमलों से पुरस्कार प्रदान करने की कृपा करें।

सूत्र संचालक : हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता जनार्दन शर्मा मंच पर आ जाएँ।

(प्रमुख अतिथि के हाथों जनार्दन शर्मा पुरस्कार लेते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब वाद-विवाद प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार पाने वाले जयंत साठे मंच पर आ जाएँ।

(जयंत साठे पुरस्कार लेते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब हिंदी अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने वाली स्नेहा पाण्डेय मंच पर आकर अपना पुरस्कार ग्रहण करें। स्नेहा पाण्डेय।
(स्नेहा पाण्डेय प्रमुख अतिथि से पुरस्कार ग्रहण करती है। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब मैं परीक्षाओं में प्रथम तथा द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों से आग्रह करता हूँ कि वे मंच पर आकर अपने-अपने पुरस्कार ग्रहण करें। मैं पुरस्कार विजेताओं को उनके नाम से बुलाऊँगा। सभी विजेता बारी-बारी से मंच पर आकर अपनाअपना पुरस्कार प्राप्त करें।

कक्षा नौवीं : प्रथम पुरस्कार – राकेश शिंदे।
द्वितीय पुरस्कार – स्मिता सिंह।

कक्षा दसवीं : प्रथम पुरस्कार – ओंकार शर्मा।
द्वितीय पुरस्कार – रोहिणी दवे।

कक्षा ग्यारहवीं : प्रथम पुरस्कार – जतिन सेवक।
द्वितीय पुरस्कार – सचिन मेहरा।

(विजेता छात्र बारी-बारी से प्रमुख अतिथि से अपने-अपने पुरस्कार प्राप्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब कालेज के विज्ञान विभाग के प्रभारी श्री पवन राव ‘हिंदी भाषा की विशेषता’ के बारे में अपने विचार आपके सामने रखेंगे।

(पवन राव हिंदी भाषा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब हमारे कालेज के वाणिज्य विभाग के प्रभारी श्री अशोक शास्त्री जी ‘हिंदी में संभावनाएँ’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। आप लोग ध्यान से सुनिए।

(श्री अशोक शास्त्री अपने विचार व्यक्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब हमारे कालेज के हिंदी विभाग के प्रभारी श्रीपत मिश्र जी आपके समक्ष हिंदी भाषा में रोजगार की संभावनाओं के बारे में आपको बताएँगे। श्री श्रीपत मिश्र जी।

(श्री श्रीपत मिश्र अपना भाषण समाप्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब यहाँ उपस्थित सभी लोग उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे होंगे कि हमारे प्रमुख अतिथि राणाप्रताप कालेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्री लोकनाथ सिन्हा जी हिंदी भाषा के बारे में अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ। अब वे आपके समक्ष हैं।

(श्री लोकनाथ सिन्हा अपने विचार बताते हैं। तालियाँ बचती हैं।)

सूत्र संचालक : दोस्तो! आज हमारी हिंदी भाषा के बारे में आप लोगों को काफी उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त हुईं। और अब समय आ गया है कार्यक्रम की समाप्ति का।

अब कालेज के वाइस प्रिंसिपल श्री रंगनाथ दाते जी आज के हमारे प्रमुख अतिथि, अध्यापकों, विद्यार्थियों तथा उपस्थित जनसमुदाय के प्रति आभार व्यक्त करेंगे।

(वाइस प्रिंसिपल श्री रंगनाथ दाते जी आभार व्यक्त करते हैं।) (अंत में दोपहर 12.00 बजे राष्ट्रगान के साथ समारोह समाप्त हुआ।)

प्रश्न 2.
शहर के प्रसिद्ध संगीत महोत्सव का मंच संचालन कीजिए।
उत्तर :

मंच संचालक : भाइयो और बहनो! आज हमारे शहर कोल्हापुर में आयोजित प्रसिद्ध संगीत महोत्सव में आप सबका स्वागत है। और स्वागत है इस महत्त्वपूर्ण संगीत महोत्सव में अपने मधुर गीत-संगीत से श्रोताओं को सराबोर करने के लिए पधारे हुए संगीतकारों, गायक-गायिकाओं तथा उपस्थित जन-समुदाय का।।

मंच संचालक : …तो दोस्तो! प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं। अब आपके समक्ष मंच पर विराजमान हैं अपने साज-ओ-सामान के साथ शहर के प्रसिद्ध तबलावादक पंडित राधेश्यामजी। पंडित जी अपने तबलावादन के लिए पूरे जिले में विख्यात हैं। उनका साथ दे रही हैं शास्त्रीय गायिका शारदादेवी जी। पंडित जी के स्वागत में जोरदार तालियाँ…

(गायिका शारदादेवी के स्वरों के साथ पंडित राधेश्याम की उँगलियाँ तबले पर थिरकने लगती हैं। लोग वाह-वाह करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठता है।)

मंच संचालक : वाह भाई वाह! वाह वाह। पंडित जी ने वाकई अपनी वाद्य कला से श्रोताओं का मन मोह लिया। सभागार में गूंजती हुई तालियों का शोर इसका सबूत है।

मंच संचालक : दोस्तो! अब आप सुनेंगे अपनी चहेती लोकगीत गायिका राधा वर्मा को। वे आपको सावन माह की वर्षा की फुहारों के बीच गाए जाने वाले मधुर गीत कजरी के रस से सराबोर करेंगी। उनके साथ हारमोनियम पर हैं रामनाथ शर्माजी और ढोलक पर हैं पंडित राधारमण त्रिपाठी जी।

(राधा वर्मा जी अपने कजरी गीत से समां बाँध देती हैं और लोग तालियाँ बजाकर ‘वन्स मोर… वन्स मोर…’ कहकर शोर मचाते हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! शांत रहिए… शांत! राधा जी आपके आग्रह का मान जरूर रखेंगी। राधा जी प्लीज! प्लीज!

(राधा वर्मा दूसरी बार कजरी गाना शुरू करती हैं। अब श्रोता भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर गाना शुरू कर देते हैं।)

मंच संचालक : वाह! वाह! दोस्तो, कजरी गीत है ही ऐसा।

समूह में गाने पर इसका आनंद और ज्यादा, और ज्यादा बढ़ने लगता । है। वाह भाई वाह!

मंच संचालक : अब मंच पर आपके समक्ष हैं प्रसिद्ध भजन गायक सुमित संत जी। संत जी की गायकी से तो आप सब परिचित ही हैं। अपने भजनों से संत जी आपको भक्ति रस से सराबोर कर देंगे। सुमित जी के साथ तबले पर हैं कामता प्रसाद जी। हारमोनियम 1 पर हैं रामदास और सारंगीवादन कर रहे हैं प्रभु नारायण जी।

(सुमित संत ‘पायोजी मैंने रामरतन धन पायो’ तथा ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ जैसे भजनों से श्रोताओं को भक्ति रस से सराबोर कर देते हैं। तालियों और वाह! वाह के स्वर गूंजते हैं।)

मंच संचालक : वाह भाई! मेरे तो गिरधर गोपाल… (गुनगुनाते । हैं) वाह! भक्ति रस का जवाब नहीं। आत्मा-परमात्मा का मिलन
कराने वाला रस है भक्ति रस। वाह! वाह! वाह!

मंच संचालक : दोस्तो! अब आपको हम गजल गायकी की दुनिया में ले चलते हैं। मंच पर आपके सामने हैं प्रसिद्ध गजल गायक राजेंद्र शर्मा जी। गजल संभ्रांत श्रोताओं का गीत है। गजल के कई गायकों को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। श्री राजेंद्र शर्मा जी…

(राजेंद्र शर्मा की गायकी पर श्रोता झूमते हैं। एक-एक शब्द पर दाद देते हैं। वाह-वाह के शब्द सुनाई देते हैं। राजेंद्र शर्मा अपना गायन समाप्त करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! अब आप के समक्ष सितारवादक रमाशंकर जी तंत्रवाद्य सितार की मधुर ध्वनि से आपका मनोरंजन करने आ रहे है। सितारवादक रविशंकर का नाम तो आपने सुना ही होगा। अब सुनिए रमाशंकर जी को।

(सितारवादक रमाशंकर अपने सितार पर मधुर ध्वनि से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। तालियों की गडगडाहट होती है।)

मंच संचालक : दोस्तो! मृदंग के मधुर स्वर से तो आप परिचित ही होंगे। मृदंग मंदिरों में बजाया जाने वाला वाद्य हैं। इसके अलावा गाँवों में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में मृदंग वाद्य का प्रयोग होता है। तो सुनिए अब मृदंग के मधुर स्वर पंडित कमलाकांत शर्मा जी से।

(पंडित कमलाकांत अपने मृदंग पर ऐसी थपकियाँ देते हैं कि श्रोता वाह-वाह करने लगते हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! अब हम एक ऐसे वाद्य और उसे बजाने वाले व्यक्ति से आपका परिचय कराते हैं, जो वाद्य पुराने जमाने में लड़ाई के समय सैनिकों में उत्साह पैदा करने के लिए बजाया जाता था। लेकिन आजकल इसका प्रयोग गाँवों में नौटंकियों में किया जाता है। इसका नाम है नगाड़ा। आज इसे मंच पर बजा रहे हैं पंडित श्यामनारायण जी। श्यामनारायण जी का पेशा ही है नौटंकियों में नगाड़ा बजाना। तो श्यामनारायण जी… कड़कड़… कड़कड़… धम्म!

(श्यामनारायण जी नौटंकी की तर्ज पर नगाड़ा बजाते हैं। श्रोता मस्ती से सिर हिलाते हैं। कुछ दर्शक अपने स्थान पर खड़े होकर नगाड़े की तर्ज पर अभिनय भी करने लगते हैं। श्यामनारायण जी नगाड़ा वादन बंद करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! अब मैं आपके सामने आपका परिचित वाद्य यानी बाँसुरी बजाने वाले कलाकार को मंच पर अपने बाँसुरी वादन से आपका मनोरंजन करने के लिए बुलाता हूँ। दोस्तो! बाँसुरी की धून बहुत कर्णप्रिय होती है। भगवान श्री कृष्ण की बाँसुरी सुनकर गायें तक उनके पास दौड़ी चली आती थीं। तो शीतल यादव जी मंच पर अपनी बाँसुरी के साथ आपके सामने हैं।

(शीतल यादव बाँसुरी बजाते हैं। उनकी बाँसुरी की धुन से पंडाल गूंजने लगता है। तालियाँ बजती हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! संगीत महोत्सव का कार्यक्रम हो और उसमें फिल्मी गीत-संगीत का समावेश न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। दोस्तो! हम आज आपको फिल्मी गीतों के करावके संगीत की महफिल में ले चलते हैं। तो फिर देर किस बात की।…

(मंच पर करावके संगीत बजता है। इसमें सन 1960 से लेकर सन 1980 तक के मधुर गीतों के मुखड़ों संगीत बजते हैं और गायक मधुर स्वर में इन गीतों को गाते हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! आपको पॉप संगीत का मजा दिलाए बिना भला हम कैसे जाने देंगे। ऐसी कल्पना भी मत कीजिए। तो हो जाए धम… धमा… धम…।
(मंच पर दिल दहला देने वाला पॉप संगीत बजता है। लोग इस संगीत के साथ नाचने लगते हैं।)

मंच संचालक : अरे भाई, हम तो भूल ही गए। हमारे बीच एक १ बहुत ही उदीयमान कलाकार कब से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर १ रहे हैं। ये हैं बैंजो वादक मास्टर देवांश पांडेय जी। तो पांडेय जी, शुरू हो जाइए।

(देवांश पांडेय जी अपने बैंजो वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। चारों ओर से वाह-वाह का शोर होता हैं।)

मंच संचालक : अरे भाई, हमें पता है कि आप हमारे चहेते कलाकार पुत्तूचेरी पिल्लई को सुने बिना नहीं जाने वाले हैं। भाइयो! आखिर में आपके सामने श्रीमान पिल्लई साहब ही आ रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि वे –
प्यारा भारत देश हमारा।
हमको प्राणों से है प्यारा।

गीत हिंदी, मराठी, गुजराती, तमिल और तेलुगु भाषाओं में सुनाते १ हैं। आप यह देशभक्तिपूर्ण मधुर गीत सुनिए।

(श्री पिल्लई पाँच भाषाओं में यह गीत गाते हैं। तालियाँ बजती है।) (गीत समाप्त होता हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! इस गीत के साथ ही हमारा आज का संगीत महोत्सव का यह समारोह समाप्त होता है।

॥ जय हिंद ।।
(राष्ट्रगान बजता है, परदा गिरता है।)

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक लेखक का परिचय

मैं उद्घोषक लेखक का नाम :
आनंद प्रकाश सिंह। (जन्म : 21 जुलाई, 1958.)

मैं उद्घोषक प्रमुख कृतियाँ :
पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख, समीक्षाएँ, कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित।

मैं उद्घोषक विशेषता :
पंडित भीमसेन जोशी तथा कई अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा लेखक के सूत्र-संचालन की प्रशंसा। किंग ऑफ वॉईस, संस्कृति शिरोमणि तथा अखिल आकाशवाणी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित।

मैं उद्घोषक विधा :
आत्मकथा। आत्मकथा लेखन हिंदी साहित्य में रोचक और पठनीय लेखन माना जाता है। अपने अनुभवों तथा व्यक्तिगत प्रसंगों को पूरी निष्ठा से बताना आत्मकथा की पहली शर्त है। आत्मकथा उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम ‘मैं’ में लिखी जाती है।

मैं उद्घोषक विषय प्रवेश :
आजकल मंच संचालन अथवा सूत्र संचालन बहुत लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेखक एक सफल मंच संचालक और सूत्र संचालक रहे हैं। प्रस्तुत लेख में उन्होंने बताया है कि सफल उद्घोषक अथवा मंच संचालक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से आवश्यक गुण होने चाहिए। लेखक के अनुसार कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक अथवा सूत्र संचालक के आकर्षक एवं उत्तम संचालन तथा उसके अपने विशेष गुणों पर आधारित होती है।

मैं उद्घोषक पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में यह बताया गया है कि एक सफल उद्घोषक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से गुण होने चाहिए और इसमें रोजगार की क्या संभावनाएँ हैं। इस लेख के लेखक स्वयं लंबे अरसे तक एक प्रतिष्ठित उद्घोषक रहे हैं। इस आत्मकथात्मक लेख में उन्होंने अपने अनुभव से अर्जित अनेक गुणों से परिचित कराया है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 16 मैं उद्घोषक 3

उद्घोषक, मंच संचालक और एंकर अलग-अलग नाम हैं उद्घोषक के। यह श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी का काम करता है। किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उद्घोषक ही आयोजकों तथा अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करता है तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन करता है।

उदघोषक बनने के लिए कठिन अभ्यास की आवश्यकता होती है। आरंभ में मंच पर बोलने में सबको झिझक होती है। पर हिम्मत जुटाकर अभ्यास करते रहने से यह झिझक दूर हो जाती है। अधिकांश मंच संचालकों के साथ ऐसी घटनाएँ अकसर होती हैं। धीरे-धीरे उनमें आत्मविश्वास आ जाता है।

सूत्र संचालन के कई प्रकार होते हैं। इसके मुख्य प्रकार हैं – शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का सूत्र संचालन।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल १ का ध्यान रखते हुए अधिकारियों के पदों के अनुसार नामों की सूची बनाकर किसका किसके हाथों स्वागत करना है, इसकी योजना बनानी पड़ती है। इसमें आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रम का सूत्र संचालन करने के लिए इन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। इनके कार्यक्रमों की संहिता लिखकर तैयार करनी होती है।

सूत्र संचालन करते समय रोचकता, रंजकता तथा विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख कार्यक्रम में करने से उसमें जान आ जाती है। कार्यक्रम और श्रोताओं के अनुसार भाषा का प्रयोग जरूरी होता है।

सत्र संचालक को यह ध्यान रखना होता है कि जिस प्रकार का कार्यक्रम हो उसी तरह की उसकी तैयारी की जानी चाहिए और उसी तरह उसकी संहिता लेखन करना चाहिए। संचालक को चाहिए कि वह संचालन के लिए आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करे।

सूत्र संचालक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है। उसे मिलनसार, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का जानकार होने के साथ भाषा पर उसका अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा उसे आयोजकों की ओर से अचानक मिली सूचना के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर संचालन करना आना चाहिए।

लेखक कहते हैं कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच संचालक को मंच की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति मंच संचालक होता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा आदि सहज और गरिमामय होना चाहिए। उसका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास उसके शब्दों में उतरना चाहिए।

सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं। उद्घोषक को कार्यक्रम का आरंभ रोचक ढंग से करना चाहिए। बीच-बीच में प्रसंग के अनुसार चुटकुले, शेर-ओ-शायरी के अंश का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए उद्घोषक को निरंतर अध्ययन करते रहना होता है।

उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने वाला व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बन सकता है। मंच पर उद्घोषक श्रोता एवं दर्शकों के समक्ष होता है, पर रेडियो और कभी-कभी टीवी का सूत्रधार परदे के पीछे होता है। उसकी केवल आवाज सुनाई देती है। लेकिन उसका दायरा विस्तृत होता है। तब उसको अपनी आवाज का कमाल दिखाना होता है।

इस क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। विशेषकर भाषा का अध्ययन करने वाले विद्याथियों के लिए। सूत्र संचालन में तो भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

मैं उद्घोषक शब्दार्थ