Chapter 4 सिंधु का जल
Chapter 4 सिंधु का जल
Textbook Questions and Answers
संभाषणीय :
प्रश्न 1.
‘जल ही जीवन है’ विषय पर कक्षा में गुट बनाकर चर्चा कीजिए।
उत्तरः
अध्यापक (निर्देश): बच्चों आज हम ‘जल ही जीवन है।’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा करेंगे।
- नरेशः जल ही जीवन है। यदि जल नहीं तो कल नहीं।
- रमेश: ‘जल’ इस शब्द के पहले अक्षर ‘ज’ का अर्थ है – जीवन और दूसरे अक्षर ‘ल’ का अर्थ है ‘लकीर’। इसका मतलब जीवनरूपी लकीर यानी ‘जल’।
- ताराः जल इंसान के लिए बहुत उपयोगी है। जल के बिना मानव जीवन संभव नहीं।
- सीता: जल के कारण ही यह धरती सुजलाम् सुफलाम् बन गई है।
- विजय: जल मानव जीवन का प्रमुख आधार है। इसलिए हमें जल का सही इस्तेमाल करना चाहिए।
- राधाः हमें जल को भविष्य के लिए बचाकर रखना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो आगे चलकर हमें बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ेगा।
- दीपक: आज ग्लोबल वार्मिग के कारण ठीक से वर्षा नहीं हो रही है। इस कारण सभी परेशान हैं। हमारे देश के कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इसलिए सभी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और जल का कम-से-कम अपव्यय करें।
- नंदाः कम से कम अपव्यय नहीं। बिल्कुल भी अपव्यय नहीं करना चाहिए।
- सुरेशः इसके लिए सभी लोगों की मानसिकता में बदलाव आना चाहिए। अन्यथा सब कुछ व्यर्थ है।
सभीः इसीलिए हम सभी मिलकर शपथ लेते हैं कि हम जल का व्यर्थ में दुरूपयोग नहीं करेंगे और ना किसी को करने देंगे। आखिर जल ही जीवन है। वह ही हमारा तन मन धन है।
पठनीय :
प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ टैगोर की कोई कविता पढ़कर ताल और लय के साथ उसका गायन कीजिए।
श्रवणीय :
प्रश्न 1.
अंतरजाल/यू ट्यूब से ‘जल संधारण’ संबंधी जानकारी सुनकर उसका संकलन कीजिए।
कल्पना पल्लवन :
प्रश्न 1.
‘मैं हूँ नदी’ इस विषय पर कविता कीजिए।
उत्तरः
पाठ के आँगन में :
1. सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :
प्रश्न क.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तरः
प्रश्न ख.
पूर्ण कीजिए।
पावन जल स्नान करने वालों से नहीं पूछता –
उत्तरः
कृति ख (1) की आकलन कृति देखिए।
2. भारत के मानचित्र में अलग-अलग राज्यों में बहने वाली नदियों की जानकारी निम्न मुद्दों के आधार पर तालिका में लिखिए।
प्रश्न 1.
भारत के मानचित्र में अलग-अलग राज्यों में बहने वाली नदियों की जानकारी निम्न मुद्दों के आधार पर तालिका में लिखिए।
उत्तरः
3. पाठ से ढूँढकर लिखिए।
प्रश्न च.
संगीत-लय निर्माण करने वाले शब्द।
उत्तरः
प्रत्येक पद्यांश की कृति देखिए।
प्रश्न छ.
भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए और ऐसे अन्य दस शब्द ढूंढिए।
उत्तरः
- अलि : भौंरा अली : सखी
- तुरंग : घोड़ा तरंग : लहर
- नीड़ : घोंसला नीर : पानी
- ओर : दिशा और : तथा
- प्रसाद : कृपा प्रासाद : महल
- चपल : चंचल चपला : बिजली
- बदन : शरीर वदन : मुख
- भवन : धर भुवन : संसार
- धान : चावल धान्य : कोई भी अनाज
- दीन : गरीब दिन : दिवस
- द्रव : वस्तु द्रव्य : तरल पदार्थ
पाठ से आगे :
प्रश्न 1.
‘नदी जल मार्ग योजना’ के संदर्भ में अपने विचार लिखिए ।
भाषा बिंदु :
प्रश्न 1.
प्रेरणार्थक क्रिया का रूप पहचानकर उसका वाक्य में प्रयोग कीजिए।
क. जिसे वहाँ से जबरन हटाना पड़ता था।
उत्तर:
हटाना पड़ता: प्रेरणार्थक क्रिया रूप वाक्य: उस झोपड़ी को वहाँ से जबरन हटाना पड़ेगा।
ख. महाराज उम्मेद सिंह द्वारा निर्मित होने से ‘उम्मेद भवन’ कहलवाया जाता है।
उत्तर:
कहलवाया: प्रेरणार्थक किया रूप वाक्य: ‘अब मैं गलती नहीं करूंगा” यह वाक्य उससे हजार बार कहलवाया गया।
प्रश्न 2.
सहायक क्रिया पहचानिए।
च. हम मेहरान गढ़ किले की ओर बढ़ने लगे।
उत्तरः
लगे : लगना : सहायक क्रिया
छ. काँच का कार्य पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर देता है।
उत्तरः
देता : देना : सहायक क्रिया
प्रश्न 3.
सहायक क्रिया का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
(त) होना : ………………………..
(थ) पड़ना : ………………………..
(द) रहना : ………………………..
(ध) करना : ………………………..
उत्तरः
(त) होना : वहाँ पर एक सुंदर कुटी बनी हुई है।
(थ) पड़ना : वह जमीन पर गिर पड़ा।
(द) रहना : वह अपना कार्य कर रहा था।
(ध) करना : तुम सुबह-शाम टहला करो।
Additional Important Questions and Answers
(क) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (1) आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
सत्य-असत्य लिखिए।
i. नदियों के तटों पर संस्कृतियाँ जन्म लेती हैं।
ii. नदी का पानी निरंतर गतिशील नहीं होता है।
उत्तर:
i. सत्य
ii. असत्य
प्रश्न 2.
सही शब्द चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।
i. नदी का जल पावन / अपावन होता है।
उत्तरः
नदी का जल पावन होता है।
ii. नदी का जल गीली हलचल / कल-कल होता है।
उत्तर:
नदी का जल गीली हलचल होता है।
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
“सतत प्रवाहमान …………… आदि बिंदु।” इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
भावार्थः
सिंधु नदी का जल हमसे कह रहा है; “मैं सिंधु नदी का पावन जल हूँ। मैं निरंतर गतिशील रहता हूँ। मैं आपके जीवन की पहचान हूँ। मैं एक गीली हलचल हूँ यानी मुझमें भी आपके भाँति संवेदनाएँ है। मेरे स्वर में कल-कल है। मैं सिंधु नदी का जल हूँ। आप जानते हैं कि सिंधु नदी भारत की एक पुरातन नदी है और धरती पर जब सभ्यताओं का जन्म होने लगा था; उसकी साक्षी सिंधु नदी रही है। इसीलिए मैं सिंधु नदी का जल होने के कारण धरती पर निर्माण हुए सभ्यताओं का आदि बिंदु
(ख) पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (1) आकलन कृति
प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
जोड़ियाँ मिलाइए।
प्रश्न 2.
सत्य-असत्य लिखिए।
i. पावन जल प्यास बुझाने वाले से पहले पूछता है कि वह व्यक्ति उसका दोस्त है या दुश्मन।
ii. . पावन जल पर सभी का अधिकार होता है।
उत्तर:
i. असत्य
ii. सत्य
प्रश्न 3.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
“मैं नहाने वाले. ………… मचलती है।” इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
भावार्थ:
मेरे पास आकर नहाने वाले मुसाफ़िर से मैं उसकी जाति, मजहब या धर्म के बारे में नहीं पूछता हूँ। कोई भी मेरे पास बेरोक टोक आकर नहा सकता है लेकिन मैं उनसे उनकी जाति, मज़हब या धर्म नहीं पूछता हूँ। इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता है और जीवन के इस मर्म से मैं भली भाँति परिचित हूँ। सिंधु नदी में अचानक उत्पन्न होने वाली लहरें सदा उछलती रहती है मानो वह नित्य जीवन की ओर बढ़ने का प्रयास करती रहती हैं।
(ग) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (1) आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
सत्य-असत्य लिखिए।
i. सिंधु का पावन जल विधवा के दुख-दर्द को समझता है।
ii. सिंधु के किनारे तलवारें गरजती हैं।
उत्तर:
i. सत्य
ii. असत्य
प्रश्न 2.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
‘ऐसे बहूँ. ………… इंदु हूँ।’ इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
भावार्थ:
मैं सिंधु का जल हूँ। निरंतर बहना मेरा कार्य है। लेकिन अब मैं कैसे बहूँ? ऐसे या वैसे । मेरी कुछ समझ में नहीं आता है। हे मनुष्य! तुम तो समझदार हो। इसलिए तुम ही मुझे बताओ कि मैं कैसे बहूँ? आखिर मैं सिंधु में जल की बूंद हूँ और एक-एक बूंद से ही सिंधु तैयार हो गई है। मैं हमेशा लहराता रहता हूँ। मुझमें चंद्र का प्रतिबिंब गिरता है। मेरे लहराने के कारण वह भी लहराता रहता है और लहराता-लहराता वह झिलमिलाता भी रहता है। मानो मैं ही लहराते बिंबों में चमकता हुआ चंद्रमा हूँ।
पद्य-विश्लेषण :
- कविता का नाम – सिंधु का जल
- कविता की विधा – नई कविता
- पसंदीदा पंक्ति – प्यास बुझाने से पहले मैं नहीं पूछता दोस्त है या दुश्मन
पसंदीदा होने का कारण –
उपर्युक्त पंक्ति मुझे बेहद पसंद है। इस पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि सिंधु का जल पर प्यास बुझाने के लिए आने वाले व्यक्ति से यह नहीं पूछता कि दोस्त है या दुश्मन। अर्थात बिना भेदभाव के वह परोपकार करता है।
कविता से प्राप्त संदेश या प्रेरणा –
प्रस्तुत कविता से प्रेरणा मिलती है कि व्यक्ति को अपने जीवन में इंसानियत को अपनाना चाहिए। सर्वधर्म समभाव के तत्त्व का पालन करना चाहिए व दूसरों की पीड़ा दूर करने के लिए प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति को अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के विकास के लिए सतत प्रयास करना चाहिए।
Summary in Hindi
कवि-परिचय :
जीवन-परिचय : चक्रधर जी का जन्म 8 फरवरी 1951 को खुर्जा, उत्तर प्रदेश में हुआ। हिंदी साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के कारण उन्हें ‘पद्म श्री’ व ‘यश भारती पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। हिंदी साहित्य में आधुनिक कवि हास्य व्यंग्यकार, निबंधकार, नाटककार एवं पटकथाकार रूप में श्रीमान अशोक चक्रधर जी का नाम उल्लेखनीय है। बच्चों के लिए कहानी एवं हास्य व्यंग्य लिखना आपका प्रिय शौक हैं।
प्रमुख कृतियाँ : ‘बूढ़े’, ‘बच्चे’, ‘तमाशा’, ‘खिड़कियाँ’, ‘बोल-गप्पे’, ‘जो करे सो जोकर’ आदि कविता संग्रह।
पद्य-परिचय :
नई कविता : आधुनिक हिंदी साहित्य में नई कविता का प्रवाह गतिशील है। नई कविता मानवीय संवेदनाओं का चित्रण करती है और साथ में वह मानव को परिवेश के प्रति सचेत करती है। अनुभूति की सच्चाई व यथार्थ बोध, दृष्टि की उन्मुक्तता तथा मानवतावाद नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
प्रस्तावना : “सिंधु का जल’ इस कविता में नदी के जल के माध्यम से कवि अशोक चक्रधर जी ने हमारी सभ्यता, संस्कृति, मानवता, सर्वधर्म समभाव एवं दूसरों के दुख को दूर करने के भाव का वर्णन किया है। कवि ने हमें मानवीय गुणों को स्वीकार करने के लिए कहा है।
सारांश :
प्रस्तुत कविता में भले ही एक नदी का वर्णन आया हो लेकिन उसके माध्यम से लेखक ने हमें हमारी सभ्यता, संस्कृति, इंसानियत सर्वधर्म समभाव व परदुखकातरता आदि मानवीय गुणों को स्वीकार करने के लिए कहा है। नदी के किनारे पर सभ्यता एवं संस्कृति का विकास होता है। उसी के कगार पर इनसानियत के यज्ञ किए जाते हैं। नदी में बहने वाला जल पवित्र होता है। वह अपने पास आने वाले किसी व्यक्ति से उसका मजहब व धर्म नहीं पूछता है।
युद्ध में मारे गए वीर पुरुषों का लहू उसी के पास बहते हुए आता है। वह सबके घाव धोता है। उससे दूसरों का दुख देखा नहीं जाता। जिस प्रकार नदी के जल के पास गुण होते हैं; वैसे गुण मनुष्य में भी होने चाहिए। मनुष्य को मानवीय गुणों को स्वीकार करना चाहिए। इस कविता के द्वारा कवि ने परोपकार का संदेश दिया है।
भावार्थ :
सतत प्रवाहमान …… आदि बिंदु।
सिंधु नदी का जल हमसे कह रहा है, मैं सिंधु नदी का पावन जल हूँ। मैं निरंतर गतिशील रहता हूँ। मैं आपके जीवन की पहचान हूँ। मैं एक गीली हलचल हूँ यानी मुझमें भी आपके भाँति संवेदनाएँ हैं। मेरे स्वर में कल-कल है। मैं सिंधु नदी का जल हूँ। आप जानते हैं कि सिंधु नदी भारत की एक पुरातन नदी है और धरती पर जब सभ्यताओं का जन्म होने लगा था उसकी साक्षी सिंधु नदी रही है। इसीलिए मैं सिंधु नदी का जल होने के कारण धरती पर निर्माण हुए सभ्यताओं का आदि बिंदु हूँ।
मेरे ही किनारे ………………. पावन जल हूँ।
सिंधु नदी का जल होने के कारण मैं निरंतर प्रवाहमान हूँ। मेरे ही किनारे पर कई संस्कृतियाँ निर्माण हुई हैं। मेरे ही तटों पर इंसानियत के यज्ञ हुए हैं यानी संस्कृतियों की निर्मिती होने के पश्चात लोगों ने मानवता को अपना ध्येय बनाया था और मेरे ही तटों पर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहना सीख लिया था। मेरी गति कभी-भी कम नहीं हुई है। मेरी गति में चंचलता है। आगे-ही-आगे बढ़ने की होड़ है। फिर भी मेरी भावनाएँ अचल है। एक ही जगह पर स्थिर हैं। आखिर मैं सिंधु नदी का पवित्र जल हूँ।
मैं नहाने ……………….. मचलती हैं।
मेरे पास आकर नहाने वाले मुसाफिर से मैं उसकी जाति, मजहब या धर्म के बारे में नहीं पूछता हूँ। कोई भी मेरे पास बेरोक टोक आकर नहा सकता है क्योंकि इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता है और जीवन के इस मर्म से मैं भली भांति परिचित हूँ। सिंधु नदी में अचानक उत्पन्न होने वाली लहरें सदा उछलती रहती है मानो वह नित्य जीवन की ओर बढ़ने का प्रयास करती रहती हैं।
प्यास बुझाने ………………. घुल-मिल जाती है।
मेरे पास प्यास बुझाने हेतु आने वाले मुसाफिर से मैं नहीं पूछता कि वह मेरा दोस्त है या दुश्मन। किसी को अपने शरीर का मैल हटाने अर्थात नहाने से पहले मैं उसे नहीं पूछता कि वह हिंदू है या मुसलमान। यानी भले ही उस इंसान के मन में दूसरों के प्रति द्वेषभाव हो फिर भी मैं उसे अपना पानी पिलाता हूँ। मैं तो सभी के लिए हूँ और जो जितना चाहे जी भर के मेरा जल पिए। मैं विशाल नदी हूँ और मुझमें कई छोटी-छोटी सांस्कृतिक नदियाँ आकर समा जाती हैं। मानो वे अपने साथ अपनी सभ्यताएँ लेकर आती है और मुझमें समा जाती है यानी मैं उनकी सभ्यताओं से परिचित हो जाता हूँ।
लेकिन क्या ………………. तो रोता हूँ।
सिंधु नदी का पावन जल होने के बावजूद भी मैं हृदय से दुखी हूँ। मेरे घाटों पर रक्तपात होता है। लोगों का लहू बहता हुआ आता है। लोग एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। तलवारें खनकने लगती हैं। तोपें गरजने लगती हैं। घोड़ों के टापों की आवाज गूंजने लगती है। भयंकर युद्ध छिड़ जाता है। कई वीर शहीद हो जाते हैं। उस वक्त घायल हुए बहादुरों से मैं नहीं पूछता कि वे कौन-से प्रांत से हैं। वे किसी भी प्रांत से हो, मुझे इससे कुछ सरोकार नहीं होता। मैं तो उनके घाव दूर करने के लिए तत्पर हो जाता हूँ और अपने पानी से मैं उनके घाव धोता हूँ। वह मैं ही हूँ जो विधवा के दुख-दर्द को जानता हूँ। वास्तव में मैं ही उसके आँखों में आँसू बनकर रोता रहता हूँ यानी उसके दुख की अनुभूति को मैं अपने हृदय में महसूस करता हूँ।
ऐसे बहूँ ………………. इंदु हूँ।
मैं सिंधु का जल हूँ। निरंतर बहना मेरा कार्य है। लेकिन अब मैं कैसे बहूँ? ऐसे या वैसे। मेरी कुछ समझ में नहीं आता है। हे मनुष्य! तुम तो समझदार हो। इसलिए तुम ही मुझे बताओ कि मैं कैसे बहूँ ? आखिर मैं सिंधु में जल की बूंद हूँ और एक-एक बूँद से ही सिंधु तैयार हो गई है। मैं हमेशा लहराता रहता हूँ। मुझमें चंद्र का प्रतिबिंब गिरता है। मेरे लहराने के कारण वह भी लहराता रहता है और झिलमिलाता रहता है। मानो मैं ही लहराते बिंबों में चमकता हुआ चंद्रमा हूँ।
शब्दार्थ :
- प्रवाहमान – गतिशील, निरंतर, प्रवाहित
- मजहब – धर्म मर्म
- सार टा . घोड़ों के पैरों के जमीन पर पड़ने का शब्द
- रणबांकुरे – बहादुर, वीर, योद्धा
- बिंब – छाया, आभास
- इंद्रु – चंद्रमा
- घाव धोना – मरहमपट्टी करना, घाव साफ करना
- स्वर – ध्वनि
- गति – वेग
- अचल – स्थिर