Chapter 1 कह कविराय
Chapter 1 कह कविराय
Textbook Questions and Answers
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
1. संजाल :
प्रश्न 1.
संजाल :
उत्तर:
2. उत्तर लिखिए :
प्रश्न क.
अपना शीश इसके लिए आगे करने पर इसकी प्राप्ति होगी?
उत्तरः
अपना शीश दूसरों की भलाई के लिए (परोपकार के लिए) आगे करने पर मोक्ष की प्राप्ति होगी।
प्रश्न ख.
बड़ों के द्वारा दी गई सीख –
उत्तरः
व्यक्ति को सत्य के मार्ग पर चलते समय अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखनी चाहिए।
3. ‘हाथ’ शब्द पर प्रयुक्त कोई एक मुहावरा लिखकर उसका वाक्य में प्रयोग कीजिए।
प्रश्न 1.
‘हाथ’ शब्द पर प्रयुक्त कोई एक मुहावरा लिखकर उसका वाक्य में प्रयोग कीजिए।
4. ‘खुशियाँ बाँटने से बढ़ती है।’ इस पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 1.
‘खुशियाँ बाँटने से बढ़ती है।’ इस पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सच ही कहा गया है कि खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं। खुशियाँ संपत्ति की भाँति होती है। जिस प्रकार हम अपनी संपत्ति का जितना दान करते हैं उतनी वह बढ़ती रहती है । ठीक उसी प्रकार हम जितनी खुशियाँ लोगों में बाँटेंगे, उतनी ही मात्रा में वह बढ़ती है। अगर आप किसी की आँखों में दर्द देखते हो, तो उसके साथ अपने आँसुओं को बाँटो। अगर आप किसी की आँखों में मुस्कान देखते हो, तो उसके साथ अपनी खुशियों को बाँटो। आपको परमसुख की अनुभूति होगी।
आपका मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो जाएगा जिस कारण आपकी खुशियाँ दुगुनी हो जाएगी। मदर टेरेसा जी ने सभी दीन दुखी अनाथ बालकों के जीवन में खुशियाँ भर दी तो संसार ने उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ देकर उनकी खुशियों को दुगुना कर दिया। अतः स्पष्ट है कि खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं।
श्रवणीय :
प्रश्न 1.
संत कबीर तथा कवि बिहारी के नीतिपरक दोहे सुनिए और सुनाइए।
पठनीय :
प्रश्न 1.
मीरा का कोई पद पढ़िए ।
आसपास :
प्रश्न 1.
भक्तिकालीन, रीतिकालीन कवियों के नाम और उनकी रचनाओं की सूची तैयार कीजिए।
कल्पना पल्लवन :
प्रश्न 1.
‘गुन के गाहक सहस नर’ इस विषय पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुणी व्यक्ति की सर्वत्र पूजा होती है। ठीक ही कहा गया है ‘विद्वान सर्वत्र पूज्यते’ गुणी व्यक्ति को हमेशा सम्मान मिलता है और हजारों व्यक्ति उसकी चर्चा करते हैं। उसकी सर्वत्र चर्चा होती है। सभी गुणी व्यक्ति का साथ चाहते हैं क्योंकि उसके साथ रहने से गुणहीन व्यक्ति भी गुणी बन जाता है। गुणी व्यक्ति लोगों को संकट की घड़ी से बाहर निकालते हैं। समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करते हैं। जीवन में सही क्या और गलत क्या इसका एहसास कराते हैं। गुणी व्यक्ति अपने महकते चरित्र से सभी के जीवन को सुगंधित कर देते हैं। वह दूसरों के व्यक्तित्त्व में निखार लाते हैं। गुणी व्यक्ति से प्रेरणा पाकर सामान्य लोग अपना विकास कर लेते हैं। अत: गुणी व्यक्ति के सहस्र ग्राहक होते हैं।
लेखनीय :
प्रश्न 1.
सामाजिक मूल्यों पर आधारित पद, दोहे, सुवचन आदि का सजावटी सुवाच्य लेखन कीजिए।
पाठ के आँगन में :
1. सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :
प्रश्न क.
कौआ और कोकिल में समानता तथा अंतर :
उत्तर:
प्रश्न ख.
कवि की दृष्टि से मित्र की परिभाषा
उत्तर:
प्रश्न ग.
आकृति
उत्तर:
2. कविता में प्रयुक्त तत्सम, तद्भव, देशज शब्दों का चयन करके उनका वर्गीकरण कीजिए तथा पाँच शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
प्रश्न 1.
कविता में प्रयुक्त तत्सम, तद्भव, देशज शब्दों का चयन करके उनका वर्गीकरण कीजिए तथा पाँच शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
निर्देश: छात्र स्वयं किन्हीं पाँच शब्दों का वाक्य में प्रयोग करेंगे।
3. कवि के मतानुसार मनुष्य की विचारधारा निम्न मुद्दों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 1.
कवि के मतानुसार मनुष्य की विचारधारा निम्न मुद्दों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
च . ऋण लेते समय ……………….
छ. ऋण लौटाते समय ……………..
उत्तर:
च. नम्रता से मीठी वाणी का प्रयोग करना।
छ. कठोरता से कड़वी वाणी का प्रयोग करना।
Additional Important Questions and Answers
(क) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (1) आकलन कृति
प्रश्न 1.
कौआ और कोकिल में समानता तथा अंतर :
उत्तर:
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझाकर लिखिए।
उत्तर:
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
“गुन के गाहक ……………… गाहक गुन के।।”
इस कुंडली का भावार्थ लिखिए ।
उत्तर:
कवि गिरिधर जी कहते हैं कि गुणवान व्यक्ति को पूछने वाले या जानने वाले हजारों लोग होते हैं लेकिन जिस व्यक्ति में गुण नहीं होते, उस व्यक्ति को कोई नहीं पूछता, लोग उसका सम्मान भी नहीं करते। जिस प्रकार कौए और कोयल दोनों की आवाज सुनते तो सभी हैं लेकिन कोयल अपनी मधुर और सुरीली आवाज के कारण सभी को अच्छी लगती है, परन्तु कौआ किसी को अच्छा नहीं लगता। कोयल और कौए का रंग तो एक समान होता है, परन्तु कौआ अपनी तेज (कर्कश) आवाज के कारण सभी के द्वारा अपमानित किया जाता है और कोयल को उसकी मधुर आवाज के कारण सम्मान मिलता है। इस प्रकार गिरिधर कविराय जी कहते हैं कि हे मन के ठाकुर! जिस व्यक्ति में गुण नहीं होते, उसे कोई नहीं पूछता और गुणवान व्यक्ति को हजारों लोग उसके गुणों के कारण पूछते हैं।
(ख) पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए ।
कृति (1) आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
सत्य – असत्य लिखिए।
i. दुनिया में सर्वत्र सदाचारी व्यक्ति पाए जाते हैं।
ii. दुनिया में सर्वत्र स्वार्थभाव पनप रहा है।
उत्तर:
i. असत्य
ii. सत्य
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
‘देखा सब संसार में ………… कोई बिरला देखा।।’
इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
कवि गिरिधर जी कहते हैं कि हे ईश्वर ! इस धरती पर और इस पूरे संसार में मनुष्य एक-दूसरे से स्वार्थ वश प्रेम करते हैं अर्थात सभी लोग अपने लाभ या फायदे के बारे में ही सोचते हैं। जब तक किसी व्यक्ति के पास पैसा होता है, तब तक लोग उसके मित्र रहते हैं। जब किसी व्यक्ति के पास धन या पैसा नहीं होता, तब उसके मित्र उसकी उपेक्षा करते हैं अर्थात गरीब मित्र से बात करना भी पसंद नहीं करते हैं। कवि गिरिधर जी कहते हैं, इस संसार का यही नियम है कि बिना स्वार्थ के किसी से मित्रता करने वाले लोग कम ही मिलते हैं अर्थात बिना स्वार्थ के प्रेम करने वाला कोई नहीं मिलता।
(ग) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (1) आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
‘उधार देने वाले व्यक्ति को उधार लेने वाला झूठा कहता है।’ इस अर्थ की पद्यांश में प्रयुक्त पंक्ति –
उत्तर:
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा।
प्रश्न 2.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
कृति ग (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
‘झूठ मीठे वचन कहि ………….. माँगने मारन धावै।’
इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तरः
हमें एक-दूसरे की सहायता जरूर करनी चाहिए। जब कोई मुसीबत में फंस जाता है; तब हमें उस व्यक्ति की मदद करनी चाहिए। व्यक्ति की मदद करने से पहले हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिसकी हम मदद करने जा रहे हैं, उसे सचमुच सहायता की जरूरत है या वह सिर्फ मीठी-मीठी बातें कर हमसे रुपए उगलवा रहा है। इसे जाने बिना यदि हम ऐसे झूठे व्यक्ति की आर्थिक सहायता करते हैं, तो बाद में हमें जरूर पछताना पड़ेगा। कुछ समय के पश्चात जब हम अपना उधार दिया हुआ पैसा उससे मांगने के लिए जाते हैं। तब वह हमारे साथ बहुत बुरा व्यवहार करता है। उस समय वह इतना कठोर एवं निष्ठुर हो जाता है कि बिना अपशब्द कहे चुप नहीं रहता है और सभी के सामने हमें ही झूठा साबित कर देता है।
(घ) पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
‘बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय’ इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
व्यक्ति कोई भी कार्य यदि बिना विचार करता है, तो उसे बाद में पछताना पड़ता है क्योंकि बिना विचारपूर्वक किया गया कोई भी काम ठीक से पूर्ण नहीं होता है। ऐसे में व्यक्ति अपना काम भी बिगाड़ता है और समाज में वह हँसी का पात्र भी बन जाता है। जिसके कारण उसका मन निराश रहता है। उसके मन को शांति नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में खान-पान-सम्मान आदि किसी भी चीज में उसका मन नहीं लगता अर्थात उसे कछ भी अच्छा नहीं लगता है। गिरिधर कवि कहते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन उसके मन से दुख दूर नहीं होता है और न वह उसे टाल सकता है। बार-बार उसके मन में वही बात खटकती रहती है कि उसने बिना विचार किए काम क्यों किया था। उसे अपने अनजाने में ही की गई गलती पर पछतावा भी होता है।
(ड़) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति (1) आकलन कृति
कृति (2) आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
कृति (3) भावार्थ
प्रश्न 1.
“बीती ताहि बिसारि ………….. बीती सो बीती।” इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए ।
उत्तर:
जो बात बीत जाती है उसके बारे में व्यक्ति को सोचना नहीं चाहिए। जो छूट गया उसे भूल जाने में ही जीवन की सार्थकता होती है। अत: बीते हुए समय की अपेक्षा भविष्य को महत्त्व देना चाहिए। बीती हुई बातों के बारे में सोचकर व्यक्ति को सिर्फ दुख ही मिलेगा और फिर उसका मन अन्य कामों में नहीं लगेगा। महाकवि वाल्मीकि ने भी अपने जीवन के बुरे पलों को भूलकर रामायण की रचना की थी। अत: व्यक्ति को बीती हुई सारी घटनाओं को भूलकर आगे आने वाले समय के बारे में सोचना चाहिए। भविष्य में अपना जीवन सुखमय एवं समृद्ध बनाने हेतु उसे अथक प्रयास करने चाहिए। ध्यान रहे कि बीते हुए पलों के बारे में सोचना केवल मूर्खता है और आगे आनेवाले उज्ज्वल भविष्य का स्वागत करने के लिए तत्पर हो जाना चतुरता है।
रचनात्मकता की ओर संभाषणीय :
प्रश्न 1.
‘विपत्ति में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है। स्पष्ट
उत्तर:
- अध्यापक: (सभी छात्रों से): अपने अपने मित्रों के नाम बताइए। (सभी छात्र अपने अपने मित्र के नाम बताते हैं।)
- अध्यापक: आप किसे अपना सच्चा मित्र मानते हैं?
- विजयः सच्चा मित्र वह होता है, जो मुसीबत आने पर अपनी मदद करता है।
- संजयः सच्चा मित्र वह होता है, जो ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ होता है।
- राधाः सच्चा मित्र वह होता है, जो नि:स्वार्थ भाव से अपनी सहायता करता है।
- मंदाः सच्चा मित्र वह होता है, जो संकट की घड़ी में अपनी सहा यता के लिए दौड़कर आता है।
- अध्यापक: आप अपने मित्रों का सच्चा मित्र बनने के लिए क्या करेंगे?
- विजयः मैं अपने मित्रों का सच्चा मित्र बनने के लिए मानवीय गुणों का पालन करूंगा।
- संजयः मैं सब्बा मित्र बनने के लिए ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा का पालन करूंगा।
- राधाः मैं अपनी सहेलियों की सच्ची सहेली बनने के लिए नि:स्वार्थ भाव को अपनाऊँगी।
- मंदाः मैं सच्ची सहेली बनने के लिए मुसीबत की घड़ी में उनकी सहायता के लिए तत्पर रहूँगी।
- अध्यापकः सच ही कहा गया है कि विपत्ति में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है। बच्चों हमें अपना तन-मन-धन न्योछावर करके अपने मित्रों की संकट की घड़ी में सहायता करनी चाहिए और यही सच्चे मित्र का लक्षण हैं।
पद्य-विश्लेषण
कविता का नाम – कह कविराय कविता की विधा – कुंडली
पसंदीदा पंक्ति – बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हसाय।।
पसंदीदा होने का कारण –
उपर्युक्त पंक्तियों में समय की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। यह भी बताया गया है कि व्यक्ति को प्रत्येक काम सोच-विचारकर ही करना चाहिए। अत: यह मेरी पसंदीदा काव्य पंक्ति है।
कविता से प्राप्त संदेश या प्रेरणा –
प्रस्तुत कविता से प्रेरणा यह मिलती है कि व्यक्ति को सामाजिक गुणों को अपनाना चाहिए। हमें दूसरों से सच्ची मित्रता करनी चाहिए। यदि किसी ने हम पर उपकार किए हैं तो हमें उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। कोई भी कार्य विचारपूर्वक करना चाहिए। व्यक्ति को अपनी संपत्ति का दान करना चाहिए।
पाठ से आगे :
प्रश्न 1.
‘बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय’ इसका पाठ से आगे भावार्थ अपने शब्दों मे लिखिए।
उत्तर:
जो व्यक्ति बिना विचार किए काम करता है, उसे बाद में पछताना पड़ता है; क्योंकि बिना विचारपूर्वक किया गया कोई भी काम ठीक से पूर्ण नहीं होता है। संसार में हमें ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे कि जिन्होंने बिना विचारे काम किए और चौपट हो गए। भारत के कई शासक ऐसे थे, जिनमें बिल्कुल विचार करने की शक्ति नहीं थी। वे आपस में ही एक-दूसरे से लड़ते रहे। इसी कारण अंग्रेजों ने उन्हें कुचल दिया।
यदि कोई छात्र पूरे वर्ष में किताबों को नहीं छूता, उसे बाद में पछताना ही पड़ता है। बिना विचार किए काम करने वालों की स्थिति उस शेखचिल्ली की भाँति हो जाती है, जो टहनी पर बैठकर उसी को पेड़ से अलग कर रहा था। व्यक्ति को कोई भी कार्य करने से पहले जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए। जल्दबाजी में लिया गया निर्णय गलत साबित हो सकता है। अत: इसे ठीक से सोच कर ही सही निर्णय लेना चाहिए, नहीं तो व्यक्ति को बाद में पछताना पड़ेगा।
Summary in Hindi
कवि-परिचय :
जीवन-परिचय: गिरिधर कविराय हिंदी के प्रख्यात कवि थे। इनके जन्म के संबंध में मतभेद है। कहा जाता है कि इनका जन्म अवध में सन 1713 में हुआ था। भाषा का सरलीकरण इनके कुंडलियों की विशेषता है। इन्होंने नीति, वैराग्य और अध्यात्म को ही अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। सामान्य जन के दैनिक जीवन को ध्यान में रखकर इन्होंने कुंडलियाँ लिखी है।
प्रमुख कृतियाँ: ‘गिरिधर कविराय ग्रंथावली’ में 500 से अधिक दोहे और कुंडलियाँ संकलित हैं।
पद्य-परिचय कुंडली: यह काव्य विधा का एक प्रकार है। यह छंद दोहा और रोला के मेल से बनता है। कुंडलियाँ छ: पंक्तियों की होती हैं। इनमें दूसरी पंक्ति के अंतिम भाग का प्रयोग तीसरी पंक्ति के शुरू में दिखाई देता है। इनकी एक विशेषता होती है कि यह जिस शब्द से शुरू होती है, उसी शब्द से इसका समापन भी होता है।
प्रस्तावना : प्रस्तुत कुंडलियों में कविराय गिरिधर जी ने आम लोगों को नैतिक जीवन से संबंधित शिक्षा दी है। उन्होंने अपने कुंडलियों के माध्यम से सामाजिक गुणों को अपनाने की बात कही है। इनकी कुडलियाँ नीतिपरक हैं। इनमें अनुभव व परंपरा का पुट भी दिखाई देता है।
सारांश:
कविराय गिरिधर जी ने अपनी कुंडलियों से सर्व साधारण लोगों को उपदेश प्रदान किया है। उन्होंने अपनी कुंडलियों के माध्यम से व्यक्ति के पास गुण होने चाहिए; विपत्ति में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है; व्यक्ति को कोई भी काम हो वह विचारपूर्वक करना चाहिए; व्यक्ति को भविष्य के बारे में सोचना चाहिए आदि के बारे में मनुष्य को सतर्क करते हुए उसे नैतिकता का पाठ पढ़ाया है।
भावार्थ:
गुन के गाहक ……………… गाहक गुन के।।
कवि गिरिधर जी कहते हैं कि गुणवान व्यक्ति को पूछने वाले या जानने वाले हजारों लोग होते हैं लेकिन जिस व्यक्ति में गुण नहीं होते, उस व्यक्ति को कोई नहीं पूछता, लोग उसका सम्मान भी नहीं करते। जिस प्रकार कौए और कोयल दोनों की आवाज सुनते तो सभी हैं लेकिन कोयल अपनी मधुर और सुरीली आवाज के कारण सभी को अच्छी लगती है, परन्तु कौआ किसी को अच्छा नहीं लगता।
कोयल और कौए का रंग तो एक समान होता है, परन्तु कौआ अपनी तेज (कर्कश) आवाज के कारण सभी के द्वारा अपमानित किया जाता है और कोयल को उसकी मधुर आवाज के कारण सम्मान मिलता है। इस प्रकार गिरिधर कविराय जी कहते हैं कि हे मन के ठाकुर ! जिस व्यक्ति में गुण नहीं होते, उसे कोई नहीं पूछता और गुणवान व्यक्ति को हजारों लोग उसके गुणों के कारण पूछते हैं।
देखा सब संसार में ……………… कोई बिरला देखा।।
कवि गिरिधर जी कहते हैं कि हे ईश्वर! इस धरती पर और इस पूरे संसार में मनुष्य एक-दूसरे से स्वार्थ वश प्रेम करते हैं अर्थात सभी लोग अपने लाभ या फायदे के बारे में ही सोचते हैं। जब तक किसी व्यक्ति के पास पैसा होता है, तब तक लोग उसके मित्र रहते हैं। जब किसी व्यक्ति के पास धन या पैसा नहीं होता, तब उसके मित्र उसकी उपेक्षा करते हैं अर्थात गरीब मित्र से बात करना भी पसंद नहीं करते हैं। कवि गिरिधर जी कहते हैं, इस संसार का यही नियम है कि बिना स्वार्थ के किसी से मित्रता करने वाले लोग कम ही मिलते हैं अर्थात बिना स्वार्थ के प्रेम करने वाला कोई नहीं मिलता।
अठा मीठे बचन …………………………… तेरो कागज झूठा।।
झूठा व्यक्ति हमेशा मीठे वचन बोलता है। मीठी-मीठी बातें करके वह दूसरों से रुपए भी उधार ले जाता है। रुपए उधार लेते समय तो उसे बहुत सुख मिलता है और अच्छा लगता है; परंतु वह जिस व्यक्ति से उधार लेता है, उसे उसके पैसे वापस देने का नाम भी नहीं लेता है। पैसा मांगने पर वह अपना दुखड़ा सुनाने लगता है।
गिरिधर कवि कहते हैं कि कर्ज का यह नियम है कि पैसा वापस मांगने पर कर्जदार उधार देने वाले को मारने दौड़ता है, और मन-ही-मन उससे नाराज भी रहता है। ज्यादा दिन बीत जाने पर वह उधार देने वाले को झूठा भी साबित कर देता है और उधार कब दिया था, इसका प्रमाण माँगता है। कर्ज देने वाला जब कर्ज के लेन-देन का लिखा कागज देता है, तो कर्जदार उसे झूठा सिद्ध कर देता है।
बिना विचारे जो ……………………………. कियो जो बिना विचारे।।
व्यक्ति कोई भी कार्य यदि बिना विचार करता है, तो उसे बाद में पछताना पड़ता है क्योंकि बिना विचारपूर्वक किया गया कोई भी काम ठीक से पूर्ण नहीं होता है। ऐसे में व्यक्ति अपना काम भी बिगाड़ता है और समाज में वह हँसी का पात्र भी बन जाता है। जिसके कारण उसका मन निराश रहता है। उसके मन को शांति नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में खान-पान-सम्मान आदि किसी भी चीज में उसका मन नहीं लगता अर्थात उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।
गिरिधर कवि कहते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन उसके मन से दुख दूर नहीं होता है और न वह उसे टाल सकता है। बार-बार उसके मन में वही बात खटकती रहती है कि उसने बिना विचार किए काम क्यों किया था। उसे अपने अनजाने में ही की गई गलती पर पछतावा भी होता है।
बीती ताहि बिसारि …………….. बीती सो बीती।।
व्यक्ति को जो बात बीत गई है उसे भूल जाना चाहिए और आगे के बारे में सोचना चाहिए। अर्थात व्यक्ति को बीते हुए समय की अपेक्षा आनेवाले भविष्य को महत्व देना चाहिए। व्यक्ति के सामर्थ्य के अनुसार उससे जो हो सकता है उसी काम में अपना मन लगाना चाहिए। यदि व्यक्ति ऐसा करेगा, तो वह अपने लक्ष्य में जरूर सफल हो जाएगा। उस समय कोई भी दुर्जन व्यक्ति उस पर हंसेगा नहीं और किसी गलती के लिए मन में पछतावा भी नहीं होगा। गिरिधर कवि कहते हैं, व्यक्ति को हमेशा अपने मन की सुननी चाहिए। उसे सिर्फ आगे के बारे में ही सोचना चाहिए। जो बीत गया सो बीत गया। अत: उसे भूलना ही बेहतर है। बीते हुए पलों के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
पानी बाड़ो नाव में ……………….. राखिए अपनो पानी।
कवि गिरिधर जी कहते हैं कि यदि नौका में पानी भरने लगे, तो दोनों हाथों से पानी को बाहर निकालते रहना चाहिए, इससे नौका डूबने से बची रहेगी। यदि घर में अधिक पैसा या धन हो, तो निर्धनों या गरीबों में दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपको यश और सम्मान मिलेगा और ईश्वर भी आप पर कृपा करेंगे।
समझदार लोगों का यही कर्तव्य है। समझदार व्यक्तियों को भगवान का स्मरण करते हुए, परोपकार या दूसरों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए अर्थात दूसरों की सहायता के लिए हमेशा आगे रहना चाहिए। इस प्रकार गिरिधर कविराय जी कहते हैं कि विद्वानों का ऐसा ही कहना है कि अच्छा काम करते हुए आगे बढ़ना चाहिए और अपना सम्मान बनाए रखना चाहिए अर्थात जो लोग अच्छे कर्म करते हैं उनका सम्मान एवं यश सदैव बना रहता है।
शब्दार्थ:
- गाहक – ग्राहक
- सहस – सहस्त्र
- नर – पुरुष
- काग – कौआ
- अपावन – अपवित्र
- दोऊ – दोनों
- ताको – उसको
- लेखा – व्यवहार
- बेगरजी – निस्वार्थ
- विरला – निराला
- लैके – लेकर
- अरु – और
- तैरना – टालना
- दुर्जन – बुरा आदमी
- परतीती – प्रतीति, विश्वास