Chapter 8 कर्मवीर

Chapter 8 कर्मवीर

Textbook Questions and Answers

स्वाध्याय :

सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए।


उत्तर:

2. कृति पूर्ण कीजिए।

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए।


उत्तर:

3. विशेषताएँ लिखिए :

प्रश्न 1.
विशेषताएँ लिखिए :

उत्तर:

4. कविता में इस अर्थ में आए शब्द लिखिए 

प्रश्न 1.
कविता में इस अर्थ में आए शब्द लिखिए

  1. कर्मभूमि : ………………
  2. अकारण : ………………
  3. आकाश : ………………
  4. विशवास : ………………

उत्तर:

  1. कार्यस्थल
  2. वृथा
  3. गगन
  4. विशवास

5. कविता की अपनी पसंदीदा चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए। 

प्रश्न 1.
कविता की अपनी पसंदीदा चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए।
उत्तर:

जो कभी अपने ……………………..चुराते हैं नहीं।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ‘हरिऔध’ जी कहते हैं कि कर्मवीरों के लिए समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए वे समय को कभी व्यर्थ नहीं गवाते। जिस काम को जिस समय करना है उसे उसी समय करते हैं। वे काम को कल पर नहीं छोड़ते हैं। जहाँ काम करना हो वहाँ कोई बहानेबाजी और आनाकानी नहीं करते। आज का काम कल पर टालकर वे अपने दिनों को व्यर्थ नहीं गवाते। समय का सदुपयोग करना यही उनका कर्तव्य होता है। कोशिश अथवा मेहनत करने से वे कभी भी पीछे नहीं हटते ।

उपयोजित लेखन :

प्रश्न 1.
मुद्दों के आधार पर कहानी लेखन कीजिए।
एक हंस और एक कौए में मित्रता – हंस का कौए के साथ उड़ते जाना – कौए का दधिपात्र लेकर जाने वाले ग्वाले को देखना – ललचाना – कौए का दही खाने का आग्रह – हंस का इनकार – कौए का घसीटकर ले जाना – कौए का चोंच नचा – नचाकर दही खाना – हंस का बिलकुल न खाना – आहट पाकर कौए का उड़ जाना -हंस का पकड़ा जाना – परिणाम – शीर्षक।
उत्तर:

कुसंगति का फल एक जंगल था। उस जंगल में तरह-तरह के पक्षी एवं जानवर रहते थे। उस जंगल में एक बरगद के पेड़ पर एक हंस व एक कौआ भी रहता था। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन वे दोनों खुले आसमान में विचरण कर रहे थे। उस वक्त कौए की नजर सिर पर दधिपात्र लेकर जाने वाले एक ग्वाले पर गई।

दधिपात्र देखकर कौए के मुँह में पानी भर आया। उसने तपाक से हंस से कहा, “क्यों न हम दोनों मिलकर दधिपात्र से थोड़ा-थोड़ा दही खा लें।” हंस ने कहा, “नहीं भाई ! इस प्रकार चोरी या छिपकर खाने से आफत आ सकती है। हम पकड़े जा सकते हैं। फिर भी कौए ने हंस की एक न सुनी।

वह जबरन हंस को घसीटकर दधिपात्र के पास ले आया। वह बड़े मजे से दही को खाने लगा। ढेर सारा दही देखकर वह अपनी चोंच नचा-नचाकर दही खाने लगा। हंस सिर्फ उसके साथ था, लेकिन उसने दही को छुआ तक नहीं। दधिपात्र लेकर जाने वाले ग्वाले को एहसास हुआ कि दधिपात्र में से कौआ या अन्य पक्षी दही खाने की चेष्टा कर रहे हैं।

ग्वाले ने आव देखा न ताव तुरंत अपना दाहिना हाथ ऊपर कर उसने हंस को पकड़ लिया। तब तक आहट पाकर कौआ वहाँ से उड़ गया। बेचारा हंस! उसका बुरा हाल हुआ। ग्वाले ने उसे मार डाला। सीख : बुरे लोगों के साथ रहने से बुरा होता है। इसलिए हमें अच्छे लोगों के साथ रहना चाहिए।

(अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति अ (1): आकलन कृति

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तर:

Maharashtra Board Class 10 Hindi Lokvani Solutions Chapter 8 कर्मवीर 7

प्रश्न 2.
‘कर्मवीर दूसरों का मुँह नहीं ताकते’ इसका तात्पर्य है कि –
उत्तर:

वे स्वावलंबी होते हैं। अत: वे दूसरों पर निर्भर नहीं होते।

कति अ (2) : शब्द संपदा

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए।

  1. विघ्न
  2. बाधा
  3. भाग्य
  4. चंचल

उत्तर:

  1. संकट
  2. रुकावट
  3. नसीब
  4. अस्थिर

प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए।
i. कठिन × …….
ii. निर्मल × …….
उत्तर

i. सरल
i. मलीन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए –
i. अस्थिर स्वभाव का –
उत्तर :

i. चंचल

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तद्भव शब्द का तत्सम शब्द लिखिए।
i. मुँह
ii. काम
उत्तर:

i. मुख
ii. कार्य

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्द के वचन बदलिए।
i. बाधा
ii. काम
उत्तर:

i. बाधाएँ
ii. काम

प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्द के समश्रुतभिन्नार्थक शब्द लिखिए।
i. मान
ii. भाग्य
उत्तर:

i. मन
i. भाग

कृति अ (3) : स्वमत अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
‘जो विघ्न-बाधाओं का सामना करता है वही सफल होता है।’ अपने विचार लिखिए।
उत्तर:

जीवन में सुख व दुख दोनों हैं। व्यक्ति के जीवन में अनुकूल व प्रतिकूल ये दोनों परिस्थितियाँ आती हैं। व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थिति का डरकर नहीं बल्कि डटकर सामना करना चाहिए। जो व्यक्ति जीवन में आने वाले संघर्षों का सामना करता है वह अंत में सफल हो जाता है। संघर्षों के साथ लड़ते समय उसमें अदम्य शक्ति निर्माण हो जाती है नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। परिस्थितियाँ मनुष्य को जीवन अनुभवों से समृद्ध बनाती हैं। जिसके जीवन में संघर्ष नहीं; जो विघ्न-बाधाओं का सामना नहीं करता है, उस व्यक्ति का जीवन नीरस हो जाता है। जो व्यक्ति विघ्न-बाधाओं का सामना करता है वही अंत में अपनी मंजिल पाता है। ऐसा पुरुष ही जीवन का सच्चा कर्मवीर कहलाता है।

(आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति आ (1) : आकलन त

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए।
i. कार्य कितना भी कठिन हो ………….
(अ) कर्मवीर उसे पूरा करने की ठान नहीं लेते हैं।
(आ) कर्मवीर उसे पूरा करने की ठान लेते हैं।
(इ) उसे पूरा करने की जिम्मेदारी दूसरों पर सौंपते हैं।
उत्तर:

(आ) कर्मवीर उसे पूरा करने की ठान लेते हैं।

ii. कर्मवीर आसमान के फूलों को व्यर्थ बातों से नहीं तोड़ते अर्थात
(अ) वे अपनी प्रशंसा के लिए बड़ी-बड़ी बातें नहीं बनाते।
(आ) वे अपनी प्रशंसा के लिए बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं।
(इ) वे अपनी प्रशंसा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
उत्तर:

(अ) वे अपनी प्रशंसा के लिए बड़ी-बड़ी बातें नहीं बनाते।

कृति आ (2) : शब्द संपदा

प्रश्न 1.
कविता में इस अर्थ में आए शब्द लिखिए।
i. सहायता : ………………
ii. दिवस : ……………….
उत्तर:

i. मदद
ii. दिन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्द में उचित उपसर्ग व प्रत्यय लगाकर शब्द लिखिए।
i. समय
उत्तरः

उपसर्गयुक्त शब्द : असमय
प्रत्यययुक्त शब्द : सामयिक

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में उचित उपसर्ग लगाइए।
i. यत्न
ii. मन
उत्तर:

i. प्र + यत्न = प्रयत्न
ii. बे + मन = बेमन

प्रश्न 4.
पद्यांश में प्रयुक्त विलोम शब्द की जोड़ी लिखिए।
उत्तर:

i. आज × कल

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तत्सम शब्द का तद्भव रूप लिखिए।
i. संपदा
ii. वृथा
उत्तर:

i. संपत्ति
ii. व्यर्थ

कृति अ (3) : स्वमत अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
‘समय का सदुपयोग करने से व्यक्ति जीवन में ऊँचा उठ सकता है।’ अपने विचार लिखिए।
उत्तरः

मानव जीवन में समय का सदुपयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जो व्यक्ति समय के साथ चलता है वह प्रगति की सीढ़ी हासिल कर लेता है। समय का सदुपयोग करने वाले व्यक्ति को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। समय पर कार्य करने वाले व्यक्ति के कारण समाज व राष्ट्र का भी भला होता है। विश्व के सभी महापुरुष समय की कीमत जानते थे।

इसलिए वे जीवन में महान बन सके। समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति समय का सही विभाजन कर अध्ययन, खेलकूद, समाज सेवा, मनोरंजन आदि जैसे अनेक कार्य सरलतापूर्वक कर सकता है। समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति समय के साथ कदम से कदम मिला कर चलता है और जीवन में अनेक सफलताओं को प्राप्त करता है।

(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति इ (1) : आकलन कृति

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।
i. कर्मवीरों का नया उत्साह देखने को मिलता है –

(अ) जब उन्हें उलझनें आकर घेर लेती हैं।
(आ) जब वे अपना काम पूरा कर लेते हैं।
(इ) जब वे कार्यस्थल से दूर चले जाते हैं।
उत्तरः

(अ) जब उन्हें उलझनें आकर घेर लेती हैं।

प्रश्न 2.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तरः

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्द पढ़कर ऐसे दो प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हों –
i. कर्मवीर
ii. कार्यस्थल
उत्तर:

i. असंभव को संभव कौन बनाते हैं?
ii. कर्मवीर किसके बारे में पूछते नहीं है?

कृति इ (3) : शब्द संपदा.

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में उचित प्रत्यय लगाकर नए शब्द तैयार कीजिए।
i. बुद्धि
ii. देश
उत्तर:

i. बुद्धि + मान = बुद्धिमान
ii. देश + ई = देशी

प्रश्न 2.
निम्नलिखित तत्सम शब्द का तद्भव रूप लिखिए।

  1. सपूत
  2. हस्त
  3. नव

उत्तरः

  1. सुपुत्र
  2. हाथ
  3. नया

प्रश्न 3.
समानार्थी शब्द लिखिए।
i. उत्साह
ii. बुद्धि
उत्तर:

i. उमंग
ii. मति

प्रश्न 4.
कविता में इस अर्थ में आए शब्द लिखिए।
i. अच्छे पुत्र
उत्तर:

i. सपूत

प्रश्न 5.
पद्यांश में से विलोम शब्द की जोड़ी ढूँढकर लिखिए।
उत्तर:

i. असंभव × संभव
ii. यहाँ × वहाँ

प्रश्न 6.
‘सपूत’ इस शब्द में से उपसर्ग पहचानकर संबंधित उपसर्ग को लगाकर अन्य दो शब्द बनाइए।
उत्तरः

सपूत : उपसर्ग – स
अन्य शब्द : सकारण, सप्रमाण

कृति ग (4) : अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
‘कर्म ही पूजा है, कर्म ही श्रेष्ठ है।’ विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:

गीता में लिखा है कि कर्म ही पूजा है। कर्म से बढ़कर व्यक्ति का अन्य कोई धर्म नहीं है। इसलिए कर्म करना मनुष्य का पहला लक्ष्य होना चाहिए। कर्म करने से व्यक्ति को आनंद मिलता है। सच्चे मन से किया गया कर्म सफल होता है। मनुष्य के कर्म को ही संसार में याद किया जाता है। उसकी मृत्यु के उपरांत वह सिर्फ अपने कर्मों के कारण ही याद किया जाता है। इसलिए सभी को आलस्य त्यागकर कर्म में लीन हो जाना चाहिए। कर्म सफलता का आधार है। कर्म ही श्रेष्ठ है। कर्म करने से ही व्यक्ति के जीवन को सुख की अनुभूति प्राप्त होती है। सबकी भलाई के लिए कर्म करते हुए जीना ही जीवन का मूलमंत्र है।

कर्मवीर Summary in Hindi

जीवन-परिचय :

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के आजमगढ़ जिले में हुआ था। ये हिंदी साहित्य के एक प्रमुख हस्ताक्षर थे तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी रह चुके हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन समिति के द्वारा इन्हें विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। खड़ी बोली हिंदी साहित्य के विकास में इनका विशेष योगदान रहा है। वियोग तथा वात्सल्य वर्णन, लोक सेवा की भावना व प्रकृति चित्रण इनके काव्य की विशेषता है।
प्रमुख कृतियाँ : ‘वैदेही वनवास’, ‘प्रिय-प्रवास’ (महाकाव्य), ‘ठाठ’, ‘अधखिला फूल’ (उपन्यास), ‘रुक्मणी परिणय’, ‘विजय व्यायोग’ (नाटक) आदि।

पद्य-परिचय :

आधुनिक पद्य : सन 1900 से आधुनिक पद्य की शुरुआत हुई। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के प्रभाव से ब्रज भाषा से हिंदी कविता हटकर खड़ी बोली हिंदी में लिखी जाने लगी। भारत का उज्ज्वल अतीत, देशभक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा प्रेम, मानवीय गुण आदि का खड़ी बोली हिंदी में प्रयोग होने लगा। मधुरता एवं सरलता ने हिंदी कविता में प्रवेश कर लिया।
प्रस्तावना : ‘कर्मवीर’ इस कविता के माध्यम से कवि ‘हरिऔध’ जी ने यह बताने का प्रयास किया है कि कर्मवीरों के लिए कर्म ही पूजा होती है, वे कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, वे असंभव को संभव बना देते हैं, तथा देश और समाज को उन्नति के मार्ग पर ले जाते हैं।

सारांश :

‘कर्मवीर’ यह एक आधुनिक पद्य है। इस कविता के माध्यम से कवि ने मानवीय गुणों का संचय करने की प्रेरणा दी है। कवि ने कर्मवीरों के पास जो महान गुण होते हैं उनका अनुसरण करने के लिए पाठकों को प्रेरित किया है। कवि कहते हैं, “मनुष्य को विघ्न-बाधाओं का डटकर मुकाबला करना चाहिए। काम के प्रति उकताहट नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को स्वावलंबी होना चाहिए। उसे कभी भी किसी पर आश्रित नहीं होना चाहिए।

मनुष्य को समय का सदुपयोग करना चाहिए। कार्य कितना भी कठिन हो फिर भी उसे पूरा करने की ठान लेनी चाहिए। मनुष्य को मुसीबतों का सामना करते हुए असंभव कार्य को संभव कर दिखाना चाहिए। मनुष्य की कर्मनिष्ठा मनुष्य का विकास करेगी पर इसके साथ वह जिस समाज व राष्ट्र में रहता है उसका भी विकास होता है। अत: प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह कर्म को श्रेष्ठ मानकर देश और समाज को उन्नति के मार्ग पर ले जाए।

भावार्थ :

देखकर जो ………………………………. वीर दिखलाते नहीं।
कवि ‘हरिऔध’ जी कहते हैं कि कर्मवीर विघ्न बाधाओं को देखकर घबराते नहीं। वे कभी भाग्य के भरोसे नहीं बैठते हैं। इसलिए भाग्य द्वारा दुख मिलने पर उन्हें पछतावा नहीं होता। काम कितना भी कठिन हो फिर भी उन्हें काम के प्रति कोई उकताहट नहीं होती। उनके लिए कर्म ही पूजा होती है। भीड़ अथवा मुश्किलों को देखकर भी उन पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। वे सच्चे वीर होते हैं। वे किसी भी स्थिति में डरते नहीं हैं।

मानत जी की हैं ………………………….. जिसे सकते नहीं।
‘कवि ‘हरिऔध’ जी कहते हैं कि कर्मवीर सबकी बात सुनते हैं लेकिन, कार्य करते समय अपने मन की बात मानते हैं। वे स्वावलंबी होते हैं। वे कभी भी किसी पर आश्रित नहीं होते। वे स्वयं का काम स्वयं पूरा करते हैं। वे कभी भी किसी भी चीज के लिए दूसरों का मुँह नहीं ताकते। अर्थात किसी भी वस्तु के लिए वे दूसरों पर आश्रित नहीं होते हैं। इस दुनिया में भला ऐसा कौन-सा काम है जिसे वे पूरा नहीं कर सकते? अर्थात वे सारे काम करने में सक्षम होते हैं।

जो कभी अपने ………………………………..चुराते हैं नही।
कवि ‘हरिऔध’ जी कहते हैं कि कर्मवीरों के लिए समय बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए वे समय को कभी व्यर्थ नहीं गँवाते। जिस काम को जिस समय करना है उसे उसी समय करते हैं। उसे कल पर नहीं छोड़ते हैं। जहाँ काम करना हो वहाँ कोई बहानेबाजी और आनाकानी नहीं करते। आज का काम कल पर टालकर वे अपने दिनों को व्यर्थ नहीं गँवाते। समय का सदुपयोग करना यही उनका कर्तव्य होता है। कोशिश या मेहनत से वे कभी भी पीछे नहीं हटते ।

काम को आरंभ ……………………………………. नहीं जो जोड़ते।।
कवि ‘हरिऔध’ जी कहते हैं कि कर्मवीर कार्य को कभी भी बीच में छोड़ते नहीं हैं। कार्य कितना भी कठिन हो फिर भी वे उसे पूरा करने की ठान लेते हैं। काम को पूरा करते समय यदि कोई मुसीबत आ जाए तो भी पीछे नहीं हटते; वे काम से मुँह नहीं मोड़ते। कर्मवीर आसमान के फूलों को व्यर्थ बातों से नहीं तोड़ते अर्थात वे अपनी प्रशंसा के लिए बड़ी-बड़ी बातें नहीं बनाते। जिस कार्य को करना है बस उसी पर अपना : ध्यान केंद्रित करते हैं। वे मन से करोड़ों की संपदा नहीं जोडते।

कार्य थल ……………………………… उतना ही वहाँ।
कवि ‘हरिऔध’ जी कहते हैं कि कर्मवीर कार्यस्थल की तलाश में यहाँ-वहाँ खोजने के लिए भटकते नहीं। वे जहाँ होते हैं वहीं उनका कार्यस्थल होता है। कर्मवीर मुसीबतों का सामना करते हुए असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाते हैं। आने वाली उलझनों और मुसीबतों से वे डरते नहीं बल्कि उनका वे उतने ही उत्साह से सामना करते हैं। उलझनों को देखकर उनमें नया जोश और नई चेतना आ जाती है और वे अपना कार्य उत्साह से करते हैं।

सब तरह से ……………………………. सूपतों के पले।
कवि ‘हरिऔध’ जी के अनुसार, आज विश्व में कई ऐसे देश हैं; ‘जो समृद्ध व संपन्न हैं’ प्रगत एवं विकसित हैं। वहाँ पर विद्या, धन, बुद्धि व ऐश्वर्य का भंडार है। इसका कारण है कि वहाँ पर रहने वाले लोगों ने कर्म को ही अपना लक्ष्य मान लिया है। कर्मवीरों के पुरुषार्थ से ही देश संपन्न हुए हैं। कर्मवीरों के कारण ही सबका भला हुआ है। उनके कारण ही चारों ओर प्रगति की लहर छाई हुई है। ऐसे महान सपूतों के कारण ही सभी का जीवन खुशहाल बना है।

शब्दाथ :

  1. विघ्न – संकट
  2. बाधा – रुकावट
  3. भाग्य – नसीब
  4. चंचल – अस्थिर
  5. वृथा – अकारण, व्यर्थ
  6. गगन – आकाश
  7. मदद – सहायता
  8. दिन – दिवस
  9. उत्साह – उमंग
  10. संपदा – धन, दौलत
  11. बुद्धि – मति
  12. वैभव – ऐश्वर्य
  13. उकताना – ऊबना
  14. यत्न – प्रयत्न

मुहावरे :

  1. असंभव को संभव बनाना – कठिन काम को सरल बनाना।
  2. मुँह ताकना – दूसरों पर आश्रित होना।
  3. जी चुराना – आलस करना।
  4. बातें बनाना – बहाने बनाना।