SAMPLE PAPER-2 Hindi
Questions
विभाग – 1 गद्य (अंक-20)
(क) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
ऊपर की घटना को बारह बरस बीत गए। जगत में बहुत-से परिवर्तन हो गए। कई बस्तियाँ उजड़ गईं। कई वन बस गए। बूढ़े मर गए। जो जवान थे; उनके बाल सफेद हो गए।
अब बैजू बावरा जवान था और रागविद्या में दिन-ब-दिन आगे बढ़ रहा था। उसके स्वर में जादू था और तान में एक आश्चर्यमयी मोहिनी थी। गाता था तो पत्थर तक पिघल जाते थे और पशु-पंछी तक मुगध हो जाते थे। लोग सुनते थे और झूमते थे तथा वह वाह-वाह करते थे। हवा रुक जाती थी। एक समाँ बँध जाता था।
एक दिन हरिदास ने हँसकर कहा- “वत्स! मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने तुझे दे डाला। अब तू पूर्ण गंधर्व हो गया है। अब मेरे पास और कुछ नहीं, जो तुझे दूँ।”
बैजू हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। कृतज्ञता का भाव आँसुओं के रूप में बह निकला। चरणों पर सिर रखकर बोला-“महाराज! आपका उपकार जन्म भर सिर से न उतरेगा।”
हरिदास सिर हिलाकर बोले-“यह नहीं बेटा! कुछ और कहो। में तुम्हारे मुँह से कुछ और सुनना चाहता हूँ।”
बैजू —”आज्ञा कीजिए।”
हरिदास- “तुम पहले प्रतिज्ञा करो।”
बैजू ने बिना सोच-विचार किए कह दिया-” मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि “
हरिदास ने वाक्य को पूरा किया-” इस रागविद्या से किसी को हानि न पहुँचाऊँगा।”
बैजू का लहू सूख गया। उसके पैर लड़खड़ाने लगे। सफलता के बाग परे भागते हुए दिखाई दिए। बारह वर्ष की तपस्या पर एक क्षण में पानी फिर गया। प्रतिहिंसा की छुरी हाथ आई तो गुरु ने प्रतिज्ञा लेकर कुंद कर दी। बैजू ने होंठ काटे, दाँत पीसे और रक्त का घूँट पीकर रह गया। मगर गुरु के सामने उसके मुँह से एक शब्द भी न निकला। गुरु गुरु था, शिष्य शिष्य था। शिष्य गुरु से विवाद नहीं करता।
- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए : जवान बैजू के संगीत की क्या विशेषताएँ थी ?
- निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(i) कृतज्ञता –
(ii) उजड़ना –
(iii) उपकार –
(iv) जवान –
3. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: कृतज्ञात मनुष्य का उत्तम गुण है इस विषय पर अपना मत लिखिए।
(ख) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
तुम अपनी सहेली रचना को यह समझाओ कि क्रांति की बड़ी-बड़ी बातें करना आसान है, कोई छोटी-सी क्रांति भी कर दिखाना कठिन है और एक ही झटके में यूँ टूट-हारकर बैठ जाना तो निहायत मूर्खता है। फिर अभी तो वह प्रथम वर्ष के पूर्वार्ध में ही है। अभी से उसे ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। जरूरी हो तो सोच-समझकर वे अपनी दोस्ती को आगे बढ़ा सकते हैं।
कॉलेज जीवन की पूरी अवधि में वे निकट मित्रों की तरह रहकर एक-दूसरे को देखें-जानें, जाँचें-परखें। एक-दूसरे की राह का रोड़ा नहीं, प्रेरणा और ताकत बनकर परस्पर विकास में सहभागी बनें। फिर अपनी पढ़ाई की समाप्ति पर भी यदि वे एक-दूसरे के साथ पूर्ववत लगाव महसूस करें, उन्हें लगे कि निकट रहकर सामने आईं कमियों-गलतियों ने भी उनकी दोस्ती में कोई दरार नहीं डाली है, तो वे एक-दूसरे को उनकी समस्त खूबियों-कमियों के साथ स्वीकार कर अपना लें। उस स्थिति में की गई यह कथित क्रांति न कठिन होगी, न असफल।
मेरी राय में रचना को और उसके दोस्त को तब तक धैर्य से प्रतीक्षा करनी चाहिए। इस बीच वे पूरे जतन के साथ एक-दूसरे के लिए स्वयं को तैयार करें। बिना तैयारी के जल्दबाजी में, पढ़ाई के बीच शादी का निर्णय लेना केवल बेवकूफी ही कही जा सकती है, क्रांति नहीं। ऐसी कथित क्रांति का असफल होना निश्चित ही समझना चाहिए। इतनी जल्दबाजी में तो किसी छोटे-से काम के लिए उठाया कोई छोटा कदम भी शायद ही सफल हो। यह तो जिंदगी का अहम फैसला है।
- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
(i) कठिन क्या है ?
(ii) एक ही झटके में यूँ टूट-हारकर बैठ जाना क्या है ?
(iii) एक-दूसरे को वे कब निकट मित्रों की तरह रहकर देखे जाँचे परखे?
(iv) बिना तैयारी के जल्दबाजी में शादी का निर्णय क्या कहा जाता है ?
- निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(i) क्रांति
(ii) हस्तक्षेप
(iii) प्रेरणा
(iv) लगाव - निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। विद्यार्थी जीवन में मित्रता का ‘महत्त्व’ इस विषय पर अपना मत व्यक्त कीजिए
(ग) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 60 से 80 शब्दों में लिखिए। (तीन में से दो)
(i) ओजोन विघटन संकट से बचने के लिए किए गए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को संक्षेप में लिखिए।
(ii) “पापा के चार हथियार” निबन्ध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। (iii) “बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी है।” इस विचार को स्पष्ट कीजिए।
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए। (चार में से
दो)
(i) सुदर्शन ने इस लेखक की लेखन परम्परा को आगे बढ़ाया है।
(ii) लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर जी’ के निबंध संग्रहों के नाम लिखिए।
(iii) आशारानी क्होरा जी के लेखन कार्य का उद्देश्य क्या है ?
विभाग – 2 पद्य (अंक-20)
(क) निम्नलिखित पठित काव्यांश को पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
सरसुति के भण्डार की, बड़ी अपूरन बात।
ज्यों खरचै त्यों-त्यां बढ़, बिन खरचे घटि जात॥
नैना देत बताय सब, हिय को हेत-अहेत।
जैसे निरमल आरसी, भली बुरी कहि देत॥
अपनी पहुँच विचारि कै, करतब करिए दौर।
तेते पाँव पसारिए, जेती लाँबी सौर॥
फेर न हृवै हैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार।
जैसे हाँड़ी काठ की, चढै न दूजी बार ॥
ऊँचे बैठे ना लहैं, गुन बिन बड़पन कोई।
बैठो देवल सिखर पर, वायस गरूड़ न होई॥
- कृति पूर्ण कीजिए-
(i)
(ii) कारण लिखिए-
सरस्वती के भण्डार को अपूर्व कहा गया है-
- उचित मिलान कीजिए-
क्र. | अ | ब | |
1. | करतब | क | मंदिर |
2. | देवल | ख | चादर |
3. | काठ | ग | कार्य |
4. | सौर | घ | लकड़ी |
- निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर शब्दों में लिखिए। ‘चादर देखकर पैर फैलाना बुद्धिमानी कहलाती है; इस विषय पर अपने विचार 40 से 50 शब्दों में व्यक्त कीजिए।
(ख) निम्नलिखित पठित काव्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
गजलों से खुशबू बिखराना हमको आता है।
चट्टानों पर फूल खिलाना हमको आता है।
परिंदों को शिकायत है, कभी तो सुन मेरे मालिक।
तेरे दानों में भी शायद, लगा है घुन मेरे मालिक।
हम जिंदगी के चंद सवालों में खो गए।
सारे जवाब उनके उजालों में खो गए।
चट्टानी रातों को जुगनू से वह सँवारा करती है।
बरसों से इक सुबह हमारा नाम पुकारा करती है।
वह आसमाँ पे रोज एक ख्वाब लिखता था।
उसे पता न था वह इन्कलाब लिखता था।
- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
(i) परिदों को क्या शिकायत है ?
(ii) कवि जिंदगी के सवालों में खो जाने पर क्या हुआ है ?
(iii) कवि अपनी कृतियों से क्या कर सकता है ?
(iv) कवि के मतानुसार फकीरों, साधुओं को ईश्वर किस प्रकार का हुनर देता है ?
- पाठ में आए चार उर्दू शब्द और उनके हिंदी अर्थ लिखिए:
(i) जिंदगी
(ii) ख्वाब
(iii) खुशबू
(iv) परिंदे - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: “क्रांति कभी भी अपने-आप नहीं आती” इस कथन पर अपने विचार लिखिये।
(ग) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘नवनिर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
(i) रचनाकार का नाम-
(ii) पसंद की पंक्तियाँ-
(iii) पसंद के कारण-
(iv) कविता की केन्द्रिय कल्पना-
- पेड़ हौसला है, पेड़ दाता है। इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए। (चार में से
दो)
(i) कैलाश सेंगर जी की प्रसिद्ध दो रचनाओं के नाम।
(ii) डॉ मुकेश गौतमजी की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
(iii) त्रिलोचन जी के दो काव्य संग्रहों के नाम लिखिए।
(iv) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम लिखिए।
विभाग – 3 विशेष अध्ययन (अंक-10)
(क) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
सेतु: मैं
सुनो कनु, सुनो
क्या मैं सिर्फ एक सेतु थी तुम्हारे लिए
लीलाभूमि और युद्धक्षेत्र के
अलंघ्य अंतराल में!
अब इन सूने शिखरों, मृत्यु घाटियों में बने
सोने के पतले गुँथे तारों वाले पुल-सा
निर्जन
निरर्थक
काँपता-सा, यहाँ छूट गया-मेरा यह सेतु जिस्म
— जिसको जाना था वह चला गया
अमंगल छाया
घाट से आते हुए
कदंब के नीचे खड़े कनु को
ध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने
जिस राह से तू लौटती थी बावरी
आज उस राह से न लौट
उजड़े हुए कुंज
रॉदी हुई लताएँ
आकाश पर छाई हुई धूल
क्या तुझे यह नहीं बता रही
कि आज उस राह से
कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ
युद्ध में भाग लेने जा रही हैं!
आज उस पथ से अलग हटकर खड़ी हो
बावरी!
लताकुंज की ओट
छिपा ले अपने आहत प्यार को
आज इस गाँव से
- निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लिखिए।
(i) उपर्युक्त पद्यांश में प्रयुक्त एक सुंदर वृक्ष का नाम लिखिए।
(ii) कृष्ण की कितनी सेनाएँ युद्ध में भाग लेने जा रही है ?
(iii) सेतु के दोनों छोर कौन से हैं?
(iv) कृष्ण की सेनाएँ कौनसे मार्ग से जा रही हैं?
- उत्तर लिखिए।
राधा का सेतु जिस्म ऐसा है
(i)
(ii)
(iii)
(iv)
- निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए:
‘वृक्ष की उपयोगिता’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर 80 से 100 शब्दों में लिखिए : (दो में से एक)
(i) ‘कनुप्रिया’ में अवचेतन मन में बैठी राधा चेतनावस्था में स्थित राधा को संबोधित करती है।” इस बात को स्पष्ट कीजिए।
(ii) राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता बताइए।
विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली (अंक-20)
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों में लिखिए:
ब्लॉग लेखन में बरती जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डालिए। अथवा
निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
मैं उद्घोषक हूँ। उद्घोषक के पर्यायवाची शब्द के रूप में ‘मंच संचालक’ और अंग्रेजी में कहें तो एंकर हूँ। मंच संचालक श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी है। में उसी कड़ी का काम करता हूँ। इसके लिए मेरी कई नामचीन व्यक्तियों द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी जैसी हस्तियों के मुँह से यह सुनना कि बहुत अच्छा बोलते हो, अच्छे उद्घोषक हो या ‘मैं तो तुम्हारा फैन हो गया’ तो सचमुच स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ।
किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की बहुत अहम भूमिका होती है। वही सभा की शुरूआत करता है। आयोजकों को तथा अतिथियों को वही मंच पर आमंत्रित करता है, वही अपनी आवाज, सहज और हास्य प्रसंगों तथा काव्य पंक्तियों से कार्यक्रम की सफलता निर्धारित करता है। मैंने कई बार इस महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह अत्यंत
सफलतापूर्वक किया है लेकिन यह सब यों अचानक नहीं हो गया। मैंने भी इसके लिए बहुत पापड़ बेले हैं। आरंभिक दिनों में मैं भी मंच पर जाते घबराता था। माइक मुझे साँप के फन की तरह नजर आता था। दिल जोर-जोर से धड्कके लगता था। मुझे याद है-तब मैं नौवीं कक्षा का छात्र था। विद्यालय के प्रांगण में गांधी जयंती का आयोजन किया गया था। मुझे भी भाषण देने के लिए चुना गया। मंच पर जाते ही हाथ-पैर थरथराने लगे। जो कुछ याद किया था, लगा, सब भूल गया हूँ। कुछ पल के लिए जैसे होश ही खो बैठा हूँ पर फिर खुद को सँभाला। महान व्यक्तियों के आरंभिक जीवन के प्रसंगों को याद किया कि किस तरह कुछ नेता हकलाते थे, कुछ काँपते थे पर बाद में वे कुशल वक्ता बने। ये बातें याद आते ही हिम्मत जुटाकर मैंने बोलना शुरू किया और बोलता ही गया। भाषण समाप्त हुआ। खूब तालियाँ बरीं। खूब वाह-वाही मिली। कहने का मतलब यह कि थोड़ी-सी हिम्मत और आत्मविश्वास ने मुझे भविष्य की राह दिखा दी और मैं एक सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
- निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लिखिए:
(i) मंच किन्हें जोड़ने वाली कड़ी हैं ?
(ii) किसी भी कार्यक्रम में बहुत अहम भूमिका किसकी होती है?
(iii) आरंभिक दिनों में लेखक को माइक किस तरह नजर आता था?
(iv) लेखक अंत में किस रूप में प्रसिद्ध हो गया ?
- निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए:
(i) प्रशंसा
(ii) निर्वाह
(iii) प्रांगण
(iv) प्रसिद्ध - ‘हिम्मत और आत्मविश्वास हमें सफल भविष्य की राह दिखाते हैं।’ इस बात पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 80 से 200 शब्दों में लिखिए। (दो में से एक)
(i) ग्रामीण समस्याओं पर ब्लॉग लेखन कीजिए।
(ii) अपने कनिष्ठ महाविद्यालय में मनाए जाने वाले हिंदी दिवस का सूत्र संचालन कीजिए।
अथवा
सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।
(i) पल्लवन में भाव विस्तार के साथ का भी स्थान, होता हैं।
(अ) चिंतन
(ब) मनन
(स) परीक्षण
(द) सहजता
(ii) पी.डी. टंडन के अनुसार ‘फीचर किसी’ की तरह होता है।
(अ) पद्य
(ब) काव्य
(स) गद्य गीत
(द) गजल
(iii) सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन के मुख्य गुण हैं।
(अ) लेखक
(ब) श्रोता
(स) गायक
(द) उद्घोषक
(iv) ‘ब्लॉग’ अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का एक माध्यम है-
(अ) डिजिटल
(ब) प्रसारण
(स) सामाजिक
(द) प्रचार
(ग) निम्नलिखित अपठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
छात्रावास बंद था, अतः सोना के नित्य नैमित्तिक कार्यकलाप भी बंद हो चुके थे। मेरी उपस्थिति का भी अभाव था, अतः आनंदोल्लास के लिए भी अवकाश कम था। हेमंत-बसंत मेरी यात्रा और तज्जनित अनुपस्थिति से परिचित हो चुके थे। होल्डॉल बिछाकर उसमें बिस्तर रखते ही वे दौड़कर उन पर लेट जाते और भौकने तथा क्रंदन की ध्वनियों के सम्मिलित स्वर में मुझे मानो उपालंभ देने लगते। यदि उन्हें बाँध न रखा जाता तो वे कार में घुसकर बैठ जाते या उसके पीछे-पीछे दौड़कर स्टेशन तक जा पहुँचते। परंतु जब में चली जाती तब वे उदासभाव से मेरे लौटने की प्रतीक्षा करने लगते।
सोना की सहज चेतना में न मेरी यात्रा जैसी स्थिति का बोध था न प्रत्यावर्तन का; इसी से उसकी निराश जिज्ञासा और विस्मय का अनुमान मेरे लिए सहज था।
पैदल आने-जाने के निश्चय के कारण बद्रीनाथ की यात्रा में ग्रीष्मावकाश समाप्त हो गया। 2 जुलाई को लौटकर जब में बंगले के द्वार पर आ खड़ी हुई तब बिछुड़े हुए पालतू जीवों में कोलाहल होने लगा।
गोधूली कूदकर मेरे कंधे पर आ बैठी। हेमंत-बसंत मेरे चारों ओर परिक्रमा करके हर्ष की ध्वनियों से मेरा स्वागत करने लगे। पर मेरी दृष्टि सोना को खोजने लगी। क्यों वह अपना उल्लास व्यक्त करने के लिए मेरे सिर के ऊपर छलांग नहीं लगाती ? सोना कहाँ है, पूछने पर माली आँखें पोंछने लगा और चपरासी, चौकीदार एक-दूसरे का मुख देखने लगे। वे लोग आने के साथ ही मुझे दुखद कोई समाचार नहीं देना चाहते थे, परन्तु माली की भावुकता ने बिना बोले ही उसे दे डाला।
ज्ञात हुआ कि छात्रावास के सन्नाटे और फ्लोरा के तथा मेरे अभाव के कारण सोना इतनी अस्थिर हो गई थी कि इधर-उधर खोजती-सी वह प्राय: कंपाउंड से बाहर निकल जाती थी। इतनी बड़ी हिरनी को पालने वाले तो कम थे, परन्तु उसे खाद्य और स्वाद पैदा करने के इच्छुक व्यक्तियों का बाहुल्य था। इसी आशंका से माली ने उसे मैदान में एक लंबी रस्सी से बांधना आरंम्भ कर दिया था। एक दिन न जाने किस स्तब्धता की स्थिति में बंधन की सीमा भूलकर वह बहुत ऊँचाई तक उछली और रस्सी के कारण मुख के बल धरती पर आ गिरी। वही उसकी अंतिम साँस और अंतिम उछाल थी। सब उस सुनहरे रेशम की गठरी-से शरीर को गंगा में प्रवाहित कर आए और इस प्रकार किसी निर्जन वन में जन्मी और जनसंमुलता में पली सोना की करुण कहानी का अंत हुआ। सब सुनकर मैंने निश्चय किया कि अब हिरन नहीं पालूँगी पर संयोग से फिर हिरन पालना पड़ रहा है।
- संजाल पूर्ण कीजिए :
- निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए:
(i) उपालंभ
(ii) बाहुल्य
(iii) कोलाहल
(iv) क्रंदन - ‘पालतू-पक्षियों से मनुष्य का आत्मिक लगाव’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
(घ) निम्नलिखित शब्दों की पारिभाषिक शब्दावली लिखिए: (आठ में से चार)
(i) Announcer
(ii) Justice
(iii) Agenda
(iv) Bond
(v) Gazetted
(vi) Suspension
(vii) Action
(viii) Dismiss
विभाग – 5 व्याकरण (अंक-10)
(क) निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए। (चार में से दो)
(i) एक-एक क्षण आपको भेंट कर देता हूँ।
(सामान्य भविष्यकाल)
(ii) इस वेग में वह पिस जाएगा।
(पूर्ण भूतकाल)
(iii) बैजू बावरा की उँगलिया सितार पर दौड़ रही थी।
(अपूर्ण वर्तमान काल)
(iv) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होती है।
(सामान्य भविष्यकाल)
(ख) निम्नलिखित उदाहरणों के अलंकार पहचानकर लिखिए। (चार में से दो)
(i) पत्रा ही तिथि पाइयें, वा घर के चहुँ पास। नित प्रति पून्यौई रहै, आनन-ओप उजास॥
(ii) ऊँची-नीची सड़क बुढ़िया के कूबड़-सी। नंदनवन-सी फूल उठी, छोटी-सी कुटिया मेरी ॥
(iii) सिंधु-सेज पर धरा वधू। अब तनिक संकुचित बैठी-सी॥
(iv) करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर पड़त निसान ॥
(ग) निम्नलिखित उदाहरणों के रस पहचानकर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) अखिल भुवन चर, अचर सब, हरि मुख में लख मातु। चकित भई, गद्गद बचन, विकसित दृग पुलकातु।
(ii) एक भरोसे, एक बल एक आस विश्वास। एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास
(iii) कहुँ सुलगत कोड चिता कहुँ कोड जात लगाई। एक लगाई जात एक की राख बुझाई।
(iv) मोको कहाँ ढूँढ़ बंदे मैं तो तेरे पास में। खोजी होय तो तुरतहिं मिलिहै, पलभर की तालास में
(घ) निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए। (चार में से दो)
(i) कन्नी काटना
(ii) चट्टानों पर फूल खिलाना
(iii) समाँ बँधना
(iv) द्रवित हो जाना
(ङ) निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए।
(i) उसके सत्य का पराजय हो जाता है।
(ii) चपे-चपे पर काँटों की झाड़ें हैं।
(iii) भाई-बहन की रिस्ता अनूठा होती हैं।
(iv) सुगंधा का पत्र पीकर लेखिका को खुश हुई।
Answer Key
गद्य
(क) जवान बैजू के संगीत की विशेषताएँ-
- (i) उसके स्वर में जादू था और तान में आश्चर्यमयी मोहिनी थी।
(ii) गाता था तो पत्थर तक पिघल जाते थे।
(iii) पशु-पक्षी तक मुग्ध हो जाते थे।
(iv) लोग सुनते थे और झूमते थे तथा वाह-वाह करते थे।
- (i) कृतज्ञता – कृतघ्जता (ii) उजड़ना – बसना
(iii) उपकार – अपकार (iv) जवान – बुढ़ा
- एक कृतज्ञता मानवता की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। कृतज्ञता महान गुण है। कृतज्ञाता का अर्थ है अपने प्रति किसी के द्वारा की गई उत्कृष्ट सहायता के लिए उस व्यक्ति का सम्मान या एहसान मानना। जिस प्रकार सफलता मिलने पर एक सुखद, एहसास होता है, उसी तरह मदद पाने पर मदद करने वाले व्यक्ति के प्रति कृतज्ञाने का सुखद एहसास होता हैं। ऐसे समय में मदद करने वाला व्यक्ति हमें किसी फरिश्ते से कम नहीं लगता हैं। कृतज्ञात किसी के प्रति सच्ची योग्यता को स्वीकार करने का ही भाव है। कृतज्ञता किसी के प्रति दिया गया आदर का भाव हैं। सम्मान देने वाले स्वयं को झुकाकर अपने उच्च संस्कारों का परिचय कराते हैं। कृतज्ञात व्यक्त करने से मदद करने वाले व्यक्ति को भी प्रसन्नता होती हैं।
(ख)
- (i) छोटी-सी क्रांति भी कर दिखाना कठिन है। (ii) एक ही झटके में यूँ टूट-हारकर बैठ जाना तो निहायत मूर्खता है।
(iii) कॉलेज-जीवन की पूरी अवधि में वे निकट मित्रों की तरह रहकर देखें, जाँचे परखें।
(iv) बिना तैयारी के जल्दबाजी में शादी का निर्णय वेबकूफी कही जाती है।
- विद्यार्थी जीवन महत्त्वपूर्ण समय होता है। इस अवस्था में मित्रता पर निर्भर होता है कि विद्यार्थी चाहे तो अच्छा इन्सान बन सकता है या बिगड़ भी सकता है। इस विकास की अवस्था में मित्रता का अच्छा-बुरा प्रभाव विद्यार्थी पर पड़ता है।
विद्यार्थी जीवन में बिना मित्रता का रिश्ता सच्चा होता है। रिश्तेदारों से भी बढ़कर इस अवस्था में मित्र होते हैं। हमारे सारे रहस्य हम उनको बिना झिझक बता सकते हैं। सच्चे मित्र हमें अच्छे-बुरे में फर्क समझाते हैं। कठिन प्रसंग में सहायता करके हमें संकट से बाहर निकालते हैं। कभी-कभी उनके शब्दों का आधार भी औषधियों की तरह काम करता है।
इसलिए विद्यार्थी जीवन में अच्छे और सच्चे मित्र की जरूरत होती है। विद्यार्थी जीवन में इसी कारण ‘मित्रता का महत्त्व’ अनगिनत होता है।
(ग)
- (i) ओजोन संकट पर विचार करने के लिए अनेक देशों की पहली बैठक 1985 में विएना में हुई। बाद में सितबंर 1987 में कनाड़ा के शहर माँट्रियल में बैठक हुई। जिसमें दुनिया के 48 देशों ने भाग लिया था। जिस मसौदे को इस बैठक में अंतिम रूप दिया गया। उसे ‘ मांट्रियल-प्रोटोकाल’ कहते हैं। इसके तहत यह प्रावधान रखा गया कि सन् 1995 तक सभी देश सी.एफ.सी. की खपत में 50 प्रतिशत की कटौती तथा 1997 तक 85 प्रतिशत की कटौती करेंगे। सन् 1990 के आँकडों के अनुसार पूरी दुनिया में सी.एफ.सी. की खपत 12 लाख टन तक पहुँच गयी थी, जिसकी 30 प्रतिशत हिस्सेदारी अकेले अमेरिका की थी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दुनिया के सभी देशों ने इस बारे में समुचित कदम उठाने शुरू कर दिया। सन् 2010 तक सभी देश सी.एफ.सी. का इस्तेमाल बंद कर देंगे। इस दौरान विकसिल देश नए प्रशीतकों की खोज में विकासशील देशों की आर्थिक मदद करेंगे।
(ii) संसार में पाप, अत्याचार और अन्याय का बोलबाला रहा है, और आज भी वह वैसा ही है। इससे लोगों को मुक्ति, दिलाने के लिए अनेक महापुरुषों, सुधारकों, समाज सेवकों एवं संत-महात्माओं ने अथक प्रयास किया, पर वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाए। उल्टे उन्हें समाज के लोगों की उपेक्षा तथा निंदा आदि का शिकार होना पड़ा और कुछ लोगों को अपनी जान भी गाँवानी पड़ी। पर देखा यह गया है, कि जीते जी जिन सुधारकों और महापुरुषों को समाज का सहयोग नहीं मिला और उनकी अवहेलना होती रही, मरने के बाद उनके स्मारक और मंदिर भी बने और लोगों ने उन्हें भगवान-सुधारक कह कर वंदनीय भी बताया।
यहाँ लेखक यह कहना चाहते हैं, कि मरणोपरांत सुधारक का स्मारक-मंदिर बनना सुधारक और उसके प्रयासों दोनों की पराजय है। अच्छा तो तब होता, जब लोग सुधारक के जीते जी उसके विचारों को अपनाते और पाप, अत्याचार और अन्याय जैसी बुराइयों के खिलाफ संघर्ष में उसका सहयोग करते और समाज से इन बुराइयों के दूर होने में सहायक बनते। इससे सुधारक समाज को पाप, अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार जैसी बुराइयों से मुक्ति दिलाने में सफल हो सकता था। लोगों को सुधारक की उपेक्षा, निंदा अथवा उनके खिलाफ षड़यंत्र रचने के बजाय उनके अभियान में अपना पूरा सहयोग देना
चाहिए। तभी समाज से ये बुराइयाँ दूर हो सकती हैं। यही इस पाठ का उद्देश्य है।
(iii) ‘आदर्श बदला’ सुदर्शन जी की यह कहानी अलग ढंग से ‘बदला’ इस शब्द को स्पष्ट करती है। साथ ही एक कलाकार को दूसरे कलाकार के प्रति सम्मान के भाव रखने की बात को स्पष्ट करती है। जिसे अपनी कला से सच्चा लगाव हो उसे सच्चा कलाकार कहते हैं।
बैजू बावरा ने बाबा हरिदास से संगीत सीखने का कठिन तपस्या की थी, रागविद्या की शिक्षा ली थी। बारह वर्षों की तपस्या के बाद वह गानकला में निष्णात हो गया था। वह एक आज्ञाकारी शिष्य था। वह अपने पिता पर हुए अन्याय का बदला लेना चाहता था। परन्तु बाबा हरिदास ने जब यह प्रतिज्ञा करवायी कि वह इस रागविद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचायेगा, तब रक्त का घूँट-पीकर इस गुरु आदेश को स्वीकार कर लिया। बैजू बावरा के संगीत में जादू का असर था। उसके संगीत की धार दूर-दूर तक फैल गयी थीं। तानसेन को अपनी गानविद्या पर अहंकार था। बल्कि बैजू बावरा के हृदय में दया की भावना थी। तानसेन और बैजू बावरा दोनों में गानयुद्ध होता है, तब तानसेन को पराजित करके भी वह अपनी जीत का प्रदर्शन नहीं करता है। बल्कि उसे जीवनदान देकर उसके बनाए नियम को तोड़ने की बात करता है। वह इस नियम को खत्म करवा दे कि जो कोई आगरा की सीमा के अंदर गाए, वह अगर तानसेन की जोड़ का न हो तो मरवा दिया जाए। उसकी यह माँग में गीत-संगीत की रक्षा करने का भाव निहित है।
इस प्रकार बैजू बावरा तानसेन जैसे कलाकार की कला का सम्मान करता है और संगीत का सच्चा पुजारी कहलाता है।
(घ)
- (i) सुदर्शन ने मुंशी प्रेमचंद की लेखन परम्परा को आगे बढढ़या है।
(ii) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर जी’ के निबंध संग्रहों के नाम हैं-
(1) जिंदगी मुस्कुराई
(2) बाजे पायलिया के घुँघरू
(3) जिंदगी लहलहाई
(4) महके आँगन-चहके द्वार।
(iii) विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी रही महिलाओं के जीवन संघर्ष को चित्रित करना और वर्तमान नारी वर्ग के सम्मुख उनके आदर्श प्रस्तुत करना है।
(iv) बैद्यनाथ झा।
विभाग – 2 पद्य
(क)
- कृति पूर्ण कीजिए-
(i)
(ii) कारण लिखिए-
खर्च करने अर्थात बाँटने पर बढ़ता है और खर्च न करने अर्थात न बाँटने पर नष्ट हो जाता है।
(ii) अपनी-अपनी जगह पर खुद से लड़ाई जारी रखनी चाहिए।
2. उचित मिलान कीजिए-
(i) करतब-(ग) कार्य
(ii) काठ-(घ) लकड़ी
(iii) देवल-(क) मंदिर
(iv) सौर-(ख) चादर
- चादर देखकर पैर फैलाने का अर्थ है, जितनी अपनी क्षमता हो उतने में ही काम चलाना। यह अर्थशास्त्र का साधारण नियम है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ भी इस नियम का पालन करती हैं। जो लोग इस नियम के आधार पर अपना कार्य करते हैं, उनके काम सुचारू रूप से चलते हैं। जो लोग बिना सोचे-विचारे किसी काम की शुरुआत कर देते हैं और अपनी क्षमता का ध्यान नहीं रखते, उनके सामने आगे चलकर आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता
है। इसके कारण काम ठप हो जाता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि अपनी क्षमता का अंदाज लगाकर ही कोई कार्य शुरू किया जाए। चादर देखकर पैर फैलाने में ही बुद्धिमानी होती है।
(ख)
1.
(i) परिंदो को यह शिकायत है कि, जो भी दाना मालिक अर्थात् ईश्वर की कृपा से उन्हें प्राप्त होता है, उसमें भी कीड़े लगे हैं।
(ii) कवि जिंदगी के सवालों में खो गए तब ऐसा हुआ कि कवि के सवालों को जवाब उनके उजालों में खो गया।
(iii) कवि अपनी कृतियों से असंभव कार्य को संभव करके दिखा सकते हैं, क्रांति ला सकते हैं।
(iv) कवि के मतानुसार ईश्वर फकीरों, साधुओं को ऐसी शक्ति प्रदान करता है कि उनके मुख से निकले आशीर्वाद सच होने लगते हैं और लोगों की आँखें मानो करुणा और स्नेह बरसाती रहती हैं।
- (i) जिंदगी-जीवन
(ii) ख्वाब-स्वप्न
(iii) खुशबू-सुगंध
(iv) परिदे – पक्षी
- क्रांति अर्थात् परिवर्तन, बदलाव लाना। क्रांति दो प्रकार की होती हैं सकारात्मक क्रांति और विघातक क्रांति। सकारात्मक क्रांति हमें प्रगति पथ पर ले जाती हैं और विघातक क्रांति हमें पीछे खींचती है। क्रांति शासन व्यवस्था के प्रति होती है या किसी सामाजिक प्रथा के विरोध में। क्रांति कभी अपने-आप नहीं आती, उसे प्रयास करके लाया जाता है। अगर कोई व्यक्ति बुरा है, समाज-विद्रोही है, उसने सोचा कि वह अच्छा व्यक्ति बनेगा, बुरी आदतें छोड़ देगा, समाज सेवक बनेगा। तब बुरी आदतें उस पर इस प्रकार हावी होती हैं कि वह इन बातों को छोड़ नहीं सकता। उसका मन पक्का नहीं होता इसलिए वह अच्छा आदमी नहीं बन सकता। अर्थात् वह अपने जीवन में क्रांति नहीं कर सकता।
क्रांति स्वयं अपने से प्रारंभ होती है। प्रयत्नपूर्वक क्रांति को लाया जा सकता है। जब तक हम क्रांतिकारी कदम नहीं उठायेंगे, तब तक हम और समाज विकसित नहीं हो पायेगें। इतिहास साक्षी है कि, जब मानव ने नए आविष्कारों को सिद्धान्तों को मन से अपनाया है, तभी हमारा समाज प्रगति-पथ पर आगे बढ़ता है।
(ग) ‘लोकगीत’
मुद्दे :-
(i) रचना का नाम-त्रिलोचन जी (मूलनाम-वायुदेव सिंह)
(ii) पसंद की पंक्तियाँ-
जिसको मंजिल का पता रहता है,
पथ के संकट को वही सहता है,
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ
अपना इतिहास वही कहता है।
(iii) पसंद के कारण-प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात कही गई है कि एक बार अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लेने के बाद मनुष्य को
(घ)
हर समय उसको पूरा करने के काम में जी-जान से लग जाना चाहिए। फिर मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आए, उन्हें सहते हुए निरंतर आगे ही बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन ऐसे व्यक्ति को सफलता मिलकर ही रहती है। ऐसे ही व्यक्ति लोगों के आदर्श बन जाते हैं। लोग उनका गुणगान करते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं।
(iv) कविता की केन्द्रीय कल्पा-प्रस्तुत कविता में संघर्ष करने, अत्याचार, विषमता तथा निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया गया है तथा समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं मानवता की स्थापना की बात कही गई है।
- कवि डॉ. मुकेश गौतम जी ने ‘पेड़ होने का अर्थ’ इस कविता में पेड़ संबंधी जानकारी देकर वह मनुष्य के लिए मानवता परोपकार की प्रेरणा देता है, इस बात पर प्रकाश डाला है। पेड़ अनेक आँधी-तूफान आ जाए उसका सामना करता है। मानव प्रतिकूल परिस्थिति आने पर या मनचाही सफलता न मिलने पर हौसला खो बैठता है। परन्तु पेड़ से हमें सीखना चाहिए कि, वह घायल होकर टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है, परन्तु अपना हौसला नहीं छोड़ता है। पेड़ निर्भीक होते हैं। पेड़ जहाँ खड़े हैं, वहाँ न डरते हुए संकट का सामना करते हैं। उनके पास हत्या, आत्महत्या बिल्कुल भटकती नहीं। पेड़ के इसी हौसले के कारण पेड़ की शाखा में स्थित घोंसले में चिड़िया और उसके छोटे बच्चे भयंकर तूफानी रात में भी सुरक्षित रहते हैं। इससे हमें सीखना चाहिए कि सचमुच पेड़ का हौसला बहुत बड़ा है।
पेड़ बड़े परोपकारी होते हैं, इन्हें हमें बहुत बड़ा दाता कहना चाहिए। पेड़ की छाँव से थके राहगीर को ठंडी हवा मिल जाती है। वह अपने शरीर पर आए फूलों की बौछार मानव पर कर देता है। पेड़ की जड़, तना, शाखाएँ, पत्ती, फूल, फल, बीज आदि पेड़ के सभी हिस्से या भाग मानव के लिए उपयुक्त होते हैं। पेड़ जीवन भर देने का कार्य करते हैं। इतना ही नहीं, मानव के लिए कार्बन डाइऑक्साइड हानिकारक होता है, वह पेड़ शोषित करते हैं और हमें जीवनदान देने वाला ऑक्सीजन, शुद्ध हवा हमें देते हैं। निर्दयी लोग जब उस पर कुल्हाड़ी चलाते हैं, तब भी पेड़ उसके साथ दुर्व्यवहार न करते हुए उसे भी सब देता है। वास्तविकता में पेड़ दधीचि है। वह बिना किसी स्वार्थ के मनुष्य का साथ देकर उसे जीवनभर देने का कार्य करता है।
(i) (1) सूरज तुम्हारा है (गजल संग्रह), (2) अभी रात बाकी है (अनूदित साहित्य)।
(ii) डॉ मुकेश गौतमजी की दो रचनाएँ-(1) सतह और शिखर, (2) अपनों के बीच आदि।
(iii) त्रिलोचन जी के कुल पाँच काव्य संग्रह है-(1) धरती, (2) दिगंत, (3) गुलाब और बुलबुल, (4) उस जनपद का कवि हूँ, (5) सबका अपना आकाश।
(iv) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम है-रामस्वरूप चतुर्वेदी, विजयदेव साही।
विभाग – 3 विशेष अध्ययन
(क)
- (i) उपर्युक्त पद्यांश में प्रयुक्त एक सुंदर वृक्ष का नाम है-कदंब।
(ii) कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ युद्ध में भाग लेने जा रही है। (iii) सेतु के दोनों छोर लीला भूमि और युद्ध क्षेत्र हैं।
(iv) कृष्ण की सेनाएँ उजड़े हुए कुंज और रौंदी हुई लताओं की राह से जा रही हैं।
- (i) सोने के पतले गुंथे तारों वाले पुल-सा
(ii) निर्जन
(iii) निर्थक
(iv) काँपता-सा।
- वृक्ष तो मनुष्य के मित्र हैं। वृक्ष समस्त चराचर में व्याप्त मानव और प्राणियों के लिए उपयुक्त हैं। वृक्ष हमें बहुत कुछ देते हैं-” वृृक्ष जीता हमारे लिए, परोपकार की धुन है उसकी।” वृक्ष में देने की भावना होती हैं। चिड़िया वृक्ष पर घोंसला बनाती हैं, और घोसले में अपने छोटे बच्चों को विश्वास के साथ रखती हैं। तब वृक्ष आँधी-तूफान में भी चिड़ियाँ और उसके बच्चों की रक्षा करते हुए अपनी जगह खड़े होते हैं। वृक्ष थके हुए राहगीर को छाँव देते हैं। वृक्षों की शीतलता हमें उल्हासित कर देती हैं। वृक्ष मानव के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। जंगलों के अनेक वृक्षों से हमें जड़ी-बूटी अर्थात् आयुर्वेदिक औषधियाँ मिलती हैं। साथ ही वृक्ष वातावरण से कार्बन डाई-ऑक्साईड शोषण कर लेते है और ऑक्सीजन छोड़ते है जिससे हमें साँस लेने के लिए शुद्ध वायु मिलती है। वृक्ष का हर हिस्सा वृक्ष की जड़े, तना, शाखा, पत्ते, पान, फूल, फल सब उपयोगी होते हैं।
पेड़ों से फर्नीचर बनता है। वृक्ष के कारण अनेक लघु उद्योग भी चलते हैं। इस कारण वृक्षों को नहीं काटना चाहिए। बल्कि हमें बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण करना चाहिए और धरती को बचाना है।
(ख)
(i) डॉ. धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ यह कृति हिंदी साहित्य जगत में अत्यन्त चर्चित रही है। ‘कनुप्रिया’ अर्थात् कन्हैया की प्रिय सखी ‘राधा’-कृष्ण अब महाभारत के महायुद्ध के महानायक हैं। राधा को लगता है कि प्रेम त्यागकर युद्ध का अवलंब करना निरर्थक बात है। राधा को लगता है कि उसकी बलि चढ़ाकर कान्हा आगे बढ़े हैं। उसे पुल या सेतु बनाकर ही वे युद्ध के महानायक बने हैं। राधा की मनस्थिति विधात्मक बन चुकी हैं। अवचेतन मन में बैठे राधा और कृष्ण तथा चेतनावस्था में स्थित राधा और कृष्ण। यहाँ अवचेतन मन में बैठी राधा चेतनावस्था में स्थित राधा को संबोधित करती हैं-कहती है, हे राधा, यमुना के घाट से ऊपर आते समय कदंब के पेड़ के नीचे खड़े कान्हा को देवता समझकर प्रणाम
करने के लिए तुम जिस मार्ग से लौटती थी, हे बावरी! आज तुम उस मार्ग से होकर मत लौटना।
आकाश में छाई हुई धूल, उजड़े हुए कुंज रॉददी हुई लताएँ क्या तुम्हें आभास नहीं दे रहे हैं कि आज उस मार्ग से कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ युद्ध में भाग लेने जा रही हैं।
हे बावरी! तू आज उस मार्ग से दूर हटकर खड़ी हो जा। लताकुंज की ओट में अपने घायल प्यार को छुपा ले। क्योंकि आज इस गाँव से द्वारिका की उन्मत्त सेनाएँ युद्ध के लिए जा रही हैं। जिस आम की डाली पर बैठकर कान्हा राधा का इंतजार करते थे, वह डाली आज कृष्ण के सेनापतियों के तेज गति वाले रथों की ऊँची पताकाओं में उलझ-अटक जाएगी। कान्हा आज राधा के साथ गुजारे तन्मयता के क्षणों को भूल चुके हैं। इस भीड़-भाड़ में उनके प्यार को पहचानने वाला कोई नहीं है।
अत: अवचेतन मन में बैठी राधा चेतनावस्था में स्थित राधा को कहती है कि राधे! तुम्हें तो गर्व होना चाहिए, क्योंकि किसके महान प्रेमी के पास अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हैं अर्थात् राधा के प्रेमी पास ही इतनी बड़ी सेना हैं।
(ii) ‘कनुप्रिया’ डॉ. धर्मवीर भारती रचित नायिका प्रधान काव्य हैं। जिसमें राधा के मन में श्रीकृष्ण और महाभारत के पात्रों को लेकर चलने वाला पात्र है। राधा के लिए प्रेम जीवन में सर्वोपरि हैं। उसके मतानुसार युद्ध निरर्थक हैं। श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध का अवलंब करते हैं, फिर भी राधा-श्रीकृष्ण का साथ देती है। वह जीवन की घटनाओं को और व्यक्तियों को केवल प्यार की कसौटी पर ही कसती हैं।
राधा ने कान्हा के साथ सदैव तन्मयता के क्षणों को जिया है। कृष्ण के कर्म, स्वधर्म, निर्णय तथा दायित्व आदि शब्दों को राधा समझ नहीं पाती हैं। श्रीकृष्ण से उसने सिर्फ प्रणय, प्यार के ही शब्द सुने थे। राधा का प्रेम कनु के कारण व्यथित, दुखी हुआ है, फिर भी कनु को चाहिए कि वह अपना दुख छिपाए। राधा महाभारत के युद्ध महानायक कृष्ण को संबोधित करते हुए कहती है कि, “मैं तो तुम्हारी वही बावरी सखी हूँ, तुम्हारी मित्र हूँ मेंने तुमसे सदा स्नेह ही पाया है, और मैं स्नेह की ही भाषा समझती हूँ।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यही ज्ञात होता है कि, राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता ‘प्रेम’ की पराकाष्ठा में है।”
विभाग – 4
व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली
(क) ब्लॉग लेखन बड़ा ही लोकप्रिय माध्यम बन चुका है। जहाँ एक ओर ब्लॉग लेखन सामाजिक जागरण का माध्यम बन चुका है, वहीं पत्रकारिता के जीवित तत्व के रूप में भी स्वीकृत हुआ हैं। ब्लॉग लेखन में कुछ सावधानियाँ बरतनी जरूरी है।
(i) ब्लॉग लेखन में यह बात ध्यान रखना जरूरी है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो। उसमें व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों।
(ii) ब्लॉग लेखन करते समय लेखन का स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए। लेखन की स्वतंत्रता से यह अनुमति नहीं की कुछ भी लिखें। (iii) ब्लॉग लेखन करते समय भाषा का, सामाजिक स्वास्थ्य का विचार करना चाहिए। ब्लॉग लेखन से समाज में तनाव स्थिति न हो इस बात पर विचार करना चाहिए। किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना इस बात से ब्लॉग लेखक को दूर रहना चाहिए।
(iv) ब्लॉग लेखन में आक्रमकता से अर्थात् गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। ऐसा करना गंभीर आरोप हैं। ऐसी भाषा पाठक पसंद नहीं करते और पाठक द्वारा गंभीरता से न पढ़ने के कारण ब्लॉग की आयु कम हो जाती है।
(v) ब्लॉग लेखन करते समय अगर लेखक छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखे तो पाठक ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं। एक पाठक दूसरे को, दूसरा तीसरे को सिफारिश करता है, इस प्रकार श्रृंखला बढ़ती जाती है।
(vi) ब्लॉग लेखन करते समय आकर्षक चित्रों और छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री, रोचक होने पर पाठक ब्लॉग की प्रतीक्षा करते हैं और ब्लॉग के नियमित पाठक बन जाते हैं।
अथवा
1.
(i) मंच संचालक स्रोता ओर वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी है।
(ii) किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की बहुत अहम् भूमिका होती है।
(iii) आरंभिक दिनों में लेखक को माइक साँप के फन की तरह नजर आता था।
(iv) लेखक अंत में एक सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
- (i) प्रशंसा-स्तुति
(ii) निर्वाह-निभाना
(iii) प्रांगण-आँगन
(iv) प्रसिद्ध-लोकप्रिय
- आत्मविश्वास और हिम्मत का जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व होता है। आत्मविश्वास और हिम्मत सफलता की कुंजी हैं। इस कारण हमारा मन मजबूत और खुश रहता है। जीवन में खुश रहने और सफलता पाने के लिए आत्मविश्वास जरूरी है। हम जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ करेंगे तो आगे ही बढ़ते रहेंगें।
आत्मविश्वास और हिम्मत ही व्यक्ति के लिए सफलता का मार्ग खोजता है। मानव के लिए जितनी ऑक्सीजन तथा मछली के लिए पानी आवश्यक है, उतनी ही जीवन में सफलता के लिए हिम्मत और आत्मविश्वास की आवश्यकता हैं। बिना हिम्मत और आत्मविश्वास के व्यक्ति सफलता की डगर पर कदम बढ़ा ही नहीं सकता। आत्मविश्वास वह ऊर्जा है, जो सफलता की राह में आने वाली अड्चनों, कठिनाइयों और परेशानियों से मुकाबला करने के लिए व्यक्ति को साहस प्रदान करती है।
(ख) (i) हमारे देश में 70-75 प्रतिशत आबादी ग्रामीण भागों में रहती हैं। ग्रामीण भाग अर्थात् गाँव में रहते हैं। गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएँ और संसाधन उपलब्ध होते हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग अपना जीवनयापन के लिए कृषि या अन्य पारंपरिक उद्योगों पर निर्भर होता है।
बेरोजगारी की समस्या ग्रामीण इलाकों में अधिक होती है। इस कारण युवा वर्ग चिंतित होता है। गाँवों के लोग अपनी हर एक जरूरत चाहे, दैनिक सामग्री हो या अन्य आवश्यकता की चीजें आदि के लिए इन्हें शहरों पर निर्भर होना पड़ता है। हर छोटी चीज के लिए शहर, आना पड़ता है, जिसमें उनका समय और पैसा खर्च हो जाता है।
गाँवों में विभिन्न समस्याएँ :
(1) गरीबी-गाँव के लोग गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे हैं। छोटे किसान हमेशा कर्ज में डूबे होते हैं। इस कारण कभी-कभी बड़े जरीदार छोटे किसानों की जमीनें हड़प लेते हैं। तो कभी-कभी भाईयों में जमीनों का बँटवारा होता
हैं। यह बँटवारा फलदायी नहीं होता। उल्टा घाटा होता रहता है। और किसान दिन-व-दिन गरीबी का शिकार होता रहता है।
(2) बेरोजगारी-बेरोजगारी कृषक जीवन का अभिन्न अंग है। ग्रामीण इलाकों में लोग कृषि पर निर्भर होते हैं, वहाँ अन्य उद्योग धन्धे नहीं होते हैं, इस कारण खेतों में अनाज उगाने या बीज बोकर सिंचाई करके फसलों को उगाने का एक निश्चित समय होता है। वह अपने फसल को छोड़कर कहीं और काम के लिए नहीं जा सकता। इस अवस्था के कारण किसान चिंतित होता है।
(3) शिक्षा का अभाव-गाँव में आज भी कई इलाकों में स्कूल का अभाव है। जहाँ स्कूल है, वहाँ शिक्षा का स्तर और व्यवस्था सही नहीं है। विकास का एकमात्र साधन शिक्षा है, जो गाँवों में मौजूद नहीं है। शिक्षा के स्तर या व्यवस्था के कारण बच्चों को शहरों की ओर आना पड्ता है। स्कूल या उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की पढ़ाई करते समय इन बच्चों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस कारण उनमें शिक्षा का अभाव दिखाई देता है।
(4) सूखा और बाढ़-किसानों पर प्राकृतिक आपदाओं का भी दुष्परिणाम होता है। किसान, अपना खून पसीना एक कर फसल उगाते है, परन्तु कभी उन्हें सूखा, तो कभी बाढ़ का सामना करना पड़ता हैं, तो कभी तूफानी हवाएँ चलती हैं तभी फसलों का नुकसान होता है। इन प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का कोई वश नहीं चलता इसी कारण ग्रामीण इलाकों में आजकल अनेक किसानों की आत्महत्या के समाचार हमें सुनने को मिलते हैं।
(5) स्वास्थ्य सुविधाएँ-गाँव में न अस्पताल हैं, न ही कोई अन्य सुविधा। आज डॉक्टर तो सभी बना चाहते हैं मगर ग्रामीण इलाकों में जाकर सेवा देना उनको पसंद नहीं होता है। कभी अस्पताल में पुरी सुविधाएँ न होने के कारण लोगों को शहरों की ओर आना पड़ता है। प्राइमरी हेल्थ सैटर्स में दी जाने वाली दवाइयाँ आज भी उतनी लाभदायक नहीं होती हैं।
ग्रामीण इलाकों में आज भी जुआ, सट्टा और मादक पदार्थों की बिक्री खुलेआम बड़ी मात्रा में जारी है। इस कारण गाँव में रहने वाले बच्चे इस ओर आकर्षित होते हैं। गलत आदतों के शिकार होते हैं।
गाँवों में बिजली, परिवहन समस्या, अनेक भौतिक चीजों का अभाव में ग्रामीण लोगों को जीवन-यापन करना पड्ता है।
(ii) मंच पर विराजमान् परम् प्राचार्य महोदया, श्रद्धेय गुरुजन और सभी मेरे अभिन्न सहपाठियों मैं श्वेता शर्मा सर्वप्रथम आज 14 सितम्बर के दिन हिन्दी दिवस के समारोह के अवसर पर आप सबको प्रणाम करती हूँ। हिन्दी दिवस के उपलक्ष में आज पं. नेहरू स्मारक इंटर कॉलेज पुणे में आयोजित इस समारोह में मैं आपका तहे दिल से हार्दिक स्वागत करती हूँ। सुस्वागतम्! सुस्वागतम्!! सुस्वागतम्!!!
दोस्तों ! सर्वप्रथम हिंदी दिवस के अवसर पर अतिथिगणों के स्वागत के लिए ग्यारहवीं की छात्राओं द्वारा एक सुंदर गीत प्रस्तुत है। आपके सामने यह गीत पेश कर रही है,-अनन्या नेहा, ज्ञानदा और समीरा!
कक्षा ग्यारहव्वीं की लड़कियाँ-
स्वागतम् हो स्वागतम् हो स्वागतम सुस्वागतम्
स्वागत हो स्वागत ॥धृ॥
गीत गाती हैं॥
(तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)
दोस्तों ! तालियों की गड़गड़ाहट ही बता रही है कि यह गीत आपको बहुत ही प्रसन्न कर गया हैं।
दोस्तों! हमारी हिंदी भाषा को साहित्यकारों ने, संतों ने राजनेताओं ने उत्कृष्ट लेखन शिक्षा और विचारों से परिष्कृत किया है। अपनी कविता और दोहों के माध्यम से जनमानस के हृदय को छुआ हैं। ऐसे ही ऐतिहासिक हिंदी के मनीषी अमीर खुसरो साहब है। मैंने उनकी दो पंक्तियों के माध्यम से इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना चाहती हूँ”उज्ज्वल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है, पर निपट पार की खान॥”
देश के अभिजात्य वर्ग की यही स्थिति है।
दोस्तों! अब हम आज का मुख्य समारोह आरंभ कर रहे हैं। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए मैं आज के मुख्य अतिथि प्राचार्य महोदय माननीय श्री.ओ.जी. शर्मा जी ओर से हमारे कॉलेज के प्राचार्य श्री वीरेन्द्र सबनीस, और हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्री लोकेश पूनावाला तथा कॉलेज के अन्य अध्यापकगण से अनुरोध करती हूँ कि माँ सरस्वती जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करें।
(ओ.जी. शर्माजी मा. सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करते हैं। सरस्वती के चित्र को माला पहनायी जाती है। तालियों की गड़गड्राहट होती है।)
अब बारहवीं कक्षा की छात्राएँ अंजली और अभिलाषा, श्रेया देवी सरस्वती का वंदना गीत प्रस्तुत करेंगी (छात्राएँ माँ सरस्वती का वंदना गीत गाती हैं।)
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणा वरदण्डमण्डितकरा। या श्वेतपट्टमासना।
(सरस्वती वंदना समाप्त होते ही तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)
अब हमारे कॉलेज के प्राचार्य श्री वीरेंद्र सबनीस समारोह के प्रमुख अतिथि श्री .ओ.जी. शर्मा को पुष्प गुच्छा देकर स्वागत करेंगे और हमें परिचय देंगे तथा कॉलेज की अन्य गतिविधियों से हमें परिचित करायेंगे।
श्री वीरेंद्र सबनीस
(श्री वीरेंद्र सबनीस अतिथिगण को बधाई देने हेतु संक्षेप में उनका परिचय देते हैं।)
(कॉलेज की गतिविधियों के बारे में भी बताते हैं।) अब प्राचार्य जी की ओर से प्रमुख अतिथि को प्रार्थना करूँगी कि वे हिंदी अंताक्षरी प्रतियोगिता तथा हिंदी भाषा वाद-विवाद,
प्रतियोगिता में प्रथम तथा द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को अपने शुभ कर कमलों से पुरस्कार प्रदान करने की कृपा करें।
प्रथम हिंदी, अंताक्षरी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता नम्रता सेन मंच पर आ जाएँ।
(नम्रता सेन मुख्य अतिथि के शुभ कर कमलों से पुरस्कार ग्रहण करती है, और तालियाँ बजती रहती हैं।)
अब इस अंताक्षरी प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त विजेता है- समिर औताडे वह मंच पर आ जाएँ।
(समीर, औताडे पुरस्कार ग्रहण करते हैं, तालियाँ बजती हैं)
अब वाद-विवाद स्पर्धा और वार्षिक परीक्षा में प्रथम, द्वितीय थी पुरस्कार प्राप्त विद्यार्थियों से आग्रह करती हूँ कि वे मंच पर क्रमशः आकर अपना पुरस्कार ग्रहण करें। में उनका उल्लेख करूँगी।
हिंदी वाद विवाद स्पर्धा: प्रथम पुरस्कार-शरद नेने द्वितीय पुरस्कार-अतुल पोंक्षे
तथा
कक्षा दसवी : प्रथम पुरस्कार-मीनाक्षी सिंह
द्वितीय पुरस्कार-अमृता जाघव
कक्षा ग्यारहवी : प्रथम पुरस्कार-विपुल शर्मा
द्वितीय पुरस्कार-निता गिते
(पुरस्कार विजेता आकर क्रमशः : प्रमुख अतिथि से अपना पुरस्कार ग्रहण करते हैं, जोरदार तालियों की बौछार)
अब हमारे कॉलेज के गणित विभाग प्रमुख श्री वरुन शास्त्री ‘हिंदी भाषा का महत्व’ इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करेंगे।
(वरुण शास्त्री अत्यन्त सुबोध भाषा में हिंदी भाषा का महत्व समझाते हैं।)
अब हमारे कॉलेज के हिंदी विभाग प्रमुख हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित होनी चाहिए और हिंदी में रोजगार की संभावनाओं के बारे में अपने विचार व्यक्त करेंगे।
(हिंदी विभाग प्रमुख अत्यंत सरल भाषा में अपने विचार व्यक्त करते हैं, तालियाँ बजती हैं।)
दोस्तो! आज हमारी हिंदी भाषा के बारे में हम सभी को काफी उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त हुई है। हिंदी राष्ट्रभाषा का महत्त्व हमें समझ में आया है। अब समय है कार्यक्रम की समाप्ति का।
अब हमारे कॉलेज के प्राचार्य श्री वीरेंद्र सबनीस जी आज के समारोह के प्रमुख अतिथि अध्यापकों, विद्यार्थियों और उपस्थित समुदाय के प्रति आभार व्यक्त करेंगे।
(प्राचार्य जी सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।)
अंत में ‘राष्ट्रगीत’ के साथ और ‘भारत माता की जय’ की घोषणा देते हुए समारोह समाप्त हुआ।
अथवा
(i) पल्लवन में भाव विस्तार के साथ चिंतन का भी स्थान होता हैं।
(ii) पी.डी. टंडन के अनुसार ‘फीचर किसी’ गद्य गीत की तरह होता हैं।
(iii) सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं।
(iv) ‘ब्लॉग’ अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का डिजिटल माध्यम है।
(ग)
गद्यांश
- संजाल पूर्ण कीजिए :
उनके पालतू जीवों में | ||||
कोलाहल होने लगा | ||||
|
- (i) उपालंभ-उलाहना
(ii) बाहुल्य-अधिकता (iii) कोलाहल-शोर
(iv) क्रंदन-विलाप
- धरती का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में पशु-पक्षियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। पशु-पक्षी मानव की तरह बोल नहीं सकते परन्तु मनुष्य ज्यादा समझदार होते हैं। उनमें भी मानव की तरह दर्द, भावनाएँ, प्यार होता है। यदि हम उनको प्यार देते हैं तो वो भी ? करते है। पशु-पक्षी मानव से भी अधिक वफादार होते हैं। अनेक पशु-पक्षियों के साथ मानव का आत्मिक लगाव होता है-
जैसे-कुत्ता, बिल्ली, गाय, बकरी, तोता-मैना आदि। कभी-कभी बिल्ली से हमें विशेष लगाव हो जाता है। वह हमारे लिए बहुत प्रिय विशेष बन जाती हैं। तब उसकी गुम हो जाने पर या मृत्यु होने पर हमें बहुत कष्ट होता है। कालांतर में भी हमें उसकी याद सताती है। उसकी याद से मन में बहुत दुख होता है। जैसे अपने परिवार का सदस्य ही हो, यही दुःख या कसक ही ‘ पालतु पशु-पक्षियों से मनुष्य का आत्मिक लगाव का प्रतीक है।
(घ) (i) उद्घोषक
(ii) न्याय
(iii) कार्य सूची
(iv) बंध पत्र
(v) राजपत्रित
(vi) निलंबन
(vii) कार्यवाही
(viii) पदच्युत
विभाग – 5 व्याकरण
(क) (i) एक-एक क्षण आपको भेंट कर दूँगा।
(ii) इस वेग में वह पिस गया था।
(iii) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही हैं।
(iv) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होगी।
(ख) (i) अतिशयोक्ति अलंकार
(ii) उपमा अलंकार।
(iii) रूपक अलंकार।
(iv) दृष्टांत अलंकार।
(ग) (i) अद्भुत रस
(ii) भक्ति रस
(iii) वीभत्स रस
(iv) शांत रस।
(घ) (i) कन्नी काटना-बचकर निकल जाना।
वाक्य-बड़ा बेटा और बहू पहले ही माँ-बाप से कन्नी काट चुके थे। (ii) चट्टानों पर खिलाना-कड़ी मेहनत से खुशहाली पाना। वाक्य-आर्यन बहुत जिद्दी लड़का है वह चाहे तो चट्टानों पर फूल खिला सकता है।
(iii) समाँ बँधना-वातावरण निर्माण होना। वाक्य-साहिल की मम्मी-पापा ने घर पर ऐसा समाँ बँधाया की वह एकदम प्रसन्न हो गया।
(iv) द्रवित हो जाना-मन में दया उत्पन्न होना। वाक्य-उस छोटे बच्चे के रोने की आवाज से सबका मन द्रवित हो गया।
(ङ) (i) उसका सत्य पराजित हो जाता है।
(ii) चप्पे-चप्पे पर काँटों की झाड़ियाँ हैं।
(iii) भाई-बहन का रिश्ता अनूठा होता है।
(iv) सुगंधा का पत्र पाकर लेखिका को खुशी हुई।