SAMPLE PAPER-4 Hindi
1. Questions
2. विभाग – 1 गद्य (अंक-20)
(क) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
प्रभात का समय था, आसमान से बरसती हुई प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा कर रही थीं। बारह घंटों के लगातार संग्राम के बाद प्रकाश ने अँधेरे पर विजय पाई थी। इस खुशी में फूल झूम रहे थे, पक्षी मीठे गीत गा रहे थे, पेड़ों की शाखाएँ खेलती थी और पत्ते तालियाँ बजाते थे। चारों तरफ खुशियाँ झूमती थीं। चारों तरफ गीत गूँजते थे। इतने में साधुओं की एक मंडली शहर के अंदर दाखिल हुई। उनका खयाल था-मन बड़ा चंचल है। अगर इसे काम न हो, तो इधर-उधर भटकने लगता है और अपने स्वामी को विनाश की खाई में गिराकर नष्ट कर डालता है। इसे भक्ति की जंजीरों से जकड़ देना चाहिए। साधु गाते थे-
3. सुमर-सुमर भगवान को, मूरख मत खाली छोड़ इस मन को।
जब संसार को त्याग चुके थे, उन्हें सुर-ताल की क्या परवाह थी। कोई ऊँचे स्वर में गाता था, कोई मुँह में गुनगुनाता था। और लोग क्या कहते हैं, इन्हें इसकी जरा भी चिंता न थी। ये अपने राग में मगन थे कि सिपाहियों ने आकर घेर लिया और हथकड़ियाँ लगाकर अकबर बादशाह के दरबार को ले चले।
यह वह समय था जब भारत में अकबर की तूती बोलती थी और उसके मशहर रागी तानसेन ने यह कानून बनवा दिया था कि जो आदमी रागविद्या में उसकी बराबरी न कर सके, वह आगरे की सीमा में गीत न गाए और जो गाए, उसे मौत की सजा दी जाए। बेचारे बनवासी साधुओं को पता नहीं था परंतु अज्ञान भी अपराध है। मुकदमा दरबार में पेश हुआ। तानसेन ने रागविद्या के कुछ प्रश्न किए। साधु उत्तर में मुँह ताकने लगे। अकबर के होंठ हिले और सभी साधु तानसेन की दया पर छोड़ दिए गए।
दया निर्बल थी, वह इतना भार सहन न कर सकी। मृत्युदंड की आज्ञा हुई। केवल एक दस वर्ष का बच्चा छोड़ा गया-बच्चा है, इसका दोष नहीं। यदि है भी तो क्षमा के योग्य है।
- संजाल पूर्ण कीजिए।
- निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदलकर लिखिए।
(i) आदमी –
(ii) राग –
(iii) पत्ते –
(iv) स्वामी – - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: “साधु-संतों को रागविद्या की जानकारी न होने के कारण मौत की सजा दिया जाना कितना उचित है।” इस विषय पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
सुनो सुगंधा! तुम्हारा पत्र पाकर खुशी हुई। तुमने दोतरफा अधिकार की बात उठाई है, वह पसंद आई। बेशक, जहाँ जिस बात से तुम्हारी असहमति हो; वहाँ तुम्हें अपनी बात मुझे समझाने का पूरा अधिकार है। मुझे खुशी ही होगी तुम्हारे इस अधिकार प्रयोग पर। इससे राह खुलेगी और खुलती ही जाएगी। जहाँ कहीं कुछ रुकती दिखाई देगी; वहाँ भी परस्पर आदान-प्रदान से राह निकाल ली जाएगी। अपनी-अपनी बात कहने-सुनने में बंधन या संकोच कैसा ?
मैंने तो अधिकार की बात यों पूछी थी कि मैं उस बेटी की माँ हूँ जो जीवन में ऊँचा उठने के लिए बड़े ऊँचे सपने देखा करती है; आकाश में अपने छोटे-छोटे डैनों को चौड़े फैलाकर।
धरती से बहुत ऊँचाई में फैले इन डैनों को यथार्थ से दूर समझकर भी में काटना नहीं चाहती। केवल उनकी डोर मजबूत करना चाहती हूँ कि अपनी किसी ऊँची उड़ान में वे लड़खड़ा न जाएँ। इसलिए कहना चाहती हूँ कि ‘उड़ो बेटी, उड़ो पर धरती पर निगाह रखकर।’ कहीं ऐसा न हो कि धरती से जुड़ी डोर कट जाए और किसी अनजाने-अवांछित स्थल पर गिरकर डैने क्षत-विक्षत हो जाएँ। ऐसा नहीं होगा क्योंकि तुम एक समझदार लड़की हो। फिर भी सावधानी तो अपेक्षित है ही।
यह सावधानी का ही संकेत है कि निगाह धरती पर रखकर उड़ान भरी जाए। उस धरती पर जो तुम्हारा आधार है-उसमें तुम्हारे परिवेश का, तुम्हारे संस्कार का, तुम्हारी सांस्कृतिक परंपरा का, तुम्हारी सामर्थ्य का भी आधार जुड़ा होना चाहिए। हमें पुरानी-जर्जर रूढ़ियों को तोड़ना है, अच्छी परंपराओं को नहीं।
परंपरा और रूढ़ि का अर्थ समझती हो न तुम ? नहीं! तो इस अंतर को समझने के लिए अपने सांस्कृतिक आधार से संबंधित साहित्य अपने कॉलेज पुस्तकालय से खोजकर लाना उसे जरूर पढ़ना। यह आधार एक भारतीय लड़की के नाते तुम्हारे व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा है, इसलिए।
बदले वक्त के साथ बदलते समय के नये मूल्यों को भी पहचानकर हमें अपनाना है पर यहाँ ‘पहचान’ शब्द को रेखांकित करो। बिना समझे, बिना पहचाने कुछ भी नया अपनाने से लाभ के बजाय हानि उठानी पड़ सकती है।
- निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लिखिए ।
(i) लेखिका को खुशी कब हुई ?
(ii) हमें पुरानी रूढ़ियों को क्यों तोड़ना है ?
(iii) लेखिका किस बेटी की माँ है?
(iv) लेखिका अपनी बेटी के ऊँचाई में फँले डैनों की डोर मजबूत क्यों करना चाहती हैं?
- शब्द युग्म को पूर्ण कीजिए:
(i) पुरानी
(ii) क्षत
(iii) कहने
(iv) आदान - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। “पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण समाज के लिए हानिप्रद है” इस विषय पर अपना विचार स्पष्ट कीजिए।
(ग) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 60 से 80 शब्दों में लिखिए।
(तीन में से दो) (i) ‘पाप के चार हथियार’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) नामक यौगिक की खोज प्रशीतन के क्षेत्र में क्रांतिकारी उपलब्धि रही, स्पष्ट कीजिए।
(iii) पाप के चार पथियार पाठ का संदेश लिखिए।
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) कहानी विद्या की विशेषताएँ बताइए।
(ii) सुंगधा का पत्र पाकर लेखिका को खुशी हुयी।
(iii) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी के निबंध संग्रह के नाम बताइए।
(iv) आशारानी व्होरा की प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ लिखिए।
4. विभाग – 2 पद्य (अंक-20)
(क) निम्नलिखित पठित काव्यांश को पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
नानक गुरु न चेतनी मनि आपणे सुचेत।
छूते तिल बुआड़ जिऊ सुएं अंदर खेत॥
खेते अंदर छुट्यया कहु नानक सक नाह।
फली अहि फूली अहि बपुड़े भी तन विच स्वाह॥? ॥
जलि मोह घसि मसि करि,
मति कागद करि सारु,
भाइ कलम करि चितु, लेखारि,
गुरु पुछि लिखु बीचारि,
लिखु नाम सालाह लिखु,
लिखु अंत न पारावार ॥२॥
मर रे अहिनिसि हरि गुण सारि।
जिन खिनु पलु नामु न बिसरे ते जन विरले संसारि।
जोति-जोति मिलाइये, सुरती-सुरती संजोगु।
हिंसा हउमें गतु गए नाहीं सहसा सोगु।
गुरु मुख जिसु हार मनि बसे तिसु मेले गुरु संजोग॥३॥
- संजाल पूर्ण कीजिए।
- निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए:
(i) मति
(ii) सुचेत
(iii) लेखारि
(iv) सरू - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: ‘गुरु बिन ज्ञान न होइ’ इस उक्ति पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित पठित काव्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
जब भी पानी किसी के सर से गुजर जाएगा। तब वह सीने में नई आग ही लगाएगा।
आँखों में बहुत बाढ़ है, शेष सब कुशल।
जीवन नहीं अषाढ़ है, फिर शेष सब कुशल।
सड़क ने जब मेरे पैरों की उँगलियाँ देखीं;
कड़कती धूप में सीने पे बिजलियाँ देखीं।
साँस हमारी हमें पराये धन-सी लगती है,
साहूकार के घर गिरवी कंगन-सी लगती है।
किसी का सर खुला है तो किसी के पाँव बाहर हैं,
जरा ढंग से तू अपनी चादरों को बुन मेरे मालिक।
वह जो मजदूर मरा है, वह निरक्षर था मगर, अपने भीतर वह रोज, इक किताब लिखता था।
- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
(i) पानी सर से गुजर जाने का अर्थ क्या है ?
(ii) आँखों से आँसू बाढ़ की तरह क्यों बहते रहते हैं?
(iii) मजदूर रोज क्या लिखता था ?
(iv) कवि को अपनी साँस कैसी लगती है ?
- निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलकर लिखिए:
(i) नदी-
(ii) उँगलियाँ-
(iii) किताब-
(iv) आँखों- - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। (2) ‘आकाश के तारे तोड़ लाना’-इस मुहावरे को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
(ग) रसास्वादन कीजिए।
(दो में से एक)
(i) ‘गुरु निष्ठा और भक्तिभाव से ही मानव श्रेष्ठ बनता है। इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।’
(ii) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘पेड़ होने का अर्थ’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
मुद्दे –
(1) रचना का शीर्षक
(2) रचनाकार
(3) पसंद की पंक्तियाँ
(4) पसंद आने का कारण
(5) कविता की केन्द्रीय कल्पना
(6) प्रतीक विधान
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) चतुष्पदी के लक्षण लिखिए। (ii) व्यापार में दूसरी बार छल-कपट करना असम्भव होता है।
(iii) गुरु नानक की रचनाओं के नाम लिखिए।
(iv) दोहा छंद की विशेषता लिखिए।
5. विभाग – 3 विशेष अध्ययन (अंक-10)
(क) निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
दुख क्यों करती है पगली
क्या हुआ जो
कनु के ये वर्तमान अपने,
तेरे उन तन्मय क्षणों की कथा से
अनभिज हैं
उदास क्यों होती है नासमझ
कि इस भीड़-भाड़ में
तू और तेरा प्यार नितांत अपरिचित
छूट गए हैं,
गर्व कर बावरी!
कौन है जिसके महान प्रिय की
अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हों ?
एक प्रश्न
अच्छा, मेरे महान कनु,
मान लो कि क्षण भर को
मैं यह स्वीकार लूँ
कि मेरे ये सारे तन्मयता के गहरे क्षण
सिर्फ भावावेश थे,
सुकोमल कल्पनाएँ थीं
रँगे हुए, अर्थहीन, आकर्षक शब्द थे-
मान लो कि
क्षण भर को
मैं यह स्वीकार लूँ
कि
पाप-पुण्य, धर्माधर्म, न्याय-दंड
क्षमा-शीलवाला यह तुम्हारा युद्ध सत्य है।
- निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लिखिए:
(i) कनुप्रिया को गर्व क्यों करना चाहिए ?
(ii) कनुप्रिया को उदास क्यों नहीं होना चाहिए ?
(iii) कृति पूर्ण कीजिए।
कनुप्रिया की तन्मयता के गहरे क्षण सिर्फ
- निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए-
(i) तन्मयता
(ii) सुकोमल
(iii) नितांत
(iv) अनभिज्ञ - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: प्राचीनकाल एवम् आधुनिक काल की सेनाओं के बारे में अपना मत स्पष्ट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर 80 से 100 शब्दों में लिखिए:
(दो में से एक)
(i) राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता बताइए।
(ii) ‘ मेरा यह सेतु-रूपी शरीर काँपता हुआ निर्जन और निरर्थक रह गया है।’-इसे ‘कनुप्रिया’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
6. विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली (अंक-20)
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों में लिखिए: फीचर लेखक को निष्पक्ष रूप से अपना मत व्यक्त करना चाहिए जिससे पाठक उसके विचारों से सहमत हो सके। इसके लेखन में शब्दों के चयन का अत्यंत महत्व है। अत: लेखन की भाषा सहज, संप्रेषणीयता से पूर्ण होनी चाहिए। फीचर के विषयानुकूल चित्रों, कार्टूनों अथवा फोटो का उपयोग किया जाए तो फीचर अधिक परिणामकारक बनता है।”
स्नेहा अपनी रौ में बोलती जा रही थी तभी एक विद्यार्थी ने अपना हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, “ “मैडम, आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से फीचर लेखन की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।” “अच्छा! तो आप लोगों को अब पता चला। आपका और कोई प्रश्न है ?” स्नेहा ने उसे आश्वस्त करते हुए पूछा।
“मैडम! मेरा प्रश्न यह है कि फीचर किन-किन विषयों पर लिखा जाता है और फीचर के कितने प्रकार हैं?” ‘”बहुत अच्छा, देखिए फीचर किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव-जन्तु, तीज-त्यौहार, दिन, स्थान, प्रकृति-परिवेश से सम्बन्धित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित आलेख होता है। इस आलेख को कल्पनाशीलता, सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है।
- संजाल पूर्ण कीजिए-
- उचित मिलान कीजिए-
1. | चुनाव | आकर्षक |
2. | निश्चिन्त | सुन्दर |
3. | लुभावना | चयन |
4. | खूबसूरत | आश्वस्त |
- निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
‘बिना विचारे जो करे वो पाछे पछताए’ इस उक्ति पर 40-50 शब्दों में अपने विचार प्रकट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नो का उत्तर 80 से 200 शब्दों में लिखिए।
(दो में से एक)
(i) अपने शहर की विशेषताओं पर ब्लॉग लेखन कीजिए।
(ii) ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ इस पंक्ति का भाव पल्लवन कीजिए।
7. अथवा
सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।
(i) भगवान की सर्वश्रेष्ठ उपासना के रूप में इसे प्रतिष्ठित किया गया है :
(अ) विश्व प्रेम
(ब) सच्ची अभिव्यक्ति
(स) भावना
(द) निष्ठा
(ii) विषय का औचित्यपूर्ण-फीचर की आत्मा हैं।
(अ) गुण
(ब) नाम
(स) शीर्षक
(द) कल्पना
(iii) ब्लॉग लेखन में सामाजिक स्वास्थ्य का विचार हो जो न हों।
(अ) समाज उपयोगी
(ब) समाज विघातक
(स) समाजशील
(द) समाज युक्त
(iv) पृथ्वी के
हिस्से पर समुद्रों की विशाल जल राशि व्याप्त हैं।
(अ) एक द्वितीयांश
(ब) एक चतुर्थांश
(स) एक चौथाई
(द) तीन चौथाई
(ग) निम्नलिखित अपठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
” हम रसायनों के युग में रह रहे हैं। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ और हम सब, रासायनिक यौगिकों के बने हुए हैं। हवा,मिट्टी, पानी,
खाना, वनस्पति और जीव-जंतु ये सब अजूबे जीवन की रासायनिक सच्चाई ने पैदा किए हैं। प्रकृति में सैकड़ों-हजारों रासायनिक पदार्थ हैं। रसायन न होते तो धरती पर जीवन भी नहीं होता। पानी, जो जीवन के आधार है, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना एक रासायनिक यौगिक है। मधुर-मीठी चीनी, कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बनी है। कोयला और तेल, बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ, एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनिसिलीन, अनाज साज्जियाँ फल और मेवे-सभी तो रसायन हैं।
जीवन जोखिम से भरा है, गुफामानव ने जब भी आग जलाई, उसने जल जाने का खतरा उठाया। जीवन-यापन के आधुनिक तरीकों के कुछ खतरों को कम किया है, पर कुछ खतरे अनेक गुना बढ़ गए हैं। ये खतरे नुकसान और शारीरिक चोट के रूप में हैं। हम सभी अपने दैनिक जीवन में जोखिम उठाते हैं। जैसे जब हम सड़क पार करते हैं, स्टोव जलाते हैं, कार में बैठते हैं, खेलते हैं, पालतू जानवरों को दुलारते हैं, घरेलू काम-काज करते हैं या केवल पेड़ के नीचे बैठे होते हैं, तो हम जोखिम उठा रहे होते हैं। इन जोखिमों में से कुछ तात्कालिक हैं, जैसे जलने का, गिरने का या अपने ऊपर कुछ गिर जाने का खतरा। कुछ खतरे ऐसे हैं जिनमे प्रभाव लंबे समय के बाद सामने आते हैं जैसे लंबे समय तक शोर-गुल वाले पर्यावरण में रहने वाले व्यक्तियों की श्रवणशक्ति कम हो सकती है।
क्या रसायन भी जोखिम उत्पन्न करते हैं ? स्पष्ट है कि कुछ अवश्य करते हैं। उनमें से अनेक बहुत अधिक जहरीले हैं, कुछ प्रचंड विस्फोट करते हैं और कुछ अन्य अचानक आग पकड़ लेते हैं, ये रसायनों के कुछ तात्कालिक ‘उग्र’ खतरे हैं। रसायनों में कुछ दीर्घकालीन खतरे भी होते हैं, क्योंकि कुछ रसायनों के संपर्क में अधिक समय तक रहने पर, चाहे उन रसायनों का स्तर लेशमात्र ही क्यों न हो, शरीर में बीमारियाँ पैदा हो सकती हैं।”
- आकृति पूर्ण कीजिए :
- परिच्छेद में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए।
(i) जीव-
(ii) सैकड़ों-
(iii) काम-
(iv) मधुर- - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। ‘ध्वनि प्रदूषण’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
(घ) निम्नलिखित शब्दों की पारिभाषिक शब्दावली लिखिए। (आठ में से चार)
(i) Ambassador
(ii) Custodian
(iii) Interpreter
(iv) Amendment
(v) Deduction
(vi) Warning
(vii) Balance Sheet
(viii) Optic Fibre
8. विभाग – 5 व्याकरण (अंक-10)
(क) निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए।
(चार में से दो)
(i) मौसी कुछ नहीं बोल रही थी।
(अपूर्ण वर्तमानकाल)
(ii) सुधारक आते हैं।
( पूर्ण भूतकाल)
(iii) गर्ग साहब ने अपने वचन का पालन किया।
(सामान्य भविष्यकाल)
(iv) ट्रस्ट के सचिव ने मुझे एक लिफाफा दिया।
(अपूर्ण भूतकाल)
(ख)निम्नलिखित उदाहरणों के अलंकार पहचानकर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) ऊँची-नीची सड़क, बुढ़िया के कूबड़-सी। नंदनवन-सी फूल उठी, छोटी-सी कुटिया मेरी।
(ii) पायो जी मँने राम रतन धन पायो।
(iii) जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े। हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े॥
(iv) करत-करत अभ्यास के, जड़ मति होत सुजान। रसरी आवत जात है, सिल पर पड्त निसान ॥
(ग) निम्नलिखित उदाहरणों के रस पहचानकर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) श्रीकृष्ण के वचन सुन, अर्जुन क्रोध से जलने लगें। सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे। (ii) कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात। भरे भौन में करत हैं, नैननु ही साँ बात॥
(iii) समदरसी है नाम तिहारो, सोई पार करो, एक नदिया इक नार कहावत, मैलो नीर भरो, एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परो, सो दुविधा पारस नहीं जानत, कंचन करत खरो।
(iv) बिनु-पग चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै, विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता, बड़ जोगी॥
(घ) निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।
(चार में से दो)
(i) लहू सूखना
(ii) ढाँचा डगमगा उठना
(iii) फलीभूत होना
(iv) हाहाकार मचना
(ङ) निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए।
(चार में से दो)
(i) अतिथि आए हैं, घर में सामाने नहीं है।
(ii) उसमें फुलों बिछा दें।
(iii) कहाँ खों गई है आप।
(iv) बैजू हाथ बाँधकर खड़े हो गया।
9. [A] Answer Key
10. विभाग – 1 गद्य
(क)
1.
2. (i) आदमी – औरत
(ii) राग – रागिनी
(iii) पत्ते – पत्तियाँ
(iv) स्वामी – स्वामिनी
- साधु-संत किसी से सुने भजन-कीर्तन अपने-अपने तरीके से गाते हैं। ईश्वर की आराधना में लीन रहने वाले ये लोग दुनिया से विरक्त होते हैं। उन्हें संगीत का, राग-विद्याछंद का समुचित या विशिष्ट ज्ञान नहीं होता है। वे सिर्फ ईश्वर की आराधना में लीन रहने वाले लोग
होते हैं। वे भजन ईश्वर की आराधना के लिए गाते हैं, जिससे उन्हें आत्म-संतुष्टि मिलती है।
आगरा शहर में अकबर के मशहूर रागी तानसेन ने यह नियम बनवा दिया था कि, जो आदमी राग-विद्या में तानसेन की बराबरी न कर सकें, वह आगरा की सीमा में गीत न गाए। अगर ऐसा आदमी आगरा की सीमा में गीत गाए, तो उसे मौत की सजा दी जाए। एक दिन आगरा शहर में बिना सुर-ताल की परवाह किए हुए, बादशाह के कानून से अनभिज्ञ ये साधु गीत गाते जा रहे थे। तब उन्हें इस जुर्म में पकड़कर ले जाया गया कि वे आगरा की सीमा में गाते हुए जा रहे थे। और तानसेन के नियम के अनुसार उन्हें मौत की सजा दे दी गई। साधुओं को मौत की सजा देना उनके साथ घोर अन्याय है। तानसेन जैसे रागी को, कलाकार को दूसरों की कला का सच्चा आदर करना चाहिए न कि ऐसे नियम बनवाकर साधु संतों को दंड दे। सच्चा कलाकार वही है, जो दूसरों की कला को सम्मान दें। उन्हें मौत की सजा देना अनुचित है।
(ख)
- (i) सुगंधा का पत्र पाकर लेखिका को खुशी हुई।
(ii) हमें पुरानी रूढ़ियों को इसलिए तोड़ना है, क्योंकि उन रूढ़ि-परंपरा का पालन करके समाज पिछड़ रहा है, वह समय के साथ अनुपयोगी हो गई हैं। उन्हें छोड़ देना ही बेहतर है।
(iii) लेखिका उस बेटी की माँ है, जो जीवन में ऊँचा उठने के लिए बड़े ऊँचे सपने देखा करती है, आकाश में अपने छोटै डैनों को चौड़े फैलाकर।
(iv) लेखिका अपनी बेटी के ऊँचाई में फैले डैनों की डोर मजबूत करना चाहती है, क्योंकि अपनी किसी उड़ान में वे लड़खड़ा न जाएँ।
- (i) जर्जर
(ii) विक्षत
(iii) सुनने
(iv) प्रदान
- आधुनिकता के नाम पर भारतीय अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। पश्चिमी सभ्यता उन्हें अच्छी लगने लगी है। कपड़े पहनने का तरीका हो या बोलचाल, खान-पान का, लोग पश्चिम सभ्यता को अपनाने में अपनी शान समझने लगे हैं। यह भी नहीं सोचते कि यह सभ्यता या उनके ढंग हमारे देश, समाज के अनुकूल है या नहीं। पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करके लोग पछताने लगे हैं। इस कारण समाज में अराजकता निर्माण हो गयी है। पश्चिमी सभ्यता को अपनाते हुए आज घरों में दोनों को नौकरी करनी पड़ रही है। इस कारण घर के बड़े और बच्चों की तरफ ध्यान देना कठिन हो रहा है। परिणामस्वरूप बच्चों के लिए ‘डे केअर सेंटर’ और बूढ़ों के लिए ‘वृद्धाश्रम’ की संख्या बढ़ती जा रही है।
भारतीय सभ्यता संस्कृति और परंपराओं को अपनाना बहुत जरूरी हो गया है। पश्चिमी लोगों का अनुकरण हमारे लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है।
(ग) (i) लेखक, कन्हैयालाल मिश्र जी ‘पाप के चार हथियार’ इस पाठ में वास्तविक सामाजिक समस्या की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। संसार में चारों ओर अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार और पाप व्याप्त है। इनसे मुक्ति दिलाने के लिए अनेक समाज-सुधारकों, समाज सेवकों और महापुरुषों ने, संत-महात्माओं ने प्रयास किए हैं। प्रयास करते समय समाज का कुछ वर्ग उनके साथ होता है, और कुछ वर्ण उनकी उपेक्षा, निंदा करता है। उनको समाज का अन्याय, अत्याचार रोकने के लिए सहकार्य नहीं मिल पाता। उनकी अवहेलना होती है। कभी-कभी समाज सुधारकों को अपनी जान गँवानी पड़ती हैं। उनकी मृत्यु के पश्चात् भी लोग उनके विचारों को नहीं अपनाते बल्कि उनका स्मारक, मंदिर बनाकर उनको पूजते हैं। पूजने की उपेक्षा लोग अगर समाज सुधारकों को सुधारना करने में सहकार्य करें तो समाज में अच्छा परिवर्तन जरूर आयेगा। उनके विचारों को अपनाकर उन विचारों पर चलना चाहिए। तभी समाज अन्याय, अत्याचार, पाप, भ्रष्टाचार से मुक्ति प्राप्त कर सकेगा। यही ‘पाप के चार हथियार’ इस निबंध का उद्देश्य हैं।
(ii) सन् 1930 से पहले प्रशीतन के लिए अमोनिया और सल्फर डाइऑक्साइड गैसों का प्रयोग किया जाता था, परन्तु इसके
प्रयोग में व्यावहारिक कठिनाइयों के साथ अत्यंत तीक्ष्ण होने के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थीं। इससे मुक्ति पाने के लिए वैज्ञानिकों को एक अरसे से उचित विकल्प की तलाश थी। तीस के दशक में थॉमस मिडले द्वारा क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) नामक यौगिक की खोज प्रशीतन के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी उपलब्धि रही।
यह रसायन सर्वोत्तम प्रशीतक हो सकते है क्योंकि ये रंगहीन, गंधहीन, अक्रियाशील होने के साथ अज्वलनशील भी थे। इसी कारण यह आदर्श प्रशीतक माने गए। सी.एफ.सी. यौगिकों का उत्पादन बड़ी मात्रा में होने लगा रेफ्रिजरेटर, एयरकंडिशनर, दवाएँ, प्रसाधन सामग्री आदि में इसका प्रयोग होने लगा। और प्रशीतन प्रौद्योगिकी में एक क्रांति-सी आ गयी।
(iii) ‘पाप क ‘चार हथियार’ पाठ में लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने एक ज्वलंत समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। संसार में चारों ओर पाप, अन्याय और अत्याचार व्याप्त है, फिर भी कोई संत, महतमा, अवतार, पैगंबर या सुधारक इससे मुक्ति का मार्ग बताता है, तो लोग उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते और उसकी अवहेलना करते हैं। उसकी निंदा करते हैं। इतना ही नहीं, इस प्रकार के कई सुधारकों को तो अपनी जान तक गँवा देनी पड़ी है। लेकिन यही लोग सुधारकों, महात्माओं की मृत्यु के पश्चात् उनके स्मारक और मंदिर बनाते हैं और उनके विचारों और कार्यों का गुणगान करते नहीं थकते। जो लोग सुधारक के जीवित रहते उसकी बातों को अनसुना करते रहे, उसकी निंदा करते रहे और उसकी जान के दुश्मन बने रहे, उसकी मृत्यु के पश्चात् उन्हीं लोगों के मन में उसके लिए श्रद्धा की भावना उमड़ पड़ती है और वे उसके स्मारक और मंदिर बनने लगते हैं।
इस प्रकार लेखक ने ‘पाप के चार हथियार के द्वारा यह संदेश दिया है कि सुधारकों और महात्माओं के जीते जी उनके विचारों पर ध्यान देने और उन पर अमल करने से ही समस्याओं का समाधान होता है, न कि स्मारक और मंदिर बनाने से।
(घ) (i) समाज में बदलते मूल्यों, विचारों और दर्शन ने सदैव कहानियों को प्रभावित किया है। कहानियों के द्वारा हम किसी भी काल की सामाजिक, राजनीतिक दशा का परिचय आसानी से पा सकते हैं।
(ii) सुगधा का पत्र पाकर लेखिका को खुशी हुयी क्योंकि सुगंधा लेखिका की पुत्री थी।
(iii) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी के निबंध संग्रह के नाम हैं-‘जिंदगी मुस्कुराई’, ‘बाजे पायलिया के घुँघरू’, ‘जिंदगी लहलहाई’, ‘ महके आँगन-चहके द्वार’ आदि।
(iv) ‘भारत की प्रथम महिलाएँ, स्वतंत्रता सेनानी लेखिकाएँ’, क्रांतिकारी किशोरी, स्वाधीनता से जानी, लेखक-पत्रकार आदि आशारानी व्होरा जी की प्रमुख कृतिया हैं।
(क)
1.
- (i) मति-बुद्धि
(ii) सुचेत-सचेत
(iii) लेखारि-लेखक
(iv) सऊ-ईश्वर
- संत कबीर जी ने अपने विचारों में गुरु को ईश्वर के बराबर का स्थान दिया है। ज्ञान तो हमें कहीं भी जैसे-किताबों से, कहानी से मिल सकता है। परन्तु विशिष्ठ ज्ञान हमें गुरु से ही प्राप्त होता है। परमेश्वर की ओर जाने का मार्ग गुरु ही बताते हैं, इसलिए गुरु को श्रेष्ठ माना गया है।
व्यक्ति गुरु से ज्ञान प्राप्त करके ही विभिन्न कलाओं में पारंगत होता है। बचपन में पालन-पोषण करने वाले बोलना-खाना-पीना समाज में बर्ताव कैसे करें यह सब सिखाने वाले माता-पिता हमारे गुरु होते हैं। जब हम स्कूल जाते हैं, तब अध्यापकों से किताबों के ज्ञान के साथ अन्य ज्ञान हमें मिलता है, तब यह अध्यापक वर्ग हमारे गुरु होते हैं। जीवन में विभिन्न स्तर पर हमें काम-काज करने का तरीका सीखना पड़ता है, तब जिनसे भी हम सीखते हैं। वे गुरु के समान होते हैं। अच्छी, उपयोगी ज्ञान, शिक्षा देने वाले गुरु होते हैं। वैज्ञानिक, बड़े-बड़े विद्वान गुरु से ज्ञान प्राप्त करके ही महान् बनते हैं। मनुष्य का अज्ञान दूर करने का काम गुरु करते हैं। गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु की महत्ता का वर्णन इस प्रकार किया जाता है-
” गुरुर्विष्णु गुरुदेवो महेश्वर गुरुर्ब्रह्मा :
गुरु: साक्षात्परब्रहा तस्मै श्री गुरुवे नम:”
इस प्रकार गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है।
(ख)
- (i) पानी सर से गुजर जाने का अर्थ है-परिस्थिति का हाथों से निकल जाना।
(ii) जीवन में निरंतर मिलती निराशाओं के कारण आँखों से आँसू बाढ़ की तरह बहते रहते हैं।
(iii) मजदूर रोज किताब लिखता था।
(iv) कवि को अपनी साँस पराए धन-सी लगती हैं।
2. (i) नदी-नदियाँ
(ii) उँगलियाँ-उँगली
(iii) किताब-किताबें
(iv) आँखों-आँख
- ‘आकाश के तारे तोड़ लाना’-इस मुहावरे का अर्थ है-असंभव कार्य को संभव करना किसी भी कठिन काम को कर दिखाना उसे आकाश के तारे तोड़ लाना कहते हैं। जब कोई व्यक्ति कठिन कार्य
जो असंभव है वह आसानी से उसकी पूर्ति कर दे, तब उसके इस असंभव या कठिन कार्य के लिए इस उपर्युक्त मुहावरे का प्रयोग किया जाता है। प्रस्तुत मुहावरे में अतिशयोक्ति प्रयोग किया है। जो काम सहजता नहीं होता, असीमित कठिनाइयों से भरा होता है जो करने में सभी को असंभव लगता हो, वह कार्य कर दिखाना अर्थात् आकाश के तारे तोड़ लाने के बराबर है।
जैसे- हिमालय पर चढ़ना आकाश के तारे तोड़ने के बराबर है।
(ग) (i) कवि गुरु नानक जी ने अपने पदों में गुरु निष्ठा एवं भक्तिभाव को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता। गुरु के प्रति एकनिष्ठ होकर ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। गुरुनिष्ठा और भक्तिभाव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ईश्वर की भक्ति के लिए गुरुनिष्ठा और भक्तिभाव दोनों की जरूरत होती है। इसके बिना ईश्वर की भक्ति नहीं हो सकती। गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर मानव का अहंकार दूर होकर वास्तविकता से उसकी पहचान होती है। मानव के मन में अनेक विकार होते हैं, जिस कारण मनुष्य सही-गलत का फर्क समझ नहीं पाता। परन्तु गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर मानव के सारे मनोविकार नष्ट हो जाते हैं।
गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा निष्ठा होनी चाहिए तभी मानव का अज्ञान दूर होकर ज्ञान का प्रकाश चारों तरफ फैलेगा। कवि गुरु नानक जी की दृष्टि से जो लोग स्वयं को ज्ञानी समझकर गुरु के प्रति लापरवाही दिखाते हैं। वे व्यर्थ में ही उगने वाले शिशु की साड़ियों के समान हैं। ऐसे लोग बाहर से दिखावा करते दिखाई देते हैं, परन्तु भीतर से गंदगी और मैल के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता है। गुरु के प्रति भक्ति और निष्ठा का महत्त्व बताते हुए कवि कहते हैं-मनुष्य में होने वाले मोह को जलाकर उसकी स्याही बनानी चाहिए और बुद्धि को श्रेष्ठ कागज समझना चाहिए, प्रेम भाव की कलम बनाकर गुरु निष्ठा की स्तुति करनी चाहिए।
ईश्वर के प्रति की गई भक्ति निस्वार्थी, निश्चल होनी चाहिए। अहंभाव छोड़कर एकाग्रचित्त होकर ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। जब तक मनुष्य में ‘में’ का भाव रहैंगा तब उसे ईश्वर के दर्शन नहीं हो पाएगें। ईश्वर का वास्तविक दर्शन हमारे हृदय में होता है। परन्तु हम नाहक ही उसे मंदिर, मस्जिद, चर्च में ढूँढते है। उसके लिए ईश्वर की भक्ति ही सुगम हो जाती है। गुरु नानक ने अपने पदों में इन्हीं बातों को सुगमता के साथ कहा है।
इस प्रकार मनुष्य गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति भावना
से ही श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकता है।
(ii) मुद्दे-
(1) रचना का शीर्षक-पेड़ होने का अर्थ
(2) रचनाकार-डॉ. मुकेश गौतम
(3) पसंद की पंक्तियाँ-थके राहगीर को देकर छाँव व ठंडी हवा राह में गिरा देता है फूल और करता है इशारा उसे आगे बढ़ने का।
(4) पसंद आने का कारण-प्रस्तुत कविता में कवि ने पेड़ के माध्यम से मनुष्य को परोपकार, मानवता जैसे – मानवोचित गुणों की प्रेरणा दी है। साथ पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाते हैं, समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाते हैं। पेड़ ने ही भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है, और मानव को संस्कारशील बनाया है। इन्हीं बातों से हमें अवगत कराया है।
(5) कविता की केन्द्रीय कल्पना-जीवन की सार्थकता सब कुछ निस्वार्थ रूप से दूसरों को देने में है। पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है। समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाता है। पेड़ मनुष्य को संस्कृति से अवगत कराता है। पेड़ मानव जाति का बहुत बड़ा शिक्षक है। यही इस कविता की केन्द्रीय कल्पना है।
(6) प्रतीक विधान-कवि ने पेड़ को परोपकारी, सर्वस्व न्यौछावर करने वाला दर्शाया है। ऐसे महान त्यागी के लिए
महर्षि दधीचि जैसे-महानदाता तथा संत का प्रतीक के रूप में सटीक उपयोग किया है।
(घ) (i) चतुष्पदी चौपाई की भाँति चार चरणों वाला छंद होता है। इसके प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में पंक्तियों के तुक मिलते हैं। तीसरे चरण का तुक नहीं मिलता। प्रत्येक चतुष्पदी भाव और विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण होती है और कोई चतुष्पदी किसी दूसरी से संबंधित नहीं होती।
(ii) व्यापार में पहली बार किया गया छल-कपट सामने वाले पक्ष को समझते देर नहीं लगती। दूसरी बार वह सतर्क हो जाता है। इसलिए व्यापार में दूसरी बार छल-कपट करना असम्भव होता है।
(iii) गुरु नानक की रचनाओं के नाम हैं- गुरु ग्रंथसाहिब आदि।
(iv) दोहा अर्द्ध सममात्रिक छंद हैं। इसके चार चरण होते हैं। दोहे के प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 22-22 मात्राएँ होती हैं। दोहे के प्रत्येक चरण के अंत में लघु वर्ण आता है।
11. विभाग – 3 विशेष अध्ययन
(क)
- (i) कनुप्रिया को गर्व करना चाहिए क्योंकि, उसके प्रिय के कनु के अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हैं।
(ii) कनुप्रिया को उदास नहीं होना चाहिए क्योंकि भीड़-भाड़ में वह और उसका प्यार नितांत अपरिचित छूट गए हैं।
(1) (i) सुकोमल कल्पनाएँ थी।
(ii) रँगे हुए अर्थहीन शब्द थे।
- (i) तन्मयता-तल्लीनता
(ii) सुकोमल-नाजुक
(iii) नितांत-अत्यंत
(iv) अनभिज्ञ-अनजान
- आधुनिक काल की तरह प्राचीन काल में तकनीकी विकास नहीं हुआ था। प्राचीन काल की सेना पैदल सैनिकों पर आधारित होती थीं। उसमें अश्व सेना, गज सेना, रथों का प्रयोग, पैदल सेना आदि प्रमुख होते थे। राजा-महाराजा और सामंत लोग रथों का प्रयोग युद्ध में करते थे। पैदल या अन्य सैनिकों के पास तलवारें, धनुष-बाण, कटार, भाले, गदा आदि हथियार होते थे। युद्ध आमने-सामने होता था, इसलिए सैनिकों की संख्या अधिक होती थी। सेनाओं के पास आधुनिक काल की तरह विनाशक अस्त्र-शस्त्र नहीं थे। बाँब, मिसाईल नहीं थे। आधुनिक सेनाएँ आधुनिक हथियारों से सुसज्ज होती हैं। सेनाएँ जल सेना, थल सेना, वायु सेना में विभाजित होती है। जल सेना के पास अनेक प्रकार की पनडुब्बियाँ, युद्धक जहाज, क्रूज मिसाइल होते हैं। थल सेना के पास गोला-बारूद, हजारों मील तक मार करने वाली मिसाइलें होती हैं। साथ ही आधुनिक राइफलें होती है, विकसित तकनीक जो दूर-दूर तक वार करती हैं। वायु सेना के पास अनेक संहारक बम, विमान रॉकेट जो क्षण में पूरा विनाश कर सकते हैं।
इस प्रकार प्राचीनकाल की सेनाओं और आधुनिक काल की सेनाओं में बहुत अधिक अंतर हैं।
(ख) (i) राधा युद्ध को निरर्थक मानती हैं। प्रस्तुत काव्य में राधा का कहना यह है कि, यदि श्रीकृष्ण अर्थात् कनु ने राधा से प्रेम
किया है, तो वे महाभारत के युद्ध का अवलंब क्यों करते हैं। कृष्ण के प्रति राधा का प्रेम निर्मल और निश्छल है। वह जीवन की समस्त घटनाओं और व्यक्तियों को केवल प्यार की कसौटी पर ही कसती है। राधा को केवल कृष्ण के साथ चरम तन्मयता के गुजारे क्षण ही याद हैं। उन्हीं क्षणों में वह जीती हैं। राधा ने श्रीकृष्ण से स्नेहासिक्त ज्ञान ही पाया है। उसने सहज जीवन जीया है। कृष्ण के साथ तन्मयता के क्षणों में डूबकर जीवन की सार्थकता प्राप्त की है।
राधा को श्रीकृष्ण के मुँह से निकले कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व इन शब्दों को वह समझ नहीं पाती है। श्रीकृष्ण के अधरों से प्रणय के शब्द पहली बार उसने सुने है, जो उससे कहे थे। वह सिर्फ इन्हीं शब्दों को सुनना, समझना चाहती हैं। श्रीकृष्ण के युद्ध के अवलंब के बाद भी राधा श्रीकृष्ण का साथ देती हैं। उसका प्रेम निश्छल है, इसलिए उदास नहीं रहना चाहिए बल्कि उसे कनु की अठारह अक्षौहिणी सेना होने का गर्व करना चाहिए। कनु के शब्दों में राधा को केवल अपना ही नाम राधन्. .राधन्. .राधन् सुनाई देता है। इस प्रकार राधा की दृष्टि से प्रेम का त्याग करके युद्ध का अवलंबन न करना निरर्थक हैं। इसलिए उसके अनुसार जीवन की सार्थकता प्रेम की पराकाष्ठा में हैं।
(ii) ‘कनुप्रिया’ डॉॉ. धर्मवीर भारती रचित एक बेजोड़ अनूठी और अद्भुत कृति है। यह राधा और कृष्ण के प्रेम और महाभारत की कथा से संबंधित कृति है। राधा के अनुसार प्रेम ही सर्वोपरि है। श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध के महानायक हैं। उन्होंने युद्ध का अवलंब क्यों किया है ? राधा ने उनसे सिर्फ प्रेम और प्रणय का ज्ञान लिया है उनके साथ चरम तन्मयता के क्षण उसने गुजारे हैं। और वही कनु अर्थात् कृष्ण महाभरत के युद्ध के महानायक बनें। इसलिए राधा के अनुसार प्रेम से लेकर युद्ध के मैदान तक उन्होंने राधा को ही सेतु बना दिया है।
कृष्ण नीचे की घाटी से ऊपर के शिखरों पर चले गए, परन्तु बली राधा की चढ़ी है, उसके प्रेम की बलि चढ़ी है, ऐसे राधा को लगता है। राधा के अनुसार उसके ही सिर पर पैर रखकर उसकी बाँहों से श्रीकृष्ण उसका प्रेम, प्रेमरूपी इतिहास ले गए हैं। वे जो राधा के साथ तन्मयता के क्षण जीये हैं, उस क्षणों से उस क्षेत्र से उठकर युद्ध क्षेत्र तक की अलंघ्य दूरी तय करने के
लिए श्रीकृष्ण ने कनुप्रिया (राधा) को ही सेतु बनाया है, ऐसे राधा को लगता है।
इसलिए राधा कहती हैं कि इन शिखरों और मृत्यु-घाटियों के बीच बने सोने के पलके और गुँथे हुए तारों से बने पुल की तरह उसका यह सेतु-रूपी शरीर काँपता हुआ निर्जन और निरर्थक रह गया है।
12. विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली
(क) श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी मंच संचालक होता है। मंचीय आयोजन में मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति संचालक ही होता है। मंच संचालन एक कला है। कार्यक्रम में जान डाल देने का काम एक अच्छा मंच संचालक ही करता है। सभा की या कार्यक्रम की शुरूआत वहीं करता है। उत्तम मंच संचालक बनने के लिए जिस ढंग का कार्यक्रम हो उसी ढंग से तैयारी करनी चाहिए। कार्यक्रम की शुरूआत जिज्ञासाभरी होनी चाहिए। संचालक का व्यक्तित्व पहली नजर में ही सामने आता है। इस कारण उसकी वेशभूषा, केश सज्जा सहज व गरिमामयी होनी चाहिए।
संचालक का व्यक्तित्व और आत्मविश्वास ही मंच पर आते ही शब्दों में उतरकर श्रोता तक पहुँचता है। सहजता, सतर्कता और उत्साहवर्धन उसके मुख्य गुण हैं। संचालक को कार्यक्रम के अनुरूप संहिता लेखन करना चाहिए। भाषा का समयानुकूल प्रयोग करके कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाना चाहिए। इसलिए पढ़ाई में रुचि रखकर ज्ञान बढ़ाना चाहिए। कार्यक्रम का स्वरूप, स्थान विषय प्रस्तुतियों की संख्या, क्रम अतिथियों के संदर्भ में जानकारी लेना आवश्यक है। अचानक हुए परिवर्तन के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर कार्यक्रम को सफल बनाना चाहिए।
उत्तम मंच संचालक के लिए प्रोटोकॉल का ज्ञान, प्रभावशाली व्यक्तित्व, हैंसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का ज्ञान होना चाहिए। इसलिए मंच संचालक को हर प्रकार के साहित्य का अध्ययन करना जरूरी है। इस अतिरिक्त संचालक को समयानुकूल चुटकुलों तथा रोचक घटनाओं से श्रोताओं को बाँध रखने की क्षमता होनी चाहिए। किसी प्रख्यात साहित्यकार के कथन का उल्लेख कार्यक्रम में प्रभावशाली साबित होता है। मंच संचालक को भाषा की शुद्धता शब्दों का चयन, शब्दों का उचित प्रयोग तथा भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। तभी एक उत्तम मंच संचालक की ख्याति बढ़ती है। उत्तम मंच संचालक सभी गुणों युक्त, सभी गुण आत्मसात करने वाला होना चाहिए।
13. अथवा
- (i)
संजाल पूर्ण कीजिए-
14. फीचर के प्रकार
1 व्यक्तिपरक फीचर
2 विवरणात्मक फीचर
3 सूचनात्मक फीचर
4 विश्लेषणात्मक फीचर
2.
1. | चुनाव | चयन |
2. | निश्चिन्त | आश्वस्त |
3. | लुभावना | आकर्षक |
4. | खूबसूरत | सुन्दर |
- बिना बिसारे जो करें सो पाछे पछताय से तात्पर्य है कि जो मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले, कुछ भी नहीं सोचता है व उस कार्य को पहचानता नहीं है, और उसे कर ही देता है। फिर उसे अपनी गलती का एहसास होने लगता है, तो वह उस समय पछताता है। मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है, उसमें सोचने समझने की बुद्धि है। इसलिए लोगों को अपने कार्य करने से पहले समझ जरूर लेना चाहिए, उस पर विचार करना चाहिए।
(ख)(i) एक आदर्श शहर को जीवंत और समकालीन होना चाहिए। अपना शहर ऐसा होना चाहिए जिसमें इतिहास और सांस्कृतिक जीवन का मिश्रण हो, जो समृद्ध हो, जिसमें रोमांचक विशेषताएँ हों। में पुणे में रहता हूँ। यह महाराष्ट्र का नामांकित शहर है। एक सुंदर व आदर्श शहर है। पुणे का इतिहास तो सभी जानते हैं। मुझे पुणे से बहुत प्यार है। यह शहर विकास करने के लिए बहुत उपयुक्त शहर है।
संस्कृतियों वाला शहर-पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग भुजा व मुठा इन दो नदियों के किनारे बसा है। पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुख-सुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र में मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षण संस्थायें होने के कारण इस शहर को ‘पूरब का ऑक्सफोर्ड’ भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का “डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है।
उच्च शिक्षण की सुविधा-पुणे शहर में लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयु का आगरकर संशोधन संस्था, सन्डैक जैसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट भी काफी प्रसिद्ध है।
औद्योगिक केन्द्र-पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादन क्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक में इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसेस, विप्रो, सिमैंटेंक, आई. बी.एम. जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे में अपने केन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग केन्द्र के रूप में विकसित हुआ।
इसके अतिरिक्त पुणे में ऐतिहासिक स्थल हैं, जहाँ पर्यटक अध्ययन एवम् मनोरंजन के लिए आते हैं। यहाँ शनिवारवाडा, लाल किला, पेश्वे बाग आदि विविध मंदिर हैं। धार्मिक स्थलों से पूर्ण है पुणे।
इस प्रकार पुणे मेरा शहर सिर्फ मेरी नहीं पूरे देश की महाराष्ट्र की शान है।
(ii) मानव को सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है। मनुष्य को श्रेष्ठता प्रदान करने में बुद्धि की सहायता मिली है। परन्तु सार्थकता प्राप्त हुई तो केवल मन के कारण। मन की चंचलता को नापा या गिना नहीं जाता। न ही मन को बाँधकर हम स्थिर रख सकते हैं। ‘मन’ के बारे में क्या कह सकते हैं? इस पल धरती पर डोल रहा होता है, तो अगले पल आकाश में उड्रान लेता नजर आता है। मन अनेक विचारों, तर्कों से भरा भंडार है। मन को स्थिर रखकर सही दिशा में लाना था। सही मार्ग दिखाना ही मन की जीत है। मन की शक्ति पर ही मनुष्य की जीत या हार निर्भर होती है। मन में आने वाले नकारार्थी विचार हार का निर्देश करते हैं। संकल्पों की दृढ़ता कुछ करने की इच्छा शक्ति मन को प्रफुल्लित करती है और हमारा मन सफलता की ओर निर्देशित होता है। सकारात्मकता से मन स्थिर रहता है। नकारात्मक विचारों को, मन अस्थिर करने वाले विचारों को दूर रखने में ही भलाई है। मन की सकारात्मक शक्ति तन पर प्रभाव डालकर कार्य करने की ऊर्जा देती है।
दुर्बल मन शारीरिक ऊर्जा को क्षीण कर देता है। जीत सफलता मन पर निर्भर होती है। मन के हारने से नकारात्मकता से हम हार जाते हैं तो मन को जीतने से सकारात्मकता से हम जीत जाते हैं।
15. अथवा
(i) (अ) भगवान की सर्वश्रेष्ठ उपासना के रूप में विश्व प्रेम को प्रतिष्ठित किया गया है।
(ii) (स) विषय का औचित्य शीर्षक फीचर की आत्मा है।
(iii) (ब) ब्लॉग लेखन में सामाजिक स्वास्थ्य का विचार हो जो समाजविघातक न हों। (iv) (द) पृथ्वी के तीन चौथाई हिस्से पर समुद्रों की विशाल जल राशि व्याप्त है।
(ग)
1.
2.
(i) जीव-जंतु
(ii) सैकड़ों-हजार
(iii) काम-काज
(iv) मधुर-मीठी
- पर्यावरण में अनेक प्रदूषण होते हैं, जैसे-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। ध्वनि प्रदूषण आधुनिक जीवन में बढ़ते हुए औद्योगीकरण का परिणाम है। ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और भयानक होता है। ध्वनि प्रदूषण किसी भी प्रकार के अनुपयोगी ध्वनियों को कहते हैं, जिससे मानव को बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसमें यातायात के द्वारा उत्पन्न होने वाला शोर मुख्य कारण हैं।
उच्च स्तर के ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों के व्यवहार में चिड्चिड़ापन आ जाता है। तेज आवाज के कारण बहरापन और कान की अन्य जटिल समस्याएँ निर्माण होती हैं। ध्वनि प्रदूषण के कारण बेचैनी, थकान, सिर दर्द, घबराहट आदि समस्याएँ निर्माण होती है। साथ ही सोने की समस्या कमजोरी, अनिद्रा, तनाव, उच्च रक्तदाब, वार्तालाप आदि समस्याएँ निर्माण होती हैं। ध्वनि प्रदूषण के कारण दिन-व-दिन मानव की काम करने की क्षमता गुणवत्ता और एकाग्रता कम होती जाती है। ध्वनि प्रदूषण का पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और पशु-पक्षियों के लिए भी खतरनाक साबित होता है। जानवरों के प्राकृतिक रहन-सहन में भी बाधा उत्पन्न होती है।
(घ) (i) राजदूत
(ii) अभिरक्षक
(iii) दुभाषिया
(iv) संशोधन
(v) कटौती
(vi) चेतावनी
(vii) तुलना पत्र
(viii) प्रकाशीय तंतु
16. विभाण – 5 व्याकरण
(क) (i) मौसी कुछ नहीं बोल रही है।
(ii) सुधारक आए थे।
(iii) गर्ग साहब अपने वचन का पालन करेंगे।
(iv) ट्रस्ट का सचिव ने मुझे एक लिफाफा दे रहा था।
(ख) (i) उपमा अलंकार
(iii) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) (i) रौद्र रस
(iii) भक्ति रस (ii) रूपक अलंकार
(iv) दृष्टांत अलंकार
(ii) श्रृंगार रस
(iv) अद्भुत रस
(घ) (i) लहू सूखना- भयभीत हो जाना। वाक्य-कोरोना वायरस के नाम से ही लहू सूखने लगता है।
(ii) ढाँचा डगमगा उठना-आधार हिल उठना। वाक्य-कभी किसी व्यक्ति द्वारा गलत निर्णय लेने के कारण परिवार का ढाँचा डगमगा उठता है।
(iii) फलीभूत होना-परिणाम निकल आना।
वाक्य-सिद्धी के भारतीय प्रशासकीय सेवा में चुने जाने पर उसके माता-पिता की आशाएँ फलीभूत हो गयीं। (iv) हाहाकार मचना-कोहराम मचना।
वाक्य-कार दुर्घटना में इकलौते बेटे के शव को देखकर पूरे परिवार में हाहाकार मच गया।
(ङ) (i) अतिथि आए हैं, घर में सामान नहीं है।
(ii) उसमें फूल बिछा दें।
(iii) कहाँ खो गई हैं आप।
(iv) बैजू हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।