SAMPLE PAPER-5 Hindi
1. Q Questions
2. विभाग – 1 गद्य (अंक-20)
(क) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
सुनो सुगंधा! तुम्हारा पत्र पाकर खुशी हुई। तुमने दोतरफा अधिकार की बात उठाई है, वह पसंद आई। बेशक, जहाँ जिस बात से तुम्हारी असहमति हो; वहाँ तुम्हें अपनी बात मुझे समझाने का पूरा अधिकार है। मुझे खुशी ही होगी तुम्हारे इस अधिकार प्रयोग पर। इससे राह खुलेगी और खुलती ही जाएगी। जहाँ कहीं कुछ रुकती दिखाई देगी; वहाँ भी परस्पर आदान-प्रदान से राह निकाल जी जाएगी। अपनी-अपनी बात कहने-सुनने में बंधन या संकोच कैसा ?
मैंने तो अधिकार की बात यों पूही थी कि मैं उस बेटी की माँ हूँ जो जीवन में ऊँचा उठने के लिए बड़े ऊँचे सपने देखा करती है; आकाश में अपने छोटे-छोटे डैनों को चौड़े फैलाकर।
धरती से बहुत ऊँचाई में फैले इन डैनों को यथार्थ से दूर समझकर भी में काटना नहीं चाहती। केवल उनकी डोर मजबूत करना चाहती हूँ कि अपनी किसी ऊँची उड्ान में वे लड़खड़ा न जाएँ। इसलिए कहना चाहती हूँ कि ‘उड़ो बेटी, उड़ो, पर धरती पर निगाह रखकर।’ कहीं ऐसा न हो कि धरती से जुड़ी डोर कट जाए और किसी अनजाने-अवांछित स्थल पर गिरकर डैने क्षत-विक्षत हो जाएँ। ऐसा नहीं होगा क्योंकि तुम एक समझदार लड़की हो। फिर भी सावधानी तो अपेक्षित है ही।
यह सावधानी का ही संकेत है कि निगाह धरती पर रखकर उड़ान भरी जाए। उस धरती पर जो तुम्हारा आधार है-उसमें तुम्हारे परिवेश का, तुम्हारे संस्कार का, तुम्हारी सांस्कृतिक परम्परा का, तुम्हारा सामर्थ्य का भी आधार जुड़ा होना चाहिए। हमें पुरानी-जर्जर रूढ़ियों को तोड़ना है, अच्छी परम्पराओं को नहीं।
परम्परा और रूढ़ि का अर्थ समझती हो न तुम ? नहीं ! तो इस अंतर को समझने के लिए अपने सांस्कृतिक आधार से सम्बन्धित साहित्य अपने कॉलेज पुस्तकालय से खोजकर लाना, उसे जरूर पढ़ना। यह आधार एक भारतीय लड़की के नाते तुम्हारे व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा है, इसलिए।
- संजाल पूर्ण कीजिए-
- गद्यांश में प्रयुक्त शब्द युग्म खोजकर लिखिए-
(i)
(ii)
(iii)
(iv)
- निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए:
भारतीय पुरानी परम्परा, रूढ़ि और संस्कृति, इस विषय पर अपने विचार कीजिए।
(ख)निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
पाप काँपता है और अब उसे लगता है कि उस वेग में वह पिस पिस जाएगा-बिखर जाएगा। तब पाप अपना ब्रह्मास्त्र तोलता है और तोलकर सत्य पर फेंकता है। यह ब्रह्मास्त्र है- श्रद्धा।
इन क्षणों में पाप का नारा होता है-“सत्य की जय! सुधारक की जय!”
अब वह सुधारक की करने लगता है चरणवंदना और उसके सत्य की महिमा का गान और बखान।
सुधारक होता है करुणाशील और उसका सत्य सरल विश्वासी। वह पहले चौंकता है, फिर कोमल पड़ जाता है और तब उसका वेग बन जाता है शांत और वातावरण में छा जाती है सुकुमारता।
पाप अभी तक सुधारक और सत्य के जो स्रोत पढ़ता जा रहा था, उनका करता है यूँ उपसंहार “स सुधारक महान है, वह लोकोत्तर है, मानव नहीं, वह तो भगवान है, तीर्थकर है, अवतार है, पैगंबर है, संत है। उसकी वाणी में जो सत्य है, वह स्वर्ग का अमृत है। वह हमारा वंदनीय है, स्मरणीय है, पर हम पृथ्वी के साधारण मनुष्यों के लिए वैसा बनना असंभव है, उस सत्य को जीवन में उतारना हमारा आदर्श है, पर आदर्श को कब, कहाँ, कौन पा सकता है ?” और इसके बाद उसका नारा हो जाता है, “महाप्रभु सुधारक वंदनीय है, उसका सत्य महान है, वह लोकोत्तर है।”
यह नारा ऊँचा उठता रहता है, अधिक-से-अधिक दूर तक उसकी गूँज फैलती रहती है, लोग उसमें शामिल होते रहते हैं। पर अब उसका ध्यान सुधारक में नहीं; उसकी लोकोत्तरता में समाया रहता है, सुधारक के सत्य में नहीं, उसके सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अर्थों और फलितार्थों के करने में जुटा रहता है।
अब सुधारक के बनने लगते हैं स्मारक और मंदिर और उसके सत्य के ग्रंथ और भाष्य। बस यहीं सुधारक और उसके सत्य की पराजय पूरी तरह हो जाती है।
पाप का यह ब्रह्मास्त्र अतीत में अजेय रहा है और वर्तमान में भी अजेय है। कौन कह सकता है कि भविष्य में कभी कोई उसकी अजेयता को खंडित कर सकेगा या नहीं ?
- कृति पूर्ण कीजिए।
- निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए।
(i) वाणी
(ii) पराजय
(iii) चरण
(iv) सुधारक - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। ‘स्मारकों और समाधियों की स्थापना का उद्देश्य’ इस विषय पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
(ग) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 60 से 80 शब्दों में लिखिए। (तीन में से दो)
(i) “बारह वर्ष की तपस्या पर एक क्षण में पानी फिर गया” इस बात को ‘आदर्श बदला’ कहानी के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
(ii) सुगंधा की माँ ने रचना की शादी के संदर्भ में किस प्रकार राय दी इसे ‘सुनो किशोरी’ पाठ के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
(iii) दिलीप ने अपनी माँ के साथ किस प्रकार विश्वासघात किया-इसे ‘कोखजाया’ पाठ के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) संस्मरण साहित्य किसे कहते हैं ?
(ii) कहानी विधा का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
(iii) हिन्दी साहित्यशास्त्र में निबंध को क्या माना गया है ?
(iv) अनूदित कहानी प्रारंभ से किस बात को व्यक्त करती रही हैं ?
3. विभाग – 2 पद्य (अंक-20)
(अ) निम्नलिखित पठित काव्यांश को पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कल अपने कमरे की
खिड़की के पास बैठकर,
जब मैं निहार रहा था एक पेड़ को
तब मैं महसूस कर रहा था पेड़ होने का अर्थ!
मैं सोच रहा था
आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए,
वह एक पेड़ जितना बड़ा कभी नहीं हो सकता
या यूँ कहूँ कि-
आदमी सिर्फ आदमी है
वह पेड़ नहीं हो सकता!
हौसला है पेड़.
अंकुरित होने से ठूँठ हो जाने तक
आँधी-तूफान हो या कोई प्रतापी राजा-महाराजा
पेड़ किसी के पाँव नहीं पड़ता है,
जब तक है उसमें साँस
एक जगह पर खड़े रहकर
हालात से लड़ता है!
- प्रश्न के उत्तर लिखिए।
(i) आदमी किस जैसा बड़ा नहीं हो सकता ?
(ii) पेड़ कब तक हालात से लड़ता रहता है ?
(iii) कवि ने पेड़ होने का अर्थ कब महसूस किया ?
(iv) पेड़ हमें क्या सिखाते हैं ?
- निम्नलिखित शब्दों में प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए।
(i) बड़ा
(ii) अर्थ
(iii) आदमी
(iv) तूफान - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। ‘हालात से भागने की बजाय उसका सामना करना ही बेहतर है’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
(ख) निम्नलिखित पठित काव्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
तेरी गति मिति तू ही जाणै क्या को आखि वखाणे
तू आपे गुपता, आपे प्रगटु, आपे सब रंग भाणे
साधक सिद्ध, गुरु वहु चेले खोजत फिरहि फरमाणे
समहि बधु पाइ इह भिक्षा तेरे दर्शन कउ कुरवाणे
उसी की प्रभु खेल रचाया, गुरमुख सोभी होई।
नानक सब जुग आपे वरते, दूजा और न कोई ॥? ॥
गगन में काल रविचंद दीपक बने।
तारका मंडल जनक मोती।
धूप मलयानिल, पवनु चँवरो करे,
सकल वनराइ कुलंत जोति।
कैसी आरती होई भव खंडना, तोरि आरती।
अनाहत शबद बाजत भेरी ॥२॥
- कृति पूर्ण कीजिए-
(i)
(ii)
- शब्द संपदा लिखिए-
प्रत्यययुक्त शब्द
(i) दान-
(ii) दया-
(iii) गुण-
(iv) अंतर-
- निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। अभिव्यक्ति-ईश्वर भक्ति में नाम स्मरण का महत्व होता है।’ इस विषय पर अपना मत प्रकट कीजिए।
(ग) रसास्वादन कीजिए। (दो में से एक)
(i) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘सच हम नहीं, सच तुम नहीं’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
मुद्दे :
(1) रचना का शीर्षक
(2) रचनाकार
(3) पसंद की पंक्तियाँ
(4) पसंद आने का कारण
(5) कविता की केंद्रीय कल्पना
(6) प्रतीक विधान।
(ii) जीवन के अनुभवों और वास्तविकता से परिमित कराने वाले वृंदजी के दोहों का रसास्वादन कीजिए।
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) उर्दू कविता का लोकप्रिय प्रकार कौनसा है ?
(ii) वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ लिखिए।
(iii) चार चरणों वाले छंद का नाम लिखिए।
(iv) लोकगीतों की भाषा किस प्रकार की होती है ?
4. विभाग – 3 विशेष अध्ययन (अंक-10)
(क) निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए: आज इस गाँव से द्वारिका की युद्धोन्मत्त सेनाएँ गुजर रही हैं मान लिया कि कनु तेरा सर्वाधिक अपना है मान लिया कि तू उसके रोम-रोम से परिचित है मान लिया कि ये अगणित सैनिक एक-एक उसके हैं : पर जान रख कि ये तुझे बिल्कुल नहीं जानते पथ से हट जा बावरी यह आम्रवृक्ष की डाल उनकी विशेष प्रिय थी तेरे न आने पर सारी शाम इस पर टिक उन्होंने वंशी में बार-बार तेरा नाम भरकर तुझे टेरा थाआज यह आम की डाल सदा-सदा के लिए काट दी जाएगी क्योंकि कृष्ण के सेनापतियों के वायुवेगगामी रथों की गगनचुंबी ध्वजाओं में
यह नीची डाल अटकती है
और यह पथ के किनारे खड़ा
छायादार पावन अशोक वृक्ष
आज खंड-खंड हो जाएगा तो क्या-
यदि ग्रामवासी, सेनाओं के स्वागत में
तोरण नहीं सजाते
तो क्या सारा ग्राम नहीं उजाड़ दिया जाएगा ?
- निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लिखिए।
(i) आज उस पथ से राधा दूर क्यों हट जाए?
(ii) आम्रवृक्ष की डाल सदा के लिए क्यों काट दी जाएगी ?
(iii) कनु सबसे ज्यादा किसका है?
(iv) राधा को कौन बिल्कुल नहीं पहचानते ?
- निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए।
(i) गगनचुंबी
(ii) अगणित
(iii) छायादार
(iv) अटकना - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: ‘धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाले वृक्ष’ इस विषय पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर 80 से 100 शब्दों में लिखिए:
(दो में से एक)
(i) राधा उदास क्यों होती है- इसे ‘कनुप्रिया’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ii) राधा (कनुप्रिया) कनु के महायुद्ध के नायकत्व से परिचित नहीं हैं-ऐसा क्यों कहा गया है ?
5. विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली (अंक-20)
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों में लिखिए:
(i) फीचर लेखन के सोपानों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
(ख) निम्नलिखित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच की गरिमा बनी रहे। मंचीय आयोजन में मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति संचालक ही होता है। एंकर (उद्घोषक) का व्यक्तित्व दशकों की
पहली नजर में ही सामने आता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा इत्यादि सहज व गरिमामयी होनी चाहिए। उद्घोषक या एंकर के रूप में जब वह मंच पर होता है तो उसका व्यक्तित्व और उसका आत्मविश्वास ही उसके शब्दों में उतरकर श्रोता तक पहुँचता है। सतर्कता, सहजता और उत्साहवर्धन उसके मुख्य गुण हैं। मेरे कार्यक्रम का आरंभ जिज्ञासाभरा होता है। बीच-बीच में प्रसंगानुसार कोई रोचक दृष्टांत, शेर-ओ-शायरी या कविताओं के अंश का प्रयोग करता हूँ। जैसे-एक कार्यक्रम में वक्ता महिलाओं की तुलना
गुलाब से करते हुए कह रहे थे कि महिलाएँ बोलती भी ज्यादा हैं और हँसती भी ज्यादा हैं। बिल्कुल खिले गुलाबों की तरह वगैरह. जब उनका वक्तव्य खत्म हुआ तो मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि सर आपने कहा कि महिलाएँ हैँसती-बोलती बहुत ज्यादा हैं तो इस पर में महिलाओं की तरफ से कहना चाहूँगा।
‘हर शब्द में अर्थ छुपा होता है। हर अर्थ में फर्क छुपा होता है। लोग कहते हैं कि हम हँसते और बोलते बहुत ज्यादा हैं। पर ज्यादा हँसने वालों के दिल में भी दर्द छुपा होता है।’
मेरी इस बात पर इतनी तालियाँ बर्जीं कि बस! महिलाएँ तो मेरी प्रशंसक हो गई। कार्यक्रम के बाद उन वक्ताओं ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘बहुत बढ़िया बोलते हो।’ संक्षेप में; कभी कोई सहज, हास्य से भरा चुटकुला या कोई प्रसंग सुना देता हूँ तो कार्यक्रम बोझिल नहीं होता तथा उसकी रोचकता बनी रहती है। विभिन्न विषयों का ज्ञान होना जरूरी है। कार्यक्रम कोई भी हो; भाषा का समयानुकूल प्रयोग कार्यक्रम की गरिमा बढ़ा देता है। इसके लिए आपका निरंतर बढ़ते रहना आवश्यक है।
मैं भी जब छोटा था तो रोज शाम के समय नगर वाचनालय में जाता था। ‘ चंपक’, ‘ नंदन ‘, ‘बालभारती’ और ‘ चंदामामा’ जैसी पत्रिकाएँ पढ़ता था। बाद में ‘धर्मयुग’, ‘हिंदुस्तान’, ‘दिनमान’, ‘ कादंबिनी’, ‘सारिका’, ‘नवनीत’, ‘रीडर्स डाइजेस्ट’ जैसी मासिक-पाक्षिक पत्रिकाएँ पढ़ने लगा। रेडियो के विविध कार्यक्रमों को सुनना बेहद पसंद था। ये सारी बातें कहीं-न-कहीं प्रेरणादायक रहीं तथा सूत्र संचालन का आधारस्तंभ बनीं।
मैं उद्घोषक/मंच संचालक की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाता रहा हूँ और श्रोताओं ने मुझे अपार स्नेह और यश से समृद्ध किया है। किंग ऑफ वॉईस, संस्कृति शिरोमणि, अखिल आकाशवाणी जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया हूँ। मैंने भी विज्ञापन देखकर रेडियो उद्घोषक पद हेतु आवेदन किया था। 29 वर्ष तक मैंने वहाँ अपनी सेवाएँ प्रदान कीं; इसका मुझे गर्व है।
मैं उद्घोषक हूँ। शब्दों की दुनिया में रहता हूँ। जब रेडियो से बोलता हूँ तो हर घर, सड्क-दर-सड़क, गली-गली में सुनाई पड़ता हूँ, तब मेरी कोई सूरत नहीं होती। मेरा कोई चेहरा भी नहीं होता लेकिन मैं हवाओं की पालकी पर सवार दूर गाँवों तक पहुँच जाता हूँ। जब एंकर बन जाता हूँ तो अपने दर्शकों के दिलों को छू लेता हूँ। आप मुझे आवाज के परदे पर देखते हैं। मैं उद्घोषक हूँ। मैं एंकर हूँ।
- प्रश्न के उत्तर लिखिए।
(i) कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाने में किस बात की सहायता होती है ?
(ii) कार्यक्रम की रोचकता किस प्रकार बनी रहती है ?
(iii) उद्घोषक को कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ?
(iv) उद्घोषक कौनसी दुनिया में रहता है ?
- निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए:
(i) बोझिल
(ii) रोचकता
(iii) गरिमा
(iv) प्रेरणादायक - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए:
‘कौन-सी बातों पर ध्यान देने पर व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बन सकता है’-इस बात पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 80 से 100 शब्दों में लिखिए।
(दो में से एक)
(i) “सेवा तीर्थयात्रा से बढ़कर है-” इस उक्ति का विचार पल्लवन कीजिए।
(ii) भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर फीचर लेखन कीजिए।
अथवा
सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।
(i) सूत्र संचालन में तो इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है:
(अ) वेशभूषा
(ब) भाषा
(स) केशसज्जा
(द) आवाज
(ii) “जीवों द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने की क्रिया एक साधारण रासायनिक क्रिया है।” इसे सिद्ध करने वाले वैज्ञानिक-
(अ) स्पैलेंजानी
(ब) थिवाइस
(स) मैक कार्टनीम
(द) प्रो. अजिरक डाहलगैट
(iii) फीचर लेखन की प्रक्रिया के मुख्य अंग कितने हैं?
(अ) दो
(ब) पाँच
(स) तीन
(द) चार
(iv) ब्लॉग लेखन शुरू करने की प्रक्रिया के संदर्भ में विस्तृत जानकारी कहाँ पर उपलब्ध हैं-
(अ) गूगल
(ब) फेसबुक
(स) वॉट्सअप
(द) इंस्टाग्राम
(ग) निम्नलिखित अपठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
गुरुदेव यहाँ बड़े आनंद में थे। अकेले रहते थे। भीड़-भाड़ उतनी नहीं होती थी, जितनी शांतिनिकेतन में। जब हम लोग ऊपर गए तो गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यानस्तिंभित नयनों से देख रहे थे। हम लोगों को देखकर मुस्काराए, बच्चों से जरा छेड़-छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे और फिर चुप हो गए। ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होगर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूँदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेहरस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव ने हम लोगों की ओर देखकर कहा, “‘देखा तुमने, यह यहाँ आए। कैसे इन्हें। मालूम हुआ, कि मैं यहाँ हूँ, आश्चर्य है। और देखो, कितनी परितृष्ति इनके चेहरे पर दिखाई दे रही है!”
हम लोग उस कुत्ते के आनंद को देखने लगे। किसी ने उसे राह नहीं दिखाई थी, न उसे यह बताया था कि उसके स्नेहल यहाँ से दो मील दूर है और फिर भी वह पहुँच गया! इसी कुत्ते को लक्ष्य करने उन्होंने ‘आरोग्य’ में इस भाव की एक कविता लिखी थी-“प्रतिदिन प्रातःकाल यह भक्त कुत्ता स्तब्ध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पर्श से में इसका संग नहीं स्वीकार करता। इतनी-सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनंद का प्रवाह बह उठता है। इस वाक्य-हीन प्राणिलोक में
सिर्फ यही एक जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर संपूर्ण मनुष्य को देख सका है; उस आनंद को देख सका है, जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहैतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्यलोक में राह दिखा सकती है। जब में इय मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन देखता हूँ, जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है, तब में यह सोच ही नहीं पाता कि, उसने अपने सहज बोध से मानवस्वरूप में कौन-सा अमूल्य आविष्कार किया है; इसकी भाषाहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और मुझे इस दृष्टि से मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।” इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानवसत्य को देखा है, जो मनुष्य मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
- प्रश्न के उत्तर लिखिए:
(i) गुरुदेव कहाँ पर बड़े आनंद से रहते थे ?
(ii) गुरुदेव ने उनके कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरने पर उसने आँखें मूँदकर किस प्रकार का अनुभव किया ? (iii) गुरुदेव ने कुत्ते को लक्ष्य करके कौनसे भाव की एक कविता लिखी थी ?
(iv) कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर क्या देखा ?
- परिच्छेद में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए।
(i) रोम-
(ii) धीरे-
(iii) भीड़-
(iv) छेड़- - निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। गुरुदेव का प्रकृति प्रेम इस विषय पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
(घ) निम्नलिखित शब्दों की पारिभाषिक शब्दावली लिखिए।
(आठ में से चार)
(i) Judge
(ii) Adjournment
(iii) Apexe Bank
(iv) Arrears
(v) Transaction
(vi) Meteorology
(vii) Record
(viii) Integrated circuit
6. विभाग – 5 व्याकरण (अंक-10)
(क) निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए। (चार में से दो)
(i) लोगों को आगरा से बाहर जाते देखा। (पूर्ण भूतकाल)
(ii) नए मूल्यों का पर्याय नहीं होता है। ( भविष्यकाल)
(iii) द्विवेदी साहब ने अपने वचन का पालन किया।
(सामान्य वर्तमानकाल)
(iv) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होती है।
(सामान्य भविष्यकाल)
(ख) निम्नलिखित उदाहरणों के अलंकार पहचानकर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) उधो, मेरा हृदयतल था। एक उद्यान न्यारा। शोभा देतीं अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ भी॥
(ii) मोती की लड़ियों से सुंदर, झरते हैं झाग भरे निर्झर।
(iii) उस क्रोध के मारे तनु उसका काँपने लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा॥
(iv) पत्रा ही तिथि पाइयों, वाँ घर के चहुँ पास नित प्रति पून्यो रह्यो, आनन-ओप उजास
(ग) निम्नलिखित उदाहरणों के रस पहचानकर लिखिए।
(चार में से दो)
(i) राम के रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाही, यातै सवै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाही। (ii) माटी कहै कुम्हार से, तू क्या राँदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रॉदूंगी तोहे॥
(iii) एक अचंभा देखा रे भाई। ठाढ़ा सिंह चरावै गाई। पहले पूत पाछे भाई। चेला के गुरु लागे पाई॥
(iv) कहा-कैकयी ने सक्रोध दूर हट! दूर हट! निर्बोध! द्विजिन्हे रस में विष मत घोल।
(घ) निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।
(चार में से दो)
(i) ब्रह्मानंद में लीन होना
(ii) आगाह करना
(iii) सिर से पानी गुजर जाना
(iv) नसीब होना
(य) निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए।
(चार में से दो)
(i) दिलीप अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी।
(ii) आप इस शेष लिफाफे को खोलकर पढ़ लीजिए।
(iii) निराला जी अपनी युग के विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(iv) पुस्तक की ढेर देख मैं दंग रह गया।
7. [A] Answer Key
8. विभाग – 1 गद्य
(क)
- (i)
2. (i) क्षत-विक्षत
(ii) आदान-प्रदान
(iii) पुरानी-जर्जर
(iv) कहने-सुनने
- समय के साथ अपना अर्थ खो चुकी या वर्तमान प्रगतिशील समाज को पीछे ले जाने वाली समाज की कोई भी रीति-नीति रूढ़ि है। रूढ़ि स्थिर होती है। जबकि परम्परा समय के साथ अनुपयोगी हो गए मूल्यों को छोड़ती और उपयोगी मूल्यों को जोड़ती निरन्तर बहती धारा परम्परा है। परम्परा गतिशील है। एक निरन्तर बहता निमार्ण प्रवाह, जो हर सड़ी-गली रूढ़ि को किनारे फेंकता और हर भीतरी-बाहरी, देशी-विदेशी उपयोगी मूल्य को अपने में समेटता चलता है।
(ख)
1.
- (i) वाणी-स्त्रीलिंग
(ii) पराजय-स्त्रीलिंग
(iii) चरण-पुल्लिंग
(iv) सुधारक-पुल्लिंग
- समाज सुधारकों, महापुरुषों, राजनेताओं, शहीदों की स्मारकें और समाधियाँ बनायी जाती हैं। समाज के प्रति किए उनके महान कार्य को लोग सदैव याद रखे और उनके विचारों से प्रेरित होकर लोग भी उनके ही मार्ग पर चले इसी उद्देश्य से स्मारक या समाधियाँ बनायी जाती हैं। परन्तु ऐसा बहुत कम होता है। लोगों के मन में उनके प्रति श्रद्धा होती है। महान पुरुष था समाज सुधारक, शहीदों की जयंती तथा पुण्य तिथि पर लोग उनके दर्शन करके उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। परन्तु उनके विचारों को कार्यों को आगे बढ़ाने की बात सबके मन में नहीं आती है।
जब समाज में लोग उनके विचारों को आत्मसात करेंगे, उनसे प्रेरणा लेकर विकास करेंगे, तभी उन महान लोगों के प्रति सच्ची श्रद्धांजली अर्पण होगी। तभी उनके स्मारकों और समाधियों की स्थापना का उद्देश्य पूरा होता है। यही उनके स्मारकों और समाधियों की स्थापना का उद्देश्य होता है।
(इ) (i) ‘आदर्श बदला’ यह सुदर्शन जी की कहानी शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट करने वाली है। बैजू बावरा के पिता आगरा में तानसेन के बनाए अमानवीय नियम के शिकार हुए थे। उन्हें मृत्युदंड की सजा हुई थी। बैजू अनाथ हुआ था। तब बैजू बहुत रोता है। वह सोचता है कि, उसकी मंजिल तक सही रास्ता दिखाकर पहुँचाने वाला कोई तो चाहिए। तभी बाबा हरिदास उसके पास आकर उसे हौसला देते हैं। अपने पिता का बदला लेने में हथियार देने की बात करते हैं। वह हथियार है-‘ रागविद्या’ का। बाबा हरिदास से बैजू संगीत की शिक्षा ग्रहण करता है। बारह वर्षों के कठोर तपस्या के बाद बैजू ‘रागविद्या’ में निष्णात बन जाता है। जो ज्ञान बाबा हरिदास के पास था सब बैजू को दे दिया था। बैजू अब पूर्ण गंधर्व बन चुका था। बैजू जब गाता था, तब हवा रुक जाती थी, पत्थर तक पिघल जाते थे।
संगीत का यह ज्ञान प्राप्त करके बैजू ने बाबा हरिदास के प्रति कृतज्ञाता का भाव प्रकट किया। उनके चरणों पर सर रख दिया। तब बाबा हरिदास ने बैजू को प्रतिज्ञा करने को कहा कि, वह अपनी रागविद्या से, संगीत से किसी को भी हानि नहीं पहुँचायेगा। तब बैजू अत्यन्त भयभीत हो गया। उसके पैर लड्खड़ाने लगे। उसे ‘रागविद्या’ की शिक्षा से तानसेन से बदला लेना था। परन्तु बाबा हरिदास की प्रतिज्ञा से बैजू को ऐसा प्रतीत हुआ की उसकी बारह वर्ष की तपस्या पर एक क्षण में ही पानी फिर गया हो।
(ii) सुगंधा की सहेली रचना को समझाते हुए सुगंधा की माँ ने सुगंधा को पत्र लिखा है। सुगंधा ने रचना को समझाना चाहिए। इसे पत्र द्वारा बताया है। सुगंधा की माँ कहती हैं कि, रचना अभी प्रथम वर्षों के पूर्वार्द्ध में है, किसी लड़के के प्यार में वह जल्दबाजी में शादी का निर्णय ले रही है। सुगंधा की माँ के अनुसार रचना को झट से ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए। पहले धैर्य के साथ सोच-समझकर दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहिए। निकट मित्रों की तरह रहकर कॉलेज-जीवन में एक-दूसरे को देखना-जानना चाहिए। उसे जाँचना-परखना चाहिए। एक-दूसरे के मार्ग के उन्नति में बाधा न बनकर एक दूसरे को प्रेरणा देनी चाहिए एक दूसरे की ताकत बनकर परस्पर विकास में सहयोग देना चाहिए।
जब उनकी पढ़ाई पूरी होगी, तब वे यदि एक-दूसरे के साथ पूर्ववत् लगाव महसूस करेंगे, उन्हें यह लगे कि वे साथ रहकर आने वाली कमियाँ-गलतियाँ उनके बीच उनकी दोस्ती में
किसी भी प्रकार की दरार नहीं डाल सकती। दोनों एक-दूसरे को समस्त खूबियाँ या कमियों के साथ स्वीकार कर अपना लेते हैं तो आगे का निर्णय उनके लिए सफल सिद्ध होता है। शादी का फैसला जिदंगी का अहम् फैसला होता है।
इस प्रकार सुगंधा की माँ ने रचना की शादी के संदर्भ में पत्र के द्वारा अपनी राय दी है।
(iii) दिलीप अपने पिता के मृत्यु के पश्चात् पिता की पेन्शन माँ के नाम ट्रांसफर करवाने और लंदन ले जाने के कारण बीजा बनवाने के काम में लग जाता है। इसी बहाने से अनेक कागजातों पर माँ से हस्ताक्षर करवाता है। माँ बेटे पर विश्वास रखकर बिना पढ़े-देखे कागजातों पर हस्ताक्षर करती जाती है। बेटे पर संदेह करने का कोई कारण भी तो नहीं था। जब जमीन, मकान हाथ से निकल गए तभी उसकी माँ के समझ में मामला आ गया। दिलीप ने धोखे से मकान का सौदा आठ करोड़ रुपए में कर दिया था। माँ के विरोध पर उसे लंदन अपने साथ रहने का आश्वासन दिया।
एक दिन सारी संपत्ति औने-पौने दामों में बेचकर माँ के साथ वह एअरपोर्ट पहुँचा। परन्तु बोर्डिंग का बहाना बनाकर माँ को कुर्सी पर बिठाकर लंदन अकेले ही चला गया। इतना ही नहीं दिलीप ने माँ का टिकट भी सरेंडर कर दिया और माँ को वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर कर दिया।
इस प्रकार से दिलीप ने अपनी जन्म देने वाली माँ के साथ स्वार्थ के कारण बड़ा विश्वासघात किया।
(घ) (i) स्मृति के आधार पर उस व्यक्ति के सम्बन्ध में लिखित लेख या ग्रंथ को संस्मरण साहित्य कहते हैं।
(ii) कहानी विधा का वर्गीकरण विभिन्न उद्देश्यों के अनुसार किया जाता है।
(iii) हिन्दी साहित्यशास्त्र में निबंध को गद्य की कसौटी माना गया है।
(iv) अनूदित कहानी प्रारंभ से ही सामाजिक बोध को व्यक्त करती रही है।
9. विभाग – 2 पद्य
(अ)
- (i) आदमी पेड़ जैसा बड़ा नहीं हो सकता।
(ii) पेड़ में जब तक साँस है, तब तक वह हालात से लड़ता रहता है।
(iii) जब कवि खिड़की के पास बैठकर पेड़ को निहार रहा था तब उसने पेड़ होने का अर्थ महसूस किया।
(iv) पेड़ हमें हौसले के साथ हालात से लड़ना सिखाते हैं।
- (i) बड़ा-बड़प्पन
(ii) अर्थ-आर्थिक
(iii) आदमी-आदमियत
(iv) तूफान-तूफानी
- मानव को पेड़ से सीख लेनी लेनी चाहिए की, मनुष्य को अपना हौसला नहीं खोना चाहिए। कितना भी बड़ा संकट क्यों न आए। हमें डटकर उसका सामना करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थिति में शांत रहकर सोच-समझ के काम करने चाहिए। अशांति से या घबराहट से लिए हुए निर्णय गलत साबित होते हैं। इसलिए प्रतिकूल परिस्थिति में व्यक्ति को संयमता से निर्णय लेने चाहिए। जब बुरे हालात होते हैं, तब या प्रतिकूल परिस्थिति में हमें हमारे उद्देश्य, ध्येय परिवर्तन ने करते हुए उस परिस्थिति का सामना करके हमारे उद्देश्य पूर्ण करने चाहिए। एक न एक दिन उद्देश्यपूर्ति अवश्य होगी। हालातों से भागना कायरता है। हालात का सामना करके उस पर विजय प्राप्त करना शूरता, सफलता की निशानी है। इसलिए हालात से भागने के बजाय उसका सामना करना सदैव बेहतर ही होता है।
(ख)
- (i)
- (i) दान-दान + ई दानी।
(ii) दया-दया + आलु दयालु।
(iii) गुण-गुण + वान गुणवान।
(iv) अंतर-अंतर + आल अंतराल।
- अभिव्यक्ति-ईश्वर भक्ति के अनेक मार्ग बताए गए है। उनमें सबसे सरल मार्ग ईश्वर का नाम स्मरण करना है। नाम स्मरण करने का कोई नियम नहीं है। भक्त जहाँ भी हो, चाहे जिस हालत में हो, ईश्वर का नाम स्मरण कर सकता है। अधिकांश लोग ईश्वर भक्ति का यही मार्ग अपनाते हैं। उठते-बैठते, आते-जाते तथा काम करते हुए नाम स्मरण किया जा सकता है। भजन-कीर्तन भी ईश्वर के नाम स्मरण का ही एक रूप है। ईश्वर भक्ति के इस मार्ग में प्रभु के गुणों का वर्णन किया जाता है। इसमें धार्मिक पूजा-स्थलों में जाने की जरूरत नहीं होती। गृहस्थ अपने घर पर ईश्वर का नाम स्मरण कर उनके गुणों का बखान कर सकता है। इससे नाम स्मरण करने वालों को मानिसक शांति मिलती हैं और मन प्रसन्न होता है। कहा गया है-‘कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिर नर उतरँ पारा।’ इसमें ईश्वर भक्ति में नाम स्मरण का ही महत्व बताया गया है।
(ग) (i) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘सच हम नहीं,’ सच तुम नहीं कविता का रसास्वादन कीजिए।
मुद्दे :
(1) रचना का शीर्षक-सच हम नहीं; सच तुम नहीं।
(2) रचनाकार-डॉ. जगदीश गुप्त।
(3) पसंद की पंक्तियाँ-कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-‘ बेकार है मुस्कान से ढकना हदय की खिन्नता।’ आदर्श हो सकती है नहीं, तन और मन की भिन्नता।
इन पंक्तियों में यह स्पष्ट है, कि मनुष्य को भीतर और बाहर दोनों से एक-सा ही रहना चाहिए, यही आदर्श है।
(4) कविता पसंद आने का कारण-कवि कहते हैं, कि हृदय के कष्ट को बाह्म मुस्कान से दबाया नहीं जा सकता। इस प्रयास का कोई लाभ भी नहीं होता है। इसे आदर्श नहीं माना जा सकता। इस तरह कवि ने व्यक्ति को भीतर-बाहर दोनों से एक-सा रहकर ही आदर्श निर्माण हो सकता है। इस बात को स्पष्ट किया है।
(5) कविता की केंद्रीय कल्पना-प्रस्तुत कविता में जीवन में दृढ़तापूर्वक निरंतर आगे बढ़ते रहने, संघर्ष करते रहने और मार्ग में आने वाली रुकावटों की परवाह न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने का संदेश दिया गया है। यही इस कविता की केंद्रीय कल्पना है।
(6) प्रतीक विधान-प्रस्तुत कविता में किसी की अधीनता स्वीकार कर लेने वाले को मृतक के समान कहा गया है। इस तरह के मृत व्यक्ति के लिए ‘डाल से झड़े हुए फूल’ का कवि ने प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।
(ii) कवि वृंदजी रचित ‘वृंद के दोहे’ में जीवन का वास्तविक मार्ग दिखाया है। साथ ही मानवीय जीवन मूल्यों पर प्रकाश डाला है। उनके प्रस्तुत दोहे मनुष्य के जीवन से मिलते-जुलते नीतिपरक भरे-पूरे हैं। व्यावहारिक ज्ञान से अवगत कराते हुए कवि मनुष्य को अपनी क्षमता को ध्यान में रखकर किसी काम की शुरूआत करने की सलाह देते हैं। तभी व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता है। वे जीवन का सच्चा मार्ग दिखाते हुए कहते हैं कि, व्यापार-व्यवसाय करने वाले अपने व्यापार मे छल-कपट न करें। इसमें उनका ही नुकसान होता है। दोहों में मानवीय मूल्यों से जुड़े हुए उदाहरण कवि ने दिए हैं।
कवि वृंदजी मानव को कुटिल व्यक्तियों के मुँह न लगने की सलाह देते हैं। साथ ही मनुष्य को निरंतर क्रियाशील रहने की बात बताते हैं। वृंदजी कहते हैं, ज्ञान देने से बढ़ता है-उसे अपने ही पास रखने से वह नष्ट हो जाता है। साथ ही सद्गुणों से ही व्यक्ति आदर का पात्र बनता है इस बात को स्पष्ट किया गया है। बिना गुणों के किसी को बड़प्पन नहीं मिलता। जिसमें बड्पप्पन के गुण होते हैं, उसी को मनुष्य बड़ा मनुष्य मानते हैं। गुणों के संदर्भ में वृंदजी कहते हैं कि जिसमें जैसे-गुण होते हैं, वैसे ही उसे लाभ मिलते हैं। साथ ही सोच-विचार करके संयमता से लिया हुआ काम सफलता की ओर ले जाता है। वे कहते हैं, बच्चों के अच्छे-बुरे लक्षण पालने में ही दिखायी देते हैं, जैसे-किसी पौधे के पत्तों को देखकर उसकी प्रगति का पता चलता है। इस प्रकार कवि वृंदजी ने जीवन के अनुभवों और वास्तविकता से परिचित करके मानव को नीतिपरक बातों की सीख दी हैं। साथ ही विधि प्रतीकों की उपमाओं के द्वारा अपनी बात को अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। आपकी सहज-सुंदर भाषा आपकी दोहों का प्रसादयुक्त गुण आपकी लोकभाषा से जुड़ी बात को स्पष्ट करने में सहायक होती है।
(घ) (i) उर्दू कविता का लोकप्रिय प्रकार गज़ल है।
(ii) वृंद जी की प्रमुख रचनाओं में- ‘वृंद सतसई’, ‘समेत-शिखर छंद’, ‘भाव पंचाशिका’, ‘हितोपदेश संधि’, ‘यमक सतसई’ आदि।
(iii) ‘चतुष्पदी’ चार चरणों वाले छंद होता है।
(iv) लोकगीतों की भाषा में ग्रामीण जनजीवन की बोली का स्पर्श रहता है।
10. विभाग – 3 विशेष अध्ययन
(क)
- (i) आज उस पथ से द्वारिका की युद्धधोन्मत्त सेनाएँ गुजर रही हैं, इसलिए राधा दूर हट जाए।
(ii) कृष्ण के सेनापतियों के वायुवेग से दौड़ने वाले रथों की ऊँची गगनचुंबी ध्वजाओं में यह नीची डाल अटकती है-इसलिए आम्रवृक्ष की डाल सदा के लिए काट दी जाएगी।
(iii) कनु सबसे ज्यादा राधा का है।
(iv) राधा को कनु के सैनिक बिल्कुल नहीं पहचानते।
- (i) गगनचुंबी-बहुत अधिक ऊँची।
(ii) अगणित-जिसकी गणना न की जा सके।
(iii) छायादार-सायादार, छाँव देने वाला।
(iv) अटकना-रूकावट डालना।
- अनेक प्रकार के वृक्ष इस पृथ्वी पर अंकुरित होते हैं। सभी वृक्ष मनुष्य के काम आते हैं। परन्तु कुछ वृक्ष ऐसे होते है, जिन्हें धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है। कुछ वृक्ष मनुष्य को औषधियाँ देते हैं। तो कुछ वृक्ष की पत्तियाँ धर्मिक कार्यों में उपयोगी होती हैं। कुछ वृक्षों की पूजा-अर्चना की जाती हैं। कुछ वृक्षों की लकड़ियों का उपयोग हवन में किया जाता है। तुलसी का पौधा तो बहुत ही उपयोगी सिद्ध
होता है। आँगन में तुलसी हमें ऑक्सीजन देने के साथ इसकी हम पूजा भी करते हैं। तुलसी-पत्र भी पूजा में विशेष अवसर पर उपयोग में लाए जाते हैं। बेल के पत्ते भगवान शंकर को अत्यन्त प्रिय होते हैं, इस कारण भक्त उन्हें बड़ी श्रद्धा के साथ अर्पित कर पूजा करते हैं। वट वृक्ष की पूजा सुहागिन स्त्रियाँ पति के दीर्घायु के लिए वट अमावस्या के दिन करती हैं। आम का वृक्ष भी शुभ माना जाता है। आम के पत्तों का कलश और तोरण में उपयोग होता है। साथ ही अशोक वृक्ष के पत्तों का भी तोरण भी उपयोग होता है।
सुपारी और नारियल को धार्मिक कार्यों में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। नारियल और सुपारी का वृक्ष पवित्र माना जाता है। इस प्रकार धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाले वृक्ष का जीवन में बहुत महत्व हैं।
(ख) (i) डॉ. धर्मवीर भारती रचित ‘कनुप्रिया’ आधुनिक मूल्यों का काव्य हैं। राधा-कृष्ण से प्यार करती हैं। और कृष्ण भी राधा से बहुत अधिक प्रेम करते हैं। परन्तु वे अब महाभारत के युद्ध के महानायक बने हुए हैं। राधा को यह युद्ध अब निरर्थक लगता है। क्योंकि राधा के अनुसार प्रेम ही जीवन की सार्थकता हैं। परन्तु कनु उसके प्रेम को सेतु बनाकर ही युद्ध के मैदान में उतरे हैं, ऐसा राधा को लगता है। राधा के दो रूप यहाँ दिखायी
देते हैं। अवचेतन मन में बैठी राधा और दूसरा रूप चेतनावस्था में स्थित राधा। अवचेतन मन में बैठी राधा चेतनावस्था में स्थित राधा को संबोधित करती हैं-कहती हैं कि राधा तू जहाँ श्रीकृष्ण को देवता समझकर प्रणाम करने के लिए आती थी, उस राह से अब तू मत जा। जिस राज से तू आती थी उस रास्ते से महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए श्रीकृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ जाने वाली हैं। उसी पथ से द्वारिका की उन्मत्त सेनाएँ जा रही हैं। कनु सबसे अधिक राधा का है। परन्तु उसके सैनिक राधा को पहचानते नहीं हैं। कनु भी राधा से इस समय अनभिज्ञ हो चुके हैं। जिस डाली पर बैठकर बंसी बजाकर राधा को पुकारते थे, वह आम की डाल सदा के लिए काट दी जाएगी क्योंकि वहाँ से कृष्ण के सेनापतियों के तेज गति वाले रथों की ऊँची पताकाओं में यह डाल अटकती है। यह महायुद्ध इतना प्रलयकारी बन चुका है कि सेना के स्वागत में यदि ग्रामवासी तोरण नहीं सजाएँगे तो कदाचित् यह ग्राम भी उजाड़ दिया जाएगा।
कनु के साथ राधा ने जो तन्मयता के गहरे क्षण बिताये हैं, वह कनु भूल चुके है; उस समय कृष्ण को केवल अपना वर्तमान अर्थात् महाभारत का निर्णायक युद्ध ही याद है। वे अब राधा के प्यार से अपरिचित होकर उससे दूर चले गए हैं। इस कारण राधा उदास होती है। परन्तु उसे उदास न होकर अपने महान प्रेमी के पास अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ होने का गर्व होना चाहिए।
(ii) ‘कनुप्रिया’ डॉ. धर्मवीर भारती रचित आधुनिक मूल्यों का काव्य है। राधा कृष्ण को कहती है कि-जो भी उन्होंने तन्मयता
के गहरे क्षण एक साथ गुजारे है, उसे कनु भावावेश या उसकी कोमल कल्पनाएँ या उन क्षणों को व्यक्त करने वाले शब्द निरर्थक परंतु आकर्षक शब्द हैं। और एक क्षण के लिए उसने यह मान लिया की महाभारत का युद्ध पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, न्याय-दंड, क्षमा-शील के बीच का युद्ध था। इसलिए इस युद्ध का होना इस युग का जीवित सत्य था। जिसके नायक कनु हैं। परन्तु राधा तो कनु की बावरी सखी है, मित्र है। कनु ने राधा को जितना ज्ञान, उपदेश दिया उतना ही अर्थात् स्नेहासिक्त ज्ञान ही उसने प्राप्त किया है। कनु प्रेम और साख्यभाव जितना राधा को दिया, उन सब को समेटकर भी राधा कनु के उदात्त और महान् कार्यों को समझ नहीं सकी हैं। कनु के प्रयोजन को वह समझ नहीं पायी है क्योंकि उसने कनु को सदैव तन्मयता के गहरे क्षणों में जिया है।
राधा कृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं-जिस यमुना नदी में वह स्वयं को निहारकर कनु के प्रेम में खो जाती थी, उस नदी में अब शस्त्रों से लदी असंख्य नौकाएँ न जाने कहाँ से आती हैं। राधा कहती है-ये गिद्ध जो चारों दिशाओं से उड़कर उत्तर दिशा की ओर जाते हैं; उनको तुम जैसे भटकी हुई गायों को बुलाते थे, वैसे बुलाते हैं। महाभारत के युद्ध के कर्णधार कनु स्वयं को समझते है, ‘ वहाँ कुरुक्षेत्र में, युद्ध के मैदान में, जहाँ गगन-भेदी युद्धघोष होता रहा, क्रंदन स्वर गूँजता रहा, अमानवीय, क्रूर घटनाएँ घटित हुई’-यह सब सार्थक है क्या कनु ? ऐसा प्रश्न राधा कनु को करती हैं।
राधा ने जितना भी उपदेश ज्ञान कनु से प्राप्त किया है, उतना ही उसे ज्ञान है। इसलिए राधा कनु के युद्ध के नायकत्व से परिचित नहीं होता है। ऐसा कहा गया है।
11. विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली
(अ) (i) फीचर लेखन की प्रक्रिया में निम्न चार सोपानों अथवा चरणों के आधार पर फीचर लिखा जाता है।
(1) प्रस्तावना-फीचर के विषय का संक्षिप्त परिचय प्रस्तावना में होता है। यह परिचय आकर्षक और विषयानुकूल होना चाहिए। इससे पाठकों के मन में फीचर पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत होती है। पाठक अंत तक फीचर से जुड़ा रहता है।
(2) विवरण अथवा मुख्य कलेवर-फीचर में विवरण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। फीचर में लेखक स्वयं के अनुभव लोगों से प्राप्त जानकारी और विषय की क्रमबद्धता रोचकता के साथ संतुलित तथा आकर्षक शब्दों में पिरोकर उसे पाठकों के सम्मुख रखता है। जिससे फीचर पढ़ने वाले को ज्ञान और अनुभव से संपन्न कर दें।
(3) उपसंहार-यह अनुच्छेद संपूर्ण फीचर का सार अथवा निचोड़ होता है। इसमें फीचर लेखक फीचर का निष्कर्ष भी प्रस्तुत कर सकता है अथवा कुछ अनुत्तरित प्रश्न पाठकों के ऊपर भी छोड़ सकता है। उपसंहार ऐसा होना चाहिए पाठक को विषय से सम्बन्धित ज्ञान भी मिल जाए और उसकी जिज्ञासा भी बनी रहे।
(4) शीर्षक-विषय का औचित्यपूर्ण शीर्षक फीचर की आत्मा है। शीर्षक संक्षिप्त, रोचक और जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। नवीनता, आकर्षकता और ज्ञानवृद्धि उत्तम शीर्षक के गुण हैं।
12. अथवा
- (i) भाषा का समयानुकूल प्रयोग ही कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ा देता है।
(ii) हास्य से भरा चुटकुला या कोई प्रसंग सुना देने से कार्यक्रम की रोचकता बनी रहती है।
(iii) उद्घोषक को किंग ऑफ वॉईस, संस्कृत शिरोमणि और अखिल आकाशवाणी जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
(iv) उद्घोषक शब्दों की दुनिया में रहता है।
2. (i) बोझिल-अलसाया
(ii) रोचकता-सरसता
(iii) गरिमा-महत्त्व
(iv) प्रेरणादायक-प्रेरणा देने वाली
- अच्छा उद्घोषक बनने के लिए कुछ गुणों का होना आवश्यक है। उद्घोषक को मिलनसार, हँसमुख हाजिर-जवाबी होने के साथ
विविध विषयों का जानकार होना चाहिए। भाषा पर प्रभुत्व होना चाहिए। इसके लिए निरंतर पढ़ते रहना आवश्यक है। पढ़ना, सुनना प्रेरणा देता है वही सूत्र संचालन का आधार स्तम्भ बना रहता है। सतर्कता, सहजता और उत्साहवर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं। उसकी वेशभूषा, केशसज्जा सहज और गरिमामयी होनी चाहिए। उसके शब्दों में उसका आत्मविश्वास और व्यक्तित्व दिखायी देता है। कार्यक्रम में रोचकता बनायी रखने के लिए उद्घोषक को प्रसंग के अनुसार चुटकुले, शायरी के अंश का प्रयोग करना आवश्यक है। इसके लिए निरंतर अध्ययन करते रहना आवश्यक है। इन उपर्युक्त बातों पर ध्यान देकर ही व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बनता है।
(ख) (i) सेवा धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। परन्तु लोग ऐसा समझते है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए तीर्थयात्रा जाना पड्ता है। लोग घर में वृद्धों और बच्चों को छोड़कर तीर्थयात्रा को निकल पड़ते हैं। भगवान के दर्शन तो मानव की सेवा में ही मिलते हैं। इस तथ्य से हमें परिचित होना चाहिए। परन्तु लोग सेवा को भुला रहे हैं। मानव की सेवा, प्राणिमात्र की सेवा करके ही मनुष्य की तीर्थयात्रा का फल मिलता है। वृद्धों की सेवा करके ही हमें फलरूपी मेवा मिलती है।
मानव मात्र की सेवा करके ही सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। मानव का मानव के प्रति सद्भाव ही मानवता है। मानव की आत्मा ही परमात्मा है। हमें परस्पर घृणा तिरस्कार को भूलकर ही मानवता के धर्म को अपनाना है। मनुष्य अपने साथ अगर कुछ ले जाता है तो सिर्फ अच्छे कर्म और लोगों की सच्ची सेवा। इन बातों को मानव को समझना होगा। सच्चे मन से अगर हम मानव सेवा करते हैं तो, हम बहुत आगे बढ़ सकते हैं और हर कोई हमें काम में सहयोग प्रदान करेगा अगर हम भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर जा रहे हों और कोई भूखा, प्यासा या निर्बल, अपाहिज आपसे मदद चाहता है, तो हमारा पहला कर्तव्य है उस अपाहिज, भूखे की मदद करें, क्योंकि मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। भगवान भी यही चाहते हैं कि, लोग एक-दूसरे की मदद करें तभी दुनिया में अच्छा परिवर्तन आएगा।
इस प्रकार पूरी निष्ठा के साथ की हुई मानव सेवा तीर्थयात्रा से बढ़कर ही होती है।
(ii) डॉ. विक्रम साराभाई को भारती या अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की संकल्पना डॉ. विक्रम साराभाई की ही है। जब उपग्रह को अंतरिक्ष में पहली बार भेजा गया तब किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि यान एक दिन मंगल के लिए जा सकेगा। भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत सीमित संसाधनों के साथ की थी। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 60 के दशक में शुरू हुआ था। एपल सैटेलाइट को 1981 में प्रक्षेपण के लिए बैलगाड़ी में ले गये थे।
बड़े वैज्ञानिक भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में योगदान दे चुके हैं। धरती की भू-चुंबकीय भूमध्य रेखा युवा से गुजरती है इसलिए सबसे पहले युवा को लाँचिग
सेंटर के तौर पर चुना गया था। भारत ने पहला रॉकेट 21 नवम्बर, 1963 को लाँच किया था। अर्थात् मंगल यान् से करीब 50 साल पूर्व यह एक नाईक-अपाचे रॉकेट था। 20 नवम्बर 1967 को भारत में बना पहला रॉकेट रोहिणी-75 लाँच किया गया था।
भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट 1975 में लाँच किया गया। प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोलविद् आर्यभट्ट के नाम पर इसका नाम रखा गया है। इसका वजन 360 किलोग्राम था। भारत का पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर- 1 था। इस उपग्रह का कैमरा जो तस्वीरें भेजता था। उन्हें वन, पानी और सागरों के अध्ययन में इस्तेमाल किया जाता था। चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज चंद्रयान ने ही की थी। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में चंद्रयान का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
भारत ने सबसे शक्तिशाली स्वदेश निर्मित अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह जी सैट- 19 को भूस्थिर अंतरिक्ष प्रक्षेपण का वाहन मार्क-III के जरिए प्रक्षेपित किया। इससे पहले भारत ने 5 मई को पहला दक्षिण एशिया उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़कर कामयाबी हासिल की थी। दिसम्बर 2014 में संचार उपग्रह जी सैट- 16 का प्रक्षेपण किया गया । दूसरों ने 2015 में जी सैट- 15 संचार उपग्रह और विभिन्न तरंग लंबाई वाले अंतरिक्ष प्रक्षेपण उपग्रह एस्ट्रोसैट को आकाश में छोड़ा। 2018 के प्रारंभ में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का दो चंद्र अभियान शुरू किया। चंद्रयान- 2 इससे पहले के चंद्रयान- 1 का परिष्कृत संस्करण होगा। इसके बाद संभवत: 2021-22 में एक बार फिर से इसरो मंगल का रूख करेगा और मंगलयान-2 नाम का दूसरा मंगल आर्बिटर मिशन अंतरिक्ष में भेजेगा। इस प्रकार पिछले दशकों में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने प्रगतिशील कार्य किया है।
13. अथवा
(i) सूत्र संचालन में तो भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(ii) जीवों द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने की क्रिया एक साधारण रासायनिक क्रिया है इसे सिद्ध करने वाले स्पैलेंजनी हैं।
(iii) फीचर लेखन की प्रक्रिया के मुख्य तीन अंग है।
(iv) ब्लॉग लेखन शुरू करने की प्रक्रिया के संदर्भ में विस्तृत जानकारी ‘गूगल’ पर उपलब्ध है।
(इ)
- (i) गुरुदेव श्रीनिकेतन में बड़े आनंद से रहते थे।
(ii) गुरुदेव ने उनके कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरने पर उसने आँखे मूँदकर अपने रोम-रोम से स्नेह रस का अनुभव किया।
(iii) गुरुदेव ने कुत्ते को लक्ष्य करके ‘आरोग्य’ में इस भाव की एक कविता लिखी थी।
(iv) कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने भाषा हीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव सत्य को देखा, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
- (i) रोम-रोम
(ii) धीरे – धीरे
(iii) भीड़-भाड़
(iv) छेड़-छाड़
- गुरुदेव मूलतः प्रकृति-प्रेमी थे। साथ ही उनको संगीत, साहित्य, चित्रकला जैसी विभिन्न कलाओं में रुचि थी। रविन्द्रनाथ जी को बचपन में अपने पिता के साथ हिमालय और विभिन्न स्थानों पर घूमने का अवसर मिला। इसलिए ‘गीतांजलि’ और अन्य प्रमुख काव्य रचनाओं में गुरुदेवजी ने प्रकृति का मोहक और जीवंत चित्रण किया है। वे अत्यधिक घूमते थे इस कारण वे प्रकृति के नजदीक आए थे। वे प्रकृति के गोद में ही पले-बढ़े हुए है। इसलिए उनके मन पर प्रकृति का गहरा प्रभाव है। प्रकृति से उन्हें बड़ा लगाव था। हिमालय पर्वत की सुंदरता और भव्यता देखकर वे हर्ष से फूले नहीं समाते थे। उनकी कहानी-कथाओं में वर्षा ऋतु, वर्षा ऋतु का आकाश, छायादार गाँव, वर्षा से भरे धान के लहराते खेत, नदियाँ आदि का जीवंत वर्णन मिलता है। गुरुदेवजी के मतानुसार, प्रकृति के
कण-कण में, रंग-बिरंगे फूलों में, रसदार फूलों में, रंग-बिरंगे दृशयों में सभी में ब्रह्म का अस्तित्व विद्यमान है। गुरुदेवजी को बंगाल की पद्मा नदी अधिक प्रिय थी, उन्हें बंगाल के ग्रामांचल से अत्यधिक प्रेम था। वर्षा ऋतु के आगमन पर वे चाहे जहाँ भी रहे सदैव शांति निकेतन आकर रहना पसंद करते थे। इस प्रकार उनका प्रकृति प्रेम देखकर वे प्रकृति के बेहद चाहने वाले थे इस बात से हम परिचित होते हैं।
(घ) (i) न्यायाधीश
(ii) स्थगन
(iii) शिखर बैंक
(iv) बकाया
(v) लेन-देन
(vi) मौसम विज्ञान
(vii) अभिलेख
(viii) एकीकृत परिपथ
14. विभाग – 5 व्याकरण
(क) (i) लोगों को आगरा से बाहर जाते देखा था।
(ii) नए मूल्यों का पर्याय नहीं होगा।
(iii) द्विवेदी साहब ने अपने वचन का पालन किया है।
(iv) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होगी।
(ख) (i) रूपक अलंकार
(ii) उपमा अलंकार
(iii) उत्त्रेक्षा अलंकार
(iv) अतिश्योक्ति अलंकार।
(ग) (i) श्रृंगार रस
(ii) शांत रस
(iii) अद्भुत रस
(iv) रौद्र रस
(घ) (i) ब्रह्यानंद में लीन होना-अलौकिक आनंद का अनुभव करना। वाक्य-गायिका लताजी का गाना सुनकर श्रोता ब्रह्मानंद में लीन हो जाते थे।
(ii) आगाह करना-सूचित करना।
वाक्य-आरोग्य विभाग ने संपूर्ण महाराष्ट्र को कोरोना से बचाव के लिए ‘मास्क को लगाने के लिए आगाह किया है।’
(iii) सिर से पानी गुजर जाना-सहने की शक्ति समाप्त हो जाना। वाक्य-रामू मालिक को जवाब देकर नौकरी छोड़कर चला गया, क्योंकि मालिक की गालियाँ सुनकर अब उसे लगा कि सिर से पानी गुजर गया है।
(iv) नसीब होना-प्राप्त होना।
वाक्य-दिन-रात मेहनत करके भी गोपाल के परिवार को महँगाई के कारण दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता था।
(ङ) (i) दिलीप अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।
(ii) शेष आप इस लिफाफे को खोलकर पढ़ लीजिए।
(iii) निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा है।
(iv) पुस्तकों का ढेर देख में दंग रह गया।