SSC HINDI ENTIRE MARCH 2022 solved paper

MARCH 2022

HINDI (ENTIRE)

विभाग 1 -गद्य : 20 अंक

  1. (अ) निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

दर्द के मारे एक तो मरीज को वैसे ही नींद नहीं आती, यदि थोड़ी-बहुत आ भी जाए तो मिलने वाले जगा देते हैं-खास कर वे लोग जो सिर्फ औपचारिकता निभाने आते हैं। इन्हें मरीज से हमदर्दी नहीं होती, ये सिर्फ सूरत दिखाने जाते हैं। ऐसे में एक दिन मैंने तय किया कि आज कोई भी आए, मैं आँख नहीं खोलूँगा। चुपचाप पड़ा रहूँगा। ऑफिस के बड़े बाबू आए और मुझे सोया जानकर वापस जाने के बजाय वे सोचने लगे कि यदि मैंने उन्हें नहीं देखा तो कैसे पता चलेगा कि वे मिलने आए थे। अतः उन्होंने मुझे धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया। फिर भी जब आँखें नहीं खुर्ली तो उन्होंने मेरी टाँग के टूटे हिस्से को जोर से दबाया। मैंने दर्द के मारे कुछ चीखते हुए जब आँख खोली तो वे मुस्कराते हुए बोले-“कहिए, अब दर्द कैसा है ? मुहल्लेवाले अपनी फुरसत से आते हैं। उस दिन जब सोनाबाई अपने चार बच्चों के साथ आई तो मुझे लगा कि आज फिर कोई दुर्घटना होगी। आतें ही उन्होंने मेरी ओर इशारा करते हुए बच्चों से कहा-“ये देखो चाचा जी!” उनका अंदाज कुछ ऐसा था जैसे चिड़ियाघर दिखाते हुए बच्चों से कहा जाता है-“ये देखो बंदर।”

(1) लिखिए :

औपचारिकता निभाने वालों की विशेषताएँ :

(i) ……………………..

(ii) ……………………..

(2) आकृति में लिखिए :

लेखक ने तय किया

……………………………………… ………………………………………

(3) (1) गद्यांश में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढ़कर लिखिए :

(i) ……………………………………… (ii) ………………………………………

(2) लिखिए :

वचन परिवर्तन लिंग परिवर्तन

……………………….. ………………………………

(4) ‘मरीज से मिलने जाते समय कौन-कौन-सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

(आ) निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

अम्मा बताती हैं-हमारी शादी में चढ़ावे के नाम पर सिर्फ पाँच ग्राम सोने के गहने आए थे, लेकिन जब हम विदा होकर रामनगर आए तो वहाँ उन्हें मुँह दिखाई में गहने मिले। सभी नाते-रिश्तेवालों ने कुछ-न-कुछ दिया था। जिन दिनों हम लोग बहादुरगंज के मकान में आए, उन्हीं दिनों तुम्हारे बाबू जी के चाचा जी को कोई घाटा लगा था। किसी तरह से बाकी का रुपया देने की जिम्मेदारी हम पर आ पड़ी-बात क्या थी, उसकी ठीक से जानकारी लेने की जरूरत हमने नहीं सोची और न ही इसके बारे में कभी कुछ पूछताछ की। एक दिन तुम्हारे बाबू जी ने दुनिया की मुसीबतों और मनुष्य की मजबूरियों को समझाते हुए जब हमसे गहनों की माँग की तो क्षण भर के लिए हमें कुछ वैसा लगा और गहना देने में तनिक हिचकिचाहट महसूस हुई पर यह सोचा कि उनकी प्रसन्ता में हमारी खुशी है, हमने गहने दे दिए। केवल टीका, नथुनी, बिछिया रख लिए थे। वे हमारे सुहागवाले गहने थे। उस दिन तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, पर दूसरे दिन वे अपनी पीड़ा न रोक सके। कहने लगे-“तुम जब मिरजापुर जाओगी और लोग गहनों के संबंध में पूछेंगे तो क्या कहोगी?”

(1) (i) आकृति में लिखिए :

(ii)

(2) निम्नलिखित वाक्य उचित क्रम लगाकर लिखिए :

(i) मुँह दिखाई में गहने मिले।

(ii) बाबू जी अपनी पीड़ा न रोक सके।

(iii) विदा होकर रामनगर आना।

(iv) पाँच ग्राम सोने के गहने आना।

(3) वचन परिवर्तन करके लिखिए :

(i) रिश्ता –

(ii) दिन –

(iii) शादी –

(iv) मुसीबत –

(4) ‘पारिवारिक सुख-दुख में प्रत्येक का सहभाग’ इस विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए।

(इ) निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

उन दिनों बापू की हिन्दी अच्छी नहीं थी, पर वे अपनी अट-पट वाणी में ही अपना सारा आशय कह डालते थे। वे शब्दों में बोलते कहाँ थे, उनका हृदय बोलता था। उनका व्यक्तित्व बोलता था, उनकी साधना बोलती थी और उनके बोल हृदय में घुल जाते थे, कान बेकार खड़े रहते थे। में बहुत दिन यही समझता रहा कि ‘वक्त के साथ दगाबाजी’ बापू की अट-पटी हिन्दी का एक नमूना है। पता नहीं, वे क्या कहना चाहते थे और हिन्दी में उनको यही शब्द सुलभ हो पाए। पर जब सोचता हूँ बापू बिल्कुल यही कहना चाहते थे और जो वे कहना चाहते थे, उसको दूसरे शब्दों में नहीं कहा जा सकता। एक शब्द एक मात्रा से कम नहीं। बापू बनिया थे, अपने बनियेपन पर उन्हें गर्व था। शायद शब्दों के मामले में वे सबसे अधिक बनिये थे। न जरूरत से ज्यादा न जरूरत से कम। और हर शब्द सच्चा, खरा यथार्थ भरा।

(1) संजाल पूर्ण कीजिए :

(2) ‘वाणी का महत्व’ इस विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर (अ)

(1) (i) इन्हें मरीज से हमदर्दी नहीं होती।

(ii) ये सिर्फ सूरत दिखाने आते हैं।

(2)

आज कोई भी आए मैं आँख नहीं खोलूँगा चुपचाप पड़ा रहूँगा।

(3) (1) (i) थोड़ी-बहुत

(ii) धीरे-धीरे

(2) वचन परिवर्तन

लिंग परिवर्तन

बच्चे बच्चा बच्ची

(4) कभी-न-कभी हम सभी को मरीजों से मिलने जाना पड़ता है। हमें मरीज से मिलने का समय निश्चित करके ही मिलने जाना चाहिए, ताकि हमारी वजह से उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुँचे। छोटे बच्चों को साथ न ले जाएँ। यदि कोई पर्याय नहीं है, तो बच्चों को मरीज से दूर रखें। बच्चों को कोई संक्रमण न हो और बच्चों की शरारत से मरीज को भी नुकसान न हो, इस बात का ख्याल रखना आवश्यक है।

मरीज से आवश्यक और तसल्ली भरी बातें करनी चाहिए। आवाज ऊँची न हो और स्वर में विनम्रता होनी चाहिए। हमारी बातों से मरीज का हौंसला बढ़े, ऐसी बातें करनी चाहिए। अर्थात् मरीज से हमेशा सकारात्मक और प्रोत्साहन देने वाली बाते करें। मरीज के लिए स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सामग्री, फल, फूल साथ में लेकर जाने चाहिए। साथ ही आवश्यक रुपए-पैसे भी साथ में लेकर जाने चाहिए। इस प्रकार सामाजिक शिष्टाचार और अनुशासन का पालन करते हुए हमें मरीज से मिलने जाना चाहिए। इस प्रकार की सावधानियाँ बरतना अत्यन्त आवश्यक है।

(आ) (1) (i)

टीका—- सुहागवाले गहने बिछिया

(ii)

(2) (i) पाँच ग्राम सोने के गहने आना।

(ii) विदा होकर रामनगर आना।

(iii) मुँह दिखाई में गहने मिले।

(iv) बाबूजी अपनी पीड़ा न रोक सके।

(3) (i) रिश्ता – रिश्ते

(ii) दिन – दिन

(iii) शादी – शादियाँ

(iv) मुसीबत – मुसीबतें

(4) परिवार में सुख के क्षण का जिस प्रकार परिवार का प्रत्येक सदस्य आनंद लेता है, वैसे ही परिवार पर आई किसी मुसीबत का, संकट का सामना हर व्यक्ति को मिलजुल कर करना चाहिए। आर्थिक विपत्ति हो या किसी की गंभीर बीमारी, सबको मिल-जुलकर उस समस्या का सामना करके हल निकालना चाहिए। पारिवारिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरपूर होता है। पारिवारिक एकता व्यक्ति को जिम्मेदार, कामयाब बनाने के साथ ही परेशानी और तनाव में लड़ने की ताकत देती है।

जिन परिवारों में रिश्तों के बंधन मजबूत होते हैं, वे बीमारियों से दूर और अधिक स्वस्थ रहते हैं। पारिवारिक एकता खुशी के साथ-साथ हमें उन्नति की ओर बढ़ाती है। सुख-दुःख में प्रत्येक का सहभाग होने से परिवार में हमेशा एक प्रेरण बनी रहती है, जो घर के सदस्यों को अच्छे कामों के साथ ही सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

(इ) (1)

(2) ‘वाणी’ से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती है। वाणी की मधुरता हद्य-द्वार खोलने की कुंजी है। वार्तालाप की शिष्टता मनुष्य को आदर का पात्र बनाती है और समाज में उसकी सफलता के लिए रास्ता साफ कर देती है। मधुर वाणी बोलने से सुनने वाले के मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट हो जाते हैं साथ ही, हमारा अंतःकरण भी प्रसन्न हो जाता है।

मीठी वाणी से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। वाणी एक अनमोल वरदान है। कटु भाषा का प्रयोग काम को बिगाड़ देता है। जहाँ मधुर वाणी अमृत है वहीं कटु वाणी विष है। वाणी के बिना सबकुछ सूना है। मीठी वाणी का प्रभाव बहुत व्यापक होता है। मृदुभाषी व्यक्ति समाज में सद्भावना का प्रसार करता है। इस प्रकार वाणी व्यक्ति का आभूषण है।

विभाग 2-पद्य : 12 अंक

  1. (अ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।

दामिनि दमक रहहिं घन मार्ही। खल कै प्रीति जथा थिर नार्ही।।

बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विदया पाएँ।।

बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे।।

छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई।।

भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी।

समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा।।

सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई।।

(1) लिखिए :

पद्यांश में आए जल स्रोत-

(i) ………………………………………

(ii) ………………………………………

(iii) ………………………………………

(iv) ………………………………………

(2) निम्न शब्दों के लिए पद्यांश में प्रयुक्त समानार्थी शब्द लिखिए :

(i)

(ii)

(iii)

(iv)

(3) उपर्युक्त पद्यांश की अंतिम चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए।

(आ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न हददय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव। वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान। जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।

(1) उचित जोड़ियाँ मिलाकर लिखिए :

अ आ

(i) …………………….. ……………………..

(ii) …………………….. ……………………..

(iii) …………………….. ……………………..

(iv) …………………….. ……………………..

(2) (i) उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर नये शब्द लिखिए :

(ii) निम्न शब्दों के लिए पद्यांश में आए विलोमार्थी शब्द लिखिए :

(i) अज्ञान ………………………………………

(ii) दानव ………………………………………

(3) पद्यांश की प्रारंभिक चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए।

उतर (अ)

(i) घन

(ii) नदी

(iii) तालाब

(iv) समुद्र

(2)

(i)

(ii)

(iii)

(iv)

(3) छोटी नदियाँ वर्षा के जल से भरकर अपने किनारों को तोड़ती हुईं आगे बढ़ती जा रही हैं, जैसे मामूली धन पाकर भी दुष्ट लोग इतराने लगते हैं। पृथ्वी पर गिरते ही पानी गंदा हो गया है, मानो प्राणी से माया लिपट गई हो। वर्षा का पानी एकत्र होकर तालाबों में भर रहा है, जैसे एक-एक कर सद्गुण सज्जन व्यक्ति के पास चले आते हैं। नदी का पानी समुद्र में आकर उसी प्रकार स्थिर हो जाता है जिस प्रकार जीव हरि को प्राप्त कर स्थिर हो जाता है।

(आ) (1)

अ आ

(i) हृय तेज

(ii) भुजा शक्ति

(iii) संचय दान

(iv) अतिथि देव

(2) (i)

उपसर्गयुक्तनम्रप्रत्यययुक्त
विनम्रनम्रता

(ii) (i) अज्ञान ज्ञान

(ii) दानव देव

(3) भारत के लोग सदा से चरित्रवान रहे हैं। हमारी भुजाओं में भरपूर शक्ति रही है। भारतीयों में वीरता की कभी कमी नहीं रही। साथ ही, नम्रता सदा हमारा गुण रहा है। हमने कभी अपनी उपलब्धियों पर घमंड नहीं किया। हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व रहा है। हम कभी किसी को दुःखी नहीं देख सके। दीन-दु:खियों की सेवा करने के लिए हम भारतीय सदैव तत्पर रहते हैं।

हम यदि धन और संपत्ति का संग्रह करते भी थे, तो दान के लिए करते थे। दानवीरता भारतीयों का गुण रहा है। हमारे देश में अतिथियों को सदा देवता के समान माना जाता था। भारत के लोग सत्य बोलना अपना धर्म मानते थे। हमारे हदयय में तेज था, गौरव था। हम सदा अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहते थे। ‘प्राण जाए, पर वचन न जाए’ हमारा जीवनमूल्य रहा है।

विभाग 3-पूरक पठन : 8 अंक

  1. (अ) निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

रात का समय था। बुद्धिराम के द्वार पर शहनाई बज रही थी और गाँव के बच्चों का झुंड विस्मयपूर्ण नेत्रों से गाने का रसास्वादन कर रहा था। चारपाइयों पर मेहमान विश्राम कर रहे थे। दो-एक अंग्रेजी पढ़े हुए नवयुवक इन व्यवहारों से उदासीन थे। वे इस गँवार मंडली में बोलना अथवा सम्मिलित होना अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझते थे।

आज बुद्धिराम के बड़े लड़के मुखराम का तिलक आया था। यह उसी का उत्सव था। घर के भीतर स्त्रियाँ गा रही थीं और रूपा मेहमानों के लिए भोजन के प्रबंध में व्यस्त थी। भट्टियों पर कड़ाह चढ़ रहे थे। एक में पूड़ियाँ-कचौड़ियाँ निकल रही थीं, दूसरे में अन्य पकवान बन रहे थे। एक बड़े हंडे में मसालेदार तरकारी पक रही थी। घी और मसाले की क्षुधावर्धक सुगंध चारों ओर फैली हुई थी।

(1) एक-दो शब्दों में उत्तर लिखिए-

(i) इसका तिलक आया था –

(ii) द्वार पर बज रही थी –

(iii) बड़े हंडे में पक रही थी –

(iv) चारपाइयों पर विश्राम कर रहे थे –

(2) ‘सांस्कृतिक परंपरा के संवर्धन में हमारा योगदान’ इस विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।

(आ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

घना अँधेरा

चमकता प्रकाश

और अधिक

करते जाओ

पाने की मत सोचो

जीवन सारा।

जीवन नैया

मँझदार में डोले

सँभाले कौन

रंग-बिरंगे

रंग-संग लेकर

आंया फागुन।

(1) ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हों :

(i) जीवन नैया –

(ii) फागुन –

(2) ‘जीवन एक संघर्ष है’ इस पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।

उत्तर (अ)

(1) (i) इसका तिलक आया था – मुखराम

(ii) द्वार पर बज रही थी – शहनाई

(iii) बड़े हंडे में पक रही थी – मसालेदार तरकारी

(iv) चारपाइयों पर विश्राम कर रहे थे – मेहमान

(2) हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान होती है। भारतीयों में अनेक तीर्थस्थानों को पवित्र माना जाता है साथ ही, त्योहारों को उत्साह और परंपरा के साथ मनाने में आज भी लोग अपनी उत्कंठा दिखाते हैं। यह परम्परा आज भी विद्यमान है। इसमें हर एक का योगदान महत्वपूर्ण है। भारतीय संस्कृति का अनुसरण करते हुए हम इस परंपरा को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

विविध भारतीय त्योहारों को हमें पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर मनाना जरूरी है तभी तो हमारी आने वाली पीढ़ी इस बारे में जान पायेगी और हमारी सांस्कृतिक परंपरा को आगे बढ़ाने में सक्षम होगी। इसलिए हमें अपनी अगली पीढ़ी को सीख देने के लिए विविध त्योहारों का महत्व, बड़े संतो-महात्माओं की जयंती मनाने का महत्व समझना होगा।

(आ) (1) (i) मँझदार में क्या डोल रहा है ? (ii) रंग-बिरंगे रंग लेकर कौन-सा महीना आया है ?

(2) जीवन में बिना संघर्ष बहुत कम लोगों को सफलता प्राप्त होती है। संघर्ष जीवन की एक कसौटी है, जो अंत में विजय का द्वार खोलती है और समस्या का समाधान करती है। हमें संघर्ष से नहीं डरना चाहिए। जीवन में हमें कभी प्रकृति के साथ, तो कभी स्वयं के साथ, तो कभी परिस्थितियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है, जूझना पड़ता है। संघर्षों का सामना करने में हमें कतराना नहीं चाहिए। तभी जीवन भी हमारा साथ देगा। अगर हम संघर्ष कर रहे हैं, तो समझ लीजिए हमारी सफलता बहुत करीब है।

विभाग 4 -भाषा अध्ययन (व्याकरण) : 14 अंक

  1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

(1) निम्नलिखित वाक्य के अधोरेखांकित शब्द का शब्दभेद पहचानकर लिखिए :

आज फिर उसे साक्षात्कार के लिए जाना है।

(2) निम्नलिखित अव्ययों में से किसी एक अव्यय का अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(i) क्योंकि
(ii) पास

(3) कृति पूर्ण कीजिए :

शब्दसंधि-विच्छेदसंधि भेद
.परा + अर्थ.
अथवा
सदाचार

(4) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक वाक्य की सहायक क्रिया पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए :

(i) फाटक से पहले ही गाड़ी रोक दी।

(ii) नौकरी के लिए आवेदन कर चुका।

सह्मयक क्रियामूल क्रिया
.………………………….

(5) निम्नलिखित में से किसी एक क्रिया का प्रथम तथा द्वितीय प्रेरणार्थक रूप लिखिए :

क्रियाप्रथम प्रेरणार्थक रूपद्वितीय प्रेरणार्थक रूप
(i) देखना…………………………….
(ii) भूलना……………………………..…..

(6) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक मुहावरे का अर्थ लिखकर उचित वाक्य में प्रयोग कीजिए :

मुहावराअर्थवाक्य
(i) दाद देना…………………
(ii) मुँह लाल होना…..

अथवा

अधोरेखांकित वाक्यांश के लिए कोष्ठक में दिए मुहावरों में से उचित मुहावरे का चयन करके कक्य किर से लिखिए :

(काँप उठना, बोलबाला होना)

सार्वजनिक अस्पताल का खयाल आते ही मैं भयभीत हो गया।

(7) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक वाक्य में प्रयुक्त कारक पहचानकर उसका भेद लिखिए :

(i) टॉल्स्टॉय और चेखव की रचनाएँ भी मुझे प्रिय हैं।

(ii) रूपा उस समय कार्य भार से उद्विग्न हो रही थी।

कारक चिह्नकारक भेद
……………..

(8) निम्नलिखित वाक्य में यथास्थान उचित विराम चिहनों का प्रयोग करके वाक्य फिर से लिखिए :

ओह कंबख्त ने कितनी बेदर्दी से पीटा है।

(9) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो वाक्यों का सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए :

(i) मेरी सबसे छोटी बहन पहली बार ससुराल जाएगी। (अपूर्ण भूतकाल)

(ii) प्राण को मन से अलग करना पड़ा। (सामान्य भविष्यकाल)

(iii) इसने मुझे बहुत प्रभावित किया। (पूर्ण वर्तमानकाल)

(10) (i) निम्नलिखित वाक्य का रचना के आधार पर भेद पहचानकर लिखिए :

बाबू जी का एक तरीका था, जो अपने आप आकर्षित करता था।

(ii) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक वाक्य का कोष्ठक में दी गई सूचनानुसार परिवर्तन कीजिए :

(1) लिखने से पहले तो मैंने पढ़ना शुरू किया था। (निषेधार्थक वाक्य)

(2) क्या लोग पहाड़ों पर घूमने का शौक रखते हैं ? (विधानार्थक वाक्य)

(11) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके वाक्य फिर से लिखिए :

(i) पिताजी ने आंदोलनों से भाग लेने से रोकी।

(ii) यह पसिना किसलिए बहाई है?

(iii) मैं ड्राइवर से बुला लाए।

उत्तर (4) (1) पुरुषवाचक सर्वनाम।

(2) (i) क्योंकि – माँ ने श्याम को मारा, क्योंकि वह अभ्यास नहीं कर रहा था।

(ii) पास – गीता की किताब नीता के पास है।

(3)

शब्दसंधि-विच्छेदसंधि भेद
परार्थपरा + अर्थदीर्घ संधि
अथवा
सदाचारसत् + आचारव्यंजन संधि

(4)

सहायक क्रियामूल क्रिया
(i) दीदेना
(ii) चुकाचुकना

(5)

क्रियाप्रथम प्रेरणार्थक रूपद्वितीय प्रेरणार्थक रूप
(i) देखनादिखानादिखवाना
(ii) भूलनाभुलानाभुलवाना

(6) (i) दाद देना-प्रशंसा करना।

वाक्य प्रयोग-सुयश द्वारा क्रिकेट मैच में की गई शानदार बल्लेबाजी से उसकी टीम जीत गई, सब उसकी बल्लेबाजी की दाद देने लगे।

(ii) मुँह लाल होना-अत्यधिक गुस्सा होना।

वाक्य प्रयोग-रमेश अपनी माँ से बदतमीजी से बात कर रहा था, तब पिताजी का मुँह गुस्से से लाल हो रहा था।

अथवा

सार्वजनिक अस्पताल का खयाल आते ही मैं काँप उठा।

(7)

कारक चिहूनकारक भेद
(i) कीसंबंध कारक
(ii) सेकरण कारक

(8) “ओह ! कम्बखत ने कितनी बेदर्दी से पीटा है।

(9) (i) मेरी सबसे छोटी बहन पहली बार ससुराल जा रही थी।

(ii) प्राण को मन से अलग करना पड़ेगा।

(iii) इसने मुझे बहुत प्रभावित किया है।

(10) (i) मिश्र वाक्य।

(ii) (1) लिखने से पहले तो मैंने पढ़ना शुरू नहीं किया था।

(2) लोग पहाड़ों पर घूमने का शौक रखते हैं।

(11) (i) पिताजी ने आंदोलन में भाग लेने से रोका।

(ii) यह पसीना किस कारण बहाया है?

(iii) मैं ड्राइवर को बुला लाया।

विभाग 5-रचना विभाग (उपयोजित लेखन) : 26 अंक

सूचना : आवश्यकतानुसार परिच्छेदों में लेखन अपेक्षित है।

  1. सूचनाओं के अनुसार लेखन कीजिए :

(अ) (1) पत्र लेखन :

निम्नलिखित जानकारी के आधार पर पत्र लेखन कीजिए :

उमा/उमेश, 205, नेहरू मार्ग, पुणे से ‘नंदनवन कॉलोनी’ सातारा में रहने वाले छोटे भाई मंगेश को राज्यस्तरीय निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने के उपलक्ष्य में बधाई देते हुए पत्र लिखता/लिखती है।

अथवा

शुभम/शुभांगी, 45 , गणेश नगर, जलगाँव से व्यवस्थापक, मीरा पुस्तक भंडार, नेताजी मार्ग, नासिक को हिंदी पुस्तकों की माँग करते हुए पत्र लिखता/लिखती है।

(2) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए, जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हों :

सर सी. वी. वेंकटरमन भारत के उन महान वैज्ञानिकों में से हैं, जिन्हें उनकी ‘रमन प्रभाव’ की खोज के लिए जाना जाता है। भारत रत्न सी. वी. वेंकटरमन को 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

उनका जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ। वे चंद्रशेखर अय्यर तथा पार्वती अमाल की दूसरी संतान थे। रमन के पिता गणित के प्रोफेसर थे। उनके पिता विशाखापट्टनम में ए. वी. एन. कॉलेज में नियुक्त हुए तो पूरा परिवार वहीं चला गया।

अल्पायु से ही रमन की शैक्षिक प्रतिभा सामने आने लगी। ग्यारह वर्षीय रमन ने ए. वी. एन. कॉलेज में दाखिला लिया। इसके दो वर्ष बाद ही वे मद्रास के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ने गए। उन्होंने भौतिकी एवं अंग्रेजी में ऑनर्स के साथ बी. ए. की डिग्री हासिल की। उस समय एकेडमिक पढ़ाई में अच्छे छात्र उच्च शिक्षा पाने के लिए विदेश जाते थे। किन्तु वे गिरती सेहत की वजह से नहीं जा पाए अतः उसी कॉलेज में पढ़ते रहे और उन्होंने एम. ए. ऑनर्स की डिग्री ली।

(आ) (1) वृत्तांत लेखन :

नेताजी विद्यालय, औरंगाबाद में मनाए गए ‘स्वच्छता अभियान’ का 60 से 80 शब्दों में वृत्तांत लेखन कीजिए। (वृत्तांत में स्थल, काल, घटना का उल्लेख होना अनिवार्य है।)

अथवा

कहानी लेखन :

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 70 से 80 शब्दों में कहानी लिखकर उचित शीर्षक दीजिए तथा सीख लिखिए :

मोहन और माता-पिता – सुखी परिवार – मोहन हमेशा मोबाइल पर – कान में इयरफोन – माता-पिता का मना करना – मोहन का ध्यान न देना – सड़क पार करना – कान में इयरफोन – दुर्घटना – सीख।

(2) विज्ञापन लेखन :

निम्नलिखित जानकारी के आधार पर 50 से 60 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए :

विषाणुओं से रक्षाभारत में निर्मित
निर्मल सैनिटाइजर:
विभिन्न रंग और गंधसंपर्क व पता

(इ) निबन्ध लेखन :

निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 80 से 100 शब्दों में निबंध लिखिए :
(1) मेरा प्रिय त्योहार
(2) नदी की आत्मकथा
(3) यदि मैं अध्यापक होता

उत्तर (अ)

प्रिय भाई,

मधुर प्यार।

हम सब यहाँ कुशलपूर्वक हैं तथा ईश्वर से तुम्हारी कुशलता की कामना करती हूँ। मुझे कल ही तुम्हारे राज्यस्तरीय निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने का समाचार मिला। मुझे यह खबर सुनकर बहुत खुशी हुई तथा जिस आनंद और गर्व का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। तुमने राज्यस्तरीय निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। यह सब तुम्हारे कठिन परिश्रम का फल है। कठिन परिश्रम से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिये तुम्हें बहुत-बहुत बधाई।

मैं भगवान् से प्रार्थना करती हूँ कि तुम जीवन में आगे भी सफलता प्राप्त करते रहो। मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं। तुम प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहो।

तुम्हारी बहन

उमा

205, नेहरू मार्ग,

पुणे

दिनांक-30 मार्च,

अथवा

दिनांक :

सेवा में,

व्यवस्थापक,

मीरा पुस्तक भंडार,

नेताजी मार्ग

नासिक-422004

विषय-हिन्दी पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।

माननीय महोदय,

कृपया निम्नलिखित पुस्तकें निम्नलिखित पते पर शीघ्र भेजने का कष्ट करें। इस पत्र के साथ 500/- के ड्रॉफ्ट की अग्रिम राशि भिजवा रहा हूँ। पुस्तकें भेजते समय इस बात पर ध्यान दें कि किताबें फटी न हों और नए संस्करण की हों।

हिन्दी पुस्तकों के नाम :

  1. हिन्दी व्याकरण कक्षा 6 प्रतियाँ
  2. पद्मावत 9 प्रतियाँ
  3. रामचरितमानस 5 प्रतियाँ
  4. शतरंज के खिलाड़ी 10 प्रतियाँ

धन्यवाद !

भवदीय

शुभम्

45 , गणेश नगर

जलगाँव

(2) (i) भारत रत्न सी. वी. वैंकटरमन को कब और कौन-सा पुरस्कार प्रदान किया गया ?

(ii) सी.वी. वेंकटरमन का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

(iii) रमन के पिता कहाँ और कौन-से कॉलेज में नियुक्त हुए ?

(iv) रमन मद्रास के कौन-से कॉलेज में पढ़ने गए ?

(आ) (1) वृत्तांत लेखन

कल 15 मार्च, 2022 को होली के अवसर पर नेताजी विद्यालय औरंगाबाद की ओर से ‘स्वच्छता अभियान’ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विद्यालय के छात्रों ने विद्यालय का परिसर व सभी वर्गों के कमरों की साफ-सफाई की। साथ ही आसपास का क्षेत्र, विद्यालय का प्रांगण भी साफ किया। कक्षाओं में रंग-रोगन, सजावट से मेहमानों को आकर्षित किया।

इस अवसर पर विद्यालय के प्रांगण में एक समारोह का भव्य आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में विद्या मंदिर विद्यालय के प्रधानाचार्य को बुलाया गया था। उन्होंने इस अभियान में सहभागी शिक्षकों और छात्रों की तारीफ की। साथ ही नेताजी विद्यालय के मुख्याध्यापक श्री हर्षद देसाई ने अतिथि और अध्यक्ष का स्वागत किया और उनका परिचय दिया। अतिथि महोदय ने सभी छात्रों और उपस्थित सभी लोगों को परिसर व देश को स्वच्छ रखने के लिए प्रेरित किया। साथ ही अध्यक्ष एन. वी. पटवर्धनजी ने होली के अवसर पर स्वच्छता के साथ मन की गंदगी अर्थात् मन में उत्पन्न होने वाली घृणा, एक-दूसरे के प्रति द्वेष को निकालकर भाईचारे के साथ रहने का अमूल्य संदेश छात्रों और उपस्थित लोगों को दिया।

विद्यालय के मुख्याध्यापकजी ने अतिथि महोदय, अध्यक्ष महोदय और उपस्थित लोगों को धन्यवाद दिया। अंत में राष्ट्रगीत द्वारा इस कार्यक्रम का समापन किया गया।

अथवा

एक शहर में एक परिवार रहता था। कहावत के अनुसार उनका परिवार ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ था। परिवार में एक ही बेटा था। बेटे का नाम मोहन था। मोहन अपने माता-पिता के साथ लाड़-प्यार से रहता था। वह स्कूल में कक्षा-9 में पढ़ता था। खेलना-कूदना, पढ़ाई करना अपने माता-पिता के साथ हँसता-खेलता था।

आजकल बच्चे मैदान में जाकर खेलने के बजाय मोबाइल पर गेम खेलने में अधिक रुचि दिखाने लगे हैं। इसी तरह मोहन भी मोबाइल पर गेम खेलना, वीडीओज देखना पसंद करने लगा। एक दिन उसे मोबाइल की इतनी आदत लग गयी कि वह रात में जागकर 2 बजे तक भी गेम या वीडीओज देखने लगा।

मोहन हमेशा मोबाइल पर ही कान में इयरफोन लगाकर अकेले में रूम में गेम खेलता दिखायी देने लगा। स्कूल से लौटने के बाद घर आते ही खाना खाना भूल जाता, माँ के साथ पहले की तरह बर्ताव नहीं करना, पापा तो ऑफिस चले जाते थे। अभ्यास से पूरी तरह ध्यान हट गया था। मना करने पर वह माँ को ठिठाई से, बदतमीजी से जवाब देने लगा था। माँ-पापा उसे बहुत समझाते परन्तु वह ध्यान नहीं देता। अपनी ही मनमानी करता रहता था। इयरफोन लगाकर वह बाहर भी जाता था।

एक दिन मोहन मोबाइल लेकर कान में इयरफोन लगाकर गाने सुनते-सुनते बाहर चला गया। वह सड़क पार कर रहा था। एक तरफ से ट्रक आ रहा था। मोहन के कान में इयरफोन था। इस कारण वह ट्रक का हॉर्न सुन न सका, वह मोबाईल पर गाने सुनने में मग्न था। तेजी से आये ट्रक से वह टकरा गया तथा जोर से उछलकर सड़क के दूसरे किनारे गिर पड़ा। इस दुर्घटना में मोहन ने अपना एक पैर गँवा दिया। वह इस बात से बहुत दुखी हुआ। उसे अब समझ में आया कि माता-पिता की बात को वह समझ पाता तो आज उसे यह दिन नहीं देखना पड़ता।

सीख-अपनी आदतों पर नियंत्रण होना आवश्यक है।

शीर्षक-अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

(2)

(इ)

(1) मेरा प्रिय त्योहार

भारत में विविध जाति-धर्मों के लोग निवास करते हैं। सभी के अलग-अलग त्योहार हैं। होली, दिवाली, रक्षाबंधन हिन्दुओं के महापर्व माने जाते हैं। सभी पर्वों का अलग-अलग महत्व है। दिवाली मेरा प्रिय त्योहार है जो भारतीयों के दिलों से जुड़ा त्योहार है। सारे देश में यह बड़े उत्साह, उमंग और हर्ष के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। इस रात आकाश में चाँद नहीं होता और सर्वत्र गहरा अंधेरा रहता है। इस अंधेरे में दीपमालाओं का प्रकाश अपना सौन्दर्य बिखेर देता है, सारा वातावरण जगमग और आलोकित हो उठता है। मानो पृथ्वी स्वर्ग में बदल गई हो।

दिवाली का त्योहार कई दिनों के उत्सवों का एक सामूहिक नाम है। जिसकी शुरूआत धनतेरस से हो जाती है। इस दिन गहने, कीमती वस्तुएँ खरीदने की परम्परा है। इसका अगला दिन नरक चतुर्दशी का होता है, इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं, इस दिन दीपक जलाने की परम्परा है।

कार्तिक अमावस्या का दिन दिवाली उत्सव का मुख्य दिन होता है। इस रात्रि को शुभ मुहूर्त में पूजन के साथ माँ लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है। दीये जलाये जाते हैं तथा मिठाइयाँ खाई जाती हैं। अगला दिन गोवर्धन पूजा का होता है, इस अवसर पर गायों का पूजन किया जाता है। इस पर्व का आखिरी दिन भाई-बहन का त्योहार भाईदूज होता है। दिवाली मनाने की मूल कथा का सम्बन्ध भगवान श्रीराम से जुड़ा है। श्रीराम जी जब राक्षस रावण का वध करके अयोध्या आये, तो उनका स्वागत उत्सव की तरह दीपक जलाकर किया गया।

दिवाली में घर, दुकान, दफ्तर आदि की साफ-सफाई, रंग-रोगन व सजावट होती है। रोशनी का त्योहार दिवाली जन-जन के दिलों को उल्लास से भर देता है। सभी लोग नई व रंग-बिरंगी वेशभूषा में नजर आते हैं। रंगोलियों से आँगन सजे होते हैं। दूर-दूर के रिश्तेदार एक-दूसरे को मिलने घर आते हैं। एक-दूसरे को तोहफे और मिठाइयाँ दी जाती हैं। फुलझड़ी, पटाखे छोड़े जाते हैं। घर-घर से मिठाइयों और पकवानों की सुगंध आती है।

दिवाली का त्योहार सभी के जीवन को खुशी प्रदान करता है। ये प्रकाशोत्सव लोगों के जीवन में आये अंधकार को मिटाकर उसे प्रकाशित कर देता है। अज्ञान रूपी अंधकार मिटाकर ज्ञानरूपी प्रकाश जीवन में आता है। लोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद भूलकर आपस में मिल-जुलकर यह त्योहार मनाते हैं। इसी कारण दिवाली मेरा प्रिय त्योहार है।

(2) नदी की आत्मकथा

मैं नदी हूँ। मुझे विविध नामों से संबोधित किया जाता है। जैसे सरिता, तटिनी, नहर, प्रवाहिनी आदि। मैं कल-कल करके बहती रहती हूँ। मेरा जन्म पर्वतों में हुआ। पर्वतों से झरनों के रूप में मैं आगे बढ़ती हूँ। आगे बहते हुए सागर में जा मिलती हूँ। प्रकृति ने मुझे प्राणियों के उद्धार के लिए बनाया है। पहाड़ों से निकलते समय मेरा रूप छोटा होता है। जैसे-जैसे आगे बढ़ती हूँ, मैं बड़ी और चौड़ी होती जाती हूँ। समुद्र में जाकर मिलने से पहले आसपास की जमीन को हरा-भरा कर देती हूँ। मुझमें अनेक जीव रहते हैं, पनपते हैं।

समुद्र में मिलने से पहले मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ती है। मेरे सामने आयी अनेक बाधाओं का धैर्यपूर्वक सामन करते हुए में आगे बढ़ती हूँ। पत्थर, चट्टान, छोटे और बड़े कंकड़ मेरे बहाव में रोधक हैं, परन्तु उन्हें पार करते हुए मैं अपन मार्ग निकाल लेती हूँ।

मेरी उपयोगिता मानव और पशु-पक्षियों के लिए बहुत अधिक है। मेरे पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता है। इसी कारण फसलें उगती हैं और हर तरफ खेत में हरियाली छा जाती है। इन्हीं फसलों से अनाज की उत्पत्ति होती है। सारी सृष्टि के भोजन की व्यवस्था होती है। लोककल्याण करना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है। समय के साथ उन्नति हुई। अनेक परिवर्तन हुए। मेरे तटों पर घाट बनाए गए। नए-नए उद्योग-धंधे विकसित होने लगे। बाँध बाँधे गए।

कभी-कभी प्रकृति के आगे में विवश हो जाती हूँ क्योंकि कभी बहुत अधिक वर्षा के कारण, जब जलस्तर बढ़ता है। मेरे किनारों पर बसे गाँव, खेत, पशु-पक्षी बह जाते हैं। तब मुझे बहुत दुःख होता है। मेरी जलधारा सदैव बहती रहती है। मानव मुझे उपयोग तो कर लेता है, परन्तु मुझे दूषित करने की कोशिश भी करता है। कचरा, प्लास्टिक, छारखानों का दूषित पानी मनुष्यों द्वारा मुझमें छोड़ा जाता है, तब मेरा पानी दूषित हो जाता है। इसी कारण में समस्त मानवजाति से अनुरोध करना चाहूँगी कि मेरे पानी को साफ रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ। धन्यवाद !

(3) यदि मैं अध्यापक होता

समाज-निर्माण का एक महत्वपूर्ण घटक है-अध्यापक। राष्ट्र के निर्माण में अध्यापक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अध्यापक का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यापक छात्रों के भविष्य का निर्माण करते हैं। वह राष्ट्र निर्माता हैं।

यदि मैं अध्यापक होता तो अपने छात्रों को निःस्वार्थ भाव से ज्ञान प्रदान करके सत्य का मार्ग दिखाता। माता-पिता के साथ बालकों के विकास में अध्यापक की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। में अध्यापक की हैसियत से इस विषय में रुचि लेकर बालकों का विकास करता यदि मैं अध्यापक होता तो पहले स्वयं अनुशासन का पालन करता और मेरे छात्रों को भी अनुशासन का महत्व बताता, सिखाता। बच्चों को शिक्षा के साथ सफलता का मार्ग दिखाता। मैं कभी किसी प्रकार का भेदभाव न करते हुए शिक्षा या अन्य शैक्षणिक, सामाजिक ज्ञान देता। छात्रों को आपस में एक-दूसरे के साथ प्रेम-भाईचारा सिखाता।

यदि में अध्यापक होता तो छात्रों को शिक्षा के साथ परिवार, समाज का महत्व बताता। पारिवारिक एकता का महत्व समझाता। समाज में अपना कर्त्तव्य निभाने का महत्व समझाता। साथ ही अपने देश-मातृभूमि के लिए, त्याग, प्रेम की शिक्षा देता। देश के लिए मर-मिटने वाले महापुरुषों के चरित्र समझाकर छात्रों में प्रेम, बलिदान की भावना जागृत करता। जो देश कल्याण में सहायक हो। छात्र अपने अध्यापक को आदर्श मानते हैं। उनके इस विश्वास को बनाए रखने के लिए में नैतिक मूल्यों तथा उच्च आदर्शों का पालन करता साथ ही, छात्रों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करता ताकि आज के छात्र हमारे देश के कल के सुजान नागरिक बनें।

यदि मैं अध्यापक होता तो छात्रों के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करता। उन पर अनुचित दबाव नहीं डालता। उन्हें समय का महत्व बताता। यदि मैं अध्यापक होता तो विविध प्रकार से अपने छात्रों को ज्ञानवान बनाता सिर्फ किताबी ज्ञान न देकर व्यावहारिक ज्ञान का महत्व बताता, जो अपने देश के विकास में सहायक सिद्ध होता। काश ! में अध्यापक होता और अपने सपनों को साकार रूप दे पाता।