व्याकरण शब्द संपदा
(1) लिंग : जिस शब्द से संज्ञा के स्त्री या पुरुष होने का बोध होता है, उसे ‘लिंग’ कहते हैं। लिंग के मुख्यत: दो भेद माने गए हैं :
- पुल्लिंग
- स्त्रीलिंग
पुल्लिंग : पुल्लिंग संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे उसके पुरुष होने का बोध होता है। जैसे – राजेश, राकेश, प्रभाकर, चाँद, सूर्य, बैल, घोड़ा आदि।
स्त्रीलिंग : जिस शब्द से स्त्री होने का बोध होता है उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे – राधा, शीला, घोड़ी, बकरी, मछली, मैना, तितली, कोयल आदि।
लिंग निर्णय : अंग्रेजी, मराठी, संस्कृत की अपेक्षा हिंदी में लिंग निर्णय की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है। जहाँ तक प्राणिवाचक संज्ञा शब्दों का प्रश्न है उसमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जहाँ अप्राणिवाचक संज्ञा शब्दों की बात आती है वहाँ कठिनाई बढ़ जाती है क्योंकि इसके लिए कोई विशेष नियम नहीं है। एक ही शब्द के अलग अर्थ होने से या अलग-अलग शब्दों के एक ही अर्थ होने से भी लिंग बदल जाते हैं। जैसे –
भिन्नार्थक शब्द : अप्राणिवाचक बहुत से शब्दों के समरूपी होने पर लिंग भेद होता है। जैसै :
शब्द | अर्थ | लिंग |
कलम | लेखनी | स्त्रीलिंग |
कलम | वृक्ष शाखा का कलम | पुल्लिंग |
ओर | छोर | पुल्लिंग |
ओर | तरफ | स्त्रीलिंग |
सरकार | स्वामी | पुल्लिंग |
सरकार | शासन चलानेवाली | स्त्रीलिंग |
विधि | ब्रहमा | पुल्लिंग |
विधि | प्रणाली | स्त्रीलिंग |
हार | पराजय के अर्थ में | स्त्रीलिंग |
हार | माला के अर्थ में | पुल्लिंग |
सविता | सूर्य | पुल्लिंग |
सविता | किसी लड़की का नाम | स्त्रीलिंग |
तारा | नक्षत्र | पुल्लिंग |
तारा | लड़की का नाम | स्त्रीलिंग |
कुछ प्राणियों में लिंग का निर्णय व्यवहार से होता है। जैसे – बंदर, तीतर, चीता, बैल पुल्लिंग है जबकि – मछली, कोयल, मैना, गौरैया स्त्रीलिंग है।
अप्राणिवाचक में द्रवों के नाम, धातुओं, ग्रहों, वनस्पतियों, अनाजों, रत्नों, दिनों, स्थल भागों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जब कि – भाववाचक संज्ञा (ट, ट, हट) कृदंत, नदियों के नाम, नक्षत्रों के नाम, तिथियों के नाम, पक्वानों के नाम आदि स्त्रीलिंग होते हैं।
लिंग परिवर्तन कर वाक्य फिर से लिखिए :
(1) बेटे ने काका से बातचीत की।
बेटी ने काकी से बातचीत की।
(2) शेर ने बकरे पर आक्रमण किया।
शेरनी ने बकरी पर आक्रमण किया।।
(3) बैल घास चर रहा है।
गाय घास चर रही है।
(4) पंडित का भाई पूजा कर रहा है।
पंडिताइन की बहन पूजा कर रही है।
(5) नायक अभिनय कर रहा है।
नायिका अभिनय कर रही है।
(6) कुत्ता भौंक रहा है।
कुतिया भौंक रही है।
(7) चाचा जी देव जैसे हैं।
चाची जी देवी जैसी हैं।
(2) वचन : संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के जिस रूप से संख्या का बोध होता हैं, उसे वचन कहते हैं। हिंदी में दो वचन होते हैं।
- एकवचन
- बहुवचन
एकवचन : संज्ञा के अथवा शब्द के जिस रूप से एक ही व्यक्ति या वस्तु होने का ज्ञान हो उसे एकवचन कहते हैं। जैसे – बिल्ली, बिजली, लड़का, नदी, पुस्तक, घर आदि.
बहुवचन : संज्ञा अथवा शब्द के जिस रूप से उसके एक से अधिक होने का बोध होता है उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे – बिल्लियाँ, लड़कियाँ, लड़के, घोड़े, बहुएँ आदि।
अपवाद : कुछ शब्दों में दोनों रूप समान होते है। जैसे – मामा, नाना, बाबा, पिता, योद्धा, युवा, आत्मा, देवता, जमाता।
सूचनानुसार – परिवर्तन
अधोरेखांकित शब्द का वचन परिवर्तित कर वाक्य फिर से लिखिए :
(1) उदा. लड़के विद्यालय जाते हैं।
उत्तर :
लड़का विद्यालय जाता है।
(2) नदी ने फसल को डुवो दिया।
उत्तर :
नदियों ने फसल को डुबो दिया।
(3) आप कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर :
तुम कहाँ जा रहे हो?
(4) बकरी घास चर रही है।
उत्तर :
बकरियाँ घास चर रही हैं।
(5) नदियों ने फसलों को हरा-भरा कर दिया।
उत्तर :
नदी ने फसल को हरा-भरा कर दिया।
(3) विलोम विरुद्धार्थी शब्द : जो शब्द अर्थ की दृष्टि से एक-दूसरे के विरोधी होते हैं उन्हें विलोम, विपरीतार्थी या विरुद्धार्थी शब्द कहते हैं।
- निम्न x उच्च
- धनी x निर्धन
- विष x अमृत
- अर्थ x अनर्थ
- उदय x अस्त
- प्रात: x सायं
- सजीव x निर्जीव
- सदाचार x दुराचार
- आय x व्यय
- आदान x प्रदान
- स्वर्ग x नरक
- मान x अपमान
- सत्य x असत्य
- सज्जन x दुर्जन
- गुण x अवगुण
- शुभ x अशुभ
- उचित x अनुचित
- अनुकूल x प्रतिकूल
- पक्ष x विपक्ष
- उपस्थित x अनुपस्थित
- एक x अनेक
- आस्तिक x नास्तिक
- आदर x निरादर
- उन्नति x अवनति
- सफलता र असफलता
- सौभाग्य x दुर्भाग्य
- आदि x अंत
- नवीन x प्राचीन
- उदार x अनुदार
- लौकिक x अलौकिक
- स्मृति – विस्मृति
- आयात x निर्यात
- शिक्षित x अशिक्षित
- उत्तीर्ण x अनुत्तीर्ण
- यश x अपयश
- सुलभ x दुर्लभ
- प्रत्यक्ष x परोक्ष
- खुशबू x बदबू
- सार्थक x निरर्थक
- मुख्य x गौण
- समर्थन x विरोध
- उत्थान x पतन
- पंडित x मूर्ख
- निर्माण x विनाश
- संयोग x वियोग
- उपकार x अपकार
- साक्षर x निरक्षर
- सूक्ष्म x स्थूल
- बंजर x उपजाऊ
- कृतज्ञ x कृतघ्न
- आलस्य x उद्यम
- साकार x निराकार
- बुराई x भलाई
- क्रोध x शांति
- रक्षक x भक्षक
- स्तुति x निंदा
- वीर x कायर
- वरदान – अभिशाप
- रुग्ण x स्वस्थ
- मानव x दानव
- महान x क्षुद्र
- सम x विषम
- मधुर x कटु
- महात्मा x दुरात्मा
- कनिष्ठ x ज्येष्ठ
- आकाश x पाताल
(4) पर्यायवाची शब्द :
- असभ्य – अशिष्ट, गँवार, उजड्ड
- कहानी – कथा, अख्यायिका, किस्सा
- बुद्धि – मति, मेधा, प्रज्ञा, अक्ल
- बारिश – वर्षा, बरसात, वृष्टि
- पति – कांत, स्वामी, वर, भर्ता
- वसंत – मधुऋतु, ऋतुराज, पिकमित्र
- अनोखा – अनूठा, अनुपम, अलौकिक
- थोड़ा – अल्प, रंच, कम
- मृत्यु – निधन, देहांत, मौत
- सुंदर – चारु, रम्य, ललाम
- पत्नी – कांता, वधू, भार्या
(5) अनेक शब्दों के लिए एक शब्द :
- जिस पर विश्वास किया जा सके – विश्वसनीय
- जिसकी उपमा न दी जा सके – अनुपम
- सब कुछ जाननेवाला – सर्वज्ञ
- जो कभी बूढ़ा न हो – अजर
- जो नियम के अनुसार न हो – अनियमित
- जिसका कोई अंत न हो – अनंत
- जो देखने योग्य हो – दर्शनीय
- जो दूर की सोचता हो – दूरदर्शी
- जो मीठा बोलता हो – मृदुभाषी
- अनुकरण करने योग्य – अनुकरणीय
- किए हुए उपकार को न माननेवाला – कृतघ्न
- काम में लगा रहने वाला – कर्मठ
- जिसे कहा न जा सके – अकथनीय
- जो कम बोलता हो – मितभाषी
- जिसे पाना कठिन हो – दुर्लभ
(6) भिन्नार्थक शब्द : कुछ शब्दों के प्रयोग कई अर्थों में होते हैं। उनका अर्थ वाक्य में प्रयोग से ही निश्चित हो सकता है।
- अंबर – आकाश, कपड़ा
- अंतर – हृदय, फर्क
- आदि – आरंभ, इत्यादि
- अली – सखी, पंक्ति
- काल – समय, मृत्यु
- कनक – सोना, धतूरा
- तीर – बाण, तट
- पट – कपड़ा, दरवाजा
- पृष्ठ – (किताब का) पन्ना, पीठ
- भेद – प्रकार, रहस्य
- हरि – ईश्वर, सिंह
- हार – फूलों की माला, हारना
- गति – दशा, चाल
- मित्र – साथी, सूर्य
- हल – खेत जोतने का औजार, समाधान
- स्नेह – तेल, प्रेम
(7) शब्द-युग्म : शब्दों का वह जोड़ा होता है जो देखने और सुनने में एक जैसे होते हैं अथवा मिलते-जुलते हैं लेकिन वर्तनी में कहीं न कहीं कोई अंतर अवश्य होता है। इस प्रकार वर्तनी की भिन्नता अथवा उसमें थोड़ा-सा परिवर्तन अर्थ में बहुत बड़ा अंतर उत्पन्न कर देते हैं। अत: इन्हें जानना व समझना जरूरी हो जाता है। यहाँ कुछ शब्द-युग्म दिए गए हैं।
अँगना : आँगन।
वाक्य: गाँव के घर में अँगना/आँगन का बहुत महत्त्व हैं।
अंगना : रमणी या सुंदर स्त्री।
वाक्य: अँगना में अंगना के पायल को छम-छम सुनाई दे रही थी।
अन्न : अनाज, खाद्य पदार्थ।।
वाक्यः किसान खेतों में अन्न उपजाते हैं।
अन्य : दूसरा या पराया।
वाक्य: इस काम को कोई अन्य व्यक्ति नहीं करेगा।
अगम : कठिन, दुर्गम।
वाक्यः ईश्वर को संतों ने अगम बताया है।
आगम : प्राप्ति, आय:
वाक्यः उसके पास अब कोई आगम नहीं है।
अवलंब : आश्रय, सहारा।
वाक्य: उसके पति की मृत्यु के साथ ही उसका अवलंब टूट गया।
अविलंब : तुरंत, शीघ्र।
वाक्यः इस कार्य को अविलंब करना है।
अंत : समाप्ति।
वाक्य: बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मुगल राज्य का अंत हो गया।
अंत्य : अंतिम।
वाक्यः हिंदुओं की अंत्य विधि श्मशान में होती है।
अनल : आग।
वाक्यः अनल सब कुछ जला देता है।
अनिल : हवा।
वाक्य: ऊँचाई पर अनिल का दबाव कम हो जाता है।
अश्व : घोड़ा।
वाक्य: चेतक एक महान अश्व था।
अश्म : पत्थर।
वाक्य: अश्म से ठोकर खाकर वह गिर पड़ा।
अमित : बहुत, असीम।
वाक्य: लैला का मजनू से अमित प्रेम था।
अमीत : अमित्र, शत्रु।
वाक्य: इंसानियत के पुजारी अमीत को भी गले लगाते हैं।
आदि : आरंभ, शुरू या इत्यादि।
वाक्य: आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति संसार में श्रेष्ठ रही है।
आदी : अभ्यस्त।
वाक्य: वह सुबह जल्दी उठने का आदी है।
आसन : बैठने की छोटी चटाई। वाक्य: यह पिता जी का आसन है।
आसन्न : निकट आया हुआ, तुरंत। वाक्य: उसका परीक्षा-काल आसन्न है।
इति : समाप्ति, अंत।
वाक्य: इसकी यही इति है।
ईति : विपत्ति, बाधा।
वाक्यः बेचारे मोहन के पिता की मौत होते ही उसके ईती का आरंभ हो गया।
उन : ‘उस’ सर्वनाम का बहुवचन।
वाक्य: उन लोगों को शादी में जाना है।
ऊन : भेड़ आदि के बाल।
वाक्य: शीत से बचने के लिए ऊनी वस्त्रों का प्रयोग होता है।
उपकार : भलाई।
वाक्य: यह उपकार का जमाना नहीं है।
अपकार : बुराई।
वाक्यः किसी का अपकार करके तुम्हें क्या मिलने वाला है ?
कंगाल : गरीब।
वाक्यः भूकंप आने से भुज के लोग कंगाल हो गए।
कंकाल : हड्डियों का ढाँचा।
वाक्य: बीमारी से वह कंकाल बन चुका है।
कलि : युग, कलह, झगड़ा।
वाक्यः कलियुग में सब कुछ उल्टा होता है।
कली : अधखिला फूल।
वाक्यः फूल बनने से पहले कली नहीं मसलनी चाहिए।
कहा : कहना का भूतकाल।। वाक्यः उसने कहा था।
कहाँ : स्थान बोधक अव्यय। वाक्यः आप कहाँ जा रहे हैं?
कुल : वंश, परिवार, पूर्ण।
वाक्यः (अ) दो संख्याओं को जोड़ने पर हमें कुलयोग ज्ञात होता है।
(ब) भगवान राम रघुकुल में जन्में थे।
कूल : तट, किनारा।
वाक्यः श्याम यमुना के कूल पर बंसी बजाते थे।
कुजन : बुरे लोग।
वाक्यः कुजनों के साथ रहने से नुकसान होता है।
कूजन : पक्षियों की मधुर ध्वनि या कलरव।
वाक्यः पक्षियों के कूजन से सवेरा होने का आभास हुआ।
किला : गढ़।
वाक्यः सिंहगढ़ का किला छत्रपति शिवाजी महाराज ने जीत लिया।
कीला : छूटा, बड़ी कील।
वाक्य: मैंने यह कीला अपनी जमीन में गाड़ा है।
ग्रह : सूर्य, चंद्र आदि।
वाक्य: हमारी संस्कृति में नौ ग्रह पूजे जाते हैं।
गृह : घर।
वाक्य: सोमवार को मेरा गृह प्रवेश हुआ।
कि : समुच्चयबोधक अव्यय।
वाक्यः राम के पिता ने कहा कि वह आलस्य छोड़ दें।
की : करना क्रिया का भूतकाल। संबंध कारक चिह्न।
वाक्य : मैंने पढ़ाई पूरी की। गाँव की नदियाँ बलखाती हुई बह रही है।
चिर : दीर्घ – बड़ा या हमेशा/शाश्वत।
वाक्यः चिरकाल से चली आई भारतीय संस्कृति महान है।
चीर : वस्त्र / कपड़ा।
वाक्य: द्रौपदी का चीर हरण किया गया था।
तरणी : नौका।
वाक्यः रामजी ने केवट की तरि से गंगा नदी पार की।
तरणि : सूर्य
वाक्य: सब्जियों में तरी ज्यादा होने से स्वाद बिगड़ गया।
तरंग : लहर।
वाक्य: समंदर की तरंगें भयानक होती जा रही थीं।
तुरंग : घोड़ा।
वाक्यः तुरंग पर सवार सैनिक जंग में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे।
नित : रोज, प्रतिदिन।
वाक्य: नित प्रात:काल उठकर टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
नीत : प्राप्त, लाया हुआ।
वाक्य: हमारे देश में पर्दा प्रथा मुगलों द्वारा नीत है।
नियत : तय, निश्चित।
वाक्य: तुम्हें नियत समय पर ही वहाँ पहुँचना है।
नीयत : इच्छा, इरादा, मंशा।
वाक्यः इस मामले में तुम्हारी नीयत में खोट नजर आ रही है।
दिन : दिवस।
वाक्यः बुरे दिन में कोई मदद नहीं करता।
दीन : गरीब।
वाक्यः मुझ दीन के रक्षक दीनानाथ हैं।
देव : देवता, सुर।
वाक्य: भारत में अनेक देव पूजे जाते हैं।
दैव : भाग्य, नसीब।
वाक्य: आलसी हमेशा दैव-दैव पुकारता है।
प्रसाद : ईश्वरीय कृपा। वाक्य: मैं भगवान का प्रसाद पाकर धन्य हो गया। प्रासाद : महल।
वाक्यः राजा भव्य प्रासाद में रहता था।
परिणाम : फल, नतीजा।
वाक्यः चोरी का परिणाम हमेशा बुरा होता है।
परिमाण : मात्रा, माप।
वाक्य: यह दवा किस परिमाण में लेनी है?
पुर : नगर, शहर।
वाक्यः रघुवीर जी की बहू सीतापुर गई।
पूर : पूर्णत्व, बाढ़, अधिकता।
वाक्य : मोहन की थोड़ी-सी कमाई से घर-खर्च पूरा नहीं पड़ता था।
प्रणाम : नमस्कार, सलाम।
वाक्य : हमें बड़ों को प्रणाम करना चाहिए।
प्रमाण : सबूत।
वाक्य : इस समय मेरे पास अपनी बात का कोई प्रमाण नहीं है।
प्रहर : याम, पहर (तीन घंटे का समय)।
वाक्य : रात्रि के तीसरे प्रहर में पूरी तरह सन्नाटा छा जाता है।
प्रहार : आघात या चोट।
वाक्य: महाराणाप्रताप के प्रहार से मुगल सेना तितर-बितर हो गई।
पर : पंख, परंतु।
वाक्यः मोर के पर रखना शुभकारी होता है।
पार : किनारा, मंजिल तक पहुँचना।
वाक्यः मेरा घर नदी के उस पार है।
फुट : बारह इंच की माप।
वाक्य: इसकी लंबाई छ: फुट है।
फूट : मतभेद, बैर, अलगाव।
वाक्य: इस चुनाव में प्रत्येक दल में फूट पड़ी और बागी उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़े।
बलि : बलिदान, नैवेद्य।
वाक्य: बकरी ईद में बकरे की बलि दी जाती है।
बली : बलवान, वीर।
वाक्यः तन के साथ-साथ मन का भी बली होना जरूरी है।
बट : रास्ता।
वाक्यः पत्नी अपने पति की बाट जोह रही थी।
बाँट : भाग, हिस्सा।
वाक्य: मक्खन बाँट में बिल्लियों का नुकसान तय है।
बहु : बहुत, अधिक।
वाक्यः मेरा बहु प्रतीक्षित सपना पूरा हुआ।
बहू : पुत्रवधू, विवाहिता ली।
वाक्यः सास और बहू को टक्कर जगत प्रसिद्ध है।
भिड़ : ततैया, लड़ना।
वाक्य: दोनों पक्षों के सैनिक आपस में भिड़ गए।
भीड़ : मजमा, जनसमूह।
वाक्य: मेले की भीड़ में खो जाने का अंदेशा रहता है।
बास : गंध।
वाक्य: कचरे के डिब्बे से बहुत ही बास आ रही थी।
बाँस : एक वनस्पती
वाक्य: बाँस बहुत ही उपयोगी वनस्पती है।
भवन : घर, महल।
वाक्य: जयपुर में शानदार भवन है।
भुवन : संसार, जग।
वाक्यः सारे भुवन में महँगाई की मार है।
मूल : जड़, नींव।
वाक्य: दोनों परिवारों के विवाद के मूल में एक-दूसरे के प्रति नफरत है।
मूल्य : कीमत।
वाक्य: यह घड़ी काफी मूल्यवान है।
राज : राज्य, शासन।
वाक्य: महात्मा गांधीजी देश में रामराज लाना चाहते थे।
राज़ : भेद, रहस्य।
वाक्यः इस खंडहर में गहरा राज़ छिपा हुआ है।
शिला : पत्थर, पाषाण।
वाक्य: सम्राट अशोक के जमाने में शिलालेखों का विशेष महत्त्व था।
शीला : सुशील।
वाक्य: यह बड़ी सुशीला पुत्री है।
सास : पति या पत्नी की माँ।।
वाक्यः सास-बहू में झगड़े होते रहते हैं।
साँस : श्वास।
वाक्य: जब तक साँस चल रही है तब तक हमें संघर्ष करना है।
सुर : देवता, लय।
वाक्यः (अ) सुर में गाना एक साधना है।
(ब) बृहस्पतिजी सुरों के गुरु हैं।
सूर : सूर्य, अंधा।
वाक्यः मोहन सूर है लेकिन उसकी आवाज में जादू है।
सर्ग : काव्य का अध्याय।
वाक्यः कामायनी को सर्गों में विभक्त किया गया है।
स्वर्ग : देवताओं का निवास, जन्नत।
वाक्य : अच्छे लोग मृत्यु के बाद सीधे स्वर्ग जाते हैं।
शुक्ति : सीप।
वाक्यः शुक्ति में मोती बनता है।
सूक्ति : अच्छी उक्ति।
वाक्य: संतों की सूक्ति हमेशा प्रेरक होती है।
सुधि : स्मरण, याद।
वाक्य: परदेश जाने के बाद पति ने पत्नी की सुधि नहीं ली।
सुधी : विद्वान।
वाक्य: सुधी जनों की संगत में हमेशा सुख मिलता है।
सकल : सब, संपूर्ण।
वाक्य: गेहूँ की सकल उत्पाद का पच्चीस प्रतिशत पंजाब में होता है।
शक्ल : सूरत, चेहरा टुकड़ा।
वाक्य: तेजाब फेंककर उसकी शक्ल को बिगाड़ दिया गया।
शुल्क : फीस, चंदा।
वाक्यः रमा विद्यालय में बच्चे का शुल्क जमा करने गई है।
शुक्ल : उज्ज्वल, शुद्ध पक्ष।
वाक्यः शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा होती है।
(8) उपसर्ग : जो शब्दांश किसी शब्द के प्रारंभ में जुड़कर शब्द के अर्थ को प्रभावित करते हैं उन्हें उपसर्ग कहा जाता है।
उदा. देश – स्वदेश, परदेश, उपदेश
हिंदी में प्रयुक्त होने वाले कुछ, उपसर्ग इस प्रकार है :
(9) प्रत्यय : कुछ शब्दांश शब्दों के अंत में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन लाते हैं उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
उदा. – जल + ज = जलज, जल + द = जलद
(10) कृदंत : धातु में कृत प्रत्यय लगने से बनने वाला शब्द कृदंत कहलाता है।
जैसे-
तद्धित : संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण अथवा अव्यय के अंत में प्रत्यय लगाकर बने शब्द तद्धित शब्द कहलाते हैं।
जैसे –
संज्ञा शब्द – तद्धित शब्द
सोना – सुनार, सुनहरा
मुख – मुखिया, मौखिक …. आदि
सर्वनाम शब्द – तद्धित शब्द
अपना – अपनापन, अपनत्व
निज – निजत्व …. आदि
विशेषण शब्द – तद्धित शब्द
मीठा – मिठाई, मिठास
एक – एकता, इकहरा …… आदि
अव्यय शब्द – तद्धित शब्द
पीछे – पिछला
अवश्य – आवश्यक
बहुत – बहुतायत …… आनि
(11) तत्सम शब्द : जो शब्द हिंदी में संस्कृत भाषा से बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए है उन्हें ‘तत्सम शब्द’ कहा जाता है।
उदा. : नित्य, विद्वान, प्रात:, शनैः शनैः, ज्ञान, अक्षर, सूर्य, गृह, ग्राम …… आदि।
(12) तद्भव शब्द : समय और परिस्थिति के कारण संस्कृत के शब्दों में परिवर्तन आता गया और आज व्यवहार में प्रयुक्त हैं ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलाते हैं।
जैसे –
तत्सम शब्द | तद्भव शब्द |
अंगुली | उंगली |
अश्रु | आँसू |
काक | कौआ |
गृह | घर |
पुत्र | पुत |
कोकिल | कोयल |
हस्ती | हाथी |
जिह्वा | जीभ |
दुग्ध | दूध |
भ्राता | भाई |
श्राप | शाप |
मुख | पूँह |
अग्नि | आग |
अग्र | आगे |
गर्दभ | गधा |
चंद्र | चाँद |
पितृ | पिता |
कृष्ण | किशन |
हस्त | हाथ |
बिंदु | बूंद |
भगिनी | बहन |
क्षेत्र | खेत |
सप्त | सात |
मेघ | मेह |
रात्रि | रात |
श्वास | साँस |
शय्या | सेज |
मूल्य | मोल |
धैर्य | धीरज |
कृषक | किसान |
छिद्र | छेद |
ज्येष्ठ | जेठ |
दूर्वा | दूब |
दु:ख | दुख |
पद | पैर |
पीत | पीला |
पुच्छ | पूँछ |
भिक्षा | भीख |
भद्र | भला |
सूत्र | सूत |
लक्ष्मण | लखन |
वर्ष | बरस |
सूर्य | सूरज |
शर्करा | शक्कर |
श्वसुर | ससुर |
श्वश्रू | सास |
निष्ठ | मीठा |
रत्न | रतन |
घट | घड़ा |
चौत्र | चत |
तृण | तिनका |
दीप | दीया |
पक्षी | पंछी |
पुष्प | फूल |
पुष्कर | पोखर |
मयुर | मोर |
मृतिका | मिट्टी |
रक्षा | राखी |
लौह | लोहा |
व्याघ्र | बाघ |
बक | बगुला |
खीर | क्षीर |
विदेशी शब्द : अरबी, फारसी, अंग्रेजी या अन्य किसी भी दूसरे देश की भाषा के शब्द जिनका हिंदी में प्रयोग किया जाता है उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।
जैसे : डॉक्टर, राज़, इलाज, रेल्वे, सिग्नल, इशारा, दीदार, आरमान, शक्ल …. आदि।
मानक वर्तनी :
किसी भी भाषा के दो प्रमुख तत्त्व होते हैं।
- व्याकरण
- लिपि
लिपि का एक पक्ष है सामान्य और विभिन्न ध्वनियों के पृथक-पृथक, प्रतीक -वर्णों की वृद्धि, उनका परस्पर आकार भेद, लिखावट में सरलता, स्थान लघुता स्वं प्रयत्नलाघव, जिससे भाषा दुरूहता समाप्त होती है। लिपि का दूसरा पक्ष है वर्तनी (Spelling) एक शब्द को प्रकट करने के लिए अलग-अलग अक्षरों का प्रयोग वर्तनी को कठिन बना देता है। देवनागरी लिपि में यह दोष सबसे कम है, फिर भी कुछ विशेष कठिनाइयाँ हैं।
इन सभी कठिनाइयों को दूर कर हिंदी की वर्तनी में एकरूपता लाने के लिए भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 1961 में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी।
समिति ने अप्रैल 1962 में अपनी अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत की, जिन्हें सरकार ने स्वीकृत किया। यह सुधार प्रायः टंकण लिपि और संगणक की सुविधानुसार किया गया। 1967 में “हिंदी वर्तनी मानकीकरण” नामक पुस्तिका में इसकी व्याख्या और उदाहरण विस्तार से प्रकाशित किया गया है।
वर्तनी संबंधी कुछ नियम इस प्रकार है।
(1) संयुक्त वर्ण
(क) खड़ी पाई वाले व्यंजन:
खड़ी पाई वाले व्यंजनों (म्दहेदहाहू) का संयुक्त रूप खड़ी को हटाकर ही बनाया जाना चाहिए,
जैसे – ख्याति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, सज्जा, नगण्य उल्लेख, कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, प्यास, न्यास, डिब्बा, सभ्य, रम्य, शय्या, राष्ट्रीय, त्र्यंबक, व्यास, स्वीकृत श्लोक, यक्ष्मा, प्रज्ञा।
(ख) अन्य व्यंजन:
(अ) क और फ के संयुक्ताक्षर : पक्का, दफ्तर, रफ्तार, चक्का आदि की तरह बनाए जाएँ, न कि पक्का, दफ्तर की तरह। इसमें फ और क की बाहों को गोला न कर सीधा कर दिया जाता है। (आ) ङ्, ट, ठ, ड, ढ, द और ह के संयुक्ताक्षर हलंत ( ) चिह्न लगाकर ही बताए जाए। वाङ्मय लट्टू, बुड्ढा, विद्या, चिह्न, ब्रह्मा, ब्राह्मण, उद्यम लट्ठा आदि।
(इ) श्र का प्रचलित रूप ही मान्य होगा। इसे श के रूप में नहीं लिखा जाएगा। त + र के संयुक्त रूप के लिए त्र और र दोनों रूपों के प्रयोग की छूट हैं। किंतु क्र को कर के रूप में नहीं लिखा जाएगा।
(ई) हलंत चिह्नयुक्त वर्ण से बनने वाले संयुक्ताक्षर के द्वितीय व्यंजन के साथ इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व जैसे कुट्टिम द्वितीय, को कुटिम, द्वितीय, बुद्धिमान, चिह्नित आदि को स्वीकारा जाएगा।
(उ) संस्कृत में संयुक्ताक्षर पुरानी शैली में भी लिखे जा सकेंगे, जैसे – संयुक्त, चिह्न, विद्या, विद्वान, वृद्ध, अट्ट, द्वितीय, बुद्धि, शुद्धि आदि।
(नियम 2) क और फ के बाहों की गोलाई अंग को काटकर या हटाकर)
क – मुक्त, पक्का, चक्कर, टक्कर, शक्कर।
फ- मुफ्त, दफ्तर, रफ्तार।
(नियम 3) ट, ड, द, ह को हलंत करके) लट्टू, चट्टान, इकट्ठा, पट्ठा, बुड्ढा, लड्डू, शुद्ध, वृद्ध, बुद्धिमान, उद्योग, गद्य, पद्य, खाद्य, प्रसिद्ध अद्भुत, ब्रह्म, चिह्न, ब्राह्मण।
(नियम 4) संयुक्त वर्णाक्षर के साथ ‘इ’ की मात्रा का प्रयोग हलंत चिह्नयुक्त वर्ण से बननेवाले संयुक्ताक्षर के द्वितीय वर्ण के तत्काल पूर्व किया जाता है। जैसे – बुद्धि, शुद्धि, चिह्नित, द्वितीय, द्विगुणित, चिट्ठियाँ, छुट्टियाँ, सिद्धि, वृद्धि आदि।
(नियम 5) खड़ी पाई को हटाकरः
खड़ी पाई वाले व्यंजन के संयुक्ताक्षर :
- ख : ख्याति
- ण : नगण्य प : प्यार
- ल : उल्लेख ग : मग्न
- त : पत्ता ब : ब्यौरा,
- ष : राष्ट्र ग : नग्न
- थ : पथ्य
- भ : सभ्य स : स्वाद
- घ : विघ्न ध : ध्यान
- म : रम्य य : त्र्यंबक
- च : अच्छा न : न्याय
- म : गम्य श : श्लोक
- ज : लज्जान : अन्न
- य : शय्या क्ष : लक्ष्य
(2) विभक्ति चिह्न : (कारक चिह्न)
(क) हिंदी के विभक्ति चिह्न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रतिपदिक से पृथक लिखे जाय,
जैसे – राम ने, राम को, राम से, सभी ने, सभी को, सभी से आदि। सर्वनाम शब्दों में विभक्ति चिह्न मिलाकर लिखे जाते हैं।
जैसे -उसने, उसको, उसपर आदि।
(ख) सर्वनामों के साथ यदि दो विभक्ति चिह्न है उसमें पहला मिलाकर और दूसरा अलग से लिखा जाय।
जैसे – उसके लिए- इसमें से, आदि।
(ग) सर्वनाम और विभक्ति ‘ही’ ‘तक’ आदि का प्रयोग हो तो विभक्ति को अलग लिखा जाए।
जैसे – आप ही के लिए, मुझ तक को।
(3) क्रियापद : संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ पृथक लिखी जाएँ। जैसे- पढ़ा करता है, आ सकता है, खेला करेगा, नाचता रहेगा, चढ़ते ही जा रहे हैं, बढ़ते चले आ रहे हैं इत्यादि।
(4) हाइफन (-) हाइफन का विधान स्पष्टता के लिए किया जाता है।
(क) द्वंद्व समास में पदों के बीच हाइफन रखा जाए यथाः
राम-लक्ष्मण, माता-पिता, शिव-पार्वती, देख-रेख, चाल-चलन, हँसी-मजाक, पढ़ना लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना, स्त्री-पुरुष इत्यादि।
(ख) ‘सा’ ‘जैसा’ आदि से पूर्व हाइफन रखा जाये। जैसे -तुम-सा, राम-जैसा, चाकू-से तीखे, चलने। जैसे – आदि.
(ग) तत्पुरुष समास में हाइफन का प्रयोग तभी किया जाय जहाँ पर हाइफन के बिना भ्रम होने की संभावना हो। अन्यथा हाइफन का प्रयोग नहीं होगा।
जैसे – भू-तत्व.
सामान्यत: तत्पुरुष समास में हाइफन के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती जैसे – रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या, राजमाता, आदि। इसी तरह अ-नख (बिना नख का) में हाइफन न लगाने से इसका अर्थ बदल कर क्रोध हो जाएगा। अ-नति (नम्रता की कमी), अनति (थोड़ा) अ-परस (जिसे किसीने छुआ न हो) – अपरस – (एक चर्मरोग), भू-तत्व (पृथ्वी का तत्त्व) भूतत्त्व (भूत होने का भाव) आदि समस्त पदों की स्थिति विशेष होती है जहाँ हाइफन का प्रयोग किया जाता है।
(घ) कठिन संधियों से बचने के लिए भी हाइफन का प्रयोग किया जाता है। जैसे -द्वि-अक्षर, द्वि-अर्थक आदि।
(च) स्पष्टीकरण के लिए भी हाइफन का प्रयोग किया जाता है। जैसे – उदाहरणार्थ – यथा-आदि
विशेष अभ्यास हेतु
(क) हाइफन वाले शब्द : उषा-सा, एक-सा, घबराया-सा, छोटा-सा, जरा-सा, थोड़ा-सा, फूल-सा, रात-सा, साधारण-सा, हल्का सा, धक-सा आदि।
(ख) दवदव समास : आठ-दस, इधर-उधर, एक- दूसरा करता-धोती, खान पान, खेल-कद, नाच-गाना, रात-दिन, गोरा-चिट्टा, घर-परिवार, माता-पिता, जेठानी-देवरानी, भाई-बहन, दिन-रात, टूटा-फूटा, नहाना-धोना, बोल-चाल, हाथ-पैर, लाभ -हानि, भैया-भाभी, काका-काकी, रूप -रेखा आदि।
(ग) द्विरुक्त शब्द : आगे-आगे, कच-कच, खी-खी, जगह – जगह, तरह -तरह, धीरे-धीरे, नन्हा-नन्हा, बड़े-बड़े, भिन्न-भिन्न, रोज-रोज, शिव-शिव, सच-सच, हिला -हिला, बीच- बीच , गरम- गरम, छोटी-छोटी, मोटी-मोटी, सर-सर इत्यादी।
(घ) अन्य : जैसे-ही, भू-स्वामित्व, भू-सर्वेक्षण, भू-दान, मन-ही-मन, आदि।
(5) अव्यय : तक, साथ, आदि अव्यय सदा अलग लिखे जाएँ।।
जैसे – आपके साथ, यहाँ तक । हिंदी में आह, ओह ऐ, ही, तो, सो, भी न, जब, कब यहाँ, वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, पड़ी, जी, तक, भर, मात्र, केवल, किंतु, परंतु, लेकिन, मगर, चाहे, या अथवा तथा आदि अनेक प्रकार के भावों को बोध करानेवाले अव्यय हैं। कुछ अव्ययों के आगे विभक्ति चिह्न भी आते है।
जैसे – अब से, तब से, यहाँ से, वहाँ से, कहाँ से, सदा से आदि। नियमानुसार अव्यय हमेशा अलग लिखे जाने चाहिए। जैसे – आप ही के लिए, मुझ तक को, आप के साथ, गज भर, रात भर. वह इतना, भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्र है।
सम्मानार्थक श्री और जी अव्यय भी पृथक लिखे जाए। जैसे – श्री राम, महात्मा जी, माता जी, पिता जी, आदि। समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा, आदि अलग न लिखकर एक साथ लिखना चाहिए। जैसे – प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथायोग्य, यथोचित, यथासंभव आदि।
यह नियम है कि समास होने पर समस्त पद एक ही माना जाता है अत: उसे पृथक न लिखकर एक साथ ही लिखा जाना चाहिए।
(6) श्रुतिमूलक :
(क) श्रुतिमूलक ‘य’ ‘व’ का प्रयोग विकल्प से होता है, वहाँ न किया जाए अर्थात किए – किये, नई – नयी, हुआ-हुवा, आदि में पहले वाले सकारात्मक रूप को ही स्वीकारा जाना चाहिए। यह नियम विशेषण, क्रियाविशेषण अव्यय आदि के सभी रूपों और स्थितियों में लागू माना जाए। जैसे – दिखाए गए, राम के लिए, पुस्तक लिए हुए, नई दिल्ली आदि।
(ख) जहाँ ‘य’ श्रुतिमूलक शब्द का मूल रूप होता है वहाँ वैकल्पिक, श्रुतिमूलक स्वरात्मक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती । यहाँ व्याकरण के अनुसार परिवर्तन नहीं होना चाहिए। जैसे – स्थायी, अव्ययी भाव, दायित्व आदि को स्थाई, अव्यई भाव, दाइत्व नहीं लिखा जा सकता।
(7) अनुस्वार या अनुनासिकता के चिह्न (चंद्र बिंदु)
अनुस्वार ()और अनुनासिकता चिह्न (*) दोनो प्रचलित रहेंगे।
(क) संयुक्त व्यंजन के लय में जहाँ पंचमाक्षर के बाद सवर्गीय शेष चार वर्ण में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/ लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे – गंगा, चंचल, ठंडा, संपादक आदि में पंचमाक्षर के बाद स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(गड्गा, ठण्डा, सन्ध्या, सम्पादक, नहीं। यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए अथवा वहीं पंचमाक्षर दुबारा आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे – वाड्:मय, अन्न, सम्मेलन, सम्मति, सम्मान, चिन्मय, उन्मुख आदि। अत: वांमय, अंन, संमेलन, संमति, संमान, चिंमय आदि रूप ग्राह्य नहीं हैं। और स्पष्ट करने के लिए भिन्न रूप को देखें।
एक से चार वर्ण के साथ अनुस्वार (.) का प्रयोग होगा और पाँचवे वर्ण के अनुस्वार आनेपर आधे ड., म, ण, न, म का प्रयोग ( हलंत) होगा।
(ख) चंद्रबिंदु (*) के बिना प्राय: अर्थ से में संदेह की गुंजाइश रहती है। जैसे – हंस-हँस, अंगना-अंगना आदि में। इसलिए, ऐसे संदेह को दूर करने के लिए चंद्रबिंदु (*) का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए।
लेकिन जहाँ (विशेषकर शिरोरेखा के ऊपर जुड़ने वाली मात्रा के साथ) चंद्रबिंदु (*) के प्रयोग से छपाई आदि में बहुत कठिनाई हो और चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु (अनुस्वार चिह्न) का प्रयोग किसी प्रकार का संदेह उत्पन्न न करे, वहाँ उसका प्रयोग यथा स्थान अवश्य करना चाहिए।
इसी प्रकार छोटे बच्चों की प्रवेशिकाओं में जहाँ चंद्रबिंदु का उच्चारण दिखाना अभीष्ट हो, वहाँ उसका यथा स्थान प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे – कहाँ, हँसना, अँगना, वहाँ, यहाँ, सँवरना, आदि।