व्याकरण अलंकार (शब्दालंकार)
अलंकार का अर्थ है – आभूषण, गहने, सजावट आदि। सुंदर वस्त्र, आभूषण जैसे मानव शरीर की शोभा बढ़ाते हैं वैसे ही काव्य में अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। शब्द और अर्थ के माध्यम से अलंकार कविता का आकर्षण बढ़ाते हैं।
अलंकार के भेद : अलंकार के मुख्य भेद तीन हैं।
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
शब्दालंकार : जहाँ पर काव्य के सौंदर्य में शब्दों के माध्यम से वृद्धि होती है वहाँ शब्दालंकार होता है।
शब्दालंकार के भेद : शब्दालंकार के चार भेद हैं।
- अनुप्रास
- यमक
- श्लेष
- वक्रोक्ति
1. अनप्रास : जहाँ काव्य में किसी वर्ण की या अनेक वर्षों की दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदा. :
लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल।
लाली देखन मैं चली मैं भी हो गई लाल।।
– कबीर
मुदित महापति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।
– तुलसीदास
विमल वाणी ने वीणा ली
कमल कोमल कर में सप्रीत।
– जयशंकर प्रसाद
रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम।
– लक्ष्मणाचार्य
2. यमक : काव्य में किसी शब्द की आवृत्ति हो और हर बार उस शब्द का अर्थ भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है। काव्य का सौंदर्य बढ़ाने हेतु यहाँ शब्द की बार-बार आवृत्ति होती है।
उदा. :
तो पर बारों उरबसी, सुनि राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसी, हवै उरबसी समान।। – बिहारी
- उरबसी = अप्सरा
- उर्वशी उरबसी = हृदय में बसी हुई।
माला फेरत जग मुआ, गया न मन का फेर।
कर का मनका डारि के, मन का मनका फेर।। – कबीर
- मन का = हृदय से
- मनका = माला का मोती।
काली घटा का घमंड घटा, नभ मंडल तारक वृंद बुझे
- घटा = बादलों का समूह,
- घटा = कम हुआ।
जगती जगती की मूक प्यास
रूपसि, तेरा घन केश पाश। – महादेवी वर्मा
- जगती = जाग जाती है।
- जगती = जगत या संसार
3. श्लेष : श्लेष का शाब्दिक अर्थ है – मिलना अथवा चिपकना। जहाँ अनेकार्थक शब्दों के प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। अर्थात एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं।
उदा. :
मधुबन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ – हरिवंशराय बच्चन
- कलियाँ = फूल की कलियाँ
- कलियाँ = यौवन से पहले की अवस्था
चरण धरत चिंता करत, चितवत चारहु ओर।
सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।। – केशवदास
- सुवरन = अच्छा वर्ण (शब्द) (कवि के लिए)
- सुबरन = सुंदर रंग (व्यभिचारी के लिए)
- सुबरन = स्वर्ण (चोर के लिए)
रो-रोकर, सिसक-सिखककर कहता मैं करूण कहानी
तुम सुमन नोचते, सुनते करते जानी अनजानी।
- सुमन = सुंदर मन
- सुमन = फूल
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो – अज्ञेय
- स्नेह = तैल
- स्नेह = प्रेम
4. वक्रोक्ति : वक्रोक्ति शब्द वक्र + उक्ति से बना है जिसका सहज अर्थ है टेढ़ा कथन। वक्ता के कथन का श्रोता द्वारा अभिप्रेत आशय से भिन्न अर्थ लगाया जाता है। वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदा. :
‘एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
कहाँ अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है।’
यहाँ अपर का अर्थ दूसरा कबूतर के संबंध में पूछा गया था पर जवाब में अपर का अर्थ बिना पंख वाला लिया गया है।
पर्वतजा ! पशुपाल कहाँ है?
कमला ! जमुना तट ले धेनु।
पार्वती और लक्ष्मी में हास-परिहास हो रहा है। लक्ष्मी जी ने पूछा पशुपाल (पशुओं के स्वामी – शिव) कहाँ है? पार्वती जी ने परिहास करते हुए कहा यमुना नदी के तट पर गायों को चराने गए हैं (विष्णु जी का कृष्णावतार)
आने को मधुमास, न आएँगे प्रियतम !
आने को मधुमास, न आएँगे प्रियतम?
यहाँ प्रथम पंक्ति में प्रियतम के न आने की बात कही है तो द्वितीय पंक्ति में प्रश्नचिह्न लगाकर प्रियतम के अवश्य आने की (कैसे नहीं आएंगे, अवश्य आएँगे) बात कही है।