Chapter 11 भारती का सपूत
Textbook Questions and Answers
आकलन
1.
प्रश्न अ.
‘आप क्यों ऐसों के लिए सिर खपाते हैं…’ वाक्य में ऐसों’ का प्रयोग इनके लिए किया गया है…
(a) …………………………………………
(b) …………………………………………
(c) …………………………………………
उत्तर :
(a) विश्वेश्वर प्रसाद
(b) वेणीप्रसाद
(c) शत्रु
प्रश्न आ.
लिखिए –
उत्तर :
प्रश्न इ.
अंतर लिखिए –
मिशन के स्कूल – भारतीय स्कूल
(a) …………………………. (a) ………………………….
(b) …………………………. (b) ………………………….
उत्तर :
मिशन के स्कूल | भारतीय स्कूल |
(1) जहाँ अंग्रेजी पढ़ाई जाती है पर भारतीय संस्कृति नहीं पढ़ाई जाती। | (1) भारतीय भाषा पढ़ाकर भारतीय संस्कृति से अवगत कराया जाता है। |
(2) अंग्रेजी पढाकर हिंदओं को काले साहब बनाया जाता है। | (2) भारतीय एकता और अखंडता का निर्माण किया जाता है। |
शब्द संपदा
2. निम्नलिखित शब्दों के भिन्नार्थक अर्थ लिखकर उनसे अर्थपूर्ण वाक्य तैयार कीजिए :
(1) दिया : ……………………………………………..
उत्तर :
देना : भारतेंदु ने समाज को भारतीय संस्कृति का संदेश दिया है।
दीया : ……………………………………………..
उत्तर :
दीप : दीया जलते ही आलोक (प्रकाश) होता है।
(2) सदेह : ……………………………………………..
उत्तर :
देह के साथ, सशरीर : कहा जाता है संत तुकाराम का सदेह वैकुंठ गमन हुआ था।
संदेह : ……………………………………………..
उत्तर :
शंका : अच्छे इन्सान पर संदेह करना बुरी बात है।
(3) जलज : ……………………………………………..
उत्तर :
जल में जन्मा कमल : कीचड़ में जलज खिलते हैं।
जलद : ……………………………………………..
उत्तर :
बादल : आकाश में जलद छाए हुए थे।
(4) अपत्य : ……………………………………………..
उत्तर :
संतान : दो अपत्य के बजाय आज एक अपत्य ही पर्याप्त है।
अपथ्य : ……………………………………………..
उत्तर :
अहितकर : अपथ्य भोजन से दूर रहना चाहिए।
(5) उद्दाम : ……………………………………………..
उत्तर :
निरंकुश : आज की पीढ़ी उद्दाम हो रही है।
उद्यम : ……………………………………………..
उत्तर :
उद्योग, पुरुषार्थ : उद्यम से वर्तमान और भविष्य दोनों में अच्छा परिवर्तन आता है।
अभिव्यक्ति
3.
प्रश्न अ.
‘भाषा राष्ट्र के विकास में सहायक होती है’, इसपर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
किसी भी राष्ट्र का विकास उस देश की एकता और अखंडता पर निर्भर करता है। एकता और अखंडता देश की भाषा पर निर्भर होती है। जिस देश में एक राष्ट्रभाषा होती है, देश के सभी लोग एक भाषा में बोलते हैं और अपना व्यवहार एक ही भाषा में करते हैं। परिणाम स्वरूप देश के अनेक प्रश्न अपने आप हल हो जाते हैं। आज भारत देश का विचार किया जाय तो भारत देश से अंग्रेज चले गए, पर अंग्रेजी भाषा की हुकूमत नहीं गई।
अंग्रेजी एक वैज्ञानिक भाषा है, उसे बिल्कुल विरोध नहीं है। परंतु वह भाषा देश की एकता को नहीं बना सकती। देश के सभी लोग इसे बोल नहीं पाते, नाही समझ सकते हैं। हिंदी भारत की बोलचाल की भाषा है, देश के अधिक से अधिक लोग जिसे बोलते हैं, समझते हैं, अपना सारा व्यवहार जिसमें कर सकते हैं। इसलिए देश के विकास में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के अनेक प्रश्न केवल भाषा से दूर हो सकते हैं।
भाषानिहाय प्रांतरचना करने से अनेक राज्यों में संघर्ष दिखाई देता है। राज्यों के लोगों में राज्य विभाजन के साथ स्वतंत्र राज्य निर्मिति का विचार पनपता है। क्षेत्रीय स्वार्थ को तिलांजली देकर पृथकता की भावना का अंतिम संस्कार कर देना चाहिए। एक देश-एक भाषा का होना देश की एकता और अखंडता के लिए बहुत जरूरी है। देश की राष्ट्रीयता को बनाए रखने के लिए भी देश में एक ही राष्ट्रभाषा होना जरूरी है।
आज भारत में राष्ट्रीय एकता, अखंडता, सीमा, स्वतंत्र राष्ट्र निर्माण का प्रयास आदि सारे प्रश्नों का मूल भाषा ही है। इसलिए राष्ट्र का विकास करना है तो देश में एक राष्ट्रभाषा का होना जरूरी है और वही भाषा होनी चाहिए जिसमें हमारी संस्कृति छिपी है जिसे हम बोल पाते हैं, समझ सकते हैं।।
प्रश्न आ.
‘व्यक्ति की करनी और कथनी में अंतर होता है’, इस उक्ति पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आज समाज में ऐसे अनेक लोग हैं, जो होते कुछ हैं, और दिखाते कुछ हैं। ऐसे बहुरुपियों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे ही लोग समाज को धोखा देते हैं। कथनी और करनी एक होना, आदर्श व्यक्ति की निशानी है। ‘जान जाए पर वचन न जाए’ भारत की यही संस्कृति है। आज राजनीति में इसके विपरीत नजर आता है। चुनाव जब आता है तब हमारे नेता कहते कुछ हैं और चुनाव समाप्त होते ही करते कुछ हैं।
इनकी कथनी और करनी कभी एक नहीं होती, हमेशा कथनी और करनी में अंतर होता है। समाज को शिक्षा देने वाला चाहे वह नेता हो, या अध्यापक, वह पत्रकार हो, या समाज-सुधारक हो, या फिर प्रशासकीय अधिकारी हो इन सब पर देश का भविष्य निर्भर है।
व्यसनाधिनता को दूर करने के लिए उपदेश देने वाला अध्यापक छात्रों को व्यसन के दोष बताता है और वह खुद सिगरेट पीता है तो गलत है। आपपर आने वाली पीढ़ी का भविष्य निर्भर है। आप खुद आदर्श पर कायम रहो। समाज को आदर्श देने वालों में अगर करनी और कथनी में अंतर है तो समाज पर इसका कोई असर नहीं होता।
आज अनेक दोष है, जिसे दूर करने के लिए अनेक लोग उपदेश देते हैं, सलाह देते हैं, पर वह खुद उन दोषों से दूर नहीं हटे हैं। करनी और कथनी में अंतर यह आज की विडंबना है।
4. पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न
प्रश्न अ.
भारतेंदु ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को दुहराया….’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर :
भारतेंदु जी हरिश्चंद्र जी का जन्म उच्च कुल में हुआ था। भारतेंदु जी के जन्म के समय उच्च वर्गों का समाज पर बहुत बड़ा असर था। उच्च कुलों का ही सम्मान था। यहाँ तक की देश की सामाजिक सत्ता उस वक्त देश के उच्च कुल के ही हाथ में थी।
परिस्थिति यह थी कि उस वक्त समाज वर्गों में बँट गया था। निम्न वर्ग के लोगों के लिए किसी प्रकार के कोई भी अधिकार नहीं थे। वे शिक्षा से काफी दूर थे, परिणामवश निम्न वर्ग के लोगों में अज्ञान, अंधविश्वास, कुरीति, कुपरंपरा, जिससे निर्माण होनेवाला दारिद्र्य काफी बड़ी मात्रा में नजर आता था।
भारतेंदु जी का जन्म भले ही उच्च कुल में क्यों न हुआ पर बचपन से उनके मन में निम्नवर्ग के प्रति आदर था। सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए भारतेंदु जी ने हिंदी स्कूलों का निर्माण किया जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, संस्कार, भारतीय भाषा को सिखाने का प्रयास किया।
भारतेंदु जी अपने कुल से सम्मानित न होकर उनके पास जो प्रतिभा थी उनसे सम्मानित व्यक्ति बने थे। साथ ही साथ निम्न वर्ग के लिए उन्होंने जो काम किया यह उसका परिचायक है।
भारतेंदु जी का साहित्य, उनकी सामाजिक सेवा का कार्य, पत्रकारिता के माध्यम से लोगों को जगाने का काम, अंग्रेजी स्कूलों से निर्माण होने वाले कालेसाहब जो अपनों पर ही हुकूमत करते थे, इनका विरोध किया। उनके कार्य इस बात का परिचय देते हैं कि भारतेंदु जी ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को दुहराया है।
देश, धर्म, साहित्य, दारिद्र्य मोचन, अपमानिता नारी के उद्धार के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।
प्रश्न आ.
‘भारती का सपूत के आधार पर भारतेंदु की उदार प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। भारतेंदु जी के जीवन और कार्य को आने वाली पीढ़ी के सामने रखना लेखक का उद्देश्य है। प्रस्तुत पाठ से भारतेंदु जी की उदार प्रवृत्ति स्पष्ट नजर आती है। भारतेंदु जी भले ही उच्च कुल में पैदा हुए हो पर उन्होंने अपना पूर्ण जीवन सामान्य लोगों के लिए बिताया है। साहित्य के क्षेत्र में हिंदी गद्य का निर्माण करके हिंदी भाषा को जनमानस की भाषा बनाने का काम किया।
अंग्रेजी और हिंदी स्कूल खोलकर भारतेंदु जी ने निम्न वर्ग के अज्ञान, अंधश्रद्धा और कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। स्कूल में आने वाले छात्रों के लिए वह बिना शुल्क लिए पढ़ाते थे। साथ-ही-साथ छात्रों को किताबें और कलम मुफ्त में देते थे। इतना ही नहीं छात्रों के लिए खाना भी देते थे।
यह उनकी उदार प्रवृत्ति का उदाहरण है। अनेक प्रकार की पत्रिकाओं से समाज को जगाकर लोगों का दारिद्र्य दूर किया। शिक्षा, साहित्य, समाजसेवा, पत्रकारिता आदि सभी क्षेत्रों से भारतेंदु जी ने जन मानस के लिए जो कार्य किया है वह सब उनकी उदार प्रवृत्ति का परिचायक है।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
5. जानकारी दीजिए:
प्रश्न अ.
रांगेय राघव जी की रचनाओं के नाम –
…………………………………………………………………
…………………………………………………………………
उत्तर :
उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, देवकी का बेटा, घरौंदा, कब तक पुकारूँ, आखिरी आवाज आदि कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी आदि।
प्रश्न आ.
भारतेंदु द्वारा रचित साहित्य –
…………………………………………………………………
…………………………………………………………………
उत्तर :
काव्य कृतियाँ – भक्त सर्वस्व, प्रेममालिका, प्रेम-तरंग, वर्षा-विनोद, कष्ण – चरित्र प्रमुख निबंध – कालचक्र, कश्मीर, कुसुम, जातिय संगीत, स्वर्ग में विचार सभा नाटक – सत्य हरिश्चंद्र, श्री चंद्रावली, भारत दुर्दशा अँधेर नगरी, प्रेमजोगिनी आत्मकथा – ‘एक कहानी – कुछ आप बीती, कुछ जग बीती’ उपन्यास – पूर्णप्रकाश, चंद्रप्रभा यात्रा वृत्तांत – सरयू पार की यात्रा, लखनऊ
Additional Important Questions and Answers
कृतिपत्रिका
(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
गद्यांश : भारतेंदु के जन्म के समय उच्च वर्गों का बहुत बड़ा ………… मुफ्त दवा बँटती थी। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 56) |
प्रश्न 1.
तालिका पूर्ण कीजिए :
भारतेंदु जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ | भारतेंदु जी की उम्र |
(i) कविताएँ रचना शुरू किया | …………………………………. |
(ii) मन्नोदेवी से विवाह | …………………………………. |
(iii) नौजवानों का संघ बनाना | …………………………………. |
(iv) वाद-विवाद सभा की स्थापना | …………………………………. |
उत्तर :
भारतेंदु जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ | भारतेंदु जी की उम्र |
(i) कविताएँ रचना शुरू किया | पाँच वर्ष |
(ii) मन्नोदेवी से विवाह | तेरह वर्ष |
(iii) नौजवानों का संघ बनाना | सत्रह वर्ष |
(iv) वाद-विवाद सभा की स्थापना | अठारह वर्ष |
प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
(i) भारतेंदु जी को महत्त्व दिया गया ………………………………
उत्तर :
भारतेंदु जी को महत्त्व दिया गया उसका कारण उच्च कुल नहीं बल्कि उनकी प्रतिभा थी।
(ii) भारतेंदु जी ने वाद-विवाद सभा स्थापित की ………………………………
उत्तर :
भाततेंदु जी ने वाद-विवाद सभा स्थापित की क्योंकि वे भाषा और समाज का सुधार करना चाहते थे।
प्रश्न 3.
निम्न समोच्चारित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए :
(i) प्रधान / प्रदान
(ii) दिन / दीन
उत्तर :
प्रधान : मुख्य
प्रदान : देने की क्रिया या भाव
दिन : दिवस
दीन : गरीब
प्रश्न 4.
‘दीन-दुखियों की सेवा ही ईश्वर सेवा है’, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जो मनुष्य स्वयं के सुख हेतु जीता है वह स्वार्थी होता है परंतु जो परोपकार करता है, दीन-दुखियों की सेवा करता है वह महात्मा होता है। जरूरत मंदों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची इबादत है। कर्म ही एक व्यक्ति की पहचान है। गरीबों का मित्र बनकर सेवा करना या बीमार व्यक्तियों की देखभाल करना, समाज का कल्याण करने में जीवन बिताना एक अर्थ में ईश्वर की पूजा करना ही है। क्योंकि इन्हीं दीन-दुखियारों की बस्ती में ईश्वर का वास होता है।
मानव सेवा ही ‘माधव’ सेवा है। दीनों की सेवा करके एक व्यक्ति ईश्वर को प्रसन्न कर पाता है और ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त कर लेता है। इसीलिए तो कहा गया है कि,
भलाई बाँटने वाले कभी मोहताज नहीं होते,
हर दुख की दवा उनके पास होती है।’
जो ईश्वर सेवा करना चाहते हैं उन्हें हर समय दूसरे की भलाई के बारे में सोचना चाहिए बेसहारा लोगों को सहारा देना चाहिए। दूसरों का दुख बाँटने वाले का जीवन कभी व्यर्थ नहीं जाता।
(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
गद्यांश : क्योंकि हम लोगों के पास धन है ………… मुफ्त खाना भी बँटवाने लगे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 57) |
प्रश्न 1.
प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
(i) भारतेंदु द्वारा खोले स्कूल में दी गई सुविधाएँ –
उत्तर :
भारतेंदु द्वारा खोले स्कूल में दी गई सुविधाएँ –
(ii) मदरसे में अध्यापन करने वाले व्यक्ति –
उत्तर :
मदरसे में अध्यापन करने वाले व्यक्ति –
प्रश्न 3.
(i) लिंग बदलकर लिखिए :
उत्तर :
(1) देवर – ……………………………………
(2) अध्यापक – ……………………………………
उत्तर :
(1) देवर – देवरानी
(2) अध्यापक – अध्यापिका
(ii) वचन वदलिए :
(1) लड़के – ……………………………………
(2) फसल – ……………………………………
उत्तर :
(1) लड़के – लड़का
(2) फसल – फसलें
प्रश्न 4.
‘भारतीय संस्कृति’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति है। वह सर्वाधिक संपन्न और समृद्ध है। ‘अनेकता में एकता’ इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें सहस्त्रो धर्म ग्रंथ, सैकंड़ों आचार ग्रंथ, वेद, पुराण, देवी-देवता, गुरु, महंत और उनकी विभिन्न मान्यताएँ हैं; परंतु हम एक ही परमेश्वर को मानते हैं।
इसकी अन्य विशेषता है इसका लचीलापन। इसमें समन्वय का एक अनोखा गुण विद्यमान है। इसीलिए आस्तिक-नास्तिक, मूर्तिपूजक व विरोधी, मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, अलग-अलग भाषाएँ, पितृसत्तात्मक व मातृसत्तात्मक परिवार सभी को सुंदर पुष्पों के रूप में मानकर भारतीय संस्कृति सुगंध से भरपूर उपवन बनी है। वह हमें एक-दूसरे का आदर करना सिखाती है। सत्य, नैतिकता, ईमानदारी जैसे जीवन मूल्यों को महत्त्व देती है।
यह विश्व की एकमात्र ऐसी संस्कृति है जो विश्वशांति एवं विश्वबंधुत्व का संदेश देती है। यह एक ऐसा गुलदस्ता है जो विभिन्न विचारों के फूलों से सुसज्जित और स्नेह की डोरी में बँधा हुआ है।
(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
गद्यांश : मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह ………… क्या वह मनुष्य था! (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 58) |
प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
सह-संबंध लिखिए :
(1) कुलीन – याचक को ना नहीं कर सकता था।
(2) धनी – देश में सुधार करता घूमता रहा।
(3) निर्भीक – जो मनुष्यों से प्रेम करना जानता था।
(4) दानी – उन्मुक्त हाथों से लोगों की मदद करता था।
उत्तर :
(1) कुलीन – जो मनुष्यों से प्रेम करना जानता था।
(2) धनी – उन्मुक्त हाथों से लोगों की मदद करता था।
(3) निर्भीक – देश में सुधार करता घूमता रहा।
(4) दानी – याचक को ना नहीं कर सकता था।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को प्रत्यय लगाकर नया शब्द बनाइए
(1) कुल – ………………………………….
(2) धर्म – ………………………………….
(3) देश – ………………………………….
(4) भारत – ………………………………….
उत्तर :
(1) कुलीन
(2) धार्मिक
(3) देशी
(4) भारतीय
प्रश्न 4.
‘देश के प्रति मेरा कर्तव्य’ अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
देश के प्रति हम सब की कुछ जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य हैं जो हमें निभाने चाहिए। हमें हमारे राष्ट्र को, राष्ट्र ध्वज को तथा राष्ट्र गान को सम्मान देना चाहिए। देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। देश के कानून का कठोरता से पालन करना चाहिए।
हमारी राष्ट्रीय थाती एवं सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए। पर्यावरण को साफसुथरा रखना हमारा कर्तव्य है। हमारी प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है। अपनी योग्यता, रुचि, अभिरुचि के अनुरूप देश के विकास में योगदान देना चाहिए। हमें बुद्धिमानी से मतदान कर नेता चुनना चाहिए। हमें अपने करों का भुगतान समय पर करना चाहिए।
देश का उज्ज्वल भविष्य हमारे हाथ में है इस बात को सदैव याद रखकर अपने कर्तव्य ईमानदारी से निभाना ही देशभक्ति है। हमारी सोच सकारात्मक हो। हमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग करना चाहिए और वैज्ञानिक सोच अपनाकर अग्रसर होना चाहिए।
Summary in Hindi
भारती का सपूत लेखक परिचय :
रांगेय राघव जी का जन्म 17 जनवरी 1923 को श्री रंगाचार्य के घर उत्तर प्रदेश में हुआ। आपकी पूर्ण शिक्षा आगरा में हुई। वहीं से आपने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। आंचलिक ऐतिहासिक तथा जीवनीपरक उपन्यास लिखने वाले रांगेय राघव जी के उपन्यासों में भारतीय समाज का यथार्थ (actual) चित्रण प्राप्त है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनात्मक (creative) लेखन करके हिंदी साहित्य को समृद्धि (prosperity) प्रदान की है।
आपने मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया। सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा पर महानता मिली गद्य लेखक के रूप में। 1946 में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए आप प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।
1962 में आपको कैंसर रोग पीड़ित बताया गया। उसी वर्ष 12 सिंतबर को आप मुंबई में देह त्यागी। पुरस्कार : हिंदुस्तान अकादमी, डालमिया पुरस्कार, मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार।
भारती का सपूत प्रमख कतियाँ :
उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, बारी बरणा खोल दो, देवकी का बेटा, रत्ना की बात, भारती का सपूत, यशोधरा जीत गई, घरौंदा, लोई का ताना, कब तक पुकारूँ, राई और पर्वत, आखिरी आवाज आदि। कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी, जाति और पेशा आदि
भारती का सपूत विधा का परिचय :
‘उपन्यास’ वह गद्य कथानक है जिस के द्वारा जीवन तथा समाज की व्यापक व्याख्या की जा सकती है। उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना अधिक समुचित होगा। साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण का द्योतक है। साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा लेखक के लिए अपने पात्रों, उनकी समस्याओं तथा उनके जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना आसान हो गया है।
उपन्यास हमारे जीवन का प्रतिबिंब होता है, जिसको प्रस्तुत करने में कल्पना का प्रयोग आवश्यक है। मानव जीवन का सजीव चित्रण उपन्यास है। उपन्यास महान सत्यों और नैतिक आदर्शों का एक अत्यंत मूल्यवान साधन है।
भारती का सपूत विषय प्रवेश :
जीवन में अनेक ऐसी महान विभूतियाँ होती है, जिनका स्मरण करके हम आने वाली पीढ़ी के सामने उनका आदर्श रख सकते हैं। प्रस्तुत जीवनपरक उपन्यास में हिंदी गद्य के जनक तथा पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जन्मदिन के अवसर पर अध्यापक रत्नहास ने लोगों को निमंत्रित करके एक तरफ उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ निमंत्रित लोगों के सामने भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं को उजागर किया।
भारतीय भाषा और संस्कृति, अंग्रेजी स्कूलों का दुष्परिणाम, हिंदी अंग्रेजी पाठशाला निर्माण, बचपन से ही साहित्य के प्रति रुझान, पिता का आदर्श, आदि कार्यों का लेखा-जोखा रखकर श्रद्धा प्रकट करना और जीवन में प्रेरणा लेना पाठ का उद्देश्य है। केवल 34 वर्ष 4 महीने जिंदगी जीने वाले भारतेंदु जी का जीवन आदर्शवत (idealizing) है।
भारती का सपूत पाठ का परिचय :
‘भारती का सपूत’ रांगेय राघव लिखित जीवनीपरक उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत जीवनी परक उपन्यास में हिंदी गद्य भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन को आधार बनाकर, उनके जीवन के कुछ पहलुओं को उजागर किया गया है। बचपन से ही साहित्य एवं शिक्षा के प्रति रुझान ने भारतेंदु जी को हिंदी साहित्य जगत का देदीप्यमान इंदु अर्थात चंद्रमा बना दिया।
अंग्रेजों की नीतियाँ, सामाजिक कुरीतियाँ, एवं अशिक्षा के खिलाफ भारतेंदु जी द्वारा जगाई अलख को उपन्यासकार ने अपनी लेखनी से और भी प्रज्वलित किया है।
भारती का सपूत सारांश :
‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। इसमें भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं का वर्णन किया है। भारतेंदु जी का जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। इसलिए अध्यापक रत्नहार जी ने भारतेंदु जी के जन्मदिन के अवसर पर लोगों को बुलाकर उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ उनके जीवन का बखान करके लोगों में प्रेरणा निर्माण की।
भारतेंदु जी के पिता कवि थे, उसका असर बचपन में ही भारतेंदु जी पर पड़ा और 5 वर्ष की उम्र में ही भारतेंदु जी कविता लिखने लगे। उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था, जिसका प्रभाव समाज पर था। परंतु भारतेंदु जी कुल के कारण महान नहीं बने बल्कि उनके कार्य से महान बने थे।
भारतेंदु जी की शादी 13 वर्ष की उम्र में मन्नो देवी से हुई। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने नौजवानों का संघ बनाया था। उसके बाद वाद-विवाद सभा का निर्माण किया। इस सभा का उद्देश्य भाषा और समाज का सुधार करना था। 18 वर्ष की आयु में बनारस इन्स्टिट्युट और ब्रह्मामृत वार्षिक सभा के प्रधान सहायक रहे। कविवचन-सुधा नामक पत्रिका का निर्माण किया। होम्योपैथिक चिकित्सालय निर्माण करके लोगों को मुफ्त इलाज किया और दवाएँ दीं।
भारतेंदु जी के काल में अंग्रेजी स्कूल थे, जिसका परिणाम – लोग काले साहेब बनकर अपनों पर ही हुकूमत करते थे इसलिए भारतेंदु जी ने हिंदी तथा अंग्रेजी पाठशालाओं का निर्माण किया, जिससे भारतीय संस्कृति तथा भाषा का विकास हो सकें।
केवल 34 वर्ष 4 महीने की आयु में भारतेंदु जी आखरी दिनों में बिस्तर पर पड़े थे, परंतु फिर भी देश के प्रति उनकी निष्ठा बनी थी। उन्होंने साहित्य, देश, धर्म, दारिद्र्यमोचन, कला और अपमानित नारी के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।
भारती का सपूत शब्दार्थ :
- कौतूहल = जिज्ञासा
- तारतम्य = सामंजस्य
- तादात्म्य = अभिन्नता, एकरूपता
- क्षीणकाय = दुर्बल, जर्जर शरीर
- कौतुहल = जिज्ञासा (curiosity),
- तारतम्य = सांमजस्य (sequence),
- तादात्म्य = एकरूपता (equability),
- क्षीणकाय = दुर्बल, जर्जर शरीर (weak body),
- हुकूमत = अधिकार, सत्ता (regime),
- पुरखों = पूर्वज (ancestor),
- उन्मुक्त = स्वच्छंद, स्वतंत्र (freelance),
- न्यौछावर = कुरबान (sacrifice),
- दोगलो = नाजायज, (जो विवाहेतर संबंध से उत्पन्न) (illegitimate)