HSC SAMPLE PAPER-3 Hindi

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SAMPLE PAPER-3 Hindi

Questions

विभाग – 1 गद्य (अंक-20)

(क) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का एक पैराग्राफ मँने पढ़ा है। वह उनके अपने ही संबंध में है : “में खुली सड़क पर कोड़े खाने से इसलिए बच जाता हूँ कि लोग मेरी बातों को दिल्लगी समझकर उड़ा देते हैं। बात यूँ है कि मेरे एक शब्द पर भी वे गौर करें, तो समाज का ढाँचा डगमगा उठे।”

“वे मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते, यदि मुझ पर हँसें नहीं। मेरी मानसिक और नैतिक महत्ता लोगों के लिए असहनीय है। उन्हें उबाने वाली खाबियों का पुंज लोगों के गले के नीचे कैसे उतरे ? इसलिए मेरे नागरिक बंधु या तो कान पर उँगली रख लेते हैं या बेवकूफी से भरी हँसी के अंबार के नीचे ढँक देते हैं मेरी बात।” शॉ के इन शब्दों में अहंकार की पैनी धार है, यह कहकर हम इन शब्दों की उपेक्षा नहीं कर सकते क्योंकि इनमें संसार का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सत्य कह दिया गया है।

संसार में पाप है, जीवन में दोष, व्यवस्था में अन्याय है, व्यवहार में अत्याचार और इस तरह समाज पीड़ित और पीड़क वर्गों में बँट गया है। सुधारक आते हैं, जीवन की इन विडंबनाओं पर घनघोर चोट करते हैं। विडंबनाएँ टूटती-बिखरती नजर आती हैं पर हम देखते हैं कि सुधारक चले जाते हैं और विडंबनाएँ अपना काम करती रहती हैं।

आखिर इसका रहस्य क्या है कि संसार में इतने महान पुरुष, सुधारक, तीर्थकर, अवतार, संत और पैगंबर आ चुके पर यह संसार अभी तक वैसा-का-वैसा ही चल रहा है। इसे वे क्यों नहीं बदल पाए ? दूसरे शब्दों में जीवन के पापों और विडंबनाओं के पास वह कौन-सी शक्ति है जिससे वे सुधारकों के इन शक्तिशाली आक्रमणों को झेल जाते हैं और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर नहीं जाते ?

शॉ ने इसका उत्तर दिया है कि मुझ पर हँसकर और इस रूप में मेरी उपेक्षा करके वे मुझे सह लेते हैं। यह मुहावरे की भाषा में सिर झुकाकर लहर को ऊपर से उतार देना है।

शॉ की बात सच है पर यह सच्चाई एकांगी है। सत्य इतना ही नहीं है। पाप के पास चार शस्त्र हैं, जिनसे वह सुधारक के सत्य को जीतता या कम-से-कम असफल करता है। मैने जीवन का जो थोड़ा-बहुत अध्ययन किया है, उसके अनुसार पाप के ये चार शस्त्र इस प्रकार हैं:-

उपेक्षा, निंदा, हत्या और श्रद्धा।

  1. कृति पूर्ण कीजिए।

(i) पाप के चार हथियार ये हैं-

(ii) जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का कथन-
2. (i) महत्ता –

(ii) सत्य –

(iii) दिल्लगी –

(iv) अध्ययन –

  1. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: समाज सुधारक समाज में व्याप्त बुराइयों की पूर्णतः समाप्त करने में विफल रहे। इस पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।

(ख) निम्नलिखित पठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

इस अल्हड़ उम्र में अगर वह लड़की अपने परिवार के स्नेह संरक्षण से मुक्त है, आजादी के नाम पर स्वयं को जरूरत से ज्यादा अहमियत देकर अंतर्मुखी हो गई है तो उसके फिसलने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। अपने में अकेली पड़ गई लड़की जैसे ही किसी लड़के के सम्पर्क में आती है, उसे अपना हमदर्द समझ बैठती है और उसके बहकने की, उसके कदम भटकने की संभावना और भी बढ़ जाती है। लगता है, अपने परिवार से कटी रचना के साथ ऐसा ही है। यदि सचमुच ऐसा है तो तुम्हें और भी सावधानी से काम लेना होगा अन्यथा उसे समझाना मुश्किल होगा, उलटे तुम्हारी दोस्ती में दरार आ सकती है।

एक अच्छी सहेली के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो। अगर लगे कि वह अपने परिवार से कटी हुई हे तो उसकी इस टूटी कड़ी को जोड़ने का प्रयास करो। जैसे तुम मुझे पत्र लिखती हो, उससे भी कहो; वह अपनी माँ को पत्र लिखे। अपने घर की, भाई-बहनों की बातों में रुचि लें। अपनी समस्याओं पर माँ से खुलकर बात करे और उनसे सलाह ले। यदि उसकी माँ इस योग्य न हो तो वह अपनी बड़ी बहन या भाभी से निर्देशन ले। यह भी संभव न हो तो अपनी किसी समझदार सहेली या रिश्तेदार को ही राजदार बना ले। घर में किसी से भी बातचीत का सिलसिला जोड़कनर वह अपनी समस्या से अकेले जूझने से निजात पा सकती है। नहीं तो तुम तो हो ही। ऐसे समय वह तुम्हारी बात न सुने, तुम्हें झटक दे, तब भी उसकी वर्तमान मनोदशा देखकर तुम्हें उसकी बात का बुरा नहीं मानना है। उसका मूड देखकर उसका मन टटोलो और उसे प्यार से समझाओ।

  1. संजाल पूर्ण कीजिए:
  1. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलकर लिखिए-
    (i) समस्या
    (ii) बात
    (iii) लड़का
    (iv) शक्ति
  2. निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। माँ संतान की सच्ची अंतरंग सहेली होती है; इस कथन पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत लिखिए।

(ग) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 60 से 80 शब्दों में लिखिए।

(तीन में से दो)

(i) ‘सुनो किशोरी’ इस पाठ के आधार पर रूढ़ि परंपरा तथा मूल्यों के बारे में लेखिका के विचार स्पष्ट कीजिए।

(ii) ‘आदर्श बदला’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए।

(चार में से दो)

(i) सुदर्शन ने इस लेखक की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है।

(ii) कहानी विधा की विशेषता लिखिए।

(iii) ‘सुनो किशोरी ‘-यह पाठ कौनसी शैली में लिखा गया है ?

(iv) हिंदी के कुछ आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को कौनसी उपाधि दी गई ?

2. विभाग – 2 पद्य (अंक-20)

(क) निम्नलिखित पठित काव्यांश को पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए। तुमने विश्वास दिया है मुझको, मन का उच्छ्वास दिया है मुझको।

मैं इसे भूमि पर सँभालूँगा, तुमने आकाश दिया है मुझको।

सूत्र यह तोड़ नहीं सकते हैं, तोड़कर जोड़ नहीं सकते हैं। व्योम में जाएँ, कहीं भी उड़ जाएँ, भूमि को छोड़ नहीं सकते हैं।

सत्य है, राह में अँधेरा है, रोक देने के लिए घेरा है। काम भी और तुम करोगे क्या, बढ़ चलो, सामने अँधेरा है।

  1. कृति पूर्ण कीजिए-

(i)

  1. शब्द सम्पदा-निम्नलिखित शब्द के अर्थ वाले दो शब्द पद्यांश से ढूँढकर लिखिए-

(i) नभ- (1)

(ii) विलोम शब्द लिखिए-

(1) विश्वास-

(2) सामने

  1. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। ‘धरती से जुड़ा रहकर ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है, इस विषय पर अपका मत प्रकट कीजिए।

(ख) निम्नलिखित पठित काव्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
सरसुति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात। ज्यां खरचै त्यों-त्याँ बढ़, बिन खरचे घटि जात॥

नैन देत बताय सब, हिय को हेत-अहेत।

जैसे निरमल आरसी, भली बरी कहि देत॥

अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर।

तेते पाँव पसारिए, जेती लाँबी सौर ॥

फेर न हूवै हैं कपट सों, जो करीजै ब्यौपार।

जैसे हाँड़ी काठ की, चढ़ न दूजी बार ॥

ऊँचे बैठे ना लहैं, गुन बिन बड्पपन कोइ।

बैठो देवल सिखर पर, वायस गरुड़ न होइ॥

उद्यम कबहुँ न छाँड़िए, पर आसा के मोद। गागरि कैसे फोरिए, उनयो देखि पयोद॥

  1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

(i) उपर्युक्त पद्यांश में आँखों की तुलना किससे की गई ?

(ii) काम शुरू करने से पहले किस बारे में सोचना बहुत जरूरी होता है ?

(iii) सरस्वती का भंडार अपूर्व क्यों है ?

(iv) दूसरे की आशा के भरोसे क्या बंद नहीं करना चाहिए ?

  1. निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए:
    (i) सौर-
    (ii) नैना-
    (iii) पाँव-
    (iv) काठ-
  2. चादर देखकर पैर फैलाना बुद्धिमानी कहलाती है। इस विचार पर अपना मत 40 से 50 शब्दों में व्यक्त कीजिए:

(ग) रसास्वादन कीजिए। (दो में से एक)

  1. बसंत और सावन ऋतु जीवन के साँदर्य का अनुभव कराती हैं। इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।
  2. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘नवनिर्माण’ कविता का रसास्वान कीजिए।

मुद्दे :
(i) रचना का शीर्षक
(ii) रचनाकार का नाम
(iii) पसंद की पंक्तियाँ
(iv) पसंद आने के कारण
(v) कविता का केन्द्रीय भाव

(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए। (चार में से दो)
(i) वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ लिखिए।

(ii) दोहा छंद की विशेषताएँ लिखिए। (iii) नयी कविता का परिचय दीजिए।

(iv) चतुष्पदी के लक्षण लिखिए।

3. विभाग – 3 विशेष अध्ययन (अंक-10)

(क) “मैं कल्पना करती हूँ कि अर्जुन की जगह में हूँ और मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है और में नहीं जानती कि युद्ध कौन-सा है और मैं किसके पक्ष में हूँ और समस्या क्या है और लड़ाई किस बात की है लेकिन मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है क्योंकि तुम्हारे द्वारा समझाया जाना मुझे बहुत अच्छा लगता है और सेनाएँ स्तब्ध खड़ी हैं और इतिहास स्थगित हो गया है और तुम मुझे समझा रहे हो कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व, शब्द, शब्द, शब्द

मेरे लिए नितांत अर्थहीन हैं-

में इन सबके परे अपलक तुम्हें देख रही हूँ

हर शब्द को अँजुर बनाकर

बूँद-बूँद तुम्हें पी रही हूँ

और तुम्हारा तेज

मेरे जिस्म के एक-एक मूच्छित संवेदन को धधका रहा है

और तुम्हारे जादू भरे होंठों से रजनीगंधा के फूलों की तरह टप-टप शब्द झर रहे हैं एक के बाद एक के बाद एक कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व मुझ तक आते-आते सब बदल गए हैं मुझे सुन पड्ता है केवल
राधन, राधन, राधन, शब्द, शब्द, शब्द, तुम्हारे शब्द अगणित हैं कनु-संख्यातीत पर उनका अर्थ मात्र एक हैमैं

4. मैं

केवल मैं!

फिर उन शब्दों से मुझी को इतिहास कैसे समझाओगे कनु ?

  1. निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लिखिए।

(i) कनुप्रिया के मन में मोह क्यों उत्पन्न हो गया है ?

(ii) कनुप्रिया के लिए कनु के अर्थहीन शब्द कौनसे हैं?

(iii) कनु के सभी शब्दों के कनुप्रिया के लिए केवल कौनसा अर्थ है?

(iv) उपर्युक्त पद्यांश में शब्द किस फूलों की तरह टप-टप झर रहे हैं?

  1. समानार्थी शब्द लिखिए।
    (i) समस्या
    (ii) स्तब्ध
    (iii) दायित्व
    (iv) आँजुरी
  2. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए : ‘व्यक्ति को कर्म प्रधान होना चाहिए।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर 80 से 100 शब्दों में लिखिए : (दो में से एक)

(i) कनुप्रिया में लेखक ने राधा के मन की व्यथा का चित्रण किस प्रकार किया है ?

(ii) कनुप्रिया के मन में कौनसा मोह उत्पन्न हो गया है और क्यों ?

5. विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली (अंक-20)

(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों में लिखिए: पल्लवन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।

6. अथवा

निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए। रोचक प्रसंगों के साथ स्नेहा विद्यार्थियों को फीचर लेखन की विशेषताएँ बताने लगी, “अच्छा फीचर नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण होता है। किसी घटना की सत्यता अथवा तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व है। फीचर लेखन में राष्ट्रीय स्तर के तथा अन्य महत्त्वपूर्ण
विषयों का समावेश होना चाहिए क्योंकि समाचार पत्र दूर-दूर तक जाते हैं। इतना ही नहीं; फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिए। फीचर लेखन में भावप्रधानता होनी चाहिए क्योंकि नीरस फीचर कोई नहीं पढ़ना चाहता। फीचर के विषय से संबंधित तथ्यों का आधार दिया जाना चाहिए।” स्नेहा आगे बोलती जा रही थी, “विश्वसनीयता के लिए फीचर में विषय की तार्किकता को देना आवश्यक होता है। तार्किकता के बिना फीचर अविश्वसनीय बन जाता है। फीचर में विषय की नवीनता का होना आवश्यक है क्योंकि उसके अभाव में फीचर अपठनीय बन जाता है। फीचर में किसी व्यक्ति अथवा घटना

विशेष का उदाहरण दिया गया हो तो उसकी संक्षिप्त जानकारी भी देनी चाहिए।”

पाठक की मानसिक योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर फीचर लेखन किया जाना चाहिए। उसे प्रभावी बनाने हेतु प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों, उदाहरणों, लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग फीचर में चार चाँद लगा देता है।

  1. प्रश्न के उत्तर लिखिए।

(i) फीचर का मुख्य तत्त्व लिखिए।

(ii) फीचर लेखन में भाव प्रधानता क्यों होनी चाहिए ?

(iii) किस के बिना फीचर अविश्वसनीय बन जाता है?

(iv) फीचर लेखन में किससे चार चाँद लगते है ?

  1. निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए।
    (i) नीरस
    (ii) निष्पक्ष
    (iii) विख्यात
    (iv) क्लीष्ट
  2. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए। लता मगेंशकर का फीचर लेखन कीजिए।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 80 से 200 शब्दों में लिखिए।

(दो में से एक)

(i) समुद्री जीवों पर शोधपूर्ण आलेख लिखिए।

(ii) ‘लालच का फल’ बुरा होता है, इस उक्ति का विचार पल्लवन कीजिए।

7. अथवा

सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।

(i) पल्लवन में सूक्ति, उक्ति, पंक्ति या काव्यांश का किया जाता है।
(अ) जोड़ा
(ब) विस्तार
(स) स्थान
(द) आलोचना

(ii) फीचर लेखक को इस रूप से अपना मत व्यक्त करना चाहिए।
(अ) पक्षपाती
(ब) क्लिष्ट
(स) आलोचनात्मक
(द) निष्पक्ष

(iii) शासकीय एवं राजनीतिक समारोह के सूत्र संचालन में इसका बहुत ध्यान रखना पड़ता है।
(अ) प्रोटोकॉल
(ब) अतिथियों का
(स) वेशभूषा
(द) प्रसंगों का

(iv) ब्लॉग लेखन से यह लाभ भी होता है।
(अ) सामाजिक
(ब) राजकीय
(स) आर्थिक
(द) सांस्कृतिक

(ग) निम्नलिखित अपठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

आरा शहर। भादों का महीना। कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात। ज़ोरों की बारिश। हमेशा की भाँति बिजली का गुल हो जाना। रात के गहराने और सूनेपन को और सघन भयावह बनाती बारिश की तेज़
आवाज़। अंधकार में डूबा शहर तथा अपने घर में सोए-दुबके लोग! लेकिन सचदेव बाबू की आँखों में नींद नहीं। अपने आलीशान भवन के भीतर अपने शयनकक्ष में बेहद आरामदायक बिस्तर पर लेटे थे वे। पर लेटने भर से ही तो नींद नहीं आती। नींद के लिए-जैसी निशिंचतता और बेफ़िक्री की ज़रुरत होती है, वह तो उनसे कोसों दूर थी।

हालाँकि यह स्थिति सिर्फ़ सचदेव बाबू की ही नहीं थी। पूरे शहर का खौफ़ का यह कहर था। आए दिन चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार, राहजनी और अपहरण की घटनाओं ने लोगों को बेतरह भयभीत और असुरक्षित बना दिया था। कभी रातों में गुलज़ार रहने वाला उनका यह शहर अब शाम गहराते ही शमशानी सन्नाटे में तब्दील होने लगा था। अब रातों में सड़कों और गलियों में नज़र आने वाले लोग शहर के सामान्य और संभ्रांत नागरिक नहीं, संदिगध लोग होते थे। कब किसके यहाँ क्या हो जाए, सब आतंकित थे। जब इस शहर में अपना यह घर बनवा रहे थे सचदेव बाबू तो बहुत प्रसन्न थे कि महानगरों में दमघोंटू, विषाक्त, अजनबीयत और छल-छद्मी वातावरण से अलग इस शांत-सहज और निश्छल-निर्दोष गँवई शहर में बस रहे हैं। लेकिन अब तो महानगर की अजनबीयत की अपेक्षा यहाँ की भयावहता ने बुरी तरह से त्रस्त और परेशान कर दिया था उन्हें। ये बरसाती रातें तो उन्हें बरबादी और तबाही का साक्षात संकेत जान पड़ती थीं। इसे दुर्योंग कहें या विडंबना कि जिस बात को लेकर आदमी आशंकित बना रहता है, कभी-कभी वह बात घट भी जाती है। इस अंधेरी, तूफानी, बरसाती रात में जिस बात को लेकर डर रहे थे सचदेव बाबू उसका आभास भी अब उन्हें होने लगा था। उन्हें लगा आगंतुक की आहट होने लगी। उनकी शंका सही थी। अब दरवाजे पर थपथपाहट की आवाज़ भी आने लगी थी। सचमुच कोई आ धमका था।

  1. आकृति पूर्ण कीजिए:

(i) आरा शहर में घर बनवाते समय ये बहुत प्रसन्न थे।

(ii) सचदेव बाबू की आँखों में इसका नाम नहीं था।

(iii) बरसाती रातें बरबादी और तबाही का साक्षात यह थी-

(iv) सचदेव बाबू को लगा आगंतुक की आहाट होने लगी-

  1. निम्नलिखित शब्दों का वचन बदलकर लिखिए:
    (i) आवाज-
    (ii) चोरी-
    (iii) शंका-
    (iv) सड्क-
  2. चोरी, डकैती, राहजनी आदि की घटनाएँ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत स्पष्ट कीजिए।

(घ) निम्नलिखित शब्दों की पारिभाषिक शब्दावली लिखिए।

(आठ में से चार)
(i) Census Officer
(ii) Charge Sheet
(iii) Internal
(iv) By-law
(v) Admiral
(vi) Payment
(vii) Assured
(viii) Record
(ix) Friction
(x) Graphic Table

विभाग – 5 व्याकरण (अंक-10)

(क) निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए।

(चार में से दो)

(i) पढ़ लिखकर नौकरी करने लगा।

(पूर्ण भूतकाल)

(ii) प्रकाश उसमें समा जाता है।

( सामान्य भविष्यकाल)

(iii) मैं पता लगाकर आता हूँ।

(सामान्य भविष्यकाल)

(iv) यात्रा की तिथि भी आ गई।

(ख) निम्नलिखित उदाहरणों के अलंकार पहचानकर लिखिए। (चार में से दो)

(i) चरण-सरोज पखारन लागा।

(ii) पीपर पात सरस मन डोला।

(iii) हनुमान की पूँछ में लग न पाई आग। लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग॥

(iv) सबै सहायक सबल कै, कौऊ न निर्बल सहाय। पवन जगावत आग ही, दीप हिं देत बुझाय॥

(ग) निम्नलिखित उदाहरणों के रस पहचानकर लिखिए।

(i) काहु न तखा सो चरित विसेरना। सो सरूप नृप कन्या देखा। मर्कट वदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध मा तेही। जेहि दिसि बैठै नारद फूली। सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।

पुनि पुनि मुनि उकसहि अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकरहीं।

(ii) सुडुक-सुडुक घाव से पिल्लू निकाल रहा है, नासिका से श्वेत पदार्थ निकल रहा है।

(iii) तू दयालु दीन हौं, तू दानि हैं भिखारि।

हाँ प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुँज हारि॥

(iv) माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।

कर का मन का डारि कँ, मन का मनका फेर॥

(घ) निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए। (चार में से दो)
(i) जी-जान से काम करना
(ii) राह का रोड़ा बनना
(iii) धरती पर निगाह रखना
(iv) चल बसना

(ङ) निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए।(चार में से दो)

(i) प्रेरणा और ताकद बनकर परसपर विकास में सहभागी बनें।

(ii) चलते-चलते हमारे बीच का अंतर कम हो गया था।

(iii) समय का साथ उपयोगी हो गये।

(iv) साधु तानसेन की दया में छोड़ दिए गए।

8. [A] Answer Key

9. विभाग – 1 गद्य

(क)

1.

(i)

(ii) “जॉर्ज बर्नार्ड शॉ कहते हैं कि-लोग उनकी बातों को दिल्लगी समझकर उड्डा देते हैं। लोग उनकी उपेक्षा करते हैं और उनकी बातों पर गौर नहीं करते।”

  1. (i) महत्ता – परिणाम

(ii) सत्य – वास्तविक

(iii) दिललगी – ठिठोली

(iv) अध्ययन – अवलोकन

  1. समाज में हो रहे पाप, अन्याय, अत्याचार को मिटाने के लिए अनेक महान् समाज सुधारक हुए है। प्रत्येक युग में समाज सुधारक इन विडंबनाओं पर प्रहार करते हैं। समाज पाप, अत्याचार, भ्रष्टाचार अन्याय का जब शिकार होता हैं, तब समाज सुधारक इसे दूर करने का प्रयत्न जी-जान लगाकर करते हैं। परन्तु उन्हें समाज का या जिस पर अन्याय हुआ है उसका सहकार्य ही मिल नहीं पाता। पीड़ित समाज या व्यक्ति डर के कारण सहकार्य नहीं देते। तब समाज सुधारक के प्रतन हो जाता है।
    समाज सुधारकों के कार्यों में अनेक विघ्न आते हैं, कभी-कभी उनकी जान भी खतरे में पड़ जाती है। समाज में एकता नहीं होती है, कुछ लोग अच्छाइयों का विरोध करने वाले होते हैं। कुछ लोगों के मतानुसार किसी के अन्याय, अत्याचार का उन पर कोई दुष्परिणाम नहीं होता तो, समाज सुधारकों का उपदेश उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। वे अपने दैनिक कार्य करते रहते हैं। कुछ लोग या समाज में एक वर्ग ऐसा होता है जो समाज सुधारकों के विरुद्ध अन्याय, भ्रष्टाचार करने वालों का समर्थन कर उन्हें भड़काते हैं।

ऐसे अनेक कारण है, जिस वजह से समाज-सुधारक समाज में व्याप्त बुराइयों को पूर्णत: समाप्त करने में विफल रहे हैं।

(ख)

  1. संजाल पूर्ण कीजिए :
 

1 माँ

गद्यांश में प्रयुक्त

पारिवारिक रिश्ते

2 भाभी

3 बड़ी बहन

  1. (i) समस्या-समस्याएँ

(ii) बात-बातें

(iii) लड़का-लड़के

(iv) शक्ति-शक्तियाँ

  1. बेटी की प्रेरणा, उसकी माँ होती है। माँ का सानिध्य जहाँ बेटी को प्यार और सही मार्गदर्शन देता है, वहीं माँ ही बेटी की सच्ची व प्यारी

सहेली होती है। माँ एक ऐसी सहेली जो हमेशा सही मार्गदर्शन देती है। बेटी की प्रेरणा उसकी माँ होती है। माँ का सानिध्य प्यार और सही मार्गदर्शन ही बेटी को सफलता के विभिन्न सोपानों पर चढ़ने में मददगार होती है।

माँ ही दुनिया में अपनी बेटी की सबसे विश्वास्त और करीबी दोस्त होती है। वह बेटी की कमियों को जानती है और उन्हें दूर करने का प्रयास करती है।

(ग)

(i) ‘सुनो किशोरी’ इस पाठ में लेखिका ने परंपरा और रूढ़ि के संदर्भ में यह बात स्पष्ट की है कि रीति-नीति रूढ़ी समय के साथ अपना अर्थ खो चुकी हैं। परंपरा समय के साथ अनुपयोगी हो गए, मूल्यों को छोड़ती है और उपयोगी मूल्यों को जोड़ती, निरंतर बहती धारा परंपरा है। वर्तमान प्रगतिशील समाज को पीछे ले जाने वाली समाज की कोई भी रीति-नीति रूढ़ि है।

रूढ़ि स्थिर होती है और परंपरा एक निरंतर बहता निर्मल प्रवाह है, जो हर सड़ी-गली रूदि को किनारे फेंकता है और हर, भीतरी-बाहरी, देशी-विदेशी उपयोगी मूल्य को अपने में समेंटता चलता है।

लेखिका के मतानुसार टूटे मूल्यों को भरकस जोड़कर खड्डा करने से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि आज नहीं तो कल उसका जर्जर मूल्य नष्ट ही हो जाएगा। पश्चिमी मूल्य हमारे योग्य नहीं होते हैं। वे जैसे- की तैसे हम ग्रहण नहीं कर सकते। अगर हम ग्रहण भी करेंगे तो वह दुष्परिणाम ही दिखाएगें। वह हमारे अनुकूल और योग्य नहीं है।

(ii) महादेवी वर्मा जी ने ‘निराला भाई’ इस संस्मरण में निराला जी के चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया है। निराला जी में मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। वे मानवता के सच्चे पुजारी थे। उनका खुद का जीवन सदा अस्त-व्यस्त रहा है। खुद निर्धनता में जीवन बिताया परन्तु दूसरों को आर्थिक मदद करने के लिए वे सदा तत्पर रहते थे। उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया है। उनमें उदारता और आत्मीयता के दर्शन होते हैं।

‘अतिथि देवो भव’ इस संस्कार को लेकर चलने वाले थे निराला जी। अतिथि के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। अतिथि के लिए खुद भोजन बनाते थे, खुद बर्तन माँजते थे। खुद कष्ट उठाकर उदार भाव से उपयोग की वस्तुएँ भी जरूरतमंदों को दे देते थे। उनमें आत्मीयता के दर्शन तब होते हैं, जब उनके साहित्यकार साथी सुमित्रानंदन पंत जी के स्वर्गवास की झूठी खबर सुनकर वे व्याकुल हो उठे थे। पूरी रात वे सो नहीं पाए थे।

निराला जी की अपरिग्रही वृत्ती के कारण उन्हें मधुकरी माँगकर खाने की नौबत आ गयी थी। पुरस्कार में मिला धन भी वे जरूरतमंदों को दे देते थे। वे अन्याय सहन नहीं करते थे। इसका विरोध करते हुए उन्होंने लेख-लिखे हैं। साहित्य-साधना
के विशिष्ट साधक और लेखिका के स्नेही भाई निराला जी उदारता के महाप्राण थे। इस प्रकार उनमें अनेक गुण एक साथ विद्यमान थे।

(iii) ‘आदर्श बदला’ इस प्रस्तुत कहानी में लेखक ने ‘बदला’ इस शब्द को अलग ढंग से प्रस्तुत किया है। इस ‘बदला’ का अर्थ अच्छाई से सामने वाले को परिवर्तित करना है।

बैजू बावरा ने बाबा हरिदास से बारह वर्षों तक संगीत की शिक्षा पूरी ली। संगीत की हर प्रकार की बारीकियाँ सीखकर पूर्ण गंधर्व के रूप में तैयार हुआ।

अपने पिता को मृत्युदंड देने के पश्चात् बैजू विक्षिप्त हो गया था। उनके मन में बदला लेने की भूख थी। वह अपनी कुटिया में विलाप कर रहा था। तब बाबा हरिदास ने कुटिया में आकर उसका ढाँढस बँधाया। बाबा हरिदास ने बैजू का उस वक्त वचन दिया था कि वे उसे हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता की मौत का बदला ले सकता है। परन्तु संगीत की शिक्षा देते समय यह वचन भी ले लिया था कि ‘वह राग-विद्या या संगीत से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा।’

कुछ समय के पश्चात् जब बैजू आगरा की सड़कों पर गाता हुआ जा रहा था, तब वहाँ गाने के नियम के अनुसार उसे बादशाह के समक्ष पेश किया जाता है। शर्त के अनुसार तानसेन और बैजू बावरा के बीच संगीत प्रतियोगिता होती है। प्रतियोगिता में तानसेन बुरी तरह पराजित हो जाता है। तब तानसेन बैजू बावरा से अपने ज्ञान की भीख माँगता, उसके पैरों पर गिर जाता है। जब बैजू अपने पिता के मृत्यु का बदला लेने के लिए उसे प्राणदंड दिलवा सकता था।

परन्तु बैजू बावरा ने बदला नहीं लिया उसकी जान बख्श दी। उसने कहा कि जो निष्ठुर नियम बनवाया है उस नियम को मिटा दिया जाये। जिसके अनुसार आगरा की सीमाओं में किसी को गाने और तानसेन की जोड़ का न होने पर मृत्युदंड दिया जाना था। इस प्रकार बैजू बाबरा ने तानसेन का गर्व नष्ट कर दिया। अनोखा बदला लेकर पराजित कर दिया था। यह एक आदर्श बदला था। इसलिए ‘आदर्श बदला’ यह शीर्षक इस कहानी के लिए उपयुक्त है।

(घ)

(i) सुदर्शन ने मुंशी प्रेमचंद की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है।

(ii) कहानी विधा में जीवन में किसी एक अंश अथवा प्रसंग का वर्णन मिलता है। कहानियाँ अपने प्रारंभिक काल से ही सामाजिक बोध को व्यक्त करती हैं।

(iii) ‘सुनो किशोरी’-यह पाठ पत्र शैली में लिखा गया है निबंध है।

(iv) हिंदी के कुछ आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक मीरा’ की उपाधि दी गई।

10. विभाग -2 पद्य

(अ)

  1. (i)

(ii)

  1. (i)
    नभ- (1)
  • आकाश
    (2) – व्योम

(ii) (1) अविश्वास (2) पीछे

  1. लक्ष्य का अर्थ है निर्धारित उद्देश्य, जिसे प्राप्त करने के लिए गम्भीरतापूर्वक नजर रखी जाए और उसे अर्जित करने के लिए यथासंभव प्रयास किया जाए। हर व्यक्ति का अपने-अपने ढंग से लक्ष्य निर्धारण करने और उसे अर्जित करने का अपना तरीका होता है। ऐसे लक्ष्य क्षमता की कमी और अपर्याप्त साधन के अभाव में कभी पूरे नहीं हो पाते। जो व्यक्ति अपनी क्षमता और अपने पास उपलब्ध साधनों के अनुसार लक्ष्य का निर्धारण और उसकी पूर्ति के लिए तन-मन-धन से प्रयास करता है, वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में अवश्य सफल होता है। ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति जमीन से जुड़े हुए होते हैं।

(ख)

  1. (i) उपर्युक्त पद्यांश में आँखों की तुलना आईने से की गई है।

(ii) काम शुरू करने से पहले अपनी क्षमता के बारे में सोचना बहुत जरूरी होता है।

(iii) सरस्वती के भंडार में से जैसे खर्च किया जाता है वैसे ही उसमें वृद्धि होती रहती है; इसलिए सरस्वती के भंडार अपूर्व है ऐसा कहा जाता है।

(iv) दूसरों की आशा के भरोसे कोशिश करना बंद नहीं करना चाहिए।
2. (i) सौर-स्त्रीलिंग
(ii) नैना-स्त्रीलिंग
(iii) पाँव-पुल्लिंग
(iv) काठ-पुल्लिंग

  1. जितना आपके पास है, उसी का ही उपयोग करके अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना और उसी में समाधान मानना चाहिए। उसी को चादर देखकर पैर फैलाना कहलाते हैं। और इस प्रकार जीवन जीना ही बुद्धिमानी कहलाती है। इस प्रकार या इस नियम से जीवन जीने वाले चाहे व्यक्ति हो या कोई कम्पनी उनका कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है। अपनी क्षमता के साथ विचार करके ही जीवनयापन करने में ही बुद्धिमानी है, नहीं तो भविष्य में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।

अर्थात् हमारी शक्ति का अंदाज लगाकर ही हमें खर्चे करने हैं। अपनी क्षमता से ज्यादा या पहुँच के बाहर का काम नहीं करना चाहिए। इससे जीवन आसानी से कट जाता है। भविष्य सुरक्षित रहता है। इसलिए चादर देखकर पैर फैलाना बुद्धिमानी है।

(ग)

  1. ‘सुन रे सखिया’ इस लोकगीत में कवि ने बसंत और वर्षा ऋतु के साथ सावन महीने का मनोहारी चित्रण किया है। बसंत ऋतु के
    आगमन पर प्रकृति में हर तरफ फूल महकने लगते हैं, सरसों के फूलने से सारी धरती हरियाली की चादर ओढ़कर खिल उठती है। सरसों का सरसना, अलसी का आलसाना और कलियों का मुस्काना यह प्रकृति की सुंदरता देखकर सभी पशु-पक्षियों और मानव का तन-मन प्रसन्न हो जाता है। चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। इन ऋतु के आगमन से खेत वन बाग-बगीचे सब हरे-भरे हो जाते हैं। रंग-बिरंगे फूलों को देखकर इंद्रधनुष के विविध रंगों की याद आती है। भौरों के दल प्रसन्नता के साथ फूलों पर मँडराते हैं। प्रकृति का यह सॉँदर्य देखकर कंठ से मीठे गीत अपने-आप बाहर आ जाते हैं, आँखें मुस्कुराने लगती हैं। प्रकृति की यह बहार देखकर यौवन भी अँगड़ाइयाँ लेने लगता है। तन मन झूम उठते हैं। उसी के साथ सावन आने पर भी बादल घिरकर गरजने लगते हैं, बिजली चमकने लगती है। मेघ तो मानों प्यार बरसाकर हृदय का तार-तार रँग रहे हो, ऐसे रिमझिम-रिमझिम करके बरसते रहते हैं। मोर-पपीहा की बोली हृदय को प्रफुल्लित करते रहते हैं। तन-मन गुलाब की तरह खिल उठता है। जुगनू भी जगमगाहट के साथ डोलकर सबका मन लुभाते है। डालियाँ महक उठती हैं, बेली और लताएँ प्रफुल्लित हो जाती हैं। सभी सरोवर और सरिताएँ उमड़कर बहती रहती हैं। सभी ओर हरियाली छाई है, इस प्रकार धरती अँगड़ाई लेकर पुन: तरोताजा बन जाती है।
  2. (i) रचना का शीर्षक-नव निर्माण।

(ii) रचनाकार का नाम-त्रिलोचन जी।

(iii) पसंद की पंक्तियाँ-‘तुमने विश्वास दिया है मुझको

मन का उच्छवास दिया है मुझको।

मैं इसे भूमि पर सँभलूँगा,

तुमने आकाश दिया है मुझको।’

(iv) पसंद आने के कारण-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं, तुमने मुझे जो विश्वास दिया है, जो प्रेरणा दी है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसे देकर तुमने मुझे असीम संसार दे दिया है। पर मैं इन्हें इस तरह सँभालकर अपने पास रखूँगा कि में आकाश में न हूँ और मेरे पाँव हमेशा जमीन पर रहें। अर्थात् कवि का कहना है कि उन्हें अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रहे। मनुष्य जीवन में किसी का विश्वास प्राप्त करना किसी से प्रोत्साहन पाना बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है, इसी के आधार पर मनुष्य बड़े-बड़े काम करता है। इसलिए उपर्युक्त पंक्तियाँ पसंद हैं।

(v) कविता का केन्द्रीय भाव-प्रस्तुत कविता में आशावाद को स्वीकारने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को हमेशा अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही कविता में अत्याचार, विषमता तथा निर्बलता पर विजय प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने का आवाहन किया गया है। साथ ही समाज में मानवता, समानता और स्वतंत्रता की स्थापना मानवीय जीवन मूल्यों को अपनाते हुए करनी चाहिए, इस बात को स्पष्ट किया है। स्त्री-पुरुष समानता को दर्शाया है।

(घ)

(i) वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं : वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश, यमक सतसई आदि।

(ii) (1) लोकगीतों में गेयता तत्व प्रमुख होता है।

(2) दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। दोहे के प्रथम और तृतीय (विषम) चरण में 13-13 मात्राएँ होती है तथा द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। दोहे के प्रत्येक चरण के अंत में लघु वर्ण आता है। (iii) नयी कविता में नए प्रतीकों, उपमानों और प्रतिमानों को ढूँढ़ा गया। नयी कविता आज के मनुष्य के व्यस्त जीवन का दर्पण और आस-पास की सच्चाई की तस्वीर बनकर उभरी है।

(iv) चतुष्पदी चौपाई की भाँति चार चरणों वाला छंद होता है। इसके प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में पंक्तियों के तुक मिलते हैं। तीसरे चरण का तुक नहीं मिलता। प्रत्येक चतुष्पदी भाव और विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण होती है और कोई चतुष्पदी किसी दूसरी से संबंधित नहीं होती।

11. विभाग – 3 विशेष अध्ययन

(क)

  1. (i) कनुप्रिया के मन में मोह उत्पन्न हो गया है, क्योंकि वह अपने आपको अर्जुन की जगह होने की कल्पना करती है और कनु के द्वारा समझाया जाना उसे बहुत अच्छा लगता है।

(ii) कनुप्रिया के लिए कनु के अर्थहीन शब्द हैं-कर्म, स्वधर्म, निर्णय और दायित्व।

(iii) कनु के सभी शब्दों के कनुप्रिया के लिए केवल एक ही अर्थ यह है-मैं. मैं मैं।

(iv) उपर्युक्त पद्यांश में शब्द रजनीगंधा के फूलों की तरह टप-टप झर रहे हैं।

  1. (i) समस्या—कठिनाई

(ii) स्तब्ध-सुन्न, स्थिर

(iii) दायित्व-जिम्मेदारी

(iv) अँजुरी-करसंपुट, चुल्लू

  1. क्षेत्र चाहे जो भी हो, कार्य महत्त्वपूर्ण होता है। बिना मेहनत के बिना कार्य के उद्देश्य या ध्येय पूर्ण नहीं होता। अपने कर्म के आधार पर ही महानता सिद्ध होती है। वैज्ञानिक, उद्योगपति, बड़े अधिकारी अपने कार्यों के बल पर ही महान कहलाते हैं। कर्म करने पर ही फल की उम्मीद की जाती है। हाथ-पर-हाथ रखकर भाग्य के भरोसे बैठने पर कोई भी कार्य पूरा नहीं होता। भाग्य भी संचित कर्मों का फल ही होता है। इस कारण निष्क्रिय नहीं बैठना चाहिए।

कर्म व्यक्ति को सफलता के मार्ग पर ले जाते हैं। व्यक्ति की चाह जो भी हो, उस क्षेत्र में उसे कड़ी मेहनत करनी चाहिए। आत्मविश्वास और प्रयत्न के जोड़ के साथ किया हुआ कर्म सफलता की ओर ले जाता है। बिना मेहनत व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता। जैसे-नदी अपना प्रवाहित होने का कार्य करती रहती है। यदि उसने प्रवाहित होने का कर्म छोड़ दिया तो वह, उसका पानी उपयोगी सिद्ध नहीं होगा। रुकना खत्म होने का नाम है। कर्म करते रहना व्यक्ति का धर्म है। विद्यार्थियों को अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत और सूक्ष्मता से अध्ययन करना चाहिए। उसी प्रकार व्यक्ति को अपने ध्येय पूर्ति के लिए कर्म करना चाहिए। कर्म प्रधान होने से व्यक्ति का भविष्य भी सुरक्षित रहता है। इस प्रकार व्यक्ति को कर्म प्रधान होना जरूरी है।

(ख) (i) डॉ. धर्मवीर भारती की महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी ‘कनुप्रिया आधुनिक मूल्यों का काव्य है। राधा को लगता है कि प्रेम को त्यागकर युद्ध का अवलंब करना निरर्थक बात हैं। राधा के मानसिक संघर्ष का वर्णन यहाँ पर किया गया है।
प्रस्तुत काव्य में कई प्रसंग बहुत सुंदर ढंग से चित्रित किए गए हैं।

राधा कहती है, इतिहास की बदलती हुई करवट ने कृष्ण को युद्ध का महानायक बना दिया है। राधा के अनुसार इसमें उसके प्रेम की बातें बतायी गयी हैं। राधा को उसके प्रेम को सेतु बनाकर ही वे युद्धक्षेत्र में पहुँचे हैं। अवचेतन मन में बैठी राधा चेतन स्थित राधा से कहती है कि-,वह आम्र की डाल जिसका सहारा लेकर कृष्ण बंसी बजाते थे, वह डालें, अब काट दी जाएँगी, क्योंकि वहाँ कृष्ण के सेनापतियों के रथों की ध्वजाओं में अटकती हैं।’ चारों दिशाओं से उत्तर को उड़-उड़ कर जाते हुए, गिद्धों को क्या तुम बुलाते हो। इन पंक्तियों में राधा के मन की व्यथा स्पष्ट होती है।

राधा कहती हैं कि, हे कनु तुम्हारे साथ जो तन्मयता के क्षण मैंने जीये हैं, उसको तुम कोमल कल्पना या भावावेश मान लो या तुम्हारी दृष्टि से तन्मयता के गहरे क्षणों को व्यक्त करने वाले शब्द निरर्थक परंतु आकर्षक शब्द हैं और युद्ध का होना इस युग का जीवित सत्य था, जिसके नायक कनु थे और राधा कनु के इस नायकत्व से परिचित नहीं थीं। राधा ने तो सिर्फ कनु से स्नेहासिक्त ज्ञान ही पाया है। राधा को कृष्ण के कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व, यह शब्द समझ में नहीं आते हैं। उसे तो केवल ‘राधन्-राधन्’ और ‘ मैं; मैं’ ही शब्द सुनायी देते हैं। राधा को तो केवल तन्मयता के गहरे क्षण जो उसने कनु के साथ जिये हैं, वही सार्थक लगते हैं। इस प्रकार यहाँ राधा के मन की व्यथा का सुंदर चित्रण किया है।

(ii) कनुप्रिया अर्थात् राधा कहती है कर्म, स्वधर्म, निर्णय और दायित्व जैसे शब्द वह समझ नहीं पाती है, अर्जुन ने इन शब्दों में कुछ प्राप्त किया हो, परन्तु राधा ने कुछ भी नहीं प्राप्त किया है। कनुप्रिया कनु के उन होठों की कल्पना करती है, जिन होठों से उसने प्रणय के शब्द पहली बार कहे होंगे।

कनुप्रिया कल्पना करती है, कि अर्जुन की जगह वह है, और उसे कुछ भी पता नहीं है, युद्ध कौन-सा है, वह किसके पक्ष में है, समस्या क्या है और लड़ाई किस बात की है, यह सारी बातें कनुप्रिया अर्जुन की जगह स्वयं को पाकर कनु से इन सारी बातों को समझना चाहती है। कनु उसे यह बातें समझाए, इसलिए अर्जुन की जगह वह स्वयं है, कल्पना करती हैं, उसी

का उसे मोह उत्पन्न हो गया है। इसका कारण यह है कि कनुप्रिया को कनु के द्वारा समझाना बहुत अच्छा लगता है। जब कनु उसे समझा रहे होते हैं, तब कनुप्रिया को ऐसे लगता है कि, सेनाएँ स्तब्ध खड़ी रह गई हैं और इतिहास की गति रूक गई और कनु उसे समझा रहे हों।

कनुप्रिया कहती हैं कि कनु के प्रत्येक शब्द को वह अँजुरी बनाकर बूँद-बूँद उसे पी रही है। कनु का तेज उसका व्यक्तित्व
जैसे उसके शरीर के एक-एक मूर्छित संवेदन को दहका रहा है ऐसे लगता है, जैसे कनु के जादू भरे होठों से शब्द रजनीगंधा की फूलों की तरह एक के बाद एक झर रहे है।

इस प्रकार स्वयं को अर्जुन की जगह रखने का मोह कनुप्रिया के मन में उत्पन्न हो गया है और उसके द्वारा समझाना उसे बहुत ही अच्छा लगता है।

12. विभाग – 4 व्यावहारिक हिंदी अपठित गद्यांश और पारिभाषिक शब्दावली

(क) किसी भाव विस्तार अथवा सुगठित विचार को ‘पल्लवन’ कहते हैं। पल्लवन बीज से वृक्ष, बिंदु से वृत्त, कली से फूल तथा लौ से आलोक-परिधि बना देने की सहज प्रक्रिया है।

(i) सर्वप्रथम विषय के वाक्य, काव्यांश या कहावत को ध्यानपूर्वक पढ़ा जाता है। उसका भाव समझना जरूरी है। उस पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। पूरा अर्थ स्पष्ट होने पर एक बार पुन: विचार करना जरूरी होता है।

(ii) पल्लवन प्रक्रिया आरंभ करने से पहले मूल अर्थ तथा गौर भावों को विचारों को समझना आवश्यक है, इसके बाद विषय की संक्षिप्त रूपरेखा बनायी जाती है। उसके पक्ष-विपक्ष में सूक्ष्मता से सोचा जाता है। विपक्षी तरों को काटने के लिए तर्कसंगत विचार करना आवश्यक है। उसमें से कोई भी सूक्ष्म विचार अथवा उसका भाव उसमें आना जरूरी है। असंगत विचारों को निकालकर वहाँ तर्कसंगत विचारों को संयोजित करके अनुच्छेद बनाना आवश्यक हैं।

(iii) शब्दों को ध्यान में रखकर शब्द सीमा अनुसार स्पष्ट सरल भाषा में पल्लवन किया जाता है। पल्लवन के लिखित रूप को पुन: ध्यानपूर्वक पढ़ना आवश्यक है। पल्लवन लेखन में परोक्ष कथन, भूतकालिक क्रिया के माध्यम से सदैव अन्य पुरुष में लिखा जाता है। उत्तम तथा मध्यम पुरुष का प्रयोग पल्लवन में नहीं होना चाहिए। पल्लवन में लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण किया जाता है।

इस प्रकार अनुभूति अथवा चिंतन के द्वारा ही सम्यक अर्थ-बोध होता है, उसका मर्म समझता है और गागर में सागर का रहस्य समझने लगता है।

13. अथवा

  1. (i) किसी घटना की सत्यता अथवा तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व है।

(ii) फीचर लेखन में भाव प्रधानता होनी चाहिए क्योंकि नीरस फीचर कोई नहीं पढ़ना चाहता।

(iii) तार्किकता बिना फीचर अविश्वसनीय बन जाता है।

(iv) फीचर को प्रभावी बनाने हेतु प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों, उदाहरणों लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग से फीचर लेखन में चार चाँद लगते हैं।
2. (i) नीरस-सरस
(ii) निष्पक्ष-पक्षपाती
(iii) विख्यात-कुख्यात
(iv) क्लिष्ट-सरल

  1. ‘भारतरत्न’ प्राप्त लता मंगेशकर एक अप्रतिम गायिका हैं। उनकी आवाज़ में जो माधुर्य हैं, वह कहीं भी नहीं। उनके गीतों में माधुर्य
    एवम् कर्णप्रियता का समावेश होता है। उन्होंने अपने कैरियर में बीस से भी अधिक भाषाओं में तीस हजार से भी अधिक गाने गाए हैं। लताजी का जन्म 28 सितंबर, 1929 के इंदौर के मराठी परिवार में पंडित दीनदयाल मंगेशकर के घर में हुआ। संगीत लताजी को विरासत में मिला है। उनको पिताजी रंगमंच के कलाकार और गायक भी थे। लता मंगेशकर जी ने अपनी संगीत यात्रा का प्रारंभ मराठी फिल्मों से किया था। लता जी ने उस्ताद अमानत अली खान से क्लासिकल संगीत सीखना शुरू किया। साथ ही बड़े गुलाम अली खान, पंडित तुलसीदास शर्मा तथा उस्ताद अमानत खान देवसलले से संगीत की शिक्षा ग्रहण की।

लता मंगेशकर जी को पद्मभूषण, पद्मविभूषण, दादासाहेब फालके ऑवार्ड, महाराष्ट्र भूषण ऊवार्ड, भारतरत्न, बंगाल फिल्म पत्रकार संगठन अवॉर्ड तीन बार राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड ऐसे अनेक अवॉर्ड भारतीय संगीत में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्राप्त हुए हैं।

(ख)

(i) समुद्रों की विशाल व्याप्ती पृथ्वी के तीन चौथाई हिस्से पर व्याप्त हैं। समुद्री जीवों की विचित्र दुनिया है। समुद्र में ऐसे अनेक जीव भी हैं, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं है। समुद्र में खतरनाक विषैले जीवों के साथ छोटे-बड़े, रंग-बिरंगे और प्रकाश उत्पन्न करने वाले असंख्य जीव हैं।

समुद्र में विविध प्रकार की रंग बिरंगी मछलियाँ पाई जाती हैं। साथ शंख-सीपियाँ, सी हार्स, लायन-फिश, डाल्फिन, शील, केंकड़े, कछुए समुद्र में पाये जाते हैं।

समुद्र में कुल मछलियाँ ऐसी भी हैं, जो उड़ सकती हैं। ये मछलियाँ पानी की सहायता से ऊपर तेज गति से उड़ती हैं-यह मछलियाँ आकार में छोटी होती हैं। तो कुछ मछलियाँ तीक्ष्ण दाँतों वाली भी होती हैं, जिनका नाम पॉफर होता है। यह विचित्र मछलियाँ सामान्य मछलियों की तरह लंबी होती हैं और छूने पर यह गोल आकार धारण कर लेती हैं।

समुद्र में प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों का विशाल संसार है। प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव कभी अपने शिकार के लिए तो कभी अपनी आत्मरक्षा के लिए प्रकाश उत्पन्न करते हैं। जीव वैज्ञानिक इनके संदर्भ में खोज कार्य कर रहे हैं। समुद्र के संसार में पाया जाने वाला एक अद्भुत जीव है- क्लेल। यह समुद्र का सबसे बड़ा जीव है। इसकी लंबाई 25 मीटर और वजन 150 से 180 टन होता है। विशाल खतरनाक जीवों में शॉर्क मछली भी मशहूर हैं। अन्य समुद्री जीव इससे दूरी बनाकर चलते हैं, यह इतनी खतरनाक हैं।

विषैली मछलियों में जेली फिश यह पारदर्शी होती है और इसके शरीर से लटकने वाले रेशे बहुत विषैले होते हैं।

इस प्रकार विशाल समुद्र की तरह इसमें समुद्री जीव भी असंख्य और अनगिनत और विशाल हैं।

(ii) ऐसा कहा जाता है कि, लालच बुरी बला (आदत) है। अगर हम ईमानदारी से बिना किसी फल की अपेक्षा किए कोई कार्य करें, तो उसका फल हमें जरूर मिलता है। हमारे पास जो कुछ है, उसमें हमें संतोष पाकर अपना कर्म करना चाहिए लालच का फल सदैव बुरा होता है। कुछ प्राप्त करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। बिना मेहनत का मिला अंत तक टिकता भी नहीं है। अपनी मेहनत से हमें जो कुछ मिलता है उसका आनंद, सुख बहुत बड़ा होता है।

परंतु बिना मेहनत ज्यादा प्राप्त करने की लालसा रखने से व्यक्ति का नुकसान होता है। लालच बहुत बुरी चीज है, यह कभी-कभी मनुष्य को इतना नीचे गिराती है, कि व्यक्ति मानवता को भूल जाता है।

यदि जीवन में हमें सफलता प्राप्त करनी है, तो एक अच्छे इन्सान बनना होगा। दूसरों के बारे में सोचना होगा। लालची व्यक्ति, लालच करता है, वह कामयाबी से कोसों दूर रहता है। क्योंकि लालच का दुष्परिणाम एक न एक दिन जरूर सामने आ जाता है।

रिश्तों में किया हुआ लालच परिवार वालों, दोस्तों सभी के नजरों में गिर जाता है। सभी का भरोसा टूट जाता है। फिर कभी उसकी सहायता के लिए भी कोई खड़ा नहीं होता। इस कारण लालच नहीं करना चाहिए। लालच को त्यागना चाहिए। जो भी कार्य करना है, वह ईमानदारी और निस्वार्थ रूप से करना चाहिए।

14. अथवा

(i) पल्लवन में सूक्ति, उक्ति, पंक्ति या काव्यांश का विस्तार किया जाता है। (ii) फीचर लेखक को निष्पक्ष रूप से अपना मत व्यक्त करना चाहिए।

(iii) शासकीय एवं राजनीतिक समारोह के सूत्र संचालन में इसका प्रोटोकॉल का बहुत ध्यान रखना पड़ता है।

(iv) ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ भी होता है।

(ग)

  1. (i) सचदेव बाबू
    (ii) नींद का
    (iii) संकेत
    (iv) आहट
  2. (1)
    आवाज-आवाजें
    (ii) चोरी—चोरियाँ
    (iii) शंका—शंकाएँ
    (iv) सड़क-सड़कें
  3. आजकल चोरी, डकैती, राहजनी ऐसी घटनाएँ हर रोज अखबारों में पढ़ते को मिलती हैं। कुछ गुंडों ने बाइक पर आकर राह चलते महिला के गले से चैन खींचकर भाग गये या ताला तोड़कर चोर घर में घुसे और सोना पैसे लूट के ले गये आदि समाचार हम रोज पढ़ते हैं। परन्तु कभी ऐसी घटना को सामने घटते देखकर हम किसी की मदद करने के बजाय आगे ही बढ़ते रहते हैं। पुलिस और सरकार को दोष देकर हम अपना दैनिक कार्य करते रहते हैं।

परन्तु इन सारी बातों में हमें अगर सुधार लाना है तो हाथ-पर हाथ धरकर बैठे रहने के बजाय हमें कुछ करना चाहिए। आज जो हुआ है। कल वह हमारे साथ भी हो सकता है, इसलिए हमें लोगों की मदद करके या सुव्यवस्थापन करके ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाना चाहिए। या ऐसी घटना ही न घटे इस तरफ ध्यान देना जरूरी है।
(घ) (i) जनगणना अधिकारी
(ii) आरोप पत्र
(iii) आतंरिक
(iv) उपविधि
(v) नौसेनाध्यक्ष
(vi) भुगतान
(vii) बीमित
(viii) अभिलेख
(ix) घर्षण
(x) आरेखन तालिका

15. विभाग – 5 व्याकरण

(क) (i) पढ़ लिखकर नौकरी करने लगा था।

(ii) प्रकाश उसमें समा जाता था।

(iii) मैं पता लगाकर आऊँगा।

(iv) यात्रा की तिथि भी आ जाती है।

(ख)(i) रूपक अलंकार

(ii) उपमा अलंकार

(iii) अतिशयोक्ति अलंकार

(iv) दृष्टांत अलंकार।

(ग) (i) हास्य रस

(ii) वीभत्स रस

(iii) भक्तिरस

(iv) शांत रस

(घ) (i) जी-जान से काम करना-पूरी क्षमता से काम करना। वाक्य-मजदूर मकान बनाने के लिए जी-जान से काम करते हैं। (ii) राह का रोड़ा बनना-उन्नति में बाधक बनना। वाक्य-बुरे दोस्त अध्ययन करते समय राह का रोड़ा बनते हैं, तब उनसे दूर रहना ही अच्छा है।

(iii) धरती पर निगाह रखना-वास्तविकता से जुड़े रहना। वाक्य-हमें सदैव धरती पर निगाह रखकर ही अपना कार्य करना चाहिए।

(iv) चल बसना-मृत्यु होना।

वाक्य-रामू की बूढ़ी माँ वृद्धावस्था में चल बसी।

(ङ) (i) प्रेरणा और ताकत बनकर परस्पर विकास में सहभागी बनें।

(ii) हमारे बीच का अंतर चलते-चलते कम हो गया था।

(iii) समय के साथ उपयोगी हो गए।

(iv) साधु तानसेन की दया पर छोड़ दिए गए।